वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मनोकामना पूरी कराने वाले भक्त नहीं हो सकते। 

https://drive.google.com/file/d/18E63kVn6Fc7P35FhNcUh5YaNj7CiKay-/view?usp=sharing

24 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद

सप्ताह के प्रथम दिन सोमवार को ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की प्रथा के अनुसार नवीन टॉपिक का शुभारम्भ होता है लेकिन आज  “देवत्व” पर आधारित आरम्भ हुए लेखों का तीसरा एवं अंतिम लेख प्रस्तुत है। प्रथा से divert होने के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। साथियों को स्मरण कराना  अपना कर्तव्य समझते हैं कि यह तीनों  लेख  दिव्य पुस्तक “गुरुवर की धरोहर भाग 2” पर आधारित है। यह  दिव्य पुस्तक गुरुदेव द्वारा दिए उद्बोधनों का संग्रह है 

आज का प्रज्ञा गीत उस दिव्य गीत का एक छोटा सा भाग है जिसे हम बार-बार सुनते आ रहे हैं, हमारा तो हर दिन इसी गीत से आरम्भ होता है, 

“सौंप दे अपने जीवन की तू, डोर प्रभु के हाथ,

फिर आएगी जब-जब मुश्किल होगा वोह तेरे साथ, 

कर ले इतना तू  यकीन,तुझे होगा न कोई ग़म, 

तू प्यार का सागर है  ”

इस लेख शृंखला का प्रथम लेख “देवता” को परिभाषित कर रहा था, देवता यानि देने वाला। साथियों ने तो यह परिभाषा हम पर  भी लागू किया , अनेकों ने समर्थन भी कर दिया था लेकिन हम बार बार यही कहते आ रहे हैं कि हमारी हैसियत गुरु के पोस्टमैन से ज़रा भी ज़्यादा  नहीं है, परस्पर सम्मान की भावना का आदर करना हमारा परम कर्तव्य है, सभी सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्। 

अगर “देने वाला देवता” होता है तो दान करने वाला भी देवता है क्या ? रक्तदान,नेत्रदान, ज्ञानदान, समयदान, अंशदान, बलिदान, पशुओं की बलि देना, भगवान् की प्रतिमा के आगे मदिरा दान करना, इन्कम  टैक्स रिबेट के लिए दान करना, आदि आदि अनेकों  ऐसे दान हैं जिनकी  परम पूज्य गुरुदेव ने  विस्तृत चर्चा की है ,कल से आरम्भ हो रही इसी चर्चा का  खुली बांहों से स्वागत है। हमारा विश्वास है कि  हर बार की भांति यह चर्चा भी brainstorming होने वाली है क्योंकि ऐसे प्रश्नों के उभरने का आशा है जिनसे हम सब रोज ही जूझ रहे हैं। 

इन्हीं शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज के ज्ञानप्रसाद का  अमृतपान करने के लिए  गुरुकुल पाठशाला की और रुख करते हैं। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।

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कामना करने वाले, मनोकामना पूरी कराने  के लिए भक्ति करने वाले, कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की( न कि भक्त की) इच्छाएं पूरी करने की बात जुड़ी रहती है । भगवान् ने भक्त की रक्षा करने का व्रत लिया  हुआ है।

LIC के logo के नीचे  “योग क्षेमं वहाम्यहम्” अंकित किया गया है। श्रीमद्भगवत गीता का  यह  श्लोक चार शब्दों के जोड़ से बना है।  यह चार शब्द हैं,  योग,क्षेम वाहमि और अहम्   जिनका अर्थ है भगवान ने योग( कार्य) में  क्षेम (सहायता) देकर पूरा करने का व्रत लिया हुआ है। जीवन बीमा वाले भी यही कहते हैं कि हमने आपकी सहायता करने का संकल्प लिया हुआ है। 

अब यहाँ पर अधिकतर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि भगवान ने आपके उन कार्यों की ज़िम्मेदारी ली है जिनसे जीवन की गाड़ी चलती है न कि  लेकिन तृष्णा  (Lust) पूरी करने की। आपका योग और क्षेम अर्थात आपकी शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक  आवश्यकताएं पूरी करना भगवान की  ज़िम्मेदारी है लेकिन आपकी तृष्णा  पूरी करना भगवान  के बस में भी नहीं है । ऐसा है क्या ?, हमने तो सुना है कि भगवान्  तो सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं, मनचाहा फल भी देते हैं, तो फिर हमारे साथ पक्षपात क्यों कर रहे हैं ? ऐसा इसलिए कि लालची मनुष्य भक्ति नहीं कर रहा, वह  अपनी तृष्णा पूरी करने के लिए ईश्वर को बहला फुसला रहा है, ऐसी तृष्णा  के लिए जिसका कोई अंत ही नहीं है। यह तो भक्ति न हुई, धोखा हुआ और  धोखेबाज और स्वार्थी से तो भगवान्  का 36 का आंकड़ा है।

भगवान्  बार-बार कहते आ रहे हैं कि तृष्णाओं के पीछे मत भागो, यह तो खत्म नहीं होंगी, तुम खत्म हो जाओगे। मृगतृष्णा का शब्द कुछ सोच समझ कर ही coin किया गया था। चमकती रेत को पानी समझने वाला मृग, भाग-भाग कर अपने जीवन का अंत कर देता है। कुत्ता सूखी हड्डी को चबाते हुए अपने ही रक्त से आनंद प्राप्त कर रहा है। 

यही है माया -यही है भ्र्म, यही है illusion 

यह भ्र्म  भगवान की शान में, भक्त की शान में, भजन की शान में, सबकी शान में गुस्ताखी है । भक्त और भगवान का सिलसिला इसी तरह से चलता रहा है और इसी तरीके से चलता रहेगा । भक्त भिखारी नही होते, वोह दानी होते है,देने वाले होते है। हे मनुष्य,एक बार निस्वार्थ भाव से भगवान के प्रति समर्पित होकर तो देख, भगवान दौड़े आयेंगे, ठीक उसी प्रकार जैसे लगभग 100 वर्ष पूर्व परम पूज्य गुरुदेव को ढूंढते हुए छोटे से ग्राम आंवलखेड़ा की कोठरी में दादा गुरु आए थे ।

भगवान कोई इंसान नहीं हैं,उन्हें तो हमने इंसान बना लिया है। सही मायनों में देखा जाए तो भगवान सिद्धांतों का नाम है, आदर्शों का नाम है, श्रेष्ठताओं के समुच्चय का नाम है । सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति मनुष्य का  त्याग और बलिदान ही भगवान की भक्ति है,  देवत्व इसी का नाम है ।

प्रामाणिकता मनुष्य की इतनी बड़ी दौलत है, जब वह स्वयं को प्रमाणित करने में सफल हो जाता है, अपनी पात्रता सिद्ध कर लेता है तो उस पर आस पास के सभी लोगों सहयोग बरसता है, स्नेह बरसता है, समर्थन बरसता है ।जहाँ स्नेह, समर्थन और सहयोग बरसता है, वहाँ मनुष्य  के पास किसी चीज़  की कमी नहीं रह सकती। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री  परिवार में यह तथ्य प्रतिदिन  दृष्टिगोचर होता दिख रहा है। 

बुद्ध की प्रामाणिकता के लिए, सद्भावना के लिए, उदारता के लिए लोगों ने उनके ऊपर पैसे बखेर दिए । गाँधी जी की प्रामाणिकता और सद्भावना, श्रेष्ठ कामों के लिए थी, उनकी लगन, उदारता लोकहित के लिए  थी । व्यक्तिगत जीवन में श्रेष्ठता और प्रामाणिकता को लेकर चलने के बाद में वे भक्तों की श्रेणी में सम्मिलित होते चले गए। सारे समाज ने उनको सहयोग दिया, दान दिया और उनकी आज्ञा का पालन किया । लाखों लोग उनके कहने पर जेल चले गए, लाखों लोगों ने अपने सीने पर गोलियाँ खाई । क्या ऐसा  हो सकता है ? हुआ तो है, इतिहास साक्षी  ! 

इन उपलब्धियों के लिए शर्त केवल एक ही है कि मनुष्य  प्रकाश की ओर चलें, छाया स्वयं उनके  पीछे-पीछे चलेगी। अगर मनुष्य सूर्य की ओर पीठ कर ले तो छाया आगे-आगे चलेगी । जब मनुष्य छाया के पीछे भागता है तो छाया ही उस पर हावी हो जाती है। छाया का अर्थ है माया । गुरुदेव के कहे अनुसार प्रकाश की ओर चल कर तो देखिए, छाया खुद ब खुद पीछे रह जायेगी, हार जाएगी। प्रकाश की ओर चलने का अर्थ है भगवान की ओर चलना, सिद्धांतों की ओर चलना,आदर्शों की ओर चलना,यही  भगवान की सच्ची भक्ति  है ।

मित्रो, जो तृष्णा मनुष्य के ऊपर हावी हो गई है उससे पीछे हटना चाहिए।  तृष्णाओं से पीछे हटिए और उपासना के उस स्तर पर पहुँचने की कोशिश कीजिए जहाँ आपके भीतर से, व्यक्तित्व में से श्रेष्ठता का विकास होता है। इसी को भक्ति कहते हैं।  । अगर आपके भीतर  श्रेष्ठता का विकास हुआ हो,तो विश्वास रखिए आपको जनता का वरदान मिलेगा, आपको अपनी आत्मा का वरदान मिलेगा, भगवान का वरदान मिलेगा । चारों ओर से इतने वरदान मिलेंगे जिन्हें पाकर आप निहाल हो जाएंगे । भक्ति का यही इतिहास है । भगवान के अनुग्रह का, गायत्री माता के अनुग्रह का यही इतिहास है, यही इतिहास था और यही इतिहास रहेगा ।

गुरुदेव इस तथ्य पर बल  देते हुए कहते हैं कि अगर इस रहस्य को, सार को आप समझ लें, तो युगतीर्थ शांतिकुंज में आपका  आना सार्थक हो जाएगा । आपका गायत्री अनुष्ठान सार्थक हो जाएगा। अगर आप यह सिद्धांत को समझकर जाएं कि आपको यह तपश्चर्या सद्गुणों के विकास करने के लिए कराई जा रही हैं और अगर  यह तपश्चर्या सही साबित हुई तो यहाँ से बिदा करते समय भगवान आपको गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषता देंगे और  चरित्रवान व्यक्ति बनाकर  विकसित करेंगे । चरित्रवान व्यक्ति जब विकसित होता है तब वह उदार हो जाता है, परमार्थ-परायण हो जाता है, लोकसेवी हो जाता है, जनहितकारी हो जाता है और वह अपनी तुच्छ स्वार्थ, संकीर्णताओं को कम करके लोकहित में, परमार्थ हित में ही अपने स्वार्थ को देखना शुरू कर देता है । 

अगर मनुष्य की  ऐसी मनःस्थिति हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि उसकी उपासना सच्ची है और उसने भगवान का सच्चा वरदान पाया है।

यही वोह स्टेज होती है जब मनुष्य भगवान का  सच्चा वरदान पाकर निहाल हो सकता है। आज तक के सारे के सारे भक्त इसी वरदान से निहाल होते रहे हैं । गुरुदेव ने भी  इसी रास्ते पर चलने की कोशिश की और अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से भगवान के वरदानों को देखा और पाया । 

गुरुदेव कह रहे हैं : मैं चाहता हुं कि आप लोग जो इस शिविर में आए हैं यह प्रेरणा लेकर जाएं कि हम पर भगवान कृपा करें कि हमको भीतर और बाहर से  श्रेष्ठता के लिए, आदर्शों के लिए कुछ त्याग और बलिदान करने की, चरित्र को श्रेष्ठ और उज्ज्वल बनाने के लिए प्रेरणा मिले । अगर आपको ऐसी  प्रेरणा मिले तो उसके फलस्वरूप आप जो कुछ भी प्राप्त करेंगे, वह इतना शानदार होगा, जिससे आप निहाल हो जाएंगे, आपका देश निहाल हो जाएगा, गायत्री माता निहाल हो जाएगी, हम निहाल हो जाएंगे और यह शिविर सार्थक हो जाएगा ।

समापन 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज गोल्ड मैडल की लिस्ट में संध्या जी, चंद्रेश जी,सरविन्द जी और रेणु जी विजयी हुए हैं। 

(1)संध्या कुमार- 45 ,(2) सुजाता उपाध्याय-33 ,(3) रेणु श्रीवास्तव- 42 ,(4) सुमन लता-29  ,(5) चंद्रेश बहादुर-42  ,(6) सरविन्द पाल-41,(7) )वंदना कुमार- 26, (8 ) मंजू मिश्रा-35 ,(9 )विदुषी बंता-24  

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई


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