1 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
कल आरम्भ हुई लेख श्रृंखला का यह दूसरा पार्ट है। यह लेख शृंखला उस उद्बोधन पर आधारित है जिसे परम पूज्य गुरुदेव ने 1986 की गुरुपूर्णिमा पर दिया था। इस लोकप्रिय, बहुचर्चित उद्बोधन में गुरुदेव ने “चार” बातों की चर्चा की है जिन्हें जानने, समझने और अपने अंतःकरण में उतारने का प्रयास करेंगें। इन चारों बातों की जानकारी तो लेख के अंतिम पैराग्राफ तक मिलती रहेगी, इसलिए बेहतर होगा का एक परिश्रमी विद्यार्थी की भांति हर लेख के notes बना कर रख लें। हमारे साथी हमसे पूछ सकते हैं कि “ क्या हमने कोई परीक्षा उत्तीर्ण करके गोल्ड मैडल अर्जित करना है ?” जी हाँ, अगर इस भावना से पढेंगें, तभी कहीं जाकर परम पूज्य गुरुदेव के साथ हमारे ह्रदय के तार जुडेंगें।
कल वाले लेख में पोस्ट हुए अधिकतर कमैंट्स से यही अनुभव हो रहा है कि लोकप्रियता के कारण अनेकों साथियों ने इस कंटेंट को अनेकों माध्यमों से पहले ही सुन रखा है/ पढ़ रखा है , लेकिन अनेकों ऐसे भी होंगें जो इसे पहली बार पढ़ रहे हों। यह परम पूज्य गुरुदेव का दिव्य साहित्य है, इसे जितनी बार पढ़ा जाए, नया ही प्रतीत होगा। पढ़ने को तो जितनी बार मर्ज़ी पढ़ लें, महत्व तो इस बात का है कि अंतःकरण में कितनों ने उतारा, अगर उतारा तो कितनो को प्रभावित कर पाए।
कल के लेख का अल्प विराम संकल्प लेने पर हुआ था, ज्यों ज्यों पाठक पढ़ते जाएंगें, स्वयं ही जानते जायेंगें कि गुरुदेव कौन-कौन से संकल्प लेने को कह रहे हैं।
तो आइए गुरुपूजा के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ करें।
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गुरुदेव कह रहे हैं :
हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप हमारे रास्ते पर आइए, साथ-साथ चलिए। हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाइए । इसमें आपको कोई नुकसान नहीं होगा । आप हम पर विश्वास कीजिए हमने आपके सभी विरोधियों को मार कर रखा है और विजय की माला आपके लिए गूँथकर रखी है । पाँचों पांडवों के लिए विजय की मालाएं बनी हुई रखी थीं, मात्र उनके गले में पहनानी भर थीं। आपके लिए भी मालाएं रखी हैं, मात्र आपको पहननी हैं, आपको श्रेय भर लेना है। यह जो नवयुग का क्रम चल रहा है, उसमें जब आप भागीदार होंगे तो श्रेय आपको ही मिलेगा ।
गुरुदेव कहते हैं कि आपके परिवार की, बाल बच्चों की सारी जिम्मेदारी हमारी है । यदि वे बीमार होते हैं तो हम उनकी बीमारियाँ दूर कर देंगे । व्यापार में नुकसान होता है तो उस नुकसान को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है।आपके व्यापार में अगर घाटा पड़ जाए तो आप हम से वसूल कर लेना।
बेटे, जब बच्चा बड़ा हो जाता है तब कुछ बड़ी चीज़ दी जाती है। आप भी अब जवान हो गए हैं। अब हम सभी को काम-धंधे में लगाएंगे और जो-जो हमारे पास बाकी बचा है वह आप सब में बाँट देंगे। नहीं गुरुजी, जब आप जाएंगे तब अपनी कमाई भी अपने संग ले जाएंगे। बेटे, हम ऐसा नहीं करेंगे । हम आपको यकीन दिलाते हैं कि हमारी जो भी कमाई है वह सब आपको देकर जाएंगे चाहे वह पुण्य की कमाई हो, चाहे वह सांसारिक कमाई हो, चाहे आध्यात्मिक हो, उस कमाई में तुम्हारा भी हिस्सा है ।
हमने जीवन भर दिया ही दिया है। बाप-दादा की 2000 बीघे भूमि थी, वह हम दे आए और स्त्री के पास जेवर थे, वह भी हम दान में दे आए । बच्चों की गुल्लक में पैसे थे वह भी हम दे आए। अब आपके पास कुछ और धन है ? नहीं बेटे, धन के नाम पर एक कानी कौड़ी का एक लाख हिस्सा भी हमारे पास नहीं है। आपको तलाशी लेनी हो या मरने के बाद पता लगाना हो कि गुरुजी के पास क्या मिला, तो मालूम पड़ेगा कि
“शांतिकुंज में एक ऋषि रहा करता था और यहाँ की रोटी खाया करता था और सारे दिन चौबीसों घंटे काम करता था। बेटे, धन के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन हाँ हमारे पास एक पूँजी है “तप की पूँजी” यदि वह न होती तो हम इतनी बड़ी बात क्यों करते। इस तप की पूँजी से हम आपकी मुसीबतों में, कठिनाइयों में सहायता कर सकते हैं ।”
हम आपको संसार का नेता बनाना चाहते हैं। हमें भगवान ने नेता बनाकर भेजा था, हम आपको नेता बनाना चाहते हैं। चाणक्य को नेता बनाकर भेजा था । वह नालंदा विश्वविद्यालय के डीन थे। बिनोवा को नेता बनाकर भेजा था । हम भी आप में से हर एक मनुष्य को नेता बनाना चाहते हैं, नेता बनाने की हमारी इच्छा है । आप अपनी इच्छाएं लिखकर हमें दे जाना। जब हम बैठते हैं तब देख लेते हैं । रात में हमारा पूजा-उपासना का क्रम रहता है । सवेरे से लेकर दोपहर तक हम अपना लेखनकार्य करते हैं ताकि अखण्ड ज्योति आने वाले 20 वर्ष तक बराबर निकलती रहे। 20 वर्ष के लिए लेख और जो पुस्तकें प्रकाशित होनी हैं, वह सब हम लिखकर रख जाएंगे ।जब युगसंधि समाप्त होगी और सन 2000 आएगा , उस वक्त आप यह अनुभव करेंगे कि गुरुजी जो लिखकर रख गए थे, उनकी लेखनी में कोई फर्क नहीं आया, उनके अक्षरों में कोई फर्क नहीं आया । उनकी पुस्तकों में, पत्रिकाओं में कोई फर्क नहीं आया है। मिशन में कोई फर्क नहीं आया है और न ही आएगा ।
गुरुदेव अपने बच्चों के बता रहे हैं कि अब दोपहर के बाद हमने मिलना भी शुरू कर दिया है। सूक्ष्मीकरण साधना के दौरान यह मिलना-मिलाना सब बंद था। यह मिलना सभी के लिए नहीं है,केवल पाँच-दस लोगों को, जिन्हें बहुत आवश्यक कार्य होते हैं उन्हें ही ऊपर बुला लेते हैं, । गुरुदेव ने यह समय दोपहर से शाम तक रखा हुआ था। अधिकतर लोग तो झरोखे में से ही दर्शन करके संतोष कर लेते थे। गुरुदेव कहते हैं कि सांसारिक कठिनाइयाँ हों तो माता जी से कह देना । यह डिपार्टमेंट मैंने माता जी के ज़िम्मे कर दिया है । संसार की जितनी भी कठिनाइयाँ हों, सब माता जी से कहिएगा । कोई आध्यात्मिक बात हो या कुछ ऊंचा उठना हो तो फिर हमारे पास आना । हम आपके बड़े कदम उठाने में मदद करेंगे। हमने इस दुनिया में बड़े कदम उठाए हैं और बड़े कदम उठाने के लिए आपसे भी कहते हैं।
नास्ट्राडोमस की भविष्यवाणी, भारत सारे विश्व का नेतृत्व करेगा:
एक और बात मैं प्रमाण के तौर पर आपको बताता हूँ। विश्व के एक बहुत बड़े भविष्यवक्ता ने सैकड़ों वर्ष पूर्व यह बात कही थी। संसार में ऐसे भविष्यवक्ता तो बहुत से हैं जो हाथ देखकर यह बताते हैं कि तेरा विवाह कब हो जाएगा, पैसा कब आएगा, कब क्या हो जाएगा । इसी तरह जन्मपत्री बनाने वाले बहुत से लोग हैं, किंतु दुनिया में एक ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिन्होंने सारे संसार के बारे में भविष्यवाणीआं की हैं और इन भविष्यवाणिओं में से 10 तो सत्य भी साबित हो चुकी हैं, उनका नाम था नास्ट्राडोमस,जो एक फ्रांसीसी डॉक्टर थे। लगभग 500 वर्ष पूर्व ब्रिटेन का तो नामोनिशान भी नहीं था। स्काटलैंड था,आयरलैंड था, इंग्लैंड था। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि ब्रिटेन यानि UK बनेगा। उस भविष्यवाणी का एक-एक अक्षर सही साबित हुआ। सबसे वर्तमान भविष्यवाणी तो न्यूयोर्क की 9/11 की घटना थी। गुरुदेव कहते हैं कि यह तो केवल नमूने के लिए बता रहा हूँ । नास्ट्राडोमस की भविष्यवाणियाँ एक कवितामय पुस्तक में लिपिबद्ध हैं जिसे फ्रांस के राष्ट्रपति Mitterand सिरहाने रखकर सोया करते थे ।
उस कवितामय पुस्तक में भारत के प्रति भविष्यवाणी की गयी है कि इस देश का अध्यात्म और पश्चिम का विज्ञान, दोनों आपस में मिल जाएंगे। उन बहुत सी भविष्यवाणियों में से आपके काम की एक ही है कि “भारत सारे विश्व का नेतृत्व करेगा जैसा कि आजकल अमेरिका कर रहा है। अमेरिका चाहे बम बनाए, स्पेस शटल चैलेंजर बनाए, star war की योजना बनाए, किंतु बाद का नेतृत्व भारत ही करेगा ।
गुरुदेव बताते हैं कि सारे विश्व का नेतृत्व करने के लिए भारत को बड़े कर्मठ, शक्तिशाली और क्षमता संपन्न व्यक्ति चाहिए। बड़े लड़ाकू योद्धा चाहिए, बड़े-बड़े इंजीनियर चाहिए, बड़े-बड़े समर्थ मनुष्य चाहिए और वही मैं तलाश कर रहा हूँ। बेटे, अगर तुम्हारे अंदर योग्यता नहीं है तो हम तुम्हें योग्यता देंगे । तुम्हारी खेती-बाड़ी को ही नहीं संभालूँगा वरन योग्यता भी दूंगा ताकि तुम संसार का नेतृत्व कर सको ।
बिहार स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के तरीके से हमने शांतिकुंज में लीडर बनाने का एक विद्यालय बनाया है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय जहाँ चाणक्य स्वयं अध्यापक थे,10000 विद्यार्थी पढ़ते थे। हमारी भी इच्छा है कि हम 10000 विद्यार्थी एक साथ पढाएं लेकिन यहाँ इतने सारे विद्यार्थियों के लिए जगह नहीं है । अभी यहाँ कल तक 2850 मनुष्य थे, आज 4000 हो गए हैं, ठूंस-ठूंस कर भी रखना चाहें तो 4000 से अधिक व्यक्ति नहीं आ सकते, जबकि हमारा मन है कि जिस तरीके से चाणक्य 10000 व्यक्तियों को पढ़ाते थे और शिक्षा पूर्ण हो जाने पर भारत से लेकर सारे विश्व में अपने शिष्य भेजते थे हम भी सारे विश्व में यहाँ के पढ़े लिखों को विश्व भर में फैला दें। साधारण से चंद्रगुप्त को उसने सम्राट चंद्रगुप्त चक्रवतीं राजा बनाया। हमारी भी इच्छा है कि उसी स्तर के नेता बनाएं लेकिन बना नहीं सकते क्योंकि हमारे पास जगह की कमी है।
शांतिकुंज ही शक्ति का केंद्र है :
गुरुदेव कहते हैं कि ऐसे में अगर हम पढ़ा नहीं सकते तो फिर क्या योजना है ? कुछ नई स्कीम है जो आज गुरुपूर्णिमा के दिन बतानी है और वह यह है कि प्रज्ञा विद्यालय तो यहीं पर चलेगा क्योंकि “शांतिकुंज ही शक्ति” का केंद्र है, शक्ति का उद्भव यहीं होगा । जेनरेटर तो यहीं लगेगा, लेकिन हमें जगह-जगह प्रज्ञा पाठशालाओं की स्थापना करनी है। इसके लिए आप सब जितने भी मनुष्य हैं, उनको हम एक कार्य सौंपते हैं। एक महीने की प्रज्ञा पाठशालाएं तो यहीं होंगी लेकिन पंद्रह दिन की पाठशाला क्षेत्रों में शक्तिपीठों में चलेंगी । शांतिकुंज में उत्तीर्ण होने पर बड़े साइज का प्रमाण-पत्र दिया जाता है,शक्तिपीठों में उत्तीर्ण होने पर छोटे साइज का दिया जाएगा । परीक्षा ली जाएगी और वहाँ भी हम नेता बनाएंगे । आपको हम भारत का ही नहीं, सारे विश्व का नेता बनाने वाले हैं । भारत में हमने 10-10 गाँवों के खंड काटे हैं और उन्हें एक-एक व्यक्ति के सुपुर्द किया है और कहा है कि आप अपने यहाँ प्रज्ञा पाठशालाएं चलाएं। पिछले वर्ष आप लोगों ने हमारे कहने पर किसी ने यज्ञ किए, किसी ने शक्तिपीठ बनाए, किसी ने क्या किया, हजारों काम बताए और लोगों ने किए हैं। इस वर्ष अब आप सब लोग यह विचार लेकर जाएं कि या तो हम प्रज्ञा पाठशाला चलाएंगे या चलवाएंगे । इस कार्य में कोई रुकावट नहीं आवेगी ।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता चंद्रेश जी हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
(1)संध्या कुमार- 30 ,(2) सुजाता उपाध्याय-32 ,(3) रेणु श्रीवास्तव-30 ,(4) सुमन लता-25 ,(5) चंद्रेश बहादुर-55,(6)अरुण वर्मा -47,(7) मंजू मिश्रा-30,(8) वंदना कुमार-25,(9) नीरा त्रिखा-25
सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।