17 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज के लेख में गुरूदेव के 1 जून 1980 वाले दिन दिए गए उद्बोधन का वर्णन है। यह लेख शांतिकुंज स्थित गायत्री विद्यापीठ के उद्घाटन के उपलक्ष्य में दिए गए उद्बोधन का प्रथम भाग है। इस लेख का आधार श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी की पुस्तक “गुरुवर की धरोहर, भाग 2” है। इसी शीर्षक से श्रद्धेय डॉक्टर साहिब ने तीन और पुस्तकें (भाग 1,3 और 4 ) भी सम्पादित की हैं। परम पूज्य गुरुदेव की अन्य पुस्तकों की भांति यह चारों पुस्तकें भी ज्ञान का सागर हैं और उन्हें पढ़कर, समझकर, अपने साथियों के समक्ष प्रस्तुत करने में हम अपनेआप को अति सौभाग्यशाली मानते हैं।
लेख को पढ़ते समय हमारे समर्पित साथी/ सहकर्मी गुरुदेव की दूरदृष्टि का अनुमान लगा सकते है। उद्बोधन 1980 में दिया गया है और बता रहे हैं कि 20-30 वर्षों में यह बीजारोपण एक विश्विद्यालय का रूप ले लेगा। हम विश्वास से कह सकते हैं कि गुरुवर देव संस्कृति यूनिवर्सिटी की बात कर रहे हैं जिसका जन्म 2002 में हुआ था, तो हुए न 22 वर्ष, इसीलिए तो हम सब उन्हें युगदृष्टा यानि युग को देखने वाले कहते हैं।
एक और बात जिसका साथियों को स्मरण हो आएगा, वोह है इस लेख में दिए गए उदाहरण। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय और उसके जन्मदाता स्वामी श्रद्धानन्द,वनस्थली विद्यापीठ जो आजकल Deemed यूनिवर्सिटी है और उसके जन्मदाता हीरालाल शास्त्री, इंडियन नेशनल कांग्रेस के जन्मदाता Allan Octave Hume आदि आदि। यह ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन पर हम न केवल Full-length लेख लिख चुके हैं बहुत ही brainstorming चर्चा भी कर चुके हैं। ऐसे व्यक्तित्वों को बार-बार स्मरण करना हमारा सौभाग्य है।
गायत्री विद्यापीठ के शुभारम्भ पर परम पूज्य गुरुदेव स्वयं ही प्रश्न कर रहे हैं कि प्रतिदिन न जाने कितने ही स्कूल/कॉलेज/ विश्विद्यालय खोले जा रहे हैं तो हम कौन सा बड़ा कार्य कर रहे हैं ? अवश्य ही यह बहुत ही बड़ा कार्य है। गुरुदेव नन्हें से बीज से विशाल वृक्ष की उत्पति का उदहारण देकर कहते हैं कि नन्हीं पौध से ऐसे व्यक्तित्व निकल कर आने की सम्भावना है जिन पर युग निर्माण का उत्तरदायित्व है। प्रयास भले ही छोटा हो, उद्देश्य बड़ा हो तो सफलता अवश्य ही कदम चूमती है। यह मात्र एक विद्यापीठ न रह कर व्यक्तित्व गढ़ने की टकसाल साबित होगा, और हो भी रहा है। शांतिकुंज जाने वाले हमारे साथियों को इस विद्यापीठ से निकल रही पौध को मिलने का शायद कभी अवसर मिला हो तो स्वयं इन पंक्तियों के साक्षी हो सकते हैं। हम तो अनेकों को मिल चुके हैं ,चिन्मय जी की दोनों बेटियों को मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है
इन्ही शब्दों के साथ आज सोमवार को, सप्ताह के प्रथम दिन की गुरुकुल पाठशाला का शुभारम्भ करते हैं लेकिन पहले विश्वशांति की प्रार्थना।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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शांतिकुंज के गायत्री विद्यापीठ गुरुकुल के शुभारंभ के अवसर पर 1 जून 1980 को परमपूज्य गुरुदेव द्वारा दिए गए उद्घाटन-उद्बोधन के महत्वपूर्ण अंश
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलिए। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
देवियो एवं भाइयो! आज हम एक बहुत छोटी सी शुरुआत कर रहे हैं जो बाहर से देखने में कोई विशेष महत्व की मालूम नहीं होती लेकिन उद्देश्य बहुत बड़ा है। सरकारी स्कूल खुलते हैं, बहुत सारे कालेज भी खुलते रहते हैं और शिक्षा के लिए जगह-जगह सरकारी, गैर सरकारी प्रयत्न चलते ही रहते हैं। ऐसी दशा में हम जिस कार्य का उद्घाटन कर रहे हैं , उसका यों तो प्रत्यक्ष कोई महत्व मालूम नहीं पड़ता।
लगभग 35 से 40 लड़कों, 20 से 30 लड़कियों और कुछ एक महिलाओं की शिक्षा से हम यह छोटी सी शुरुआत कर रहे हैं,एक नन्हा सा आरंभ कर रहे हैं लेकिन आप सब ज़रा बारीकी से देखें तो मालूम पड़ेगा कि “कोई बड़ा काम किया जा रहा है।”
आपने देखा होगा कि एक नन्हा सा बीज खेत मे डाल दिया जाता है, ज़रा-सी, नन्हीं सी पौध लगा देते हैं, प्रारंभ में यह प्रयास तो छोटा सा ही लगता है लेकिन जब हरी-भरी फसल खड़ी होती है, ढेरों अनाज पैदा होता दिखाई देता है, जब हरा-भरा बगीचा उगकर सामने आता है तो किसी दिन का प्रारंभ किया गया छोटा सा प्रयास, बहुत बड़ा परिणाम लेकर आता दिखाई देता है।
परम पूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि अपने जीवन में हमेशा ऐसे ही काम किए हैं। ऊंचे लक्ष्यों के लिए,ऊंचे उद्देश्यों के लिए छोटी शुरुआत की लेकिन परिणाम बहुत ही विराट होकर सामने आये हैं। आज के दिन यहां जो शुभारंभ हो रहा है, वह बाहर के स्कूलों की तुलना में किसी विशेष महत्व का नहीं लगता परन्तु सही मायनों में बहुत बड़ा महत्व रखता है।
गुरुदेव स्वामी श्रद्धानन्द जी की बात बता रहे थे कि उनके मन में एक बात आई थी कि छोटी आयु के बच्चे ही वह आधार है, जिन पर संस्कारो का आरोपण किया जा सकता है। कच्ची लकड़ी को मोड़ा जा सकता है। पक्की लकड़ी को मोड़ना मुश्किल होता है, तोड़ना बहुत ही आसान होता है। छोटी उमर में यदि ध्यान दिया जाए तो बच्चों को महापुरुष बनाया जा सकता है।
स्वामी श्रद्धानन्द जी के बारे में कौन नहीं जानता, गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय (Deemed University) की स्थापना करने वाले इन स्वामी जी को हम इस लेख में केवल नमन ही कर सकते हैं। हमें डर है कि स्वामी जी का प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद इतिहास कहीं हमें आज के लेख से भटका न दे। केवल हम ही क्या, हमारे पाठक/सहकर्मी विशेषकर आदरणीय सुमनलता और विदुषी बंता जी, जो इस विषय के ज्ञानपुंज हैं, स्वामी जी के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित हैं । हमारे पूर्व प्रकाशित लेखों पर दोनों बहिनों के विस्तृत कमेंट इस स्टेटमेंट के साक्षी हैं।
स्वामी श्रद्धानंद ने एक छोटा सा प्रयास किया। स्वयं का एक छोटा सा घर था, उसे बेच दिया। मकान का मूल्य मिला 5000 रुपए। यह बात लगभग 125 वर्ष पुरानी है। घर बेचने के बाद हरिद्वार में गंगा के पार कांगड़ी गांव में गुरुकुल के नाम पर छोटे-छोटे झोपड़े बनाए और कुछ एक विद्यार्थियों से अपनी संस्था की शुरुआत की। इस शरुआत को जिसने भी देखा,मखौल ही उड़ाया। दस बच्चों का कोई स्कूल होता है। स्कूलों की तो बड़ी बड़ी, विशाल, शानदार इमारतें होती है। देहरादून, मसूरी में पब्लिक स्कूलों का ठाठ-बाठ की तुलना में फूस की झोपड़ियों का भला क्या मूल्य हो सकता था, लेकिन सिद्धांतों के प्रति अडिग स्वामी श्रद्धानंद जी ऊंचे लक्ष्य को लेकर काम करते गए। गंगा में आई बाढ़ भी उनके उद्देश्य को डिगा नहीं सकी। एक शानदार संस्था के रूप में गुरुकुल कांगड़ी विश्विद्यालय उभर कर आई। उसमे से बड़े ही शानदार मनुष्य निकल कर आये । इंद्रसेन विद्यावाचस्पति, सत्यदेव विद्यालंकार, रामगोपाल विद्यार्थी ऐसे कुछ गिने-चुने किंतु तपे हुए व्यक्ति थे जो उन दिनों इस गुरुकुल ने निकाले, किसी दूसरे स्कूल से नहीं निकले।
विश्वामित्र जी रामचंद्र जी और लक्ष्मण जी को छोटी आयु में ले गए थे और उनको बला- अतिबला विद्या सिखाकर महामानव बना दिया था। ऋषि संदीपन के आश्रम में श्रीकृष्ण भी छोटी उमर में ही गए थे व महामानव बनकर आए थे। लव और कुश का शिक्षण भी वाल्मीकि के आश्रम में तब हुआ था जब वे बालक थे। छोटी आयु का महत्व बहुत बड़ा होता है। बड़ी आयु हो जाने पर यही कार्य किये जाते तो शायद इतने बड़े परिणाम न मिलते । जितना अधिक ऊंचे स्तर का शिक्षण छोटी उम्र मे सिखाया जा सकता है, बड़े होने पर उतना संभव नहीं है।
गुरुदेव का प्रत्येक कार्य प्रारम्भ में देखने को भले ही छोटा दिखे किंतु ऊंचे उद्देश्यों को लेकर आरंभ हुआ वही कार्य बड़े परिणाम तक पहुंचा। पाठकों को अखंड ज्योति पत्रिका के आरंभिक दिनों की कथाएं तो याद होंगीं हीं । गुरुदेव ने एक छोटा सा छापाखाना खोला था, जिसने देखा, हंसते-हंसते लोट-पोट हो गया। 350 रुपए मूल्य की हाथ से चलने वाली मशीन से कोई युग को बदलने वाली पत्रिका भी छप सकती है क्या? सबने कहा क्यों पैसा बर्बाद करते हो? कुछ एक हजार का छापाखाना, काम करने वाले केवल तीन व्यक्ति, हाथ से बना कागज़। दिखने में छोटा सा छापाखाना लेकिन उद्देश्य बहुत बड़ा था, उद्देश्य बड़ा था तो परिणाम भी तो शानदार ही थे। छोटी मशीन में दुनिया को हिला देने वाला, ऊंचे मकसद व उद्देश्यों वाला साहित्य छपता था जबकि बड़ी-बड़ी मशीनों में ऐसे गंदे उपन्यास व गंदी किताबें छपती हैं कि क्या कहें। गुरुदेव की छोटी सी प्रेस ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया। क्रिया-कलाप चाहे छोटे ही हों,अगर अगर उद्देश्य बड़े हों तो फलना-फूलना सुनिश्चित है
ऐसे ही छोटे कार्य परन्तु ऊँचे उद्देश्य का उदाहरण राजस्थान स्थित वनस्थली नामक स्थान पर एक अध्यापक ने छोटा सा 6 बालिकाओं से एक विद्यालय खोला जो आज एक वटवृक्ष की भांति वनस्थली यूनिवर्सिटी के नाम से प्रसिद्ध है। राजस्थान के प्रथम मुख्य मंत्री और सेक्रेटरी जैसे उच्च पद पर आसीन हीरालाल शास्त्री जी ने सब कुछ छोड़ कर, सब कुछ न्यौछावर कर दिया। गारे- मिटटी में आरम्भ हुआ वनस्थली विद्यापीठ आज करोड़ों रुपए की यूनिवर्सिटी में परिवर्तित हो चुकी है।बेटी के आकस्मिक निधन से प्रेरित इस यूनिवर्सिटी में आज लड़किया हवाई जहाज चलाना सीखती है, सही अर्थों में आत्मनिर्भर बन नारी को जगाने की विधा में निष्णात् होती है। न जाने क्या-क्या वहाँ पढ़ती है। यह सब इसलिए हुआ कि इस सबके पीछे ऊंचा उद्देश्य था।
हमारा भी आज गुरुकुल आरंभ करने के पीछे ऐसा ही उद्देश्य है। जब यह साथ होता है तो जनता, इंसान व भगवान सब सहायता करने आ जाते है और एक उदाहरण सुनेगे आप?
इटावा जिले के एक अंग्रेज सरकार में अधिकारी थे , नाम था Allan Octave Hume, ब्रिटिश सरकार में उच्च पद कर्मचारी होने के बावजूद उन्होंने गांव-गांव जा जाकर एक संगठन को जन्म दिया जिसे हम आज इंडियन नेशनल कांग्रेस के नाम से जानते हैं। Hume का विचार था कि भारत में युवाओं की, जनता की एक समिति होनी चाहिए। उद्देश्य बड़ा था तो 50-60 आदमी इकट्ठे हुए और इंडियन नेशनल कांग्रेस का जन्म हो गया। तिलक, नेहरू शास्त्री, सुभाषचंद्र बोस सब उसी की देन हैं। छोटे संगठन के पीछे ऊंचे उद्देश्य हो, ऊंचा मकसद हो तो वे दुनिया में सफल होते ही हैं । जिनके उद्देश्य घटिया होते हैं, वे बड़े काम करने के बावजूद भी निंदा के पात्र बनते हैं और उन पर लानत बरसती है।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार- 43 ,(2) वंदना कुमार-26,(3) रेणु श्रीवास्तव-36 ,(4) सुमन लता-33 ,(5) चंद्रेश बहादुर-29 ,(6) सरविन्द पाल-50 ,(7 ) सुजाता उपाध्याय-33,(8 ) मंजू मिश्रा-30,(9) अरुण वर्मा-25 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई