6 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज सप्ताह का चतुर्थ दिन गुरुवार है, गुरु को समर्पित इस पावन दिन पर हम आज का ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत कर रहे हैं। यह ज्ञानप्रसाद हमारे अति समर्पित युगसैनिक साथी आदरणीय सरविन्द पाल जी की प्रस्तुति है जिनके समर्पण और श्रद्धा से सभी भलीभांति परिचित हैं। हमारे साथी जानते हैं कि हम इस सप्ताह के अंतिम दिन, शनिवार के शुभरात्रि सन्देश तक, गुरुपूर्णिमा का महापर्व मना रहे हैं, आज का ज्ञानप्रसाद लेख जिसकी चर्चा हम गुरुकुल पाठशाला में अपने गुरु के चरणों में बैठ कर करेंगें, सरविन्द जी द्वारा प्रस्तुत किया गया गुरुपूर्णिमा ज्ञानप्रसाद श्रृंखला का दूसरा लेख है।
सरविन्द जी ने युग निर्माण योजना जुलाई 2021में प्रकाशित लेख का स्वाध्याय करके, अच्छी तरह समझने के बाद अनुभव किया कि इसे परिवार के साथ भी शेयर किया जाना चाहिए। हमारा विश्वास है कि इस लेख से सभी को प्रेरणा मिलने की सम्भावना है। हालाँकि किसी भी प्रस्तुति को पोस्ट करने से पहले हमारा योगदान केवल एडिट करने तक ही सीमित होता है, लेकिन इस लेख में से सूफी फकीर की कहानी को डिलीट करने का साहस किया है, आशा है सरविन्द जी हमें क्षमा करेंगें। डिलीट करने के पीछे हमारी अंतरात्मा ने जो लॉजिक दिए उनमें से एक तो शब्द सीमा ही है और दूसरा यह कि श्रद्धा और समर्पण को दर्शाते परम पूज्य गुरुदेव के अनेकों उदाहरणों से हम परिचित हैं। शब्द सीमा की जब भी बात उठती है तो आज के मनुष्य का retaining span एकदम मस्तिष्क पटल पर दस्तक दे उठता है। इस तथ्य का प्रतक्ष्य प्रमाण Video Shorts और रेगुलर Videos के analytics में दिखाई दे रहा है। Video Shorts केवल 60 सेकंड्स के होने के कारण रेगुलर Videos की तुलना में दुगने से भी अधिक दर्शकों द्वारा देखे जा रहे हैं। हम फिर भी अपनेआप को अति सौभाग्यशाली मानते हैं कि हमारी बात सम्मानपूर्वक सुनी जा रही है जिसके लिए हम धन्यवाद् करते हैं। Retaining span के सन्दर्भ में यह वाक्य बहुत ही चर्चित हो चुका है : मुझे ज्ञान नहीं लेना है।
इन्ही विचारों से प्रभावित होकर हमने Shorts बनाने आरम्भ किए, बड़ी वीडियोस और ज्ञानप्रसाद लेखों को टुकड़ों में पोस्ट करना शुरू किया। पूरे सप्ताह में आदरणीय डॉ शर्मा जी के केवल 6 Shorts (6 मिंट) ही पोस्ट हो सकेंगें, इसलिए हमारी इच्छा है कि परिवार की प्रथा के अनुसार शुक्रवार को उनके गुरुपूर्णिमा को दिए एक घंटे के उद्बोधन में से कुछ 10-15 मिंट का selected पार्ट रिलीज़ किया जाए।
कमैंट्स-काउंटर कमैंट्स के अपडेट के लिए स्पेशल सेगमेंट अवश्य देखें,बहुत ही उत्कृष्ट विचार पोस्ट हो रहे हैं।
इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज की गुरुकुल पाठशाला की और रुख करते हैं :
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
***************
प्रस्तुत लेख में परम पूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि गुरुपूर्णिमा सद्गुरू की पूर्णता की अनुभूति का महोत्सव है क्योंकि देखने में सद्गुरू भी हम सबकी तरह साधारण मानव ही लगते हैं लेकिन उनकी प्रकृति हमेशा दैवी और दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत होती है। गुरू की दिव्य प्रकृति को जिस शिष्य में पहचानने की योग्यता है, वही सद्गुरू का परम शिष्य होने के योग्य है l जिस भी शिष्य में इस योग्यता का अभाव है, उसे सच्चा शिष्य नहीं कहा जा सकता है। जो शिष्य अपने गुरु के पास सांसारिक विषयों, कामनाओं, वासानाओं व लालसाओं की पूर्ति के लिए आते हैं, वोह कभी भी परम शिष्य नहीं बन सकते हैं और न ही कभी गुरु के वास्तविक स्वरूप यानि ईश्वरीय स्वरूप से परिचित हो सकते हैं l ऐसे शिष्य आत्मज्ञान, तत्वज्ञान व दुर्लभ आध्यात्मिक संपदा के भी अधिकारी नहीं हो सकते। गुरु की आध्यात्मिक सम्पदा प्राप्त करने का अधिकार केवल सुपात्र/सत्पात्र शिष्य को ही है, इस कटु सत्य में तनिक भी संदेह व संशय नहीं है l
गुरुदेव बताते हैं कि हमारे आसपास अनेकों ऐसे मनुष्य होंगें जिन्हें बड़ी बेचैनी व बेसब्री से सद्गुरू को तलाश है लेकिन क्या ये सभी खोजीजन किसी सद्गुरू को ढूंढ पाए एवं उनके परम शिष्य बन सके ? शायद नहीं, क्योंकि ऐसे लोग स्वयं से एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना भूल जाते हैं l वह प्रश्न है, “उनकी इस खोज का उद्देश्य क्या है” ? ऐसे खोजियों में अधिकतर कौतुकप्रिय होते हैं और अक्सर किसी चमत्कार या अलौकिकता को देखने के लिए किसी विभूतिवान योगी को तलाशते हैं। यह सरासर गलत है l
गुरुदेव कहते हैं कि मनुष्य की पीड़ा, दुःख, चिंताएं अपने सांसारिक कष्टों के कारण होती हैं, ऐसे लोग इन्हीं अनेकों कष्टों के निवारण के लिए सद्गुरु की तलाश करते फिरते हैं, वोह चाहते हैं कि कोई ऐसा गुरु मिल जाए जो मात्र जादू की छड़ी के स्पर्श से ही सभी कष्ट दूर कर दे। ऐसा बिल्कुल असम्भव है l कभी कभार कुछ एक मनुष्यों की, किन्हीं कारणों से लालसाएं पूर्ण हो भी जाती हैं लेकिन अधिकतर लोग किसी न किसी ठगी का शिकार हो जाते हैं जिन्हे पश्चाताप के अलावा कुछ भी नहीं मिलता l
परम पूज्य ने “सच्चे शिष्य” को परिभाषित करते हुए निम्लिखित मार्गदर्शन दिया है :
1.सच्चा शिष्य वही है जो “जीवन के तत्व” को सीखने के लिए तैयार है और इसके सत्य को समझने के लिए प्रतिबद्ध है।
2.सच्चा शिष्य वही है जो लालसाओं के लिए नहीं ललकता, उसकी चेतना कामनाओं से कीलित नहीं होती, वासनाओं के पाश उसे नहीं बाँधते।
3.सच्चा शिष्य सचमुच में बहुत बड़ा जिज्ञासु होता है, वह अपनी अनगढ़ प्रकृति को सुगढ़ व सुसंस्कृत करना चाहता है।
4.सच्चे शिष्य का मुख्य लक्ष्य स्वयं की प्रकृति का परिशोधन एवं रूपान्तरण करना होता है।
सच्चे शिष्य के यही उद्देश्य होते हैं जिनके लिए वह एक सच्चे सद्गुरू का उचित मार्गदर्शन चाहता है l
जिस तरह एक सच्चा शिष्य सद्गुरु को खोजता है,उसी तरह सद्गुरू भी एक सच्चे व सत्पात्र शिष्य की खोज करते हैं। जब शिष्य अपने अधूरेपन को, अपने अनगढ़ जीवन को, अपने सद्गुरू की पूर्णता में समर्पित करता है और सद्गुरू भी अपनी पूर्णता को अपने सच्चे व सुपात्र शिष्य में समर्पित कर देता है,तब इस “खोज प्रक्रिया” का चरम हो उठता है, दोनों श्रेष्ठ व दिव्य आत्माएं एक-दूसरे के पूरक हो जाती हैं l
गुरु पूर्णिमा का पावन महापर्व ऐसे ही पलों को क्रियान्वित करता है जब गुरु और शिष्य की चेतना एकाकार हो जाती है l
शिष्य के जीवन में कठिनाई के कई दौर आते हैं और कड़ी परीक्षाएं शिष्य को अनेकों बार परखती हैं। जो सच्चे व सुपात्र शिष्य होते हैं, वे इन परीक्षाओं को भी अपने सद्गुरू का अनुदान,वरदान एवं प्रसाद मानते हैं क्योंकि प्रत्येक परीक्षा के बाद शिष्य की चेतना में एक नया निखार आता है l इन परीक्षाओं से गुजरकर शिष्य और अधिक सुयोग्य एवं सुपात्र बनता जाता है l
परम पूज्य गुरुदेव गुरुपूर्णिमा के पावन महापर्व की मधुर वेला में अति सुन्दर व ज्ञानवर्धक अभिव्यक्ति लिखते हैं कि गुरुपूर्णिमा हर साल हम सबके जीवन में भी यही सब दुर्लभ अवसर लाती है, लेकिन इससे लाभान्वित वही होते हैं, जो शिष्य हो चुके हैं। जो अभी तक शिष्य नहीं हुए हैं, उन्हें कभी भी गुरुपूर्णिमा पूर्णता का आशीर्वाद व शुभकामनाएँ नहीं दे पाती है l जो लोग चाहते हैं कि यह आशीर्वाद व शुभकामनाएँ उन्हें भी मिले तो उन्हें सद्गुरू के स्मरण और समर्पण का सहारा लेना चाहिए। ध्यान रहे कि स्मरण तो सभी कर लेते हैं और यह स्मरण कभी भय से होता है तो कभी लोभ से, लेकिन सच्चा व सुपात्र शिष्य वही है, जो सद्गुरू के प्रेम में डूबकर स्मरण करता है और उसके आस्तित्व में श्रद्धा व समर्पण की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है l इस तरह शिष्य बिना थके, बिना रुके, अहर्निश सद्गुरू के स्मरण व समर्पण में स्वयं को विलीन करता रहता है l ज्यों ही यह प्रक्रिया पूर्ण होती है, त्यों ही शिष्य को सद्गुरू की पूर्णता की अनुभूति होती है और शिष्य उनकी दैवी शक्ति एवं दिव्य प्रकृति को पहचान लेता है और सद्गुरू भी उसे अपनाने में कोई विलम्ब नहीं करते। गुरुपूर्णिमा के पावन महापर्व की मधुर वेला में सद्गुरु और शिष्य, गुरुपूर्णिमा का महोत्सव मनाते हैं l
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक सहकर्मी से आग्रह है कि वर्ष 2023 की गुरु पूर्णिमा में अपने कर्त्तव्यपालन एवं समर्पण भाव को अधिक मजबूत करने,अपने अहंकार को गलाकर एक सच्चे व सुपात्र शिष्य के रूप में गढ़ने का संकल्प लें और इस छोटे से परिवार में नियमितता से सहभागिता सुनिश्चित करते हुए अपने जीवन का कायाकल्प करें l
समापन
*****************
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज फिर से सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं लेकिन संध्या जी भी लगभग वहीँ पर हैं (1)संध्या कुमार- 60, (2) सुजाता उपाध्याय-34,(3) रेणु श्रीवास्तव- 45 , (4) सुमन लता-36, (5 ) चंद्रेश बहादुर-37, (6)अरुण वर्मा-30 ,(7) सरविन्द पाल-64 ,(8) मंजू मिश्रा-26, (9 )वंदना कुमार-32,(10) निशा भारद्वाज-24
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई