20 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद
सोमवार से हम गुरुदेव की एक और मास्टरपीस कृति “गुरुवर की धरोहर भाग 2” का अध्यन कर रहे हैं। इस शीर्षक के अंतर्गत श्रेध्य डॉक्टर प्रणव पंड्या जी ने चार भाग सम्पादित करके गायत्री परिवार पर जो उपकार किया है,उसकी जितनी सराहना की जाए कम है। भाग 2, गुरुदेव के उच्चकोटि के उद्बोधनों का संग्रह है। इस पुस्तक पर आधारित लेख लिखते समय हमारा प्रयास उन साथियों/ सहपाठिओं की ओर विशेष तौर से जाता है जिन्हें गुरुदेव के प्रतक्ष्य दर्शन करने यां सुनने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हो पाया। हम अपने विवेक का प्रयोग करके, उद्बोधनों में व्यक्त किये गए विचारों के साथ बिना कोई छेड़छाड़ किए, अति शिक्षाप्रद और मार्गदर्शन प्रदान करने वाला कंटेंट प्रस्तुत कर रहे हैं। साथियों के कमैंट्स से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारा प्रयास सार्थक हो रहा है।
कल आरम्भ हुई लेख शृंखला में गुरुदेव से “देवत्व” के बारे में अनेकों उदहारण के साथ ज्ञान प्राप्त हो रहा है। देवत्व के विषय पर ही आज का लेख आधारित है और हो सकता है आने वाले सोमवार को भी यही विषय हो। परम पूज्य गुरुदेव ने यह उद्बोधन 31 जनवरी 1979 को दिया था।
आज का प्रज्ञा गीत फिर से आदरणीय ओमकार जी की दिव्य वाणी में है और wording कल वाली ही, “मनुज देवता बने।”
तो आइए विश्वशांति की कामना करते हुए गुरुवार की अमृतवेला में, गुरुकुल पाठशाला में गुरुचरणों में नतमस्तक होकर आज के दिव्य ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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अगर देवता मनुष्य के ऊपर कभी कृपा करते हैं तो एक ही चीज देते हैं और वोह है “अंतरंग में उमंग” यानि अंदर से उठने वाली Excitement, एक ऐसी Excitement जिसे मनुष्य पागलों की भांति भाग-भाग कर आस पास के सभी मित्रों, परिवारजनों को बताने के लिए विवश हो जाता है। बहिन सुमन लता जी का आज का कमेंट शायद इसी उमंग की तरफ इशारा कर रहा है। इस छोटे से परिवार में कभी कभार उपस्थिति न होने से/लेट होने से बेचैनी होना स्वाभाविक है क्योंकि ज्ञान के माध्यम से यहाँ मिल रही आत्मिक शांति “ह्रदय की भोजन” है।
देवताओं से मिली उमंग मनुष्य को घसीट कर सिद्धांतों की ओर ले जाती है। जब मनुष्य पर सिद्धांतों का नशा छा जाता है तो मनुष्य का व्यक्तित्व ऐसा चुंबकीय और आकर्षक हो जाता है ,उसकी वाणी ऐसी हो जाती है कि हर कोई उसकी ओर खिंचता ही चला आता है और हर कोई सहयोग करता है । विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद को सम्मान और सहयोग दोनों मिले। यह किसने दिए, माँ काली ने। माँ काली अगर किसी को कुछ देगी तो यही चीज देगी क्योंकि उनके पास यही तो है। मुर्ख मनुष्य उनके आगे गाड़ी, बंगला,बैंक बैलेंस की भीख मांगता रहता है, जो उसके पास है ही नहीं। हाँ ईश्वर इन भौतिक उपलब्धियों को अर्जित करने के लिए सद्बुद्धि,सत्कर्म आदि के राजमार्ग पर अवश्य चला सकते हैं। अगर दुनिया में दुबारा गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस यां उनकी ही तरह के कोई और संत पैदा होंगे, तो इसी प्रकार का आशीर्वाद देंगे जिससे मनुष्य के व्यक्तित्व विकसित होते चले जाएं । व्यक्तित्व अगर विकसित होगा फिर सहयोग तो बरसेगा ही | सहयोग माँगा नहीं जाता, बरसता है। जब देवत्व यानि सद्गुण, सत्कर्म,और सदस्वभाव आते हैं तभी सहयोग बरसता है, इसीलिए तो रियल लाइफ में भी कहा जाता है “Respect मांगी नहीं जाती, Earn करनी पड़ती है”
देवता केवल एक ही काम करते रहते हैं, फूल बरसाते हैं । रामायण में कोई पचास जगह किस्से आते हैं जब देवताओं ने फूल बरसाए होंगें। फूल बरसाना अर्थात सहयोग का बरसना होता है । फूल को सहयोग को कहते हैं और सहयोग कौन बरसाता है ? देवत्व जो अभी भी इस दुनिया में जीवित है, जीवित था और जीवित रहेगा। देवत्व की मृत्यु कभी भी नहीं होगी। यदि शैतान की मृत्यु नहीं हो सकी तो भगवान की मृत्यु कैसे होगी। इंसान इंसान को देखकर आकर्षित होता है, भगवान भगवान को देखकर, देवता देवता को देखकर आकर्षित होते हैं। श्रेष्ठता से सहयोग आकर्षित होता है। पहले भी यही होता रहा था, अभी भी यही होता है और आगे भी यही होता रहेगा ।
जब हम देवता की इतनी प्रशंसा कर रहे हैं तो यह जानना भी आवश्यक बन जाता है कि देवता कैसे होते हैं। देवता ऐसे होते हैं जो मनुष्य के अंतःकरण में ही घुसे बैठे हैं। अंदर बैठे हुए देवता मनुष्य के भीतर से एक ऐसी कसक, एक ऐसी उमंग और एक ऐसी तड़पन पैदा करते हैं जो मनुष्य के सारे के सारे जाल-जंजालों को मकड़ी के जाले की भांति तोड़कर सिद्धांतों की ओर, आदर्शों की ओर अग्रसर होने के लिए मजबूर कर देती हैं । इसी को कहते हैं “देवता का वरदान” यानि देवत्व। देवता का वरदान इससे कम हो ही नहीं सकता। मनुष्य के भीतर जब सदगुणों की, सतकर्मों की, सतस्वभाव की विशेषताएं पैदा हो जाती हैं तो विश्वास रखिए तब उसकी उन्नति के द्वार खुल जाते हैं। इतिहास साक्षी है कि विश्व में आज तक जितने भी सफल मनुष्य देखे गए हैं, किसी भी क्षेत्र में सफल हुए हैं और जिनका सम्मान हुआ है, सभी सदगुणों के आधार पर ही ऊँचे उठे हैं।
देवता का वरदान गुण और चिंतन की उत्कृष्टता है। अनेकों सफल व्यक्ति छोटे-छोटे परिवारों में पैदा हुए थे, कठिन परिस्थितिओं में पैदा हुए , लेकिन देवता के अनुग्रह से उन्नति के ऊँचे से ऊँचे शिखर पर ऊँचे से ऊँचे स्थान पर पहुँचते चले गए।
देवता के अनुग्रह की क्या परख है, कैसे पता चले कि अनुग्रह प्राप्त हुआ कि नहीं ?
देवता के अनुग्रह की एक ही पहचान है :जिम्मेदारी और समझदारी का होना, भक्त और भगवान के बीच में समन्वय होना,दोनों का एक हो जाना। अनुग्रह की परख का यही एकमात्र तरीका है ।
हम पूजा क्यों करते हैं, पूजा का क्या उद्देश्य है ? पूजा का एक ही उद्देश्य है और वह है मानवी गुणों का विकास, मानवी कर्म का विकास और मानवी स्वभाव का विकास, यानि इंसान बनने का मार्ग। जिन लोगों ने यह समझ रखा है कि पूजा के आधार पर यह मिलेगा, वोह मिलेगा,सब गलत समझा है। पूजा से दयानतदारी मिलती है, शराफत मिलती है, ईमानदारी मिलती है, ऊँचा दृष्टिकोण मिलता है और न जाने क्या-क्या कुछ मिलता है । अगर कोई मनुष्य गलत पूजा करता है तो वह भटक रहा होगा। यह कैसी पूजा ? पूजा से तो शांति मिलती है, भटकन नहीं
मनुष्य को पूजा एक ही तरीके से करनी चाहिए और वही तरीका है जिससे अनेकों को लाभ मिला है। ऐसी ही पूजा से गुणों का विकास, कर्म का विकास, चरित्र का विकास और भावनाओं का विकास होता है । देवत्व इसी का नाम है। जब मनुष्य के पास देवत्व आएगा, तभी सफलताएं आएंगीं । विश्व के इतिहास पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि जो भी बेहतरीन मनुष्य दिखाई पड़ते हैं वे अपनी “योग्यता” के आधार पर नहीं बल्कि अपनी “विशेषता” के आधार पर महान बने हैं। इसको ऐसा भी कह सकते हैं कि वोह विशेष थे इसलिए योग्य बन गए। महामना मालवीय जी पर देवताओं का अनुग्रह बरसा था और छोटे से आदमी से कितने महान हो गए । परम पूज्य गुरुदेव पर दादा गुरु के अनुग्रह ने उन्हें क्या से क्या बना दिया ,लेकिन हम सब गुरुदेव के समर्पण से भलीभांति परिचित हैं।
समस्त विश्व में शायद ही कोई ऐसा सफल मनुष्य हो जिसे दैवी सहयोग न मिला हो, जिसे जनता का सहयोग न मिला हो, जिसको भगवान का सहयोग न मिला हो। आप ऐसे एक भी सफल मनुष्य का नाम बताएं जिसके अंदर से विशेषताएं पैदा न हुई हों, जिसको आप avoid करना चाहते हों,जिससे आप बचना चाहते हों, जिसके प्रति आपका कोई लगाव न हो। जिन विशेषताओं के कारण ऐसे मनुष्य सफल हुए हैं उन्हें आदर्शवाद कहते हैं, सिद्धांतवाद कहते हैं। विश्व का कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं होगा जिसे श्रेय मिला हो और उसी श्रेय के कारण वैभव न मिला हो। वैभव की चर्चा करते समय हम यही कहते हैं कि संतों को वैभव नहीं मिलता, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्हें वैभव और श्रेय दोनों मिलते हैं लेकिन वोह उदार होते हैं और जो पाते हैं,स्वयं नहीं खाते, दूसरों को खिला देते हैं । देवत्व इसी को कहते हैं ।
जब मनुष्य के भीतर का माद्दा विकसित होता है तो बाहरी सम्पदा उसके पास चुम्बक की भांति खिंची आती है। यहाँ पर बाहरी का अर्थ भौतिकता से न लिया जाए। प्रत्येक महापुरुष का यही उदाहरण है । प्रत्येक ईश्वर भक्त का, प्रत्येक सिद्धांतवादी का यही उदाहरण है। परम पूज्य गुरुदेव ऐसे व्यक्तित्वों को देवभक्त/देवोपासक कहते हैं। गुरुदेव उन्हीं की देवभक्ति को सार्थक मानते हैं जो अपने गुणों के आकर्षण के आधार पर देवताओं को अपने आकर्षण में खींच सकने में समर्थ हुए हैं। देवता जब प्रसन्न होते हैं तो मनुष्य को देवत्व के गुण देते हैं, देवत्व के कर्म देते हैं, देवत्व का चिंतन देते हैं और देवत्व का स्वभाव देते हैं। इसी बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि मनुष्य अपने देवत्व के गुणों के आधार पर देवता को मजबूर करता है, देवता पर दबाव डालता है और यह कहता है कि आपको मेरी सहायता करनी चाहिए/ सहायता करनी पड़ेगी। ऐसे देवभक्त मनुष्य की भक्ति इतनी मज़बूत हो जाती है कि वह भगवान के ऊपर दबाव डालता है और कहता है कि यह मेरा Due है, आप हमारी मेरी सहायता क्यों नहीं करते ? ऐसा भक्त भगवान से सहायता मांगते हुए लड़ने को तैयार हो जाता है।
आज के लेख का यही समापन करते हैं। कल रिलीज़ होने वाली वीडियो के द्वारा हम गायत्री विद्यापीठ चलेंगें।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज अरुण जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार- 48,(2) सुजाता उपाध्याय-28 ,(3) रेणु श्रीवास्तव- 39,(4) सुमन लता-28,(5) चंद्रेश बहादुर-44 ,(6) सरविन्द पाल-26 ,(7) अरुण वर्मा-53, (8) पिंकी पाल-24 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई