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31 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद
सोमवार का दिन बहुत ही ऊर्जा और उत्साह भरा दिन होता है। वैसे तो रविवार को भी अपने समर्पित साथियों से संपर्क बना रहता है लेकिन एक दिन के अवकाश के बाद गुरुकुल पाठशाला में आने की, अपने सहपाठियों से मधुर मिलन की, कमैंट्स के माध्यम से परस्पर संवाद की जो प्रसन्नता होती है, उत्सुकता होती है, उसे हम केवल अनुभव ही कर सकते हैं, उस अनुभव को शब्दों में पिरोने में हमारी लेखनी असमर्थ है -यह सारा दिल का खेल है ,इसका मूल्यांकन केवल भावनाओं के स्तर पर ही संभव है।
“गुरुवर की धरोहर भाग 2” का लगातार अध्ययन करते समय हमने यही अनुभव किया है कि इन पुस्तकों के कंटेंट अपने उन साथियों के लिए बहुत ही लाभदायक हो सकते हैं जिन्हें न तो परम पूज्य गुरुदेव के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो सका और न ही उनकी दिव्य वाणी का अमृतपान हो सका। वैसे तो टेक्नोलॉजी ने गुरुदेव के अनेकों उद्बोधन ऑडियो/ वीडियो फॉर्म में उपलब्ध करा दिए हैं,लेखों की फॉर्म में प्रस्तुत करके हम अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं। हमारे पाठक इन्हें पढ़कर, कमैंट्स द्वारा चर्चा करके अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं और अनेकों माध्यमों से शेयर होकर यह और भी प्रभावशाली हो रहे हैं और घर घर पंहुच रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव के साहित्य की रिसर्च करके न जाने कितने ही शोधकर्ताओं ने रिसर्च डिग्रियां अर्जित कर ली हैं।
आज आरम्भ हो रही लेख श्रृंखला उस उद्बोधन पर आधारित है जिसे परम पूज्य गुरुदेव ने 1986 की गुरुपूर्णिमा पर दिया था। इस लोकप्रिय, बहुचर्चित उद्बोधन में गुरुदेव ने “चार” बातों की चर्चा की है जिसे जानने और अपने अंतःकरण में उतारने का प्रयास करेंगें। यह उद्बोधन गुरुदेव का अंतिम उद्बोधन था, इसके बाद गुरुदेव कभी भी शांतिकुंज के मुख्य मंच पर नहीं आए। लोकप्रियता के कारण हमारे साथियों ने इस लेख के कंटेंट को अनेकों माध्यमों से पहले ही सुन रखा होगा।
आज का ज्ञानप्रसाद लेख आरम्भ करें उससे पहले बताना चाहेंगें कि हमारी सबकी प्रिय पिंकी बेटी के व्हाट्सप्प मैसेज के अनुसार आदरणीय सरविन्द जी अगले दो दिन के लिए धान की रोपाई में व्यस्त रहने के कारण गुरुकुल पाठशाला से अनुपस्थित रहेंगें।
इस बार का साप्ताहिक विशेषांक बहुत ही रोचक होने वाला है, Keep an eye and wait.
तो आइए गुरुपूजा के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ करें।
देवत्व विकसित करें, कालनेमि (दैत्य) न बनें
(परमपूज्य गुरुदेव का प्रस्तुत प्रवचन सूक्ष्मीकरण साधना के तुरंत बाद जन-साधारण के समक्ष पर्वो पर दिए गए उद्बोधनों में अंतिम व अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
गुरु पूर्णिमा 1986 के बाद वे कभी शांतिकुंज के मुख्य मंच पर नहीं आए ।)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलें:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ अखंड मंडलाकारं व्यासं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
आप लोग जन्म के देवता हैं :
देवियो, भाइयो, बहुत पुराने समय की बात है जब रावण सीता जी का अपहरण करके ले गया था और सबके सामने यह समस्या थी कि उसका मुकाबला कैसे किया जाए ? रावण से युद्ध कैसे किया जाए ? बहुत सारे लोग थे, राजा-महाराजा भी थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि रावण से लड़ने के लिए जाए, कौन अपनी जान गँवाए, कौन मुसीबत में फँसे ? इसलिए कोई भी तैयार नहीं हुआ।
मर्यादा पुरषोतम भगवान राम कहने लगे कि क्या कोई भी योद्धा,दुष्ट रावण के साथ लड़ने और सीता माता को छुड़ाने में हमारा सहयोग नहीं करेगा ? तो फिर क्या हुआ था ? देवताओं ने विचार किया और कहा कि यह तो भगवान का काम है, इस काम में हमें सहायता करनी चाहिए। देवताओं ने सुग्रीव की सेना में, हनुमान की सेना में सम्मिलित होकर रावण से लड़ने की योजना बनाई । देवताओं ने वानर ,रीछ आदि का रूप बनाया । कहाँ इतना शक्तिशाली योद्धा रावण और कहाँ बेचारे यह वानर । दोनों के बल और शक्ति की कोई तुलना ही नहीं कर सकता, लेकिन फिर भी वानर और रीछ रावण से युद करने को चल पड़े, यह कैसे संभव हो पाया ? यह ऐसे संभव हो पाया कि वानर, रीछ तो देवता थे। अगर वह देवता न होकर रीछ-वानर रहे होते तो पेड़ों पर कूद रहे होते, मचल रहे होते, बच्चे पैदा कर रहे होते, कुछ और काम कर रहे होते। यह रीछ वानर सीता माता को छुड़ाकर, रामराज्य की स्थापना कैसे कर पाते। लंका को तहस-नहस करने के लिए उनके पास इतनी शक्ति कैसे आ गयी ? लेकिन उन्होंने बिना किसी शंका के यह सब कर दिखाया, इतिहास साक्षी है।
परम पूज्य परिजनों को सम्बोधन करते हुए कहते हैं, “ मैं आप लोगों को रीछ और वानर ही मानता हूँ।आज एक बार फिर उसी ऐतिहासिक घटना की पुनरावृत्ति होने जा रही है । आप लोग पूर्व जन्म के देवता हैं। जब कभी आपको एकांत का समय मिले, स्वयं के भीतर झांक कर देखना कि आप वानर हैं या देवता। वास्तव में आप देवता ही हैं। कठिन समय में देवताओं के सिवाय और कोई काम आ ही नहीं सकता। आप लोगों से मुझे यही कहना है कि आपको जब कभी मौका मिले तो स्वयं से बात करना और कहना , “ गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुजी ने कहा था कि हमारे भीतर देवता बैठा हुआ है, देवता विराजमान है । देवता जो काम किया करते हैं, वे जिस काम के लिए अपना जीवन लगाया करते हैं, जिसके लिए पुरुषार्थ किया करते हैं, वही पुरुषार्थ गुरुदेव ने हमारे सुपुर्द किया गया है ।”
एक बात तो मुझे आपसे यही कहनी थी।
भगवान् ने अर्जुन से कहा : तू युद्ध कर।
दूसरी बात यह कहनी थी कि जब महाभारत हुआ था, तब अर्जुन यह कह रहा था कि हम तो पाँच पांडव हैं और कौरव सौ हैं, उनके पास विशाल सेना भी है, हमारे पास सेना भी नहीं है, थोड़े से पाँच-पचास आदमी हैं। ऐसे में भला युद्ध कैसे हो सकता है । हम तो निश्चय ही मारे जाएंगे । इसलिए वह बार-बार मना कर रहा था और कह रहा था कि महाराज हमें लड़ाइए मत, इसमें हमको सफलता नहीं मिल सकती । आप हिसाब लगाइए कि इनसे लड़कर हम विजय कैसे प्राप्त कर सकेंगे ? कैसे जीत सकेंगे ? तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि देखो अर्जुन, हमने इन सबको तो पहले ही से ही मार कर रखा है, तुम्हारे लिए सिंहासन सजाकर रखा है। तुम पाँचों को उस सिंहासन पर बैठना है, राज्य करना है। इसके लिए तुम्हे कौरवों को मारना पड़ेगा लेकिन यह सब तो पहले से ही मरे मराए हैं, तुम तो खाली तीर-कमान चलाओगे ।
गुरुदेव अपने परिजनों से कह रहे हैं, “ठीक उसी तरह युग को बदलने में जो काम मेरा था, मैंने करके रखा है। युग निर्माण के संबंध में आपको तो श्रेय भर ही लेना है। जीतना किससे है और हारना किससे है ? न किसी से हारना है, न किसी से जीतना है। न किसी को मारना है। आपको तो जो विजयी होने का श्रेय मिलना है, वही श्रेय जो अर्जुन ने प्राप्त किया था, आपको प्राप्त करना है।
भगवान से बातचीत से पहले अर्जुन फज़ूल की बहस कर रहा था, मेरा गला सूख रहा है, यह सब मेरे सम्बन्धी हैं आदि आदि” तब कृष्ण भगवान झल्ला पड़े और उन्होंने हुक्म दिया “तस्मात् युद्धाय युजस्वं” अर्थात युद्ध कर। अर्जुन फिर भी डर रहा था तो भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि तेरी जिम्मेदारी हम उठाते हैं, तू केवल युद्ध कर।
गुरुदेव कहते हैं : साथियो, आज गुरुपूर्णिमा का दिन है, आप में से हर एक मनुष्य की, देवता की जिम्मेदारी हम उठाते हैं। देवता जब रीछ- वानर बनकर चले आए थे तो पीछे उनके घर बीवी-बच्चे रह गए थे, कुटुंब रह गया था, उन सबको भगवान ने संभाला था। आपके घर को संभालने की, व्यापार को संभालने की, खेती-बाड़ी को संभालने की, हारी-बीमारी को संभालने की जिम्मेदारी हमारी है और आपकी यह सब जिम्मेदारियाँ हम उठाते हैं। आप हमारा काम कीजिए हम आपका काम करेंगे । हम आपको यकीन दिलाते हैं, आप हमारा विश्वास कीजिए हम आपका काम जरूर करेंगे । पिता ने अपने हर एक बच्चे का काम किया है। पिता से बच्चे ने जब जो माँगा है, दिया है। जब टॉफी माँगी है तो टॉफी दी है, झुनझुना माँगा तो झुनझुना दिया है । तुम तो छोटे बच्चे हो, इसलिए यही माँगते रहते हो । आते ही यह माँगते रहते हो । अब आगे से जो भी कहना हो बेटे लिखकर दे जाना, फिर हमारा उत्तर सुनते जाना और नोट करके ले जाना कि गुरुजी ने यह वायदा किया है। कौन सा वायदा किया था ? बेटा हमने 24-24 लाख के चौबीस पुरश्चरणों का जो पुण्य कमाया था उसका, और अब तीन वर्ष लगातार एकांत रहकर मौन साधना की है,और भी अनेकों साधनायें की हैं। इन सभी साधनाओं की पुण्य संपदा हमारे पास जमा है, इस पुण्य संपदा में आपका भी बराबर का हिस्सा है। जिस प्रकार माँ के गर्भ में बच्चे के आते ही कानूनन माता पिता की सम्पति पर बच्चे का हक़ हो जाता है ठीक उसी प्रकार हमारी कमाई पर आपका हक है। अपने पिता की सम्पति को लेने के लिए प्रार्थना मत कीजिए, निवेदन मत कीजिए, मनुहार मत कीजिए, वरदान मत माँगिए। आप अपना हक माँगिए और कहिए पिताजी हम आपका काम करते हैं और आपको हमारा हक देना ही पड़ेगा । हम आपका पूरा ख्याल रखेंगें। आप बीमार होंगें, हम आपकी बीमारी को अच्छा करेंगे। आपको पैसे की तंगी आ गयी है तो हम उस तंगी को भी दूर करेंगे। आप किसी कोर्ट कचहरी के मामले में लड़ाई-झगड़े में फैंस गए हैं तो हम उसमें भी आपकी सहायता करेंगे। आप पर कोई मुसीबत आ गई है तो हम आपकी ढाल बनकर उस मुसीबत को रोकेंगे । भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ चलाया था, आपका रथ हम चलाएंगे। काहे का रथ ? आपके कारोबार का रथ, आपके व्यापार का रथ, आपके धंधे का रथ, आपके शरीर का रथ, आपकी गृहस्थी का रथ; यह सब हम चलाएंगे, हम इसका वायदा करते हैं, लेकिन यह सब कुछ करने के लिए हम भी आपसे एक संकल्प मांगते हैं। कौन सा संकल्प ? कैसा संकल्प ?
आगे की बात कल करेंगें।
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 7 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता अरुण जी, संध्या जी और चंद्रेश जी हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
(1)संध्या कुमार- 44 ,(2) सुजाता उपाध्याय-36 ,(3) रेणु श्रीवास्तव- 36 ,(4) सुमन लता-25 ,(5) चंद्रेश बहादुर-46 ,(6) सरविन्द पाल-37 ,(7) अरुण वर्मा -48 सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।