वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

भगवान् के साथ विवाह,पहले सुधर तो जा। 

8 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद

वर्तमान लेख शृंखला परम पूज्य गुरुदेव के जनवरी 1969 को तपोभूमि मथुरा में दिए गए उद्बोधन पर आधारित है। 

कल वाले ज्ञानप्रसाद लेख में हम सबने भगवान्  के साथ विवाह करने की पृष्ठभूमि, बैकग्राउंड, भूमिका पर विचार विमर्श किया। आज गुरुदेव बता रहे हैं कि हम भगवान् के साथ आपका विवाह तो करवा सकते हैं लेकिन उसके लिए पात्रता, योग्यता विकसित करनी  होगी। आज के मानव को  गुरुदेव ने “अभागा” कह कर सम्बोधन किया है। ऐसा इसलिए किया है कि भगवान की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति, भगवान का बड़ा बेटा,भगवान् का वरिष्ठ राजकुमार जिसे भगवान् ने बड़ी मेहनत से सहभागी और सहयोगी बना कर इस धरती पर भेजा था आज फिर उसी निम्न योनि में जा रहा है जहाँ से आया था। हमारे सभी सहयोगी हमारे साथ पूर्णतया सहमत होंगें कि किसी भी निम्न स्तर के पुरुष/स्त्री से विवाह कराना, रिश्ता बनाना घाटे का तो सौदा है ही, पूरा जीवन ही अस्त व्यस्त हो जाता है।

आज के लेख तथा आने  वाले लेखों में हम जानेगें कि परम पूज्य गुरुदेव हमें किस प्रकार तैयार करेंगें कि  भगवान् के साथ हमारा विवाह हो जाए  तथा विवाह के उपरांत हमे कौन कौन से अनुदान मिलने वाले हैं। 

आज के लेख में हमने राजस्थान के गांव नरसिंहपुरा की 30 वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट लड़की पूजा सिंह का भगवान् विष्णु के साथ विवाह का संक्षिप्त वर्णन दिया है। दिसंबर 2022 को इंटरनेट पर प्रकाशित हुई इस पोस्ट को और अधिक जानकरी के लिए देखा जा सकता है लेकिन हम इसे बिना किसी प्रतिक्रिया/कमेंट के यहीं छोड़ देना उचित समझते हैं।

आइए आरम्भ करें आज का ज्ञानप्रसाद अमृतपान।            

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परम पूज्य गुरुदेव भगवान् से हमारा  विवाह करवाना चाहते हैं।  ऐसा क्या कारण है कि गुरुदेव हमारा विवाह भगवान् से कराना चाहते हैं ? क्या यह सही मायनों में संभव है यां केवल  प्रतीकात्मक (symbolic) ही है। मीरा और भगवान् के विवाह के  विवरण से तो हम सब भलीभांति परिचित हैं, क्या आज के युग में मीरा जैसे  समर्पित मनुष्यों का कोई उदाहरण मिलता है ? 

इस सन्दर्भ में हम जयपुर राजस्थान के गांव नरसिंहपुरा की 30  वर्षीय पूजा सिंह की भगवान् विष्णु शादी quote तो कर सकते हैं लेकिन किसी भी controversy से दूर  ही रहना उचित समझेंगें। पोलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट पूजा सिंह ने जब मीडिया में अपनी तुलना मीरा से होती पायी तो उन्होंने क्लियर कर दिया कि कृपया मेरी तुलना मीरा से न की जाए, मैंने तो मंगल दोष निवारण के लिए शादी की है। 

परम पूज्य गुरुदेव हमें भगवान् से विवाह करने के लिए योग्य बनाना चाहते हैं क्योंकि इतनी ऊँची पदवी पाने  के लिए कोई  qualification तो निर्धारित की ही होगी, इसी qualification को पात्रता का नाम दे सकते हैं। 

जब ज्ञानदीक्षा समारोह  में आदरणीय चिन्मय जी कहते हैं कि आप यहाँ आए  नहीं हो, आपको यहाँ पर लाया गया है तो हमारी बेटी संजना के क्लास फेलो इसे हंसी मज़ाक समझ रहे थे। बिटिया ने हमारे साथ यह बात पिछले वर्ष शेयर की थी।  युगतीर्थ शांतिकुंज में हम  जाते नहीं  हैं हमें परम पूज्य गुरुदेव का निमंत्रण आता है। सरविन्द भाई साहिब के बारे में हम सब जानते हैं, इतने समर्पण के बावजूद आज तक उन्हें गुरुदेव का निमंत्रण नहीं आ सका, शायद गुरुदेव उनसे इस छोटे से परिवार का काम ही करवाना चाहते हैं। 

इसी सन्दर्भ में परमपूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि हमने आपको तपोभूमि में स्वच्छ मन, स्वस्थ एवं निरोग शरीर बनाने के लिए बुलाया  है ताकि आप भगवान से जुड़ सकें। हम आपको  गायत्री महापुरश्चरण करा रहे हैं। हमें प्रसन्नता है कि आप बहुत प्रातः काल ही उठकर पूजा, ध्यान, जप, प्राणायाम में लग जाते हैं। यह सब देखकर हमें बहुत  खुशी होती है।अगर आप किए जा रहे  कर्मकाण्डों से  कुछ प्रेरणा ले सकें तथा अपनी पात्रता का विकास कर सकें, अपनेआप  को जीवंत बना सकें, तो आप यकीन रखें कि आपका विवाह भगवान से हो जायेगा और आपको वोह  सारी ऋद्धि-सिद्धियाँ, वैभव आदि अपनेआप ही मिल जायेगा  जिसके लिए आप रात दिन  परेशान रहते हैं।

गुरुदेव आगे चलने से पहले बताना चाहते हैं भगवान् आज इतने हताश क्यों हैं। भगवान् की हताशा वर्णन करते हुए गुरुदेव कहते हैं कि आपने केवल अपने बेटे के लिए कमाया है, भले ही वह दो कौड़ी का ही क्यों न हो । आपने केवल उसी के लिए जीना सीखा है। आपका  जीवन किस काम के लिए खर्च हो गया ? केवल मुट्ठी भर पत्थरों के लिए, कभी आपने सोचा ही नहीं कि जीना क्या होता है, जीना किसके लिए होता है। यह कमाई, जिसके लिए आप दिन रात  एक कर रहे हैं, न तो आपके साथ जानी है और न ही आपको मिलनी है।  आपकी कमाई आपके बेटे को मिलने वाली है, साले को मिलने वाली है, जमाई को मिलने वाली है। भगवान् ने आपको मनुष्य का शरीर दिया था। जिस दिन भगवान् ने  आपको बनाया था, उसके बहुत ऊँचे स्वप्न  थे, उम्मीदें थीं। आपने उन सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया ।

मित्रो ! भगवान् बहुत ज्यादा थक गया है। उसकी इच्छा है कि हमारे प्रिय बेटे मनुष्य, यदि इस दुनिया को सुन्दर बनाते, तो आनंद  आ जाता। भगवान् को सहभागी और सहयोगी की आवश्यकता थी । इसलिए भगवान् ने आपको बनाया था। उसने आपको बड़ी मेहनत से बनाया था। भगवान् के पास गीली मिट्टी थी । उसने कुम्हार के तरीके से उस मिट्टी को इस प्रकार लम्बा कर दिया कि साँप बन गया। गोल-मटोल कर दिया तो कछुआ बन गया, मेंढक  बन गये, लेकिन  जिस दिन भगवान् ने आपको बनाया, उन्हें पसीना आ गया। उनका बहुत सारा समय बीत गया, उनकी सारी कला लग गयी, तब कहीं जाकर “एक सर्वश्रेष्ठ कलाकृति” का जन्म हुआ। सर्वश्रेष्ठ कलाकृति को बनाने के पीछे  भगवान् का एक ही उद्देश्य था, इस दुनिया को सुन्दर बनाने का उद्देश्य। भगवान् के सहयोगी और सहभागी बन कर इस दुनिया को सुखी और सुन्दर बनाने का उद्देश्य।भगवान्  ने एक ऐसी बेमिसाल चीज़ बना दी जिसे हम  मनुष्य का शरीर कहते  हैं । A perfect human body .

जब हम हिमालय गये, तो अपने साथ नंदनवन  का फोटो खींचकर लाए थे । लम्बाई-चौड़ाई थी, परन्तु गहराई का पता नहीं लग सका तथा जो फोटो खींचा था, वह पीले रंग का आया था। उसे देखकर मैंने सोचा कि यह कैसे हो सकता है, फोटो का रंग, तो इस प्रकार का नहीं होना चाहिए। वह तो मखमली था। मैंने उसे उठाकर फेंक दिया। यह सब कैमरे के लेंस  का कमाल था ।

मित्रो, हमारी आँखों में एक ऐसा सुंदर लेंस लगा हुआ है जिसका इस दुनिया में कोई  जवाब नहीं है। यह वास्तविक फोटो खींच लेता  है, अब हम पर निर्भर करता है कि हम दुनिया को  देखने के लिए  इस लेंस का कैसे प्रयोग करते हैं। 

भगवान् ने मनुष्य को इतना  बेशकीमती शरीर क्यों दिया? भगवान् द्वारा मनुष्य को  दिया गया यह  ऐसा अनुदान है जो  किसी भी  प्राणी को नहीं मिला है। मनुष्य के प्रति भगवान् ने  इतनी उदारता भगवान् ने क्यों बरती ? यह प्रश्न हम सबके सामने है। आपको विचार करना चाहिए कि भगवान् ने ऐसा पक्षपात क्यों किया ? अगर अन्य प्राणियों में सोचने की, विचार करने की शक्ति रही होती  तो वे भगवान् के सामने उपस्थित हो जाते और  अपनी फरियाद सुनाकर मनुष्य को  जेल भिजवा देते ,लेकिन  उन के पास विचार की शक्ति नहीं है,  इसलिए वे बेचारे क्या करें। ऐसी स्थिति में हम मनुष्यों को तो विचार करना ही चाहिए कि अगर इस पक्षपात के  मामले में भगवान् को अगर कोर्ट में बुलाया जाता, तो वह काँपता हुआ आता। जब उससे इस सम्बन्ध में स्पष्टीकरण माँगा जाता  तो वह कहता कि मनुष्य को हमने विशेष चीजें इसलिए नहीं दीं कि वह फिजूलखर्ची करे तथा मौज-मस्ती में  उड़ाये । हमने तो इस दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए, सजाने-सँवारने के लिए यह विशेष सम्पदाएँ प्रदान कीं क्योंकि यह हमारा बड़ा बेटा है, राजकुमार है। हमने इस कारण से उसे राजगद्दी दे दी थी और सारी जिम्मेदारी सौंपी थी। पिता की भांति अनेकों शक्तियां एवं प्रतिभाएं हमने अपनी वसीयत में उसे सौंप दीं ,इस धारणा से  कि वह मेरा सहयोग करेगा। हम तो यही सोच बैठे थे कि  यह हमारा बड़ा बच्चा है, वरिष्ठ राजकुमार है, जो इस दुनिया को सुन्दर बनाता हुआ चला जाएगा, लेकिन यह हमारी गलतफहमी थी, हमारा भ्र्म था। 

गुरुदेव कहते हैं कि मैं उस अभागे के बारे में, उस मुर्ख के बारे में क्या कहूँ। वोह तो  वहीं आ गया, जहाँ से चला था। वह कुत्ते की योनि से बन्दर की योनि से, सुअर की योनि से आया था और निम्न कोटि के चिन्तन, विचार होने के कारण फिर उसी योनि में चला गया। उसे निम्न कोटि के प्राणियों की तरह केवल  पेट तथा प्रजनन की बात याद है, बाकी चीजें तो वह भूल-सा ही गया। उस अभागे को यह समझ में नहीं आया कि जब भगवान् ने बन्दर के लिए, अन्य प्राणियों के लिए पेट भरने की व्यवस्था की है, तो क्या अपने  प्रिय पुत्र मनुष्य को भगवान् भूखा रखेगा ? परन्तु हाय रे अभागे मनुष्य, तू इस मनुष्य जीवन का मूल्य ही न जान पाया। मनुष्य ने भगवान के उद्देश्य को नज़रअंदाज़ किया  और  कहने लगा कि मैं अपनी बुद्धि  से ही  कमाऊँगा, बहुत सारा धन अर्जित  करूँगा और खूब  मौज-मस्ती करूँगा। बुद्धि के  दुरूपयोग के कारण मनुष्य इसी unending, कभी भी न समाप्त होने वाली दौड़ में लगा रहा, पता तब चला जब जीवन के अंतिम पलों ने दस्तक दे दी। 

मनुष्य का  हीरे एवं मोती जैसा दिमाग इसी मृगतृष्णा में भटकता रहा लेकिन तृष्णा बढ़ती ही गयी, बढ़ती ही गयी। हमारा  परम सौभाग्य है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में गुरुदेव ऐसी प्रतिभाओं का चयन करके भेज रहे हैं जिनमें मृगतृषणा को नकारते हुए “जो प्राप्त है वही पर्यापत है” के सिद्धांत का पालन एवं प्रचार किया जाता है। गुरुदेव मृगतृष्णा के  उदाहरण के लिए  घोड़ा, हाथी, भैंस आदि  जानवरों के बारे में कहते हैं कि यह सभी जानवर  मनुष्य से अधिक  खाते हैं और उनका पेट भर जाता है लेकिन  इस अभागे मनुष्य का पेट है कि भरता ही नहीं है। मनुष्य पेट की खातिर बर्बाद हुए जा रहा है।  

गुरुदेव कह रहे हैं कि भगवान् ने हमसे कहा कि आचार्य जी, हम तो बहुत चिन्तित हैं । हमने उन्हें पानी पिलाया और कहा कि आप जाइए  एवं चिन्तित मत होइये । आपके पास तो चौरासी लाख योनि वाले प्राणियों की अनेकों शिकायतें आ चुकी हैं। आप जाइए , अब हम ही इसे दरुस्त करेंगे। 

कैसे ? यह कल वाले लेख में देखेंगें। 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 6  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता सरविन्द  जी हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। (1)संध्या कुमार-34 ,(2) सुजाता उपाध्याय-35,(3) रेणु श्रीवास्तव-37 ,(4) सुमन लता-24,(5) चंद्रेश बहादुर-33,(6)सरविन्द पाल-48 

सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।


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