27 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद
शास्त्रों में लिखा है जिस घर में देवमंदिर न हो, वह श्मशान तुल्य है। घर में देवस्थान रहने से निश्चित ही घर के लोगों में आस्तिकता एवं धर्मबुद्धि स्थिर रहती है। घर में उपासना का वातावरण बना रहने से सतोगुण बढ़ता है और अनेकों बुराइयों से बचे रहने का अवसर रहता है। जिस घर में माता की सच्चे मन से उपासना हो, उनकी स्थापना हो, वहाँ सुख- शान्ति की, समृद्धि की सफलता,सम्पन्नता की कमी नहीं रहती ।
शक्तिपीठों की स्थापना पर आधारित लेख श्रृंखला का आज यह तीसरा ज्ञानप्रसाद लेख है। हमारे साथी, सहपाठी, सहकर्मी अनुभव कर चुके होंगें कि आजकल हमारे लेखों की शब्द सीमा कुछ कम है, इसका कारण विषय आधारित लेख हैं। आज केवल देव मंदिरों,गायत्री ज्ञान मंदिरों, पारिवारिक गायत्री ज्ञान मंदिरों पर ही चर्चा की जा रही है जिससे गुरुदेव के उद्देश्य को जानने का प्रयास किया जाएगा। हम बार-बार कहते आ रहे हैं कि गुरुदेव के विशाल साहित्य को किसी शब्द सीमा में बांध पाना लगभग असंभव ही है। हम तो केवल अमृत के उस विशाल सागर में से कुछ बहुमूल्य बूँदें पयपान कर लें तो अमरत्व की प्राप्ति में कोई संदेह न होगा।
जब शब्द सीमा की बात कर रहे हैं तो साथियों से एक बात शेयर करने का मन हो आया। 22 जून को जब हम सभी आदरणीय चिन्मय जी से मिलने देवांग भाई साहिब के घर में इक्क्ठे हुए थे तो USA से आयीं एक बहिन जी हमें देखकर दौड़कर हमारे पास आयी और हमारा धन्यवाद् करने लगी। हमारे चैनल पर अपलोड हुई यज्ञ की वीडियो ने उन बहिन जी की बहुत सहायता की थी। हमने उनसे जिज्ञासावश पूछा कि आप ज्ञानप्रसाद लेख भी पढ़ते हैं तो उत्तर था “वोह बहुत लम्बे होते हैं, मैं ब्रेक के बीच में कभी कभार देख लेती हूँ” हमने कहा कि कभी कभार पढ़ने से क्या प्राप्त होता होगा ? वोह तो सभी एक दूसरे के साथ माला के मोतियों की भांति बंधे हैं और कमैंट्स-काउंटर कमैंट्स उन्हें अतिरिक्त अंतर शक्ति से जोड़े हुए हैं। हम समझ सकते हैं कि आज के युग में जब मानव का Retaining span लगभग 15 सेकंड ही रह गया है तो लेख पढ़ने के लिए 15-20 मिंट खर्च करना किसी साहसी का ही काम हो सकता है। वोह साहसी हमारे अरुण वर्मा जी , सुमन लता जी, रेणु श्रीवास्तव जी , संध्या जी जैसे अनेकों साथी हैं, जिन्हें हम सदैव ही नमन करते रहेंगें। हमारा उद्देश्य अनेकों को प्रेरित करना है जिसमें हमें अपार सफलता मिली है और सारा श्रेय साथियों को ही जाता है। Retaining span का प्रमाण 60 सेकंड की Short videos से मिल रहा है, केवल एक ही वीडियो है जिसे दर्शकों ने पूरा देखा है, बाकी सभी 50-70 प्रतिशत की रेंज में हैं। पाठकों को retain करके, प्रेरित करने की दृष्टि से आने वाले स्पेशल सेगमेंट में एक नया प्रयोग करने का प्रयास कर रहे हैं, यह प्रयास परिश्रमी सहकर्मियों को additional ऊर्जा प्रदान करके औरों को प्रोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा ।
हर लेख की भांति आज भी बताना चाहेंगें कि यह लेख शृंखला, ब्रह्मवर्चस द्वारा लिखित 474 पन्नों के दिव्य ग्रन्थ “पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-दर्शन एवं दृष्टि”, पर आधारित है। इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए, हम गुरुकुल पाठशाला की ओर गुरुचरणों का सानिध्य प्राप्त करने को रवाना होते हैं। ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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आरंभ गायत्री ज्ञान मंदिरों से-
शक्तिपीठों की योजना से पहले पूज्य गुरुदेव ने “गायत्री ज्ञान मंदिरों” के निर्माण का आवाहन किया था। गुरुदेव ने गायत्री मंदिर नहीं, बल्कि घरेलू स्तर पर गायत्री ज्ञान मंदिरों की स्थापना की योजना दी थी।
भारतवर्ष के धर्मतंत्र का प्रमुख आधार यह देवमंदिर हैं । इनके द्वारा जनता की वही सेवा होनी चाहिए जो इनकी स्थापना का मूल उद्देश्य है। यदि वह उद्देश्य पूरा न हुआ तो अति उत्साही सुधारवादी उन्हें निरूपयोगी ही नहीं, धर्म विरुद्ध भी बताने की अपनी योजना में सफल हो जायेंगे। आगे चलकर तो नास्तिकवाद का उत्साह, साकार पंथी और निराकार पंथी दोनों ही देव स्थानों का सफाया कर देगा। इसलिए हमें समय रहते सावधान होना होगा और मंदिरों में लगी हुई राष्ट्र की एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण शक्ति को उपयोगिता की कसौटी पर खरा सिद्ध करना होगा।
लोग मंदिरों की इमारतों को कीमती और बड़ा बनाने में गर्व अनुभव करते हैं लेकिन अच्छा यह होता कि मंदिर चाहे फूंस के झोंपड़े में ही रहते लेकिन वहाँ से वह प्रकाश उत्पन्न होता रहता, जिससे अंधकार में डूबी अनेकों आत्माएँ प्रकाशमान होकर जगमगातीं । ऐसे ही मंदिरों की स्थापना पर गुरुदेव ने ज़ोर दिया है।
गायत्री सद्बुद्धि की देवी है। “गायत्री ज्ञान मंदिरों” से सद्ज्ञान का प्रसार होते रहना आवश्यक है। इस प्रमुख उद्देश्य को भुला न दिया जाय। इन सामूहिक सार्वजनिक ज्ञान मंदिरों के अतिरिक्त प्रत्येक सदस्य को घर पर एक “पारिवारिक गायत्री ज्ञान मंदिर” भी होना चाहिए। शास्त्रों में लिखा है जिस घर में देवमंदिर न हो, वह श्मशान तुल्य है। घर में देवस्थान रहने से निश्चित ही घर के लोगों में आस्तिकता एवं धर्मबुद्धि स्थिर रहती है। घर में उपासना का वातावरण बना रहने से सतोगुण बढ़ता है और अनेकों बुराइयों से बचे रहने का अवसर रहता है। जिस घर में माता की सच्ची मन से उपासना हो, उनकी स्थापना हो, वहाँ सुख शान्ति की, समृद्धि की सफलता,सम्पन्नता की कमी नहीं रहती ।
“माँ गायत्री, बुद्धि की देवी के प्रत्येक उपासक के लिए स्वाध्याय भी उतना ही आवश्यक धर्मकृत्य है जितना जप, ध्यान, पाठ, स्नान। बिना स्वाध्याय के, बिना ज्ञान की उपासना के बुद्धि पवित्र नहीं हो सकती, मानसिक मलीनता दूर नहीं हो सकती और इस सफाई के बिना माता का सच्चा प्रकाश कोई उपासक अपने अन्तःकरण से अनुभव नहीं कर सकता। जिसे स्वाध्याय से प्रेम नहीं, उसे गायत्री उपासना से प्रेम है, यह नहीं माना जा सकता। बुद्धि की देवी गायत्री का सच्चा भोजन स्वाध्याय है।”
आगे चलकर पूज्य गुरुदेव ने कहा कि देश में “पौराणिक शक्तिपीठों” की स्थापना की तरह ही नये युग के अनुरूप मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए गायत्री शक्तिपीठों की आवश्यकता है। आरंभ में उन्होंने देश के विख्यात् 24 तीर्थ स्थलों पर शक्तिपीठ निर्माण की योजना दी थी ।
अग्निपरीक्षा –
युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव का अवतरण इस धरा पर ‘नवयुग निर्माण’ की दैवी योजना को मूर्त रूप देने के लिए हुआ। उन्होंने बार-बार यह कहा कि युग निर्माण तो सुनिश्चित है। उसके लिए ऋषि तंत्र द्वारा जगत में “युगशक्ति का जागरण” किया जा चुका है। युगशक्ति को स्थूल जगत में उतारने के लिए आत्मशक्ति सम्पन्नों को माध्यम बनाया जाना है। भक्त तो भगवान को सहायता के लिए हमेशा ही पुकारते रहते हैं, ऐसे युग परिवर्तन के अवसरों पर भगवान भी भक्तों को सहायता के लिए पुकारते हैं। जो जागृत आत्मा उनकी आवाज को सुनकर साहसपूर्वक अपनी भूमिका निभाने आगे आते हैं वही रीछ, वानरों, ग्वालवालों, पाण्डवों आदि की तरह दुर्लभ यश और पुण्य के भागीदार बनते हैं। उनके जीवन धन्य, कृतकृत्य हो जाते हैं।
गायत्री शक्तिपीठों-प्रज्ञापीठों का ताना-बाना युगऋषि ने इसीलिए बुना कि उनके माध्यम से युग संदेश, युग देवता का आमंत्रण जन-जन तक पहुँचाया जा सके। जिनमें भी थोड़ा सा उत्साह जागे, उन्हें भगवान के साथ साझेदारी के लिए प्रेरित-प्रशिक्षित करके जीवन साधना में लगा दिया जाये। आध्यात्मिक अनुशासन में जीवन जीने के अभ्यास से उनमें आत्मशक्ति जागे तथा वे युगशक्ति के अवतरण के छोटे ही सही लेकिन प्रामाणिक माध्यम बन सकें।
परम पूज्य गुरुदेव की सदा से ही इच्छा रही कि शक्तिपीठों को पूजा केन्द्र नहीं बल्कि “आध्यात्मिक ऊर्जा वितरण केंद्र” (Spiritual Energy Distribution Center) बनाया जाए । यह बात बहुत ही छोटी है कि बौद्ध विहारों में भवन कैसे थे ,कितने भव्य थे। इन विहारों का मुख्य उद्देश्य धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए ऐसे प्राणवान साधक तैयार करना था जो अपनी साधना के बल पर हिमालय पार करके, समुद्र पार करके सुदूर देशों तक चले गये और वहाँ बौद्ध मत को न केवल स्थापित किया बल्कि फलित कर दिखा दिया । शंकराचार्य के मठ भी छोटे थे लेकिन वहाँ से ऐसे प्राणवान परिव्राजक सन्यासी तैयार होकर निकलते रहे जिन्होंने “शंकर दिग्विजय” की पताका सर्वत्र फहरा दी।
पूज्य गुरुदेव ने भी यह तथ्य बार-बार दोहराया कि मैं पूजा स्थलों की संख्या बढ़ाने के पक्ष में नही हूँ मैं तो युग सृजन के लिए हिमालय की दिव्य ऊर्जा को हर क्षेत्र में फैलाने के लिए ट्रांसफार्मर, सब स्टेशनों (Sub-station ) की तरह शक्तिपीठों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रसारण के सशक्त केन्द्रों के रूप में विकसित करना चाहता हूँ। शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों से उनकी यह आशा रही है कि वे क्षेत्र में जन-जन तक “युग देवता” का निमंत्रण पहुँचायें जिससे परिजन उत्साहित हों और युग साधना से जुड़ें; साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा में उनके स्तर को निरंतर बढ़ाने में मदद करें। इस प्रकार उनमें आत्मशक्ति का जागरण हो और वे युगशक्ति के संवाहक बनकर कृतकृत्य हो सकें।
निश्चित रूप से यह कार्य भवनों या मूर्तियों से संपादित नहीं हो सकता । इसके लिए तो प्राणवानों की टोलियाँ तैयार करनी होंगी। मंदिर में वहाँ श्रद्धा का वातावरण बने, भवनों में साधकों को प्रेरित प्रशिक्षित, नियोजित करने की व्यवस्था बने, तभी अभीष्ट लक्ष्य पाया जा सकता है।
2011 में युगऋषि की जन्मशताब्दी मनाने की तैयारियाँ चल रहीं थीं,इस अवसर पर गुरुदेव की ही मांग पर, उनके श्री चरणों में उनकी माँग के अनुसार दो करोड़ सक्रिय सदस्य या प्रज्ञा परिजनों तथा दो लाख कर्मठ कार्यकर्ताओं या प्रज्ञा पुत्रों की श्रद्धांजलि समर्पित की गयी ।
जिस महाग्रंथ का सहारा लेकर हम यह पंक्तियाँ लिखने का साहस कर रहे हैं उसमें अंकित परम पूज्य गुरुदेव के निर्देश को यथावत अपने साथियों के समक्ष रख रहे हैं :
“इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रत्येक शक्तिपीठ- प्रज्ञापीठ को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। आप सभी को अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करनी है।अपनी थकान और सुविधा की बात न सोचें। जो कर गुजरें उसका अहंकार न करें बल्कि इतना ही सोचें कि हमारा चिंतन, मनोयोग एवं श्रम कितनी अधिक ऊँची भूमिका निभा सका, कितनी बड़ी छलाँग लगा सका। यही आपकी अग्नि परीक्षा है। इसी में आपके गौरव और समर्पण की सार्थकता है। अपने साथियों की श्रद्धा व क्षमता को घटने न दें। उसे दिन दूनी रात चौगुनी करते रहें। अगला कार्यक्रम ऊँचा है। आपकी ऊँचाई उससे कम न पड़ने पाए। यही एक आशा है जिस पर विश्वास करके हमारे कदम बढ़ रहे हैं। आप में से कोई भी इस विषम बेला में पिछड़ने न पाए जिसके लिए बाद में पश्चाताप करना पड़े। यह अग्नि परीक्षा की बेला है। अग्नि परीक्षा किसी के साथ पक्षपात नहीं करती । चोखेपन को निखारना और खोटेपन को जला देना ही अग्नि का स्वभाव है।”
आज का लेख यहीं पर समाप्त करने की आज्ञा लेते हैं हैं, कल शक्तिपीठों को गुरुदेव के दिए गए निर्देश पर चर्चा करेंगें।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। अरुण जी आज के गोल्ड मैडल विजेता हैं । (1)संध्या कुमार-41 ,(2 ) सुजाता उपाध्याय-41, (3 ) रेणु श्रीवास्तव-37,(4) सुमन लता-27 ,(5 ) चंद्रेश बहादुर-31 , (6)अरुण वर्मा-54,(7) निशा भारद्वाज-24, (8)मंजू मिश्रा-39
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई