वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में चल रही शोध प्रक्रिया। 

11 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद

शब्द सीमा के कारण आज संकल्प सूची  प्रकाशित करने में असमर्थ हैं। 

कमैंट्स बता रहे हैं कि आने वाले लेखों के प्रति  हमारे साथी बहुत आशावादी हैं, होना भी चाहिए,क्योंकि इसी से Sense of involvement का आभास होता है, नहीं तो यह  One way traffic होकर ही  रह जायेगा। 

ब्रह्मवर्चस द्वारा लिखित 474 पन्नों के दिव्य ग्रन्थ “पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-दर्शन एवं दृष्टि”, जिस पर  आजकल चल रही लेख शृंखला आधारित है, सही मायनों में एक masterpiece है। इस महान ग्रन्थ का अभी हम अध्ययन कर ही रहे थे कि 2010 में प्रकाशित एक और पुस्तक “ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान, प्रयोजन और प्रयास” ने हमें एक और चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट दे दिया है। कुछ वीडियोस भी मिली हैं, कुछ हमने भी रिकॉर्ड की हुई हैं। अगर हो सका तो इस सप्ताह का वीडियो सेगमेंट इन्हीं में से कुछ निकालने का प्रयास करेंगें, अभी तक के लिए आज प्रस्तुत किए  चित्र ही काफी हैं।   

आज के ज्ञानप्रसाद में कुछ उपकरणों के नाम दिए गए हैं जिन्हें देखकर ऐसा लगेगा कि जैसे कि हम PhD की तैयारी कर रहे हैं। पाठक उनके नामों को छोड़ कर उद्देश्यों पर concentrate करें तो बेहतर और आसान होगा। हमारा उद्देश्य केवल इतना ही जानना है कि इस शोध संसथान में हो क्या रहा है। 

तो चलते हैं गुरुचरणों को ओर। 

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                   गायत्री की चौबीस शक्तिधाराओं के मंदिर

गायत्री के चौबीस अक्षरों में चौबीस देवशक्तियाँ निवास करती है। इसलिए उनके अनुरूपों की ही पूजा अर्चना की जाती है 1. आद्यशक्ति 2. ब्राह्मी, 3. वैष्णवी, 4. शांभवी, 5. वेदमाता 6. देवमाता 7. विश्वमाता, 8. ऋतम्भरा, 9. मंदाकिनी, 10. अजपा, 11. सिद्धि 12. ऋद्धि 13.सावित्री,14.सरस्वती,15.महालक्ष्मी,16.महाकाली,17.कुंडलिनी,18.भुवनेश्वरी,19. भवानी,20.अन्नपूर्णा,21.महामाया,22. प्यासिवनी,23.त्रिपुरा,24.प्राणअग्नि

माता गायत्री के 24 रूपों  में से बारह ज्ञान पक्ष के रूप हैं और बारह विज्ञान पक्ष के रूप हैं, ज्ञान और विज्ञान दोनों रूपों की शक्तियों के मिलन से चौबीस अक्षर वाला गायत्री मंत्र विनिर्मित है। परम पूज्य गुरुदेव  ने गायत्री के आत्मिकी और आत्मभोतिकी दोनों पक्षों की गंभीर साधनायें कीं और उनके स्वरूपों को स्पष्ट किया। 

ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के ग्राउंड फ्लोर पर इन चौबीस शक्तियों के भव्य मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर के दोनों ओर उस विशेष महाशक्ति की उपासना में प्रयोग आने वाले यंत्र-मंत्र एवं प्रयोगविधि तथा उसकी फलश्रुति का सांकेतिक विवरण दिया हुआ है। इस रिसर्च सेंटर के निर्माण  में मूर्ति विज्ञान, मंत्र विज्ञान व यंत्र विज्ञान के तत्वों का समग्र समावेश है।

                      रिसर्च लेबोरेटरी  के तीन खण्ड हैं  

1.यज्ञ चिकित्सा की प्रयोगशाला 

2.आध्यात्मिक संसाधनों  द्वारा शरीर, प्राण और मन अर्थात् समग्र जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का मापन करने वाली प्रयोगशाला 

3.वनौषधि अनुसंधानशाला और उससे जुड़ा हुआ वनौषधि उद्यान ।

यज्ञ चिकित्सा ( यज्ञोपैथी) की प्रयोगशाला :  यज्ञ द्वारा अनेकों रोगों के उपचार, स्वास्थ्य संवर्धन, प्रकृति अनुकूल, वनस्पति संवर्धन  जैसे अनेक पक्षों के वर्णन आर्ष ग्रन्थ करते हैं। यज्ञ चिकित्सा के इस पक्ष के  प्रयोग को परीक्षण की कसौटी पर कसने वाली वह प्रयोगशाला बहुमूल्य उपकरणों से सुसज्जित है। इनमें से सबका विवरण देना तो संभव  नहीं है इसलिए  केवल कुछ एक  विशेष उपकरणों का परिचय ही  दिया जा रहा है।  

                                विभिन्न प्रक्रियाएं 

थर्मोकपन यन्त्र – इसका उपयोग यज्ञ की अग्नि  की ऊर्जा मापने के लिए किया जाता है। यह यन्त्र  0 से 1100 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बताने की क्षमता रखता है। याजक के पास कितनी ऊर्जा पहुंची एवं उससे दूर यज्ञ का लाभ लेने हेतु चारों ओर बैठे हुए साधकों को कितना तापमान मिला, इसे मापने के लिए 0 से 200 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बताने वाले थर्मामीटर रखे गए हैं। ये निर्धारण करते हैं कि यज्ञ प्रक्रिया में कितनी समिधाएं डाली जाएँ व आहुतियाँ कितनी हों?

यज्ञ प्रक्रिया  समिधाओं एवं हवन सामग्री की एक धीमी ज्वलन प्रक्रिया है। कमल की पंखुड़ियों के आकार का यज्ञ कुंड सत्, रज, तम का  प्रतीक यज्ञ कुंड पूर्णतः शास्त्रोक्त यज्ञ चिकित्सा के विधान से विनिर्मित है। जैसा कुण्ड का आकार है, वैसा ही धूम्र एकत्रीकरण द्वारा चार कोनों पर स्थित चार उपकरणों तक पहुँचाता है। धूम्र कणों में विद्यमान constituents को ‘स्मोक आयन डिटेक्टर’ यंत्र से मापते है । यज्ञाग्नि की तीव्रता का मापन ‘लक्समीटर द्वारा किया जाता है। ‘स्पेक्ट्रोस्कोप द्वारा रंगों के  विश्लेषण की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। क्रोमोपैथी के अनुसार किस रंग का क्या प्रभाव होता है उसका analysis किया जाता है, उसी के अनुसार ही  समिधा, हवन सामग्री आदि का चयन किया जाता है।  का निर्धारण करते हैं।

यज्ञ प्रक्रिया में “शब्द शक्ति” गायत्री मंत्र की ध्वनि ऊर्जा के विश्लेषण के ‘लिए ‘ऑसीलोस्कोप यंत्र यहां रखा हुआ है। क्रिस्टलन माइक्रोफेन से मंत्र की ध्वनि तरंगें इस यंत्र तक पहुँचती हैं। शब्द तरंगों को फ्रीक्वेन्सी वेव पैटर्न तथा पिच के साथ लगे डेसीबल मीटर एवं इस यंत्र पर देखा जा सकता है। मैग्नेटिक डिस्क रिकार्डर के माध्यम से इन गूँजने वाली शब्द तरंगों को रिकॉर्ड कर लिया जाता है ताकि  मंत्र शक्ति की विस्तृत जाँच रिवॉल्यूसन रिसर्च ऑसिलोस्कोप’ से की जा सके। यज्ञ विज्ञान की प्रयोगशाला की ही भांति उच्चस्तरीय उपकरणों से सुसज्जित एक अन्य प्रयोगशाला में आध्यात्मिक साधनाओं के प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है।

                    आध्यात्मिक साधनाओं के मापन की  प्रयोगशाला  

शोध संस्थान के प्रथम तल पर विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय को स्थापित करने में सहायक यह प्रयोगशाला 9 प्रमुख उपखण्डों में सक्रिय है – 

1.साइको फिजियोलॉजिकल एनालिसिस कक्ष:

यहाँ वैज्ञानिकों द्वारा शरीर और मन का विश्लेषण-अध्ययन किया जाता है।

2.लंग फंक्शन कक्ष:

यहां प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन एक्सपायरोग्राफ एवं मिडस्पायरर यंत्र से करते हैं। मिडस्पायर यंत्र पूर्णतया कम्प्यूटराइज्ड है, जिससे “प्राण शक्ति” का विश्लेषण स्वचालित क्रम में हो जाता है। 

3.कार्डियोलॉजी कक्ष:

इस कक्ष में तीन विभिन्न उपकरणों का समुच्चय कार्डियक स्कोप हार्टरेट मीटर तथा ऑटोरिकार्डर के रूप में विद्यमान है। इससे ध्यान प्रक्रिया द्वारा हृदय पर पड़ने वाले प्रभावों की जाँच की जाती है।

4.हिमेटोलाजी कक्ष:

हिमोग्लोबिन तथा रक्त कणों की संख्या व अनुपात, श्वेत कणों की संख्या व अनुपात, श्वेत कणों की संख्या व भिन्नता, कणों के जमने की गति आदि घटक मापे जाते हैं। साधना से एक माह में इनमें क्या परिवर्तन हुआ, इसके आधार पर भावी परामर्श दिया जाता है। 5.बायोकेमेस्ट्री कक्ष:

इस कक्ष में रक्त की शर्करा, कोलेस्ट्राल आदि विभिन्न जैव रसायन तत्वों का विश्लेषण, स्पेक्ट्रोफोटोमीटर तथा आर. ए. 50 आदि यंत्रों से किया जाता है। इसमें से आर. ए. 50 यंत्र पूर्णतया कम्प्यूटराइज्ड है, जिससे बायोकेमेस्ट्री के लगभग 108 परिक्षण स्वचलित क्रम से किए जाते हैं।

6.माइक्रोबॉयोलॉजी कक्ष:

यहाँ इन्क्यूबेटर ओवर, कॉलोनी काउन्टर, आइसोलेशन चैम्बर व अल्टावॉयलेट लैंप के माध्यम से रोगाणुओं की कॉलोनी विभिन्न प्रकार के कल्चरमीडिया में पैदा की जाती है तथा माइक्रोस्कोप द्वारा उनकी स्थिति विभिन्न समयों पर देखी जाती है। 7.इलेक्ट्रो-फिजियालोजी कक्ष: शरीर की विद्युत सूक्ष्म जीवकोषों एवं स्नायुओं का उत्पादन है, जो बहिरंग में त्वचा, मांसपेशियों, आँखों की हलचल, हृदय के वाल्वस की ध्वनि तथा स्नायु समुदाय व हृदय के पेसमेकर की हलचल की प्रतिक्रिया स्वरूप स्किन रेसिस्टेन्स, इलेक्ट्रोमायोग्राम, निस्टेग्मोग्राम, फोनो कार्डियोग्राम, इलेक्ट्रो इन्केफ्लोग्राफ के रूपों में अंकित होती है। इन सभी के मापन की व्यवस्था तेईस चैनल ई.ई.जी द्वारा की जाती है। इसके अलावा अल्फा ई.ई.जी. बायोफीड बैंक का भी उपयोग इस क्रम में किया जाता है। बायोफीड बैंक के इस क्रम में रेस्पाइरेशन बायोबीफबैंक, टेम्परेचर बायोफीड बैंक व जी. एस. आर. बायोफीड बैंक की भी सुविधा यहां उपलब्ध है। ताकि ध्यान प्रक्रिया का गंभीरता से अध्ययन किया जा सके।

8.साइकोमेंट्री कक्ष:

इस कक्ष में आडियो-विजुअल रिएक्शन टाइम, एप्टीट्यूड, लर्निंग मैजेज, स्अडीनेस, मिरर ट्रेसिंग, साइजवेट इल्यूजन, भुलरायर इल्यूजन, पिरामिड पल, मेसन्स डिस्क, मेमोरीड्रम, टैक्टिोस्कोप, मसल्स फटीग, जी.आर.आर. आदि के द्वारा आई. क्यू. स्मरण शक्ति, सीखने की सामर्थ्य आदि विभिन्न मानसिक क्षमताओं पर आध्यात्मिक साधनाओं का प्रभाव देखा जाता है।

9.ध्वनि विज्ञान कक्ष:

कक्ष में विभिन्न यंत्रों के माध्यम से “शब्द शक्ति” की प्रभावोत्पादकता का पता किया जाता है।

                               वनौषधि अनुसंधान शाला

यहां विभिन्न उपकरणों से विविध प्रकार की जड़ी-बूटियों के रासायनिक विश्लेषण एवं उनके प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। इसके विविध प्रयोगों को सम्पन्न करने के लिए ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के परिसर में ही अनुसंधानशाला से  जुड़ा बनौषधि उद्यान है,इस उद्यान में  लगभग 200  दुर्लभ औषधियां लगायी गयी हैं। इन औषधियों पर जहां एक ओर यज्ञ धूम्र के प्रभाव को देखा जाता है, वहीं  फाइटो कैमिस्ट्री लैब में इनकी properties  का परीक्षण किया जाता है, ताकि आयुर्वेद को अपने मूल स्वरूप में लाया जा सके।

                                           लाइब्रेरी:

शोध संस्थान परिसर में ही स्थित लाइब्रेरी  में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, बौद्ध, आदि विभिन्न धर्मों के साहित्य के अतिरिक्त तन्त्र, ज्योतिष, भारतीय एवं पश्चिमी फिलासफी, इतिहास व संस्कृति, समाज विज्ञान, राजनीति, मनोविज्ञान, आयुर्वेद, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, रसायनशाला, भौतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान, जन्तु विज्ञान, वनस्पति शास्त्र आदि अनेक विषयों की लगभग 50000 पुस्तकों का बहुमूल्य संग्रह है। इन संदर्भ ग्रन्थों के अलावा पुस्तकालय में  300 विश्व-विख्यात पत्रिकाएं,साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, द्विमासिक एवं त्रैमासिक क्रम से आती है। इस लाइब्रेरी  में यहाँ के शोधकर्ता वैज्ञानिकों के अतिरिक्त अन्य अनुसन्धानरत छात्र, छात्राओं के अध्ययन की भी सुविधा है।

ब्रह्मवर्चस के मनीषी वैज्ञानिक:

शोध संस्थान में कार्यरत अनुसन्धान कर्मियों के दो वर्ग हैं। पहला वर्ग बुद्धिजीविओं  का है, इस वर्ग में वे लोग आते हैं  जो जीवन के सामाजिक, राजनैतिक, दार्शनिक पहलूओं के अध्ययन और शोध से संलग्न है। दूसरा वर्ग वैज्ञानिकों का है, इस वर्ग में वे लोग हैं, जो यज्ञोपैथी, वनौषधि अनुसंधान तथा मानवीय व्यक्तित्व पर आध्यात्मिक साधनाओं के प्रभाव पर अनुसन्धान कर रहे हैं। इन बुद्धिजीविओं  और वैज्ञानिकों के दो स्तर हैं- पहला स्तर उन लोगों का है, जो शोध संस्थान में स्थायी रूप से रहकर अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। इन लोगों की संख्या लगभग 27( 2012 के आंकड़ें ) है।  शिक्षा और योग्यता की दृष्टि से ये सभी एम.डी., एम.एस., पी.एच.डी., एम.टेक., एमएससी, एम. ए. स्तर के हैं। इनमें से कोई भी व्यक्ति वेतनभोगी कर्मचारी नहीं है। सभी ने परम पूज्य गुरुदेव  के विचारों से प्रभावित होकर अपना जीवन लोकहित के लिए समर्पित किया है। दूसरे स्तर के वोह लोग हैं  जिनकी योग्यता तो उपरोक्त स्तर की है लेकिन वे  क्षेत्रों में रहकर शोधकार्य में सहयोग देते हैं। ऐसे लोग समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार तीन मास/ छः मास/एक वर्ष का समयदान करके शोध संस्थान में रहकर शोधकार्य को गति देते हैं। इस प्रक्रिया में  कार्यरत देश और विदेश के अनुसन्धान कर्मियों की संख्या 10000 से भी ऊपर है। इन सभी का मार्गदर्शन एवं दिशानिर्देशन, ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के डायरेक्टर, श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या करते हैं।


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