29 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज गुरुवार का दिन अपने गुरवर को समर्पित करते हुए कामना करते हैं कि हमारे ह्रदय में वास करने वाले सभी भाई, बहिन, बेटे, बेटियां सकुशल होंगें, सूर्य की प्रथम किरण की लालिमा से प्राप्त हो रही ऊर्जा के साथ आज के शुभदिन का आरम्भ कर रहे होंगें।
आज गुरुवार होने के कारण कोई नई लेख शृंखला का आरम्भ संभव न होने के कारण एक ऐसा लेख प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका समापन आज ही हो जायेगा। यह लेख हमने दो वर्ष पूर्व 31 जुलाई को प्रकाशित किया था लेकिन इन दो वर्षों में इतना कुछ बदल गया, इतनी नयी जानकारी add हो गयी कि हमें सारा लेख नए सिरे से ही लिखना पड़ा। तभी तो कहा जाता है कि ज्ञान अनंत है; हज़ारों वर्ष पूर्व प्रकाशित हुए दिव्य ग्रन्थ मूलरूप में यथावत रहने के बावजूद शोध का विषय बने रहते हैं और बने रहेंगें।
14 जून के बाद आज दूसरी बार गुरुकुल पाठशाला में बेटियों की उपस्थिति 100 % देखकर ह्रदय प्रसन्न तो हो ही उठा उससे भी अधिक प्रसन्नता तब मिली जब आदरणीय साधना जी ने बेटी उपासना के कमेंट को रिप्लाई करते हुए लिखा” इतना दिन बाद कमेंट की हो। भूल गयी थी क्या उपासना” कमैंट्स की शक्ति का और ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में अपनत्व का यह एक और उदहारण है। बहुत बहुत धन्यवाद् करते हैं साधना जी।
परम गुरुदेव के साहित्य एवं अन्य दिव्य ग्रंथों पर आधारित ज्ञानप्रसाद लेखों, शुभरात्रि संदेशों आदि में हम सदा ही श्रद्धा समर्पण, निष्ठा आदि की बातें हम प्रतिदिन अपने साथियों के साथ शेयर करते रहते हैं लेकिन आज के ज्ञानप्रसाद में जिस बंधवा मज़दूर की बात हो रही है उन्हें “आधुनिक युग के हनुमान” कह कर सम्बोधन करना कोई अतिश्योक्ति नहीं है। हम बात कर रहे हैं शिवदास साधु जी की जिन्हें मात्र 4 वर्ष की आयु में लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व अपने माता पिता के साथ Trinidad and Tobago नाम के देश में बंधवा मज़दूर बनकर भारत को अलविदा कहनी पड़ी। Caribbean स्थित यह देश भारत से 14000 किलोमीटर दूर है। “शिवदास साधु शिवमंदिर” के निर्माण की कहानी सागर में सेतुबंध रचने की कहानी से कोई कम नहीं है। आज का ज्ञानप्रसाद ईश्वर में श्रद्धा, विश्वास और आस्था का जीवंत प्रमाण तो है ही, साथ ही इस तथ्य को भी दृढ़ता प्रदान करते हैं कि ईश्वर दिव्य आत्माओं का चयन करके उच्च कार्य करवा लेते हैं। रामप्रसाद और रामबचन, दो व्यक्तियों के योगदान को देखते हुए अगर हम हनुमान कहकर सेतुबंध रचना से तुलना कर रहे हैं तो ज़रा सी भी अतिश्योक्ति नहीं लग रही।
तो आइए विश्वशांति की कामना के साथ आज का ज्ञानप्रसाद आरम्भ करें।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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गूगल सर्च में “Temple in the sea ” और इसकी सारी कथा पढ़ कर हर भारतीय को अवश्य गर्व होगा । भारत से लगभग 14000 किलोमीटर दूर Trinidad and Tobago में शिवदास साधु नाम के एक प्रवासी sugar labour ( गन्ना मज़दूर) ने सागर के अंदर शिव मंदिर बना कर विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया और वहां के लोगो में “आज का हनुमान” नाम प्रचलित किया । जिस प्रकार हनुमान जी ने सेतुबंध की रचना की थी शिवदास का कार्य भी ऐसा ही था ।
1901 में बनारस,उत्तर प्रदेश में जन्मे शिवदास, बुधराम के पुत्र थे जो मात्र 4 वर्ष की आयु में ही अपने माता पिता और 2 छोटे भाइयों के साथ समुद्री जहाज़ से Caribbean के इस देश में एक अनुबंधित कर्मचारी की हैसियत से आए जिसका नाम Trinidad and Tobago है। अनुबंधित कर्मचारी एक प्रकार के बंधवा मज़दूर होते हैं, उनका मालिक उनसे जो भी चाहे काम ले सकता है, चाहे contract में वह काम लिखा है या नहीं । यही कारण है कि माता पिता की मृत्यु के बाद automatically यह contract बच्चों को पूरा करना होता है । इनके लिए एक अक्षर “unfree” प्रायः प्रयोग में आता है। लेकिन यह स्थिति लगभग 125 वर्ष पूर्व की थी I आज के युग में ऐसा शायद ही होता हो । शिवदास को भी अपने माता पिता वाला काम करना पड़ा । परिश्रम और बहुत ही कड़ी परिस्थिति में शिवदास को जो भी काम दिया जाता, करते रहे, पता नहीं कितने ही वर्ष बीत गए । लगभग दो दशक बाद 1926 में शिवदास पहली बार भारत आए और गंगा मैया को नमस्कार किया। आर्थिक तंगी के कारण समुद्री जहाज़ का ही सहारा लेना पड़ा। हमारे पाठकों को परम पूज्य गुरुदेव की 1972 की अफ्रीका यात्रा स्मरण हो आयी होगी जिसे गुरुदेव ने भी समुद्री जहाज़ से ही सम्पन्न किया था।
धार्मिक प्रवृति और भारत से प्रेम होने के कारण शिवदास मन विदेश में नहीं लगता था । भारत में उन्हें 120 वर्षीय सिद्ध पुरष मिले,शिवदास ने उनसे आशीर्वाद लिया और संकल्प लिया कि आर्थिक स्थिति के कारण बार-बार भारत तो नहीं आया जाता, इसलिए विदेश में ही एक मंदिर की स्थापना की जाए और सागर को ही गंगा मैया समझा जाए।
इन पंक्तियों को लिखते समय परम पूज्य गुरुदेव का मूलमंत्र “भावना और समर्पण” को और दृढ करता है। 1970 में महाप्रयाण से पूर्व शिवदास केवल 5 बार ही भारत आ सके थे।
शिवदास के सरल व्यक्तित्व और धार्मिक प्रवृति के कारण वहां के लोगों ने शिवदास को साधु के नाम से जानना शुरू कर दिया था । ह्रदय में मंदिर बनाने की अग्नि उन्हें चैन से सोने नहीं देती थी । आखिर अक्टूबर 1947 में उन्होंने समुद्र के तट पर Caroni कंपनी से धरती का एक टुकड़ा ख़रीदा । इस धरती के टुकड़े पर मंदिर बनाना आरम्भ किया । धरती साफ़ की, मूर्तियां स्थापित कीं और 4 वर्ष तक Waterloo bay के निवासी एवं आस पास के गावों से श्रद्धालु आते रहे और अपने श्रद्धा सुमन प्रदान करते रहे । लेकिन 1952 में Caroni कंपनी ने इस मंदिर को हटाने का निर्देश दिया क्योंकि यह मंदिर किसी निजी कंपनी की भूमि ( Private land ) पर बनाया गया था । उन पर यह इलज़ाम लगाया गया कि यह निजी भूमि है और इस पर आप मंदिर नहीं बना सकते । आपको इसे गिराना होगा। बड़े ही दुःखी हृदय से उन्होंने इस ईश्वर के घर को गिराने से इंकार कर दिया । इस हुक्म की अवज्ञा करने के कारण उन्हें 14 दिन की जेल हो गयी और 100 पाउंड जुर्माना भी हुआ। उनके कारावास के दौरान उस मंदिर को गिरा दिया गया और वहां पर मंदिर का कोई नामो निशान ही न रहा । जेल से बाहर आते ही उन्होंने अपने संकल्प पर पुनः काम करना आरम्भ कर दिया । उन्होंने समुन्द्र के बीच 500 फुट की दूरी पर मंदिर बनाना आरम्भ कर दिया । यह तो किसी की भूमि नहीं है न । लगभग 20 वर्ष के अथक परिश्रम उपरांत यह मंदिर बन कर तैयार हो गया । इन बीस वर्षों में उनका एकमात्र साधन एक बाइसिकल था। साइकिल के हैंडल पर दोनों तरफ बाल्टियां लटका कर, उनमें पत्थर,रेत, सीमेंट इत्यादि समुन्दर में गिराने का कार्य अकेले या कभी कभार परिवार के साथ होता रहा । उनको ऐसा करते देखने वालों ने उपहास भी किये। लोग अक्सर कहते थे साधु पागल हो गया है लेकिन वह अनवरत भगवान के इस कार्य में लगे रहे। इस तरह उन्होंने समुद्र में जाने के लिए रास्ता बनाया । उसके बाद पास वाले गांव से एक ट्रक लिया और ऊपर वाला कार्य उस ट्रक से सम्पन्न किया । एक बार उनका ट्रक समुन्द्र में फँस गया और निकालने का प्रयत्न करते-करते रात हो गयी । सारी रात पानी में ही काटनी पड़ी । ऐसी थी उनकी भक्ति, ऐसी थी उनकी श्रद्धा, विश्वास और परम पिता परमात्मा के साथ स्नेह। इनकी श्रद्धा के आधार पर ही वहां के लोगों ने उन्हें “आज के हनुमान” की उपाधि दी। 1970 में मंदिर पूर्ण होने पर शिवदास अंतिम बार भारत गए और यहीं हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गयी ।
मृत्यु के कारण मंदिर की संभाल करने वाला कोई नहीं रहा और वह खराब होना शुरू हो गया लेकिन जब उस परमपिता की इच्छा हो तो सब कार्य स्वयं ही होते चले जाते हैं। 1994 में भारतीयों के Trinidad और Tobago में आने के 150 वर्ष मनाने ( Indians Arrival Day ) के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रम आयोजित हुए। इस मंदिर को बनाने का लक्ष्य इन कार्यक्रमों का ही एक ध्येय था । यहाँ की सरकार ने उस महान आत्मा को श्रद्धांजलि के रूप में 1995 में Randolph Rampersad नामक इंजीनियर के प्रयास से इस मंदिर को, “शिवालय” को फिर से पूरा करके राष्ट्र को समर्पित किया। नए मंदिर को पूरा करने में ओरिजिनल मंदिर के अवशेष भी प्रयोग किये गए हैं और इसका विस्तार पुराने मंदिर की तुलना में 100 गज़ और अधिक समुन्द्र के अंदर है। प्रवेश द्वार प्रांगण पर साधु सेवादास जी की बहुत ही सुन्दर भव्य प्रतिमा स्थापित की गयी है। मंदिर में स्थापित की गयीं महादेव,गणेश, भगवान कृष्ण एवं हनुमान जी की प्रतिमाएं मंदिर की शोभा को चार चाँद लगा रही हैं। इसी क्षेत्र में Carapichaima नामक नगर में दत्तात्रेय मंदिर एवं भारत से बाहिर सबसे ऊँची कार्यसिद्धि हनुमान प्रतिमा भी स्थित हैं
मिस्टर रामप्रसाद के पूर्वज भी तीन पीड़ी पूर्व गन्ने के खेतों में काम करने बंधवा मज़दूरों की तरह ही इस देश में आये थे और वही आजकल इस मंदिर के प्रेजिडेंट हैं। Randolph Rampersad इस मंदिर को फिर से जीवित करने के पुरषार्थों को यजुर्वेद के अनुसार पितृऋण चुकाने का अभूतपूर्व एवं स्वर्ण अवसर कहा करते हैं । देश के प्रभावशाली राजनेता Dr. Surujrattan Rambachan ने इस मंदिर को National treasure का दर्ज़ा दिलाने में बड़ा योगदान दिया है । Indians Arrival Day का प्रचलन भी उन्हीं की देन है । जनवरी 2002 से जनवरी 2003 पूरे एक वर्ष के लिए शिवदास साधु का जन्म शताब्दी वर्ष मनाया गया । ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक सहकर्मी इस महान आत्मा को नमन करता है ।
अवश्य ही यह लेख हम सबको प्रेरणा देगा। इन्ही शब्दों के साथ इस लेख का समापन होता
है, कल रिलीज़ हो रही वीडियो का विषय आदरणीय चिन्मय जी का कनाडा प्रवास है।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 7 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। अरुण जी आज भी गोल्ड मैडल विजेता हैं । (1)संध्या कुमार-32,(2 ) सुजाता उपाध्याय-33, (3 ) रेणु श्रीवास्तव-46, (4) सुमन लता-30 ,(5 ) चंद्रेश बहादुर-34, (6)अरुण वर्मा-48,(7) सरविन्द पाल-33 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई




