4 जुलाई 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज सप्ताह का दूसरा दिन मंगलवार है, सभी साथियों के मंगल की कामना करते हुए हम आज का ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत कर रहे हैं। यह ज्ञानप्रसाद हमारे अति समर्पित सहपाठी, साथी, सहकर्मी एवं सबसे अगली पंक्ति के युगसैनिक आदरणीय सरविन्द पाल जी की प्रस्तुति है। हम सब परिवारजन भाई साहिब के समर्पण और श्रद्धा से भलीभांति परिचित हैं जिन्होंने न केवल स्वयं को बल्कि अपनी दोनों बेटियों को भी ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रति समर्पित होने को प्रेरित किया। उन्हीं के मार्गदर्शन में बेटियां यथाशक्ति अपना योगदान दे रही हैं, जिसके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं।
हमारे साथी जानते हैं कि हम इस सप्ताह के अंतिम दिन, शनिवार तक गुरुपूर्णिमा का महापर्व मना रहे हैं, आज का ज्ञानप्रसाद लेख जिसका स्वाध्याय हम गुरुकुल पाठशाला में अपने गुरु के चरणों में बैठ कर करेंगें, इसी कड़ी का दूसरा लेख है।
कल पोस्ट हुई गुरुदेव की वीडियो को इन पंक्तियों के लिखने के समय तक लगभग 1300 लोग देख चुके हैं और शुभरात्रि सन्देश वाली वीडियो शार्ट ने भी बहुत अच्छी प्रगति दिखाई है। कल सुबह के ज्ञानप्रसाद में एक और प्रेरणादायक वीडियो पोस्ट करने की योजना है और शुभरात्रि सन्देश आदरणीय ओ पी शर्मा जी की वीडियो शार्ट से ही सुशोभित हो रहा है।
यह सब परम पूज्य गुरुदेव ही कर रहे हैं, उन्होंने हमारे लिए सब कुछ बना बनाया परोस दिया है ,हमें केवल श्रेय लेना है, श्रेय लेना है , जो न ले सका उसका दुर्भाग्य है।
आज की संकल्प सूची में चाहे 4 ही युगसैनिक संकल्प पूरा कर सके लेकिन जिस प्रकार सभी परिजन परिश्रम करते हुए एक दूसरे के साथ सहकारिता व्यक्त करते रहे, बहुत ही सराहनीय है। बेटी प्रीती के जन्म दिवस की पोस्ट पर भी हमारे साथियों ने ही कमेंट किये हैं, उन्होंने तो दुगना कार्य किया है। नमन करते हैं। अपने साथियों के सुझाव का पालन करते हुए हमने कमेंट तो कोई भी नहीं किया लेकिन व्हाट्सप्प से साथियों को यूट्यूब की तरफ डायरेक्ट ज़रूर करते रहे। व्हाट्सप्प पर पोस्ट हुआ कमेंट केवल हम तक ही रह जाता है, आशा करते हैं कि परिजन व्हाट्सप्प पर पोस्ट करने के दुगने परिश्रम से परहेज़ ही करेंगें।
साथियों ने देखा होगा कि अनेकों नए visitors ने भी योगदान दिया है,आइए “प्रेम, प्रेम ,प्रेम” के गुरुमंत्र का जादू इन पर भी चला दें।
तो आइए विश्वशांति की कामना के साथ आज का ज्ञानप्रसाद आरम्भ करें। ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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यह विशेष लेख गुरु पूर्णिमा के पावन महापर्व के उपलक्ष्य में ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर आदरणीय सरविन्द पाल जी की प्रस्तुति है। सरविन्द जी ने अखंड ज्योति पत्रिका जुलाई 2022 में प्रकाशित हुए लेख का स्वाध्याय करके, समझने के उपरांत ही अपने विचारों को प्रस्तुत किया है जिसके लिए हम उनका ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।
हमें अवगत होना चाहिए कि गुरु की महिमा अपरंपार है क्योंकि गुरु समान कोई कृपालु, दयालु व उपकारी नहीं होता और गुरु की कृपादृष्टि के बिना सद्ज्ञान व ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं है। गुरुकृपा के बिना किसी भी शिष्य को भगवत्दर्शन सम्भव नहीं है l यदि गुरू की कृपादृष्टि हो जाए तो शिष्य के लिए असम्भव भी सम्भव हो जाता है और सद्ज्ञान व ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। गुरुकृपा से ही शिष्य निर्गुण, निराकार ब्रह्म को भी सगुण-साकार रूप में प्राप्त कर लेता है और शिष्य गुरुकृपा दृष्टि से ही भगवान के दर्शन कर अपने जीवन का कायाकल्प कर स्वयं को कृतार्थ कर पाता है l
परम पूज्य गुरुदेव ने बहुत ही सुन्दर विवेचन किया है कि उन गुरुओं की कृपादृष्टि का बखान कैसे किया जाए जो कि अपने शिष्यों पर कृपा करना तो दूर, शिष्यों को ही अपने जैसा बना लेते हैं l ऐसे गुरुओं के पास कोई दिव्यता नहीं होती है और वह धोखेबाज होते हैं। लेकिन वह इंसान को ही धोखा दे सकते हैं, भगवान को नहीं l ऐसे धोखेबाज गुरुओं से हमेशा सावधान रहना चाहिए l परम पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि सच्चा गुरु वही है जो शिष्यों को अपने अंतःकरण में समा लेता है और शिष्य भी गुरु-रूप हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे सागर सभी नदियों को स्वयं में समा लेता है और नदियाँ सागर-रूप हो जाती हैं l ब्रह्मस्वरूप गुरु को पाकर, उनके मार्गदर्शन में उपासना, साधना व आराधना करते हुए शिष्य भी ब्रह्मरूप हो जाता है l
संत कबीर जी कहते हैं :
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पांए lबलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए ll
गुरु पारस को अंतरो, जानत हैं सब संत l वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।
अर्थात
गुरु और गोविंद एक साथ खड़े हों तो सर्वप्रथम किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरु को यां गोविंद को ? इस परिस्थिति में प्रथम स्थान गुरु का है। गुरु के श्रीचरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरु की कृपादृष्टि से ही शिष्य को भगवान का दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त होता है l परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि उस गुरु की महानता का पार पाना सम्भव नहीं, जो शिष्य को भी अपने समान ही महान बना लेता है l गुरु और पारस के अंतर को सभी बुद्धिजीवी जानते हैं l पारस के विषय में धारणा है कि इसके स्पर्शमात्र से लोहा सोना बन जाता है l सद्गुरु एक ऐसे पारस होते हैं जो शिष्य को सोना नहीं, बल्कि अपने समान ही पारस बना देते हैं अर्थात महान बना देते हैं। शिष्य को ब्रह्मज्ञान के अमृत तुल्य ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कराकर भगवत्दर्शन का मार्ग सरल कर देते हैं। ऐसे गुरु ही सच्चे गुरु होते हैं जिनकी कृपादृष्टि से शिष्य अपने जीवन का कायाकल्प कर स्वयं को कृतार्थ कर सकता है तथा समुद्र की गहराई का अनुभव कर सकता है l
संत एकनाथ जी की गुरुभक्ति :
परम पूज्य गुरुदेव ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में विश्लेषण किया है कि भारतवर्ष का आध्यात्मिक इतिहास सदगुरुओं व सौभाग्यशाली शिष्यों से भरा पड़ा है l संत एकनाथ भी उन्हीं सौभाग्यशाली शिष्यों में से एक रहे हैं, जिन्हें जनार्दन स्वामी जी के रूप में ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु की शरण में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उन्हीं की कृपादृष्टि से संत एकनाथ जी को भगवत्दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था l ऐसे श्रेष्ठ व महान दिव्य आत्मा के धनी सच्चे सद्गुरू को पाकर संत एकनाथ जी का जीवन ही बदल गया और वह धन्य हो गए l
संत एकनाथ जी बचपन से ही भगवान के प्रति अगाध श्रद्धा व विश्वास रखते थे या फिर यों कहें कि उन्हें बचपन से ही भगवद्भक्ति के पुण्य संस्कार प्राप्त थे l उपासना, साधना व आराधना में उनकी बड़ी रुचि थी और अपनी आध्यात्मिक दिनचर्या के कारण उनकी भगवद्भक्ति निरंतर बढ़ती गई जिससे प्रभावित होकर सर्वज्ञ, सर्वव्यापी व सर्वसाक्षी परमपिता परमेश्वर ने उन्हें जनार्दन स्वामी जी जैसे सद्गुरू की शरण पाने का सौभाग्य प्रदान किया। संत एकनाथ जी के लिए उनके गुरू ही सब कुछ थे l वे कहा करते थे:
“गुरू ही माता, गुरू ही पिता और गुरू ही हमारे कुलदेव हैं l संकट की घड़ी में, आगे और पीछे वे ही हमारी रक्षा करने वाले हैं, अतः हमारा सर्वस्व जीवन उन्हीं के श्रीचरणों में समर्पित है। हम एकमात्र सद्गुरू जनार्दन स्वामी जी की शरण में हैं , गुरू एक जनार्दन ही हैं व हमारा जीवन ही जनार्दन है l”
कहा जाता है कि जनार्दन स्वामी जी को श्रीदत्त भगवान के दर्शन हुए थे और उन्हें यह दिव्य दर्शन नित्य हुआ करते थे l संत एकनाथ जी की भगवद्भक्ति व गुरूभक्ति को देखकर जनार्दन स्वामी जी बहुत प्रसन्न हुए थे और उन्हें अपने पास ही रख लिया था l इस तरह संत एकनाथ जी ने लगातार लगभग छह वर्ष तक बड़े ही भक्तिभाव से जनार्दन स्वामी जी की सेवा की और पात्रता विकसित कर पूर्ण पात्र हुए l
परम पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि संत एकनाथ जी भगवान से मन-ही-मन यह प्रार्थना किया करते थे कि हे प्रभु! गुरूसेवा करने की इतनी शक्ति दें कि सभी नौकर-चाकर का काम हम अकेले ही कर सकें l गुरू का संतोष ही उनका संतोष था और गुरू वाक् ही उनके लिए शास्त्र थे। गुरु की मूर्ति उनके परमेश्वर और गुरू का घर ही उनका स्वर्ग था। इसी शुद्ध भावना से वे गुरू की अनवरत अखंड सेवा करते थे l गुरूसेवा को ही उन्होंने परम धर्म माना और सोते-जागते, खाते-पीते व स्वप्नावस्था में भी गुरू के सिवा और किसी वस्तु का चिंतन ही नहीं किया l इस प्रकार गुरू की सेवा करते-करते संत एकनाथ जी के सभी मनोविकार मिट गए, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद-मत्सर, अहंकार, वासना आदि सभी दुर्गुण शरीर छोड़कर चले गए एवं उनकी इंद्रियाँ वासनारहित हो गई। एकनाथ जी की सम्पूर्ण काया तेजोमयी हो गई और उनका देहाभिमान भी शुन्य हो गया l
इस प्रकार गुरूसेवा से संत एकनाथ जी की चित्तशुद्धि हुई और वह गुरुप्रसाद को प्राप्त हुए l ऐसी शिष्यवृत्ति के साथ रहते हुए उन्होंने साक्षात गुरुमुख से ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव और श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथ सुने जिससे उनका आत्मबोध जागृत हो गया l वे गुरूसेवा व गुरूप्रेम में ऐसे डूब गए कि स्त्री, पुत्र, धन आदि सब कुछ भूल गए, यहाँ तक कि अपना मन भी भूल गए। उन्हें यह भी ध्यान न रहा कि मैं कौन हूँ? उनका यह दृढ़ विश्वास था कि सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, व सर्वसाक्षी परमपिता परमेश्वर ही जनार्दन स्वामी जी के रूप में प्रकट हुए हैं और इसी दृढ़ विश्वास के साथ वे सदा अपने गुरू जनार्दन स्वामी जी का ध्यान किया करते एवं उन्हीं की मानस पूजा किया करते l ऐसे थे जनार्दन स्वामी जी के परम शिष्य संत एकनाथ जी।
परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि इस तरह ओजोस्वी, मनस्वी व तेजस्वी संत एकनाथ जी को गुरू की कृपादृष्टि से ईश्वर के दिव्य दर्शन कर सकने का परम सौभाग्य भी प्राप्त हुआ l सचमुच में यदि गुरूभक्ति सच्ची हो तो शिष्य को गुरू की कृपादृष्टि अवश्य प्राप्त होती है, इसमें तनिक भी संदेह व संशय नहीं है। गुरू की कृपादृष्टि से भगवत्दर्शन कर पाना भी सम्भव हो जाता है l यह कटु सत्य है कि गुरू समान कोई उपकारी नहीं होता है l
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक बच्चे का परम सौभाग्य है कि वह एक महान गुरु का शिष्य है और मात्र रीछ वानर जितने योगदान से ही परम पूज्य गुरुदेव का सूक्ष्म संरक्षण व दिव्य सानिध्य प्राप्त कर रहे हैं। पूज्यवर की ही कृपादृष्टि से परिवारजन जीवन का कायाकल्प कर स्वयं को कृतार्थ करने का आशीर्वाद व शुभकामनाएँ प्राप्त कर रहे हैं।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि संत एकनाथ जी की गुरू भक्ति से हम सबको बहुत बड़ी प्रेरणा व ऊर्जा मिलेगी,हमारा दृष्टिकोण बदलेगा और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा।
समापन
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आज की संकल्प सूची: सुजाता उपाध्याय-40,संध्या कुमार-51, रेणु श्रीवास्तव-33 और सरविन्द कुमार-33, संध्या बहिन जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। सभी को हमारी बधाई।
