7 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
सच में गुरुदेव हमारा विवाह भगवान् से कराना चाहते हैं ,कैसे ? इस अद्भुत और दिव्य विषय की सही मायनों में चर्चा तो कल से आरम्भ करेंगें लेकिन आज इसकी पृष्ठभूमि बनाना बहुत ही आवश्यक है। बॉलीवुड वाले मूवी रिलीज़ करने से कई महीने पहले, यहाँ तक कि वर्षों पहले भी घोषणा कर देते हैं कि 2024 की ईद पर यह मूवी रिलीज़ होने वाली है और दर्शक अपने लोकप्रिय नायक/ नायिका की एक वर्ष पहले से ही प्रतीक्षा करना आरम्भ कर देते हैं। कई बार तो प्रोडूसर/डायरेक्टर का यह हथकंडा काम कर जाता है और मूवी हिट हो जाती है लेकिन कई बार टोटल फ्लॉप भी हो जाती है, मूवी की हिट होना यां फ्लॉप पब्लिक पर निर्भर है क्योंकि “यह पब्लिक है, यह सब जानती है।” लेकिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सूत्रधार, संचालक, डायरेक्टर,प्रोडूसर, नायक, हमारे परम पूज्य गुरुदेव, हम सब के हृदय में विराजमान हैं, उनकी मूवी न तो कभी फ्लॉप हो सकती है और न ही उसे किसी ट्रेलर यां पृष्ठभूमि की आवश्यकता है, हम तो आपने साथियों को Monday Blues से बाहिर निकालने का प्रयास कर रहे हैं।
इस चर्चा को थोड़ी देर रोक लेना ही उचित होगा क्योंकि अपने साथियों के लिए शुभकामना, मंगलकामना किये बिना, उनका हाल-चाल पूछे बिना आगे बढ़ना शिष्टचार के मानवी सिद्धांत का घोर उलंघन ,जिसे इस परिवार में कदापि सहन नहीं किया जाता /जाएगा। अपनत्व और स्नेह की परकाष्ठा पर आधारित है यह परिवार,जिसे हमारा सादर नमन है।
हम पूर्ण विश्वास कर सकते हैं कि हमारे सभी साथी पूर्णतया स्वस्थ, कुशल मंगल होंगें, रविवार की संचित शक्ति से ऊर्जावान होंगें और गुरुवर के चरणों में, गुरुकुल पाठशाला की ज्ञानप्रसाद कक्षा में सोमवार के ज्ञान का अमृतपान करने को तत्पर होंगें। वैसे तो सप्ताह के सभी 6 दिन, साथियों की ऊर्जा को प्रमाणित करते हैं लेकिन सोमवार के दिन की ऊर्जा कुछ अलग ही होती है। इस दिन की ऊर्जा की तुलना अगर उगते सूर्य की प्रथम किरण की लालिमा भरी ऊर्जा से करें तो शायद अनुचित न हो। हमारे प्रतिभाशाली साथी, सहपाठी, सहकर्मी अवश्य ही इस पंक्ति पर कमेंट करेंगें। हमारी अल्पबुद्धि ने यह मार्गदर्शन दिया और लेखनी ने शब्दबद्ध कर दिया। हमारे अनेकों साथी भावनाओं के वशीभूत होकर अपने कमैंट्स के माध्यम से हमें “जीवन प्रबंधन” के वोह सिद्धांत पढ़ा जाते हैं जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के वरिष्ठ साथी अपने जीवन भर के अनुमान से तो हमें पढ़ा ही रहे हैं, कोई आश्चर्यजनक बात नहीं लगती लेकिन जब हमारे वोह बच्चे जिनकी आयु और अनुभव हमारे पोते/पोतियों जैसी है, हमारे पढ़ाते हैं तो आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय तो लगता ही है किन्तु शत प्रतिशत सत्य है।
साथियों की बात हो रही है तो शनिवार वाले लेख के सम्बन्ध में कहना चाहेंगें कि आदरणीय सरविन्द जी के हर रविवार को गायत्री मंदिर/शक्तिपीठ/प्रज्ञापीठ जाने के सुझाव का सभी ने स्वागत किया है लेकिन हर किसी की व्यक्तिगत विवशता तो है लेकिन प्रयास करने में सभी एक मत से वचनबद्ध हैं।
स्वामी श्रद्धानन्द जी पर आधारित मूवी को देखने में सभी ने बड़ी उत्सुकता व्यक्त की है जिसके लिए हम आपका धन्यवाद् करते हैं। आदरणीय सुमन लता बहिन जी तो विशेषकर गुरुकुल कांगड़ी जाने में उत्सुक होंगें, जीवन के 26-27 वर्ष वहां गुज़ारे हैं। हम तो इस मूवी का लिंक भी दे सकते थे, सभी अपनी अपनी सुविधानुसार देख लेते, लेकिन इक्क्ठे देखकर एक संयुक्त परिवार की भावना को सार्थक करना भी तो इस परिवार का बहुत बड़ा कर्तव्य है। हमारे वरिष्ठ साथियों ने अपने ह्रदय में उन दिनों की स्मृतिओं को अवश्य ही टटोला होगा जब पूरा स्कूल “अनपढ़” जैसी सुप्रसिद्ध शिक्षाप्र्द मूवी देखने जाता था और सिनेमाघरों के बाहिर “ स्कूल स्पेशल शो” का बोर्ड लगा होता था। कुछ ऐसा ही माहौल बनने वाला है इस शुक्रवार की “वीडियो कक्षा” में जहाँ हमारे “invited guru” स्वामी श्रद्धानन्द जी होंगें।
साथियों के इस सेक्शन की अंतिम बात कह कर, भगवान् से विवाह की बात करेंगें।
“कमैंट्स-रिप्लाई कमैंट्स” की प्रक्रिया की लोकप्रियता का एक उदाहरण पिछले सप्ताह केवल दो दिन यूट्यूब में आयी समस्या से देखा गया है। साथियों की छटपटाहट इस बात की साक्षी है कि एक बहुत ही शक्तिशाली सूत्र ने परिवार के एक-एक सदस्य को एक अटूट रिश्ते में बांध रखा है। व्हाट्सप्प पर अनेकों साथियों के मैसेज आते रहे लेकिन अंत में निवारण हो ही गया, तभी हम सबके सांस में सांस आयी।
आइए अब बात करें पूज्यवर द्वारा हमारा भगवान् से विवाह संपन्न कराने की । जब हमने गुरुवर “की धरोहर” में इस शीर्षक को देखा तो फौरन बचपन में की जाती रही स्कूल प्रार्थना का एक एक शब्द मस्तिष्क में घूम गया। गूगल से सर्च किया, निम्नलिखित पंक्तियों को बार-बार पढ़ा, कहीं भी ईश्वर के साथ पति जैसा या पत्नी जैसा सम्बन्ध दिखाई नहीं दिया। वाह रे मेरे गुरु, एक और आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय किन्तु सत्य वृतांत।
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बन्धु, सखा तुम्हीं हो,
तुम्हीं हो साथी तुम्हीं सहारे, कोई ना अपना सिवा तुम्हारे,
तुम्हीं हो नैया तुम्हीं खवैया,तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो
जो खिल सके ना वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं,
दया की दृष्टि सदा ही रखना, तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो,
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो,तुम्हीं हो बन्धु, सखा तुम्हीं हो
भगवान् को माता, पिता, साथी, सहारा, बंधू, सखा, नैया,खवैया सब बता दिया लेकिन पति/पत्नी का कहीं भी कोई भी वर्णन न मिला
13 पन्नों के लेख को कईं दिन तक पढ़ा, बार-बार पढ़ा, इसी अंक में प्रकाशित “हमारा कुटुंब तब और अब” को भी पढ़ा कुछ कुछ समझ आना आरम्भ हुआ लेकिन बार-बार पंडित लीलापत शर्मा जी के शब्द गूंजते रहे; “ऐसा लेखक हमने आज तक नहीं देखा, हमने एक बार पढ़ना शुरू किया तो बस पढ़ते ही गए ,पढ़ते ही गए।” हमारा भी कुछ ऐसा ही हाल था; गुरुप्रेम में डूबते ही गए, डूबते ही गए गुरुदेव ने ऐसे-ऐसे उदाहरण दिए थे कि पढ़ते समय ऐसा अनुभव हो रहा था कि गुरुदेव सामने बैठ कर ही किसी अबोध बच्चे को पढ़ा रहे हैं।
सही मायनों में इस विषय का शुभारम्भ तो कल ही करेंगें लेकिन आज के ज्ञानप्रसाद का समापन निम्लिखित उदाहरण देकर करते हैं :
अगर किसी स्त्री की शादी एक सेठजी के साथ होती है तो स्त्री पहले दिन से ही मुहल्ले भर में सेठानी प्रसिद्ध हो जाती है, चाहे उसके पास कानी कोड़ी भी न हो। दुर्भाग्य से उसके पति का देहान्त हो जाता है, तो वह सेठानी, उसकी सारी ज़मीन-जायदाद की मालकिन बन जाती है। भक्त का भगवान् से सम्बन्ध जोड़ने, भगवान् से विवाह करने का यही रिजल्ट होता है। डॉक्टर की पत्नी डॉक्टरनी, वकील की पत्नी वकीलनी, पंडित की पत्नी पंडिताइन बन जाती है, चाहे वह पाँचवीं क्लास पास ही क्यों न हो।
जिस प्रकार धर्मपत्नी बनकर आत्मा से सम्बन्ध जोड़ने पर पति की सारी सम्पत्ति की मालकिन पत्नी बन जाती है, उसी प्रकार भगवान् से सम्बन्ध जोड़ने पर होता है। युगतीर्थ शांतिकुंज में अनेकों प्रकार के सत्रों का आयोजन करना और हमारा वहां जाकर इन सत्रों को सम्पन्न करना, अनुष्ठानों आदि को करना, एक तरह से भगवान् से विवाह करने जैसा ही है। यह अनुष्ठान विवाह के समय हल्दी लगाने तथा बाल सँवारने, वस्त्र आदि से सजाने के बराबर है।
धीरे धीरे जब हम इन क्रियाओं को समझने लगते हैं तो आत्मा का परमात्मा से मिलन होना अनुभव करते हैं। परम पूज्य गुरुदेव हमारा संबंध भगवान् से कराना चाहते हैं, ताकि हमारा सम्बन्ध मालदार व्यक्तित्व से हो जाये। मनुष्य की प्रवृति है कि वोह हमेशा बड़ों के साथ, अमीरों के साथ,प्रसिद्ध व्यक्तित्वों से सम्बन्ध बनाना चाहता है ताकि उसे लाभ तो हो ही, शान और रुतबा भी बड़ा हो जाए। मालदार के साथ सम्बन्ध बना लेने से मनुष्य को फायदा ही रहता है।
एक आदमी किसी बहुत बड़े सेठ के पास काम करता था। सेठ उसे कुछ लाने को भेजते थे और सौ रुपये देते हैं। वह अस्सी रुपये का सामान लाता था और बीस रुपये अपनी जेब में में रख लेता था। सेठजी उससे पूछते भी नहीं थे । इस प्रकार छोटे-छोटे कामों में वह पैसा इकट्ठा करता जाता था और मालदार से सम्बन्ध जुड़ने के कारण मालदार होता जाता था । उसकी पत्नी बड़ी शान से कहती थी कि हमारे बाबू की तनख्वाह से तो परिवार का गुज़ारा भी नहीं चल सकता, रोज़ तो कामना ही पड़ता है। यह है मालदार से सम्बन्ध जुड़ने के भौतिक लाभ।
हमारे पाठक सोच रहे होंगें कि कहाँ हम “जो प्राप्त है वही पर्यापत है” के सिद्धांत को प्रमोट करते हैं तो कहाँ आज हेराफेरी और भौतिकता की बात कर रहे हैं, ऐसा नहीं है, यह केवल उदाहरण की बात है; हमारा स्टैंड वही है ,जो प्राप्त है वही पर्यापत है।
भगवान् से सम्बन्ध बनाने पर हमें क्या-क्या लाभ मिलते हैं, यह तो जुड़ने के बाद ही पता चलता है।
यही है आज का ज्ञानप्रसाद।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता अरुण जी हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। (1)संध्या कुमार-43,(2) सुजाता उपाध्याय-45,(3) रेणु श्रीवास्तव-47,(4) सुमन लता-40,(5) चंद्रेश बहादुर-40,(6)अरुण वर्मा -24,62,(7) मंजू मिश्रा-25,(8) पूनम कुमारी-31
सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।