वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ज्ञानदान शृंखला में प्रेरक कहानी और सत्य घटना।

https://youtu.be/RdvMqCRFoGY
27 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद
अगर “देने वाला देवता” होता है तो दान करने वाला भी देवता है क्या ? इन्ही शब्दों से प्रेरित होकर हमने दान के विषय पर जिस लेख शृंखला का अमृतपान किया आज उसका समापन हो रहा है, समापन क्या इसे तो मध्यांतर भी कहना शायद ही उचित हो क्योंकि गुरुदेव द्वारा लिखित किसी भी साहित्य का समापन/अंत नहीं हो सकता, यह अनंत शिक्षा है, एक टॉपिक से दूसरे टॉपिक की ओर स्विच करते समय हमें स्वयं को समझाना ही पड़ता है कि यह केवल करवट की बदली है, अभी तो बहुत कुछ बाकि है।
आज के लेख में निस्वार्थ दान दर्शाती एक प्रेरक कहानी और सुरभित स्मृतियों से ली गयी अभयदान पर आधारित एक सत्य घटना है।
कल शेयर होने वाली वीडियो अभी-अभी रिलीज़ हुई “माँ की संस्कारशाला” होगी, बिल्कुल ही नवीन और यूनिक प्रयास है।
इन्हीं शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के लिए गुरुकुल पाठशाला की और रुख करते हैं।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।


निस्वार्थ भाव से दान पुण्य करें, प्रेरक कहानी
एक गांव में एक बहुत ही परोपकारी ठाकुर रहता था। बेटा होने के साथ ही ठाकुर की पत्नी का देहांत हो गया। बेटा नेत्रहीन था लेकिन ठाकुर को परमात्मा पर विश्वास था कि प्रभु की कृपा से एक दिन बेटा ठीक हो जायेगा। ठाकुर काफी दान पुण्य करता कि कभी तो प्रभु की कृपा होगी। ऐसे ही करते कुछ वर्ष बीत गये लेकिन कुछ न हुआ। अब ठाकुर को चिंता होने लगी कि मेरे बाद बेटे का क्या होगा। तभी स्वर्ग लोक मे नारद जी नारायण-नारायण बोलते हुए ब्रह्मा जी के पास जाते है और बोलते हैं : प्रभु ये क्या? आप कितने निर्दय हैं , आप उस मानव की सहायता क्यों नहीं करते वो रोज दान पुण्य करता है, फिर भी आप उस कष्ट दे रहे हो,आप बहुत स्वार्थी हैं, आपको उस का दुख नहीं दिखता? ब्रह्मा मुस्कराए और बोले: इसमे मेरा क्या स्वार्थ है नारद ?
तब नारद शिवजी के पास जाते है और वही बात शिवजी से भी करते है, नारद जी की बात सुनकर शिवजी हंसते लगते है और बोलते हैं : “इंसान स्वार्थी है।”
ये बात सुनकर नारद जी को और गुस्सा आया और वो वहाँ से विष्णु जी पास आए और अपनी बात बताई। तब विष्णु जी बोले : “जिस दिन ठाकुर निस्वार्थ पुण्य करेगा मै उस दिन उस की परेशानी को खत्म कर दूँगा।”
नारद जी बोले: प्रभु! वोह रोज पूजा पाठ करता है, दान करता है, फिर भी आप कहते हो वोह स्वार्थी है, इस प्रकार तो जगत में सभी स्वार्थी हैं।
प्रभु नारद जी से बोले : तुम भूलोक में जाओ और स्वयं ठाकुर की परीक्षा लो। नारद जी धरती पर जाते हैं, वह एक नन्हे बच्चे का रूप ले लेते हैं, भूखा-नंगा सा रूप ले के ठाकुर के गाँव में पहुँच जाते हैं । एक दिन ठाकुर मन्दिर जा रहे थे तभी रास्ते मे उनकी नजर उस बच्चे पर पड़ी, उन्होंने उस बच्चे से पूछा: बेटा कहाँ से आए हो और तुम्हारे माँ-बाप कहाँ है। बच्चा बोला : बाबूजी, भूख लगी है कुछ खाने को दो न । ठाकुर को उस बच्चे की हालत पर तरस आता है और वोह पूजा के लिए बनाया प्रसाद बच्चे को दे देते हैं और बिना पूजा किए ही घर लौट आते हैं, उस बालक को भी घर ले आते हैं ।अब ठाकुर उस बालक को अपने बेटे जैसा पालने लगे, इस तरह कई वर्ष बीत गए। एक दिन की बात है कि रात में नारद जी ठाकुर के सामने प्रकट हुए और बोले: ठाकुर, मैं आपकी सेवा से खुश हुआ, कोई एक वरदान मांगो ठाकुर की आंखों में आंसू आ जाते हैं और बोलते हैं : मै कितना स्वार्थी था। प्रभु आप नहीं जानते, जिस दिन आप मुझे भूखे मिले थे सिर्फ उस दिन मेरे मन मे कोई स्वार्थ नहीं था, उसी रात को मेरे बेटे की आंखों मे रोशनी आ गई थी मैंने यह बात किसी को नहीं बताई। बस मैं तो बिना स्वार्थ के आप की सेवा कर रहा था।
यह जानकर नारद बड़े हैरत में पड गए कि आखिर यह चमत्कार किसने किया, फिर भी नारद बोले: आप मुझसे कोई वरदान मांगो । तब ठाकुर बोलते हैं : प्रभु, मुझे कुछ नहीं चाहिए, आपने मेरे घर को प्रकाशमय कर दिया है।
नारद जी वहाँ से विदा लेकर स्वर्ग लोक में आते हैं । ब्रह्मा,विष्णु और शिव तीनों को एक साथ देख कर हैरत में पड जाते हैं और बोलते हैं : प्रभु, आपने मुझे जिस दिन धरती पर जाने को बोला, उसी दिन आपने ठाकुर की इच्छा पूरी कर दी, क्या उस दिन वह स्वार्थी नहीं था। तब विष्णु जी बोले: उस दिन जब तुम ठाकुर के पास भूखे गए थे, तब ठाकुर ने बिना स्वार्थ तुमको भोजन करवाया, यह पुण्य से कम नहीं था। मैं यही चाहता हूँ कि बिना स्वार्थ कोई किसी की मदद करे। तब शिवजी बोलते है: हे मुनि! आपने तो उसी दिन उसे वरदान दे देना चाहिए था जब उसने आपको भोजन करवाया आपने तो वर्षों लगा दिए, क्या आप स्वार्थ से परिचित नहीं थे? नारद जी बोलते हैं : प्रभु, आप की माया से मैं अपरिचित हूँ। आपने मुझे बोला ठाकुर की परीक्षा लो लेकिन आप तो मेरी भी परीक्षा ले रहे थे। तब ब्रह्मा जी बोलते है: स्वार्थ का अर्थ होता है, केवल अपने लाभ की बात सोचना, दूसरों के लाभ और भले की बात नहीं सोचना, सही मायने मे वही स्वार्थी है।
इसलिए जो ज्ञानी है, जिसने भगवान से अपना लक्ष्य सिद्ध करने का लक्ष्य बनाया, वोह भगवान सम्बन्धी स्वार्थी है।

जनवरी 2011 में मेरे दाहिने पैर में अचानक असह्य पीड़ा शुरू हो गयी। बहुत सारे चिकित्सकों से इलाज कराने के बाद सर्जरी की सलाह दी गयी, 13 जुलाई को ऑपरेशन की तारीख रखी गयी। मुझे ऑपरेशन के नाम से ही डर लगता था। हमारे घर के सभी लोग बहुत घबड़ाये हुए थे। मैं भी ऑपरेशन के नाम से बहुत भयभीत था।
ऑपरेशन के एक दिन पहले घर के सभी परिजन बहुत परेशान थे। क्या होगा? कैसे होगा? मेरे चाचाजी ने रात्रि 8 बजे शांतिकुंज में आदरणीय विनय बाजपेयी जी भाई साहब से फोन पर मेरे ऑपरेशन की बात बताई और आध्यात्मिक उपचार हेतु प्रार्थना की। भाई साहब ने तुरन्त आश्वासन दिया कि जैसा आप चाहते है मैं व्यवस्था कर रहा हूँ। आप परेशान न हों, हम गुरुसत्ता से प्रार्थना करेंगे। लग रहा था, सचमुच गुरुदेव का ही संरक्षण मिल रहा है। 13 जुलाई को मुझे एडमिट कर लिया गया। एडमिट होते ही डॉक्टर ने कहा कि 2 बोतल खून चाहिए। मेरे जामाता एवं मेरे एक मित्र के खून का ग्रुप मुझसे मिलता था। दोनों लोगों को खून देने के लिए समय पर हॉस्पिटल पहुँचना था लेकिन दोनों ही समय पर न पहुंच पाए। सभी चिन्तित थे और मन ही मन गुरुदेव से प्रार्थना कर रहे थे। अचानक एक अपरिचित सज्जन हम सबके बीच आये और कहने लगे कि आप लोग परेशान न हों में खून दूँगा। इनके इतना कहते ही जिन मित्र महोदय का खून लेना था वे भी वहाँ पहुँच गये। सभी लोग उनके देर होने आदि के सम्बन्ध में बातचीत करने लगे। जब हम उस अपरिचित सज्जन को धन्यवाद देने के लिए पीछे मुड़े तो देखा, उनका कहीं कोई पता नहीं था। सभी ने पता करने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं मिले। बाद में अनुभव हुआ कि हम जिस समर्थ सत्ता से जुड़े हैं यह वही हो सकते हैं।
इस घटना से हम सभी के मन में गुरुदेव के प्रति श्रद्धा, विश्वास और भी बढ़ गया। हम निश्चिन्त हो गए कि अब परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिसके ऊपर महाकाल की छत्रछाया हो उसका काल क्या बिगाड़ेगा।
ऑपरेशन की सारी व्यवस्थाएँ हो चुकी थीं। हम सभी गुरुदेव को मन ही मन स्मरण कर रहे थे। मेरा विश्वास इतना सघन हो गया था कि ऑपरेशन थियेटर में जाते समय मेरा भय समाप्त सा हो गया था। मेरा ऑपरेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया। मुझे दो दिन तक गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया। उसके पश्चात् मुझे जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। तीन- चार दिन जनरल वार्ड में रहने के पश्चात् मैंने सुविधा के लिए अपना स्थानान्तरण बेड सं. ए में करवा लिया। लेकिन यहाँ पर मेरा सोचना गलत था । यह स्थान सुविधा की दृष्टि से तो अच्छा था, किन्तु यहाँ मेरे साथ अजीबोगरीब/असामान्य घटनाएँ होने लगीं।
मुझे 24 घण्टे बेचैनी छाई रहती, नींद बिल्कुल नहीं आती थी, रात्रि तो काल बन कर आती थी। लगता था कमरे के सारे परदे स्वयं ही हिल रहे हों, कोई मेरा गला दबा रहा हो। मैं बोलने का प्रयास करता तो मेरा कण्ठ अवरुद्ध हो जाता। मैंने अपनी धर्मपत्नी से यह बात कही तो उसने कहा ऐसा कुछ नहीं है। मैं असहाय था और मेरी परेशानी का हल किसी के पास नहीं था।
घबराहट की इस मनोदशा में मुझे भय और निराशा के विचारों ने बुरी तरह घेर लिया। अवसादजन्य भावना से वशीभूत होकर, बुरी आत्मा के चंगुल में आ जाने और अपना अंत होने का आभास होने लगा। लेकिन उसी क्षण मुझे गायत्री मंत्र का आश्रय और गुरुदेव की कृपा एकमात्र सहायक प्रतीत हुए । व्याकुलता में ही मैं गुरुदेव/ माताजी का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र जपने लगा। जप करते-करते लगभग चार बजे क्षणिक निद्रा में मुझे गुरुदेव – माताजी के दिव्य दर्शन हुए। मैंने देखा उनके चरण कमलों में नतमस्तक हो चरण स्पर्श कर रहा हूँ एवं वे मुझे आशीर्वाद के साथ “अभयदान” दे रहे हैं। मुझे अनुभव हो रहा था कि अब मेरे सारे कष्ट दूर हो गए हैं।
चेतना आने पर मैंने अपनी धर्मपत्नी से इस बात को बताया कि मुझे ऐसा स्वप्न आया है। आज मुझे छुट्टी मिल जाएगी लेकिन सच तो यह है कि आज छुट्टी मिलने का प्रश्र ही नहीं था। डॉक्टर ने पहले ही कह दिया था कि 29 जुलाई से पूर्व आपको डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता लेकिन मुझे गुरु के ऊपर विश्वास था। आज 27 तारीख को जब डॉक्टर विजिट में आए तो मैंने उनसे डिस्चार्ज कर देने के लिए आग्रह किया। वे कुछ देर तक मौन रहे और बाद में अनुमति दे दी। मेरे गुरुदेव ने मुझे उस अतृप्त आत्मा से बचाकर नव जीवनदान दिया। अगर मैं वैसी विषम स्थिति में दो दिन और रह जाता तो मेरी मौत निश्चित थी।
प्रस्तुति :- पवन कुमार शर्मा
कटक (उड़ीसा)


आज की संकल्प यज्ञ शाला की 24 आहुति सूची प्रकाशित करना कुछ उचित नहीं लग रहा। सरविन्द जी 32 और 38 आहुतियां प्रदान करके स्वर्ण पदक विजेता तो हैं ही और संध्या जी सिल्वर मेडलिस्ट हैं लेकिन वंदना जी चंद्रेश जी ,रेणु जी, पिंकी बेटी,सुजाता जी केवल कुछ ही आहुतिओं से वंचित रह गयीं, जो भी हो सभी के सहयोग और समर्पण को नमन है।


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