वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मनुष्य में देवत्व का जागरण, लेकिन कैसे ?

19 जुलाई 2023  का ज्ञानप्रसाद

“मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान” एक ऐसा बहुचर्चित प्रज्ञा गीत है जिसको शायद ही  कोई गायत्री परिजन होगा जिसने गाया न होगा, गुनगुनाया न होगा। आज के ज्ञानप्रसाद की आधारशिला यही प्रज्ञा गीत है। आज के लेख में परम पूज्य गुरुदेव हमें देवता बनाने का प्रयास कर रहे हैं, हमारे अंतःकरण में देवत्व जागृत करने का मार्ग दिखा रहे हैं, ईश्वर से खुशामद करके भौतिक सम्पदाओं की मांग  के स्थान पर, सद्गुणों की, सत्कर्मों की मांग करने को कह रहे हैं। सद्गुणों की प्राप्ति के बाद मनुष्य को वोह सब कुछ  प्राप्त हो जाता है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी, ऐसी प्राप्तियों के लिए, ऐसी कथाओं के लिए  इतिहास साक्षी है। 

आशा करते हैं कि अन्य लेखों की भांति आज का लेख भी हम सबको मार्गदर्शन देगा कि मंदिरों और देवस्थानों पर भिखारी बना कर न जाया जाए , कुछ देने की प्रवृति लेकर जाया जाए। अगर कुछ मांगना ही है तो सद्बुद्धि और सत्कर्म की याचना की जाए। 

गुरुदेव का यह उद्बोधन “गुरुवर की धरोहर भाग 2” में प्रकाशित हुआ था। हम श्रद्धेय डॉक्टर साहिब के  बहुत ही आभारी हैं जिन्होंने इस पुस्तक का संपादन करके हमें गुरुवर के चरणों में ही बिठा दिया। टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके audio to text facility  ने बहुत सहायता की है लेकिन कहीं कहीं पर यह  साथ छोड़ती  दिख रही  है, हमने अपने विवेक के अनुसार त्रुटियों का संशोधन करने का प्रयास  किया है। 

आज की गुरुकुल पाठशाला में आशा है कि attendance 100 % रहेगी क्योंकि हम नहीं चाहते कि हमारा कोई भी साथी परम पूज्य गुरुदेव के  दिव्य ज्ञान के अमृतपान से वंचित रह जाए। 

विश्वशांति की कामना करते हुए प्रस्थान करते हैं आज की गुरुकुल पाठशाला की ओर। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलिए ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

देवियो और भाइयो ! देवताओं के अनुग्रह की बात आप सब ने सुनी होगी । देवता नाम ही इसलिए रखा गया है कि वे दिया करते हैं । प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही लोग उनकी पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं कि देवता हमको कुछ देकर जाएंगे । क्या यह बात सही है यां  गलत है, आइए इस पर विचार करें ।

देवता देते तो हैं, इसमें कोई शक नहीं है । अगर वे देते न होते तो उनका नाम देवता न रखा गया होता । देवता का अर्थ ही होता है- देने वाला । देने वाले से अगर कोई माँगने वाला कुछ माँगता है तो कोई अविश्वसनीय,अजीब  बात नहीं है और देवता देते भी हैं, अवश्य ही देते हैं। लेकिन यहां पर महत्वपूर्ण, विचारणीय  बात यह है कि देवता आखिर देते क्या  हैं ? देवता वही देते हैं जो उनके पास है क्योंकि जिसके पास जो वस्तु  होगी, वोह वही तो दे पाएगा । देवता के पास सिर्फ एक सम्पदा  है और उसका नाम है- देवत्व । 

देवत्व का अर्थ: 

गुण, कर्म और स्वभाव आदि तीनों की अच्छाई  को देवत्व कहते हैं । अच्छे गुण अर्थात सद्गुण,अच्छे कर्म अर्थात सत्कर्म, अच्छा स्वभाव अर्थात सदस्वभाव ।

इतना देने के बाद में देवता निश्चिंत हो जाते हैं, निवृत्त हो जाते हैं और कहते हैं कि जो हम आपको दे सकते थे दे दिया। अब आपका काम है कि जो सम्पदा  हमने दी है उसको अपने विवेक, बुद्धि के अनुसार जैसा भी आप ठीक समझें उसका  इस्तेमाल करें, जहाँ भी आप ठीक समझें वहीं प्रयोग करें और उसी की आधार पर सफलता पाएं ।

दुनिया में सफलता के लिए एक quality  की बड़ी आवश्यकता है  और उस quality का नाम है “मनुष्य  का उत्कृष्ट व्यक्तित्व  यानि Supreme Human Personality”  इससे कम में कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता । अगर  किसी ने घटिया व्यक्तित्व दिखा कर  किसी तरीके से प्रसिद्धि अर्जित कर भी  ली, अपनी योग्यता का सबूत दिए बिना,परिश्रम के बिना, गुणों के अभाव में,सिफारिश आदि से  कोई चीज प्राप्त कर भी ली है तो वह प्रसिद्धि उसके पास ठहरेगी नहीं। शरीर में पचाने की ताकत न हो तो प्राप्त किया गया भोजन आपको हैरान ही करेगा, परेशान ही करेगा, तंग ही करेगा और तब तक तंग करता रहेगा  जब तक वह (गलत भोजन) बाहिर  नहीं निकल जाता।  इसी तरह अनेकों लोगों के पास संपत्तियों को, सुविधाओं को पचाने के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है, उनके अभाव में तंग ही होना पड़ता है, निराश ही होना पड़ता है।  सद्गुण न होने के कारण जैसे-जैसे दौलत बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे मनुष्य के  अंदर दोष-दुर्गुण बढ़ते चले जाएंगे, व्यसन बढ़ते जाएंगे, अहंकार बढ़ता जाएगा और एक दिन ऐसा आएगा कि जीवन का सर्वनाश ही हो जाएगा  । 

देवता क्या देते हैं ? देवता मनुष्य की पाचनशक्ति को बढ़ाते हैं, हज़म  करने की ताकत देते हैं। मनुष्य ईश्वर से विश्व भर की दुनियाबी  चीज़ें मांगता फिरता है, जिन्हें वोह प्रसन्नता के साधन समझ बैठा है, ईश्वर वोह दे भी देते हैं लेकिन इन सारी चीज़ों को पचाने की  विशेषता भी तो होनी चाहिए । इसी का नाम है, “देवत्व”- सद्बुद्धि,सत्कर्म,सद्गुण आदि। 

अगर मनुष्य में देवत्व जागृत हो जाता है तो फिर उसे  दुनिया की हर चीज़ से, थोड़ी से थोड़ी चीज़ों  से ही लाभ उठाना आ जाता है। देवत्व प्राप्त होने के बाद मनुष्य दुनियाबी कूड़ा- कर्कट से विमुख हुआ जाता है। उसका स्वभाव ही बन जाता है कि अगर कोई चीज़ न भी है, तो भी काम चल जायेगा। अपना काम तो चल ही जायेगा लेकिन समाज कहाँ छोड़ता है, वोह तो बात बात पर taunt करता रहेगा, ऐसी स्थिति में सद्बुद्धि और विवेक  ही शक्तिशाली शस्त्र है, न कि भेड़चाल। सद्बुद्धि की देवी माँ गायत्री विवेकशीलता की ही प्रतीक तो है। अपने ह्रदय में स्वयं को यह  प्रश्न अवश्य करना चाहिए , “ क्या मुझे गायत्री मंत्र के  भावार्थ का  सही मायनों में ज्ञान है, अगर है तो क्या मैं इसे स्वयं पर apply कर रहा/रही हूँ “    

मनुष्य के शरीर में शक्ति  होनी चाहिए, बुद्धि  होनी चाहिए लेकिन  उस पर समझदारी का नियंत्रण भी होना चाहिए। समझदारी का नियंत्रण न होने से आग में घी डालने, ईंधन डालने जैसा होगा जिससे मुसीबतें ही पैदा होंगीं । देवता किसी को दौलत देने की गलती नहीं कर सकते । अगर देते हैं तो इसका अर्थ  है कि ऐसा करके वोह तबाही कर रहे हैं। मनुष्य को भगवान अगर  कुछ देते हैं तो विशेषताएं देते हैं, नई उमंगें देते हैं। इंसानियत प्राप्त करने से  मनुष्य  का चिंतन, दृष्टिकोण, महत्वाकांक्षाएं और गतिविधियाँ ऊँचे स्तर की हो जाती हैं । अगर ईश्वर से कुछ मांगना ही है तो केवल  इंसानियत ही मांगनी  चाहिए, इंसानियत बहुत बड़ा वरदान है ।

मनोकामनाएं पूरी करना कोई ग़लत  बात नहीं है, लेकिन  शर्त केवल  एक ही है कि यह किस काम के लिए, किस चीज के लिए माँगी गई हैं। अगर सांसारिकता के लिए माँगी गई हैं तो उससे पहले यह जानना जरूरी है कि मनुष्य उस दौलत को कैसे पचाएगा, उसे कैसे  खर्च करेगा।  मनुष्य भूल कर सकता है लेकिन  देवता तो  भूल नहीं कर सकते ।

देवताओं के संपर्क में आने वालों को भौतिक सम्पदाएँ नहीं मिलतीं। तो फिर क्या मिलता है ? सद्गुण मिलते  हैं,देवत्व मिलता है जिनके  आधार पर मनुष्य  को विकसित होने  का अवसर मिलता है। गुणों के विकसित होने पर मनुष्य उन कार्यों को  करने के लिए  समर्थ हो जाता है  जिन्हें सामान्य मनुष्य, सामान्य बुद्धि से काम करते हुए करने में असमर्थ होता है । देवत्व के विकसित होने पर कोई भी मनुष्य उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है। यह उन्नति चाहे सांसारिक हो यां आध्यात्मिक। इस उन्नति में गुणों के प्रयोग करने के तरीके का बहुत बड़ा योगदान है। गुण तो स्वयं ही शक्ति के पुंज हैं। कर्म स्वयं में शक्ति स्रोत है  और स्वभाव भी  शक्तिपुंज है। इन शक्तिपुंजों को कैसे और कहाँ प्रयोग करना है,इसका चयन  मनुष्य स्वयं करता है। वोह चाहे तो आतंकवादी बन जाए, प्रसिद्ध लेखक,गायक, वैज्ञानिक, चित्रकार,राजनेता यां फिर कुछ भी बन जाए। 1954 की सुप्रिसद्ध मूवी “बूट पोलिश” का बहुचर्चित गीत “नन्हें मुन्हे  बच्चे तेरी मुट्ठी में  क्या है, मुट्ठी में है तकदीर हमारी, हमने किस्मत को बस  में किया है” गुणों के प्रयोग को ही दर्शा रहा है।     

सफलता साहसिकता के आधार पर मिलती है। यह एक आध्यात्मिक गुण है। इसी आधार पर योगी को, तांत्रिक को और महापुरुष को सफलता मिलती है। हर एक को इसी साहसिकता के आधार पर सफलता मिलती है। वह डाकू ही क्यों न हो, योगी ही क्यों न हो,  साहस  के सहारे ही लाभ मिलेगा। साहस एक दैवी (दिव्य) गुण है। मनुष्य इस गुण को  अपनी इच्छा के अनुसार प्रयोग  कर सकता है, इसका प्रयोग उसी पर निर्भर है। मनुष्य  के भीतर जो विशेषता है वह गुणों की विशेषता है। देवता अगर किसी मनुष्य को कुछ देंगे तो गुणों की विशेषता देंगे, गुणों की संपदा देंगे। गायत्री माता, जिनकी आप उपासना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं, अगर कभी कुछ देंगी तो गुणों की विशेषता देंगी क्योंकि गुणों से ही सब कुछ संभव है। मनुष्य को जो कुछ भी उन्नति प्राप्त हुई है, भौतिक यां आध्यात्मिक, केवल गुणों के आधार पर ही प्राप्त हुई है। श्रेष्ठ गुणों के अभाव में  न तो  भौतिक उन्नति मिलने वाली है और न ही आध्यात्मिक ।

मनुष्य  जितना समझदार है उससे कहीं अधिक नासमझ भी  है। आध्यात्मिक क्षेत्र में यह भ्रांति  न जाने क्यों घुसी पड़ी है कि देवता “मनोकामना” पूरी करते हैं, धन-दौलत देते हैं,बेटा देते हैं,नौकरी देते हैं। इस एक भ्रांति ने इतना अधिक  नुकसान पहुँचाया है कि आध्यात्मिकता का जितना बड़ा लाभ, जितना बड़ा उपयोग , संभावनाएं थीं, उससे जो सुख मिलना संभव था, इस भ्रांति ने सब कुछ नष्ट कर दिया।  प्राचीन काल से  देवता मनुष्य  को केवल एक ही सम्पदा  देते आ रहे हैं  और भविष्य में भी यही देते रहेंगें और उस सम्पदा का नाम है “देवत्व” ।  

देवता अगर जिंदा रहेंगे, भक्ति अगर जिंदा रहेगी, उपासना क्रम यदि जिंदा रहेगा तो एक ही चीज़  मिलेगी और वह है – देवत्व के गुण । अगर मनुष्य देवत्व के गुणों को प्राप्त कर ले तो वोह सफलताएं उसके कदम चूम सकती हैं जिनकी वोह कामना कर रहा है। लेकिन हाय रे मुर्ख मनुष्य, तू तो मंदिर में जाकर, नाक रगड़ कर, ईश्वर को प्रसाद आदि का लालच देकर  देवत्व के स्थान पर तीन-चार सौ रुपये की नौकरी मांग रहा है। देवता के पास तो नौकरी नहीं है, वोह तो देवत्व प्रदान करते हैं,उनके पास वही तो है।  हाँ ईश्वर आपको  ऐसे गुण अवश्य  प्रदान कर सकते हैं जिनके आते ही आप उच्च से उच्च नौकरी के हकदार हो सकते हैं। स्वामी  विवेकानंद, गुरुदेव  रामकृष्ण परमहंस के पास नौकरी माँगने ही तो गए थे,लेकिन  मिला क्या ?  देवत्व, भक्ति, शक्ति और शांति। 

आज के लेख का  समापन यहीं पर  होता है, कल यहीं से आगे चलेंगें।

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज अरुण  जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।  (1)संध्या कुमार- 31  ,(2) सुजाता उपाध्याय-24,(3) रेणु श्रीवास्तव- 27,(4) सुमन लता-25,(5) चंद्रेश बहादुर-25  ,(6) सरविन्द पाल-24  ,(7 ) मंजू मिश्रा-25, (8) अरुण वर्मा-41 

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई


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