वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

शांतिकुंज द्वारा कराए जाने वाले सत्रों की संक्षिप्त जानकारी का दूसरा एवं अंतिम भाग 

21 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद

कल वाले लेख में हमने लिखा था कि युगतीर्थ शांतिकुंज द्वारा कराए जा रहे शिविर /सत्रों की जानकरी बहुतों को है लेकिन हम जैसे अनेकों ऐसे भी हैं जिन्हें जानकारी तो क्या शिविरों के नाम तक की भी जानकारी नहीं है। अगर शीर्षक से कुछ पता चल भी जाए तो उस सत्र में क्या कराया जाएगा, कोई ज़रूरी नहीं कि उसकी जानकारी भी हो कि न हो। ऐसा कहना इसलिए उचित लग रहा है कि आज इन पंक्तियों को लिखते समय 2023 में AWGP की वेबसाइट को देखें तो लगभग 30 किस्म के सत्रों का व्यौरा दिखाई देता है। इस सभी की विस्तृत जानकरी रख पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। यही कारण है कि हम उस पेज का लिंक दे रहे हैं जिसे विजिट करके साधक किसी भी सत्र की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस विस्तृत जानकारी के लिए शांतिकुंज का जितना धन्यवाद् करें कम ही होगा।   

आज का ज्ञानप्रसाद बहुत ही संक्षिप्त समापन लेख है। ब्रह्मवर्चस द्वारा लिखित  474 पन्नों के दिव्य ग्रन्थ “पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-दर्शन एवं दृष्टि”, जिसका स्वाध्याय हम पिछले एक महीने से कर रहे हैं सच में एक masterpiece है और इसी masterpiece पर आज का लेख भी आधारित है  

तीन दशक पूर्व केवल पांच प्रकार के सत्र ही प्लान किये गए थे जिनमें से दो साधना सत्र थे और तीन प्रशिक्षण सत्र थे। साधना सत्रों का वर्णन कल वाले लेख में दिया गया था जबकि प्रशिक्षण सत्र आज वर्णित किये जा रहे हैं।   

इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज का दिव्य ज्ञानप्रसाद आरम्भ होता है लेकिन यह शुभारम्भ तब तक अधूरा ही रहेगा जब तक हम आदरणीय उमा साहू जी की बेटी वंदना और दामाद आकाश को वैवाहिक वर्षगांठ की शुभकामना न दे दें। दोनों बच्चों को ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की ओर  से सामूहिक  बधाई एवं शुभकामना। अपने साथियों को बता दें कि उमा साहू जी का नाम यूट्यूब पर वंदेश्वरी साहू के नाम से सेव हुआ है, वंदेश्वरी उनकी बेटी हैं। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो। 

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a)30 दिवसीय युगशिल्पी प्रशिक्षण सत्र:

बाल्यावस्था से सुसंस्कारिता का शिक्षण देने वाले गुरुकुलों का स्थान आजकल सरकारी विद्यालयों ने ले लिया है। इनमें बौद्धिक विकास के लिए ढेर सारे विषयों की पढ़ाई तो होती है किन्तु उसका व्यावहारिक जीवन से कोई तालमेल नहीं होता । एक मासीय युग शिल्पी सत्र के अन्तर्गत विद्यार्थियों के संपूर्ण विकास की दिनचर्या का निर्धारण होता है। इसमें सत्प्रवृत्ति का विकास  व दुष्प्रवृत्ति का नाश होता है और जनमानस के परिष्कार एवं लोकशिक्षण की रूपरेखा समझायी जाती है।

गुरुकुल प्रणाली के अंतर्गत  “शिक्षण प्रक्रिया” तो जीवन भर चलने वाली है, उसके लिए समयाभाव एवं स्थानाभाव के कारण उतने लम्बे समय तक शांतिकुंज में  तो संभव नहीं है लेकिन  एक मास के इस सत्र में  उन सभी विशेषताओं का बीजारोपण हो जाता है जो समय आने पर फलती-फूलती है एवं व्यक्तित्व को गौरवान्वित करती है। ये सत्र प्रतिमाह 1 से 29 की तिथियों में चलते हैं। युग शिल्पी सत्र के लिए वे लोग ही आवेदन कर सकते हैं जो  शांतिकुंज में कम से कम एक 9 दिवसीय संजीवनी साधना सत्र सम्पन्न कर चुके हों या  अपने स्तर पर एक अनुष्ठान कर चुके हों एवं मिशन के कार्यों में सहयोग दे रहे हों। 

इसी सत्र में ऋषियों के विचारों को जन-जन में फैलाने के लिए संभाषण कला, ढपली बजाकर प्रेरणा गीतों का गायन, यज्ञ एवं विभिन्न प्रकार के संस्कारों के प्रेरक कर्मकाण्ड कराना, स्वास्थ्य संरक्षण एवं बेकरी, अगरबत्ती, मोमबत्ती, स्क्रीन प्रिंटिंग,प्लास्टिक मोल्डिंग, लेमीनेशन, बागवानी, फल-संरक्षण जैसे कुटीर उद्योगों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

b)परिव्राजक प्रशिक्षण सत्र

परिव्राजक उस  संन्यासी को कहते हैं  जो सदा भ्रमण करता रहता हो , जो घरबार छोड़कर चतुर्थ आश्रम में प्रविष्ट हो गया हो, विरक्त होकर भिक्षुक की तरह घूम रहा हो ।

जन-जन में विद्या विस्तार हेतु व्यक्तित्व सम्पन्न शिक्षकों के निर्माण के लिए ऋषियों ने आरण्यक (वनवासी) परम्परा का प्रचलन किया था। महर्षि अगस्त्य की वेदपुरी, ऋषि भारद्वाज की प्रयाग स्थित प्रशिक्षण शाला तथा विश्वामित्र के सिद्धाश्रम ने व्यक्तियों को गढ़कर समय की माँग को पूरा किया था। तक्षशिला से निकले स्नातकों  ने चाणक्य के इशारे पर जागरण की लहर फैलाकर विशाल  भारत की संरचना की, तो कुमारिल भट्ट नालन्दा में गढ़े गये, जिनकी रखी गई नींव पर शंकराचार्य ने सांस्कृतिक क्रान्ति का भवन निर्मित किया । युगतीर्थ शांतिकुंज में ऐसा ही दिव्य आरण्यक  स्थापित है, जिसमें लोकसेवी परिव्राजकों  का प्रशिक्षण होता है। 

युग शिल्पी सत्र के दौरान व्यक्तित्व का निर्माण किया जाता है, तो परिव्राजक सत्र के अन्तर्गत व्यक्तित्व का प्रतिभा का निर्माण होता है। इस सत्र के द्वारा   लोकहित में समर्पण की ट्रेनिंग दी जाती है। शिक्षण प्रक्रिया युग शिल्पी जैसी ही होती है लेकिन  अतिरिक्त विषय के रूप में जन सम्पर्क से लेकर शक्तिपीठ की व्यवस्था करने की अनेकों नई जानकारियाँ विस्तार से दी जाती हैं। लोकसेवियों की आचार संहिता, आरती-पूजा, मूर्ति श्रृंगार, देवालय प्रबंधन, उद्यान आदि का  एवं सभी संस्कारों का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है।  

परिव्राजक सत्र के लिए केवल वही साधक आवेदन दे सकते हैं जिन्होंने सफलता पूर्वक  युग शिल्पी सत्र सम्पन्न कर लिया है तथा समाज सेवा के लिए न्यूनतम तीन माह का समयदान करना  चाहते हैं। प्रशिक्षण के दौरान होने वाला व्यक्तिगत खर्च एवं मार्ग व्यय साधक को स्वयं ही उठाना पड़ता है। यह सत्र प्रति माह 1 से 28 की तिथियों में चलता है। 

c)स्वावलम्बी ग्राम  विकास का 9 दिवसीय सत्र:

मिशन के रचनात्मक अभियान के अन्तर्गत स्वावलम्बी ग्राम  विकास का 9 दिवसीय  प्रशिक्षण सत्र प्रत्येक माह नियमित रूप से चलता है। इस सत्र का  लक्ष्य राष्ट्र के बहुसंख्यक समाज ( ग्रामीण जनता) को अभाव पीड़ा से छुटकारा दिलाकर सुख-समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिए कारगर तंत्र खड़ा करना है। इस सत्र की  तिथि प्रतिमाह 29 से 7 रहती है। यह प्रशिक्षण उन परिजनों / कार्यकर्त्ताओं के लिए है जो 9 दिवसीय साधना सत्र तथा एक माह का युगशिल्पी सत्र किए हुए हैं तथा एक गांव को गोद (adopt) लेकर उसे स्वालम्बी बनाने के लिए सप्ताह में कम से कम एक दिन का समय लगाकर कार्य करने की रुचि रखते हैं। सत्र में प्रवेश के लिए रचनात्मक प्रकोष्ठ से निर्धारित प्रारूप पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी भेजकर पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है।

d)45 दिवसीय लोकसेवी स्वावलम्बी ग्राम  विकास प्रशिक्षण सत्र:

प्रत्येक गाँव एक छोटे से तीर्थ के रूप में विकसित हो, एक ऐसा तीर्थ जो संस्कारयुक्त, व्यसनमुक्त, स्वच्छ, स्वस्थ, शिक्षित, स्वावलम्बी एवं सहकार एवं सहयोग से भरा-पूरा हो। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 45 दिवसीय प्रशिक्षण सत्र जनवरी, मार्च, जुलाई, सितम्बर एवं नवम्बर माह की पहली तारीख से प्रारम्भ होते हैं। यह प्रशिक्षण केवल उन  लोकसेवी कार्यकर्त्ताओं के लिए है जो यज्ञ एवं दीपयज्ञ सम्पन्न करा लेते हों तथा सत्रोपरान्त न्यूनतम 3 माह का समयदान देने की स्थिति में हों। इस सत्र के लिए योग्यता  10वीं कक्षा उत्तीर्ण, उम्र 21 से 60 वर्ष, शांतिकुंज का एक मासीय युग शिल्पी सत्र/परिव्राजक सत्र/युग निर्माण विद्यालय से एक वर्षीय कोर्स कर चुके हों।  ऐसे परिजन अपना विवरण भेजकर शांतिकुंज से आवेदन पत्र मंगा सकते हैं। सत्र में अनुमति पत्र मिलने पर इंटरव्यू  के पश्चात् प्रशिक्षण सत्र में प्रवेश संभव होता है।

आज के ज्ञानप्रसाद का समापन यहीं पर होता है लेकिन कल वाला ज्ञानप्रसाद इतना रोचक होने वाला है कि हमारी उत्सुकता आज ही कण्ट्रोल नहीं हो रही है।

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। रेणु जी आज फिर  गोल्ड मैडल विजेता हैं । 

(1)सरविन्द कुमार-24 ,(2 )संध्या कुमार-38,(3) सुजाता उपाध्याय-32,(4) रेणु श्रीवास्तव-40,(5) सुमन लता-35 ,(6 ) चंद्रेश बहादुर-28, (7)निशा भारद्वाज-30,(8 )मंजू मिश्रा-31,(9 ) अरुण वर्मा-43,(10  ) पिंकी पाल-30,(11) स्नेहा गुप्ता-24    

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई


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