वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

शांतिकुंज द्वारा कराए जाने वाले सत्रों की संक्षिप्त जानकारी 

20 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के अनेकों साथी-सहकर्मी युगतीर्थ शांतिकुंज द्वारा आयोजित किये जा रहे अलग-अलग सत्रों के बारे में जानकारी रखते हैं लेकिन बहुत सारे ऐसे भी होंगें  जिन्हें इन सत्रों के बारे में केवल superficial सी जानकारी ही हो, ऐसे साथियों में हमें भी अपना नाम शामिल करने में कोई झिझक नहीं है। सत्रों के उद्देश्य तो बाद की बात है, हमें तो इन सत्रों के नामों  तक की भी जानकारी नहीं थी।  AWGP की वेबसाइट के main पेज पर इन सत्रों को देखा तो बहुत बार था, उत्सुकता भी बनती थी कि जाना जाए आखिर इन सत्रों में कराया क्या जाता है लेकिन हर बार यही सोच कर छोड़ देते थे कि हमनें कौन सा पुजारी बनना है। यही है सोच, यही है विचार, यही है विचार क्रांति। अखंड ज्योति नेत्र हॉस्पिटल के आदरणीय मृतुन्जय तिवारी जी के शब्द एक दम मन मष्तिष्क में गूँज गए, “बच्चे कोख से नहीं, सोच से पैदा होते हैं” , वाह वाह क्या शब्द हैं !!  परम पूज्य गुरुदेव एवं उस महान ग्रन्थ का (जिसका हम पिछले कई दिनों से अध्ययन कर रहे हैं ) जितना भी धन्यवाद् करें कम है। हम तो आश्चर्यचकित हैं कि  इस महान ग्रन्थ में क्या-क्या एवं कितनी जानकारी compile की है। ब्रह्मवर्चस समूह को इस अद्भुत प्रयास के लिए नमन है।

हमारे पाठकों को स्मरण होगा कि कुछ दिन पूर्व “ब्रह्मवर्चस” लेखक को लेकर कुछ चर्चा हुई थी, आज उसका  documented प्रमाण मिला है जिसे हम यहाँ शेयर कर रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण को समर्पित 200 पन्नों वाली अखंड ज्योति के अगस्त 1990 स्मृति विशेषांक के पृष्ठ 2 पर कुछ ही पंक्तियों का सम्पादकीय लिखा हुआ है जिसके नीचे अंकित है:  “हम सब ब्रह्मवर्चस शांतिकुंजवासी शिष्यगण”, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के कुछ सदस्यों ने इस बात को certify भी किया था लेकिन जब बात Documented और कही-सुनी की आती हो तो Documented ही मान्य होना उचित होता है। आज का यह संक्षिप्त लेख जिसका समापन तो कल ही हो पायेगा इन्ही बिंदुओं पर केंद्रित है  है। ब्रह्मवर्चस द्वारा लिखित  474 पन्नों के दिव्य ग्रन्थ “पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-दर्शन एवं दृष्टि”, जिस पर आज का ज्ञानप्रसाद आधारित है और जिसके शीर्षक में ही दृष्टि यानि vision शब्द दिख रहा है, पूज्यवर के विज़न को स्वयं ही वर्णित कर  रहा है।

इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज का दिव्य ज्ञानप्रसाद आरम्भ होता है लेकिन यह शुभारम्भ तब तक अधूरा ही रहेगा जब तक हम अपनी वरिष्ठ और सबकी प्रिय आदरणीय रेणु बहिन जी और उनके छोटे दामाद  दीपक को जन्म दिवस की शुभकामना न दे लें। तो आइए शब्दों को एक तरफ रख दें और सब इक्क्ठे होकर ह्रदय से कहें, “तू जियो हज़ारों साल, साल के दिन हों पचास हज़ार”

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संपूर्ण  शिक्षा वह होती  है जिसमें न केवल भौतिक जगत के विभिन्न सब्जेक्ट्स  की जानकारियाँ मिलें, बल्कि व्यक्तित्व के सर्वतोमुखी विकास (all round development) में काम आने वाला मार्गदर्शन भी सम्मिलित हो, जीवन के साथ जुड़े हुए प्रश्नों का समाधान और प्रगति पथ पर निरन्तर अग्रगमन के लिए प्रेरणाप्रद प्रकाश भी उपलब्ध होता हो । 

विद्या को इसी दृष्टि से अमृत कहा गया है कि यदि वह सही और सार्थक हो तो उसके सहारे कल्पवृक्ष की तरह सभी अभीष्ट हस्तगत होते रह सकते हैं। कल्पवृक्ष वोह दिव्य वृक्ष होता है जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण हो सकती हैं । शिक्षा और विद्या का समन्वय होने से कल्पवृक्ष की भांति इच्छाएं पूर्ण करने में सहायता मिलती है। शिक्षा और विद्या का अंतर जानने के लिए पाठक हमारा इंटरनेट आर्काइव पेज विजिट कर सकते हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के दिव्य मंच पर brainstorming discussion के बाद  27 पन्नों की इस  लघुपुस्तिका में पाठकों को अवश्य सहायता मिल सकती है। प्राचीन काल में गुरुकुलों, आरण्यकों एवं तीर्थ क्षेत्रों में बने ऋषि आश्रमों में ऐसी व्यवस्था रहती थी कि  हर आयु के भावनाशील शिक्षार्थी पहुँचते थे और मनुष्य शरीर में देवत्व का बड़ा चढ़ा अनुपात लेकर वापस लौटते थे। ऐसी शिक्षण संस्थाओं को “नर रत्नों की इंडस्ट्री” कहकर गौरवान्वित किया जाता था। नालन्दा और तक्षशिला विश्वविद्यालय इसी स्तर के थे। बौद्ध विहारों और संघारामों ( मठ, विहार)  में भी ऐसी ही व्यवस्था थी। इसी प्रभाव से धरती पर स्वर्ग का अवतरण होना और मनुष्य  में देवत्व की झलक मिलना सर्वत्र संभव बना रहा। उस ऋषि वर्चस्व प्रधान समय को “सतयुग” कहा जाता रहा ।

इसी प्राचीन शिक्षा प्रक्रिया के सारे तत्व लेकर अपने स्वल्प साधनों के अनुरूप, शांतिकुंज को एक सामयिक शिक्षण एवं साधना केन्द्र के रूप में विनिर्मित किया गया है। गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्तऋषियों की तपोभूमि आदि, प्राचीन काल से संचित अनेकानेक आध्यात्मिक संस्कारों के अतिरिक्त अखण्ड अग्नि में नित्य यज्ञ, शांतिकुंज की स्थापना से अभी तक विविध साधना सत्रों के माध्यम से लाखों साधकों द्वारा की गई साधना की ऊर्जा, 1926 से प्रज्वलित अखण्ड दीपक जिसके सामने परम पूज्य गुरुदेव ने 24-24 लक्ष के 24 महापुरश्चरण सम्पन्न किए, अखण्ड गायत्री जप, हिमालय की ऋषिसत्ता का दिव्य संरक्षण तथा परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी द्वारा की गई कठोर तपश्चर्या से यह स्थान अनुप्राणित है। 

इन्हीं विशेषताओं के कारण यह स्थान ऐसा है, जहाँ सामान्य लोगों द्वारा सामान्य ढंग से की गई साधनायें भी विशिष्ट फल प्रदान करती हैं। शांतिकुंज में अनेकानेक भौतिक विषयों को पढ़ाने की व्यवस्था तो नहीं की गई है  क्योंकि उनके लिए सरकारी, गैर सरकारी स्तर पर सभी जगह व्यवस्थाएँ उपलब्ध हैं  लेकिन  संजीवनी विद्या, जीवन जीने की कला के हर  पक्ष के प्रशिक्षण की व्यवस्था बनायी गयी है। परम पूज्य गुरुदेव की योजना के अनुसार मुख्यता दो प्रकार के सत्र चलाए जातें हैं:  (1) साधना प्रधान सत्र (2) प्रशिक्षण प्रधान सत्र साधना प्रधान सत्रों के अन्तर्गत इन दिनों दो प्रकार के सत्र चल रहे हैं।

a) 9  दिवसीय संजीवनी साधना सत्र: संजीवनी सत्र प्रतिमाह 1 से 9, 11 से 19 एवं 21 से 29 की तिथियों में अनवरत चलते हैं, जिनमें 24 हजार गायत्री मंत्र का लघु अनुष्ठान सम्पन्न कराया जाता है। प्रातः (सर्दियों में 4.00 बजे, गर्मियों में 3.30 बजे) जागरण से दिनचर्या प्रारम्भ होती है। दोनों समय प्रार्थना एवं आरती, त्रिकाल संध्या एवं तीन बार सत्संग के अतिरिक्त नित्य यज्ञ, अखण्ड दीप के दर्शन का नियमित क्रम रहता है। साथ ही साथ 30 माला प्रतिदिन के हिसाब से गायत्री मंत्र का जप किया जाता है। पूर्व संध्या अर्थात् 10, 20 एवं 30 / 31 तारीख को अनुष्ठान का संकल्प कराया जाता है जिसमें साधना का उद्देश्य, आश्रम के अनुशासन एवं दिनचर्या समझायी जाती है। 9वें अर्थात् 9, 19 एवं 29 तारीख को प्रातः 10 बजे सत्र का समापन एवं विदाई हो जाती है। अनुष्ठान काल में एक समय भोजन करने एवं दिन भर व्यस्त रहने की दिनचर्या रहती है। इसलिए इन सत्रों में उन्हीं को आना चाहिये, जिनकी शारीरिक मानसिक स्थिति साधना के अनुकूल हो । न्यूनतम 1 घंटा कमर सीधी करके बैठने एवं 5 से 11 माला जप करने का अभ्यास हो। संभव हो तो नौ दिवसीय सत्र करने के पूर्व 2-4 दिनों के लिए तीर्थ क्षेत्र में आकर दिनचर्या, अनुशासन एवं साधना का अभ्यास कर लें। सत्र की तिथि से दो महीने पूर्व आवेदन करना चाहिए। न्यूनतम आयु 15 वर्ष हो । केवल संख्या लिख देने से स्वीकृति भेजना संभव न होगा। पत्र व्यवहार का पता स्पष्ट हो।

b) 5 दिवसीय अन्तःऊर्जा  जागरण  साधना सत्र: अंतः ऊर्जा साधना सत्र 5 दिवसीय होते हैं। ये सत्र प्रायः दीपावली के बाद से चैत्र नवरात्रि के पूर्व तक प्रतिमाह 1 से 5, 6 से 10, 11 से 15, 16 से 20, 21 से 25 एवं 26 से 30 की तिथियों में चलते हैं। 26 दिसम्बर से 5 जनवरी, वसंत पंचमी एवं ग्रीष्म ऋतु में सत्र नहीं होते हैं। साधना की तिथि से एक दिन पूर्व दोपहर तक पहुँचकर पंजीयन एवं अभ्यास – अनुशासन गोष्ठी में सम्मिलित होना होता है। यह विशेष प्रकार का सत्र है, इसमें 5 दिन तक एक ही कमरे में अकेले मौन रहना होता है एवं निर्धारित साधनाएँ करनी होती हैं। अन्तः ऊर्जा जागरण की साधना प्रकारान्तर से पंचकोशों के जागरण की उच्चस्तरीय गायत्री साधना है। इसमें ‘अन्नमय कोश”  का परिष्कार विशेष हविष्यान्न (व्रत वाला) का आहार होता है, तो सोऽहं साधना एवं प्राणायाम प्राणामय कोश के जागरण की प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं। त्राटक साधना (बिन्दुयोग ) “मनोमय कोश” की जागृति में सहायक बनती है। आत्मबोध-तत्वबोध एवं दर्पण साधना से ज्ञानमय कोश जाग्रत् होता है। स्वाध्याय तथा पूज्यवर की अमृतवाणी इसको और पोषण देते हैं। नादयोग एवं खेचरी मुद्रा की साधना से “आनन्दमय कोश” जागृत होता है। प्रातः जागरण से रात्रि शयन तक निर्धारित सभी साधनायें सम्पन्न कराई जाती हैं, जिनके निर्देश ‘साउन्ड सिस्टम’ द्वारा कमरे में ही मिलते हैं। भोजन दोनों समय कमरे में ही  मिलता है। यह साधना अपेक्षाकृत कठिन है। अतः ऐसे ही लोगों को स्वीकृति दी जाती है, जो शारीरिक-मानसिक रूप स्वस्थ एवं साधना करने की स्थिति में हो। जो कम से कम एक संजीवनी साधना (9 दिवसीय ) सत्र सम्पन्न कर चुके हों एवं मिशन के किसी अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रहे हों, वे ही परिजन अन्तःऊर्जा . जागरण साधना सत्र के लिए आवेदन करें। आवेदन पत्र में ही ‘नियमित समयदान अंशदान कितना कर रहे हैं कालम जोड़ लें। पासपोर्ट साइज के फोटो के साथ आवेदन करें। परिजनों की संख्या अधिक होने के कारण सत्र में प्रवेश केवल एक बार ही संभव है। आज के ज्ञानप्रसाद का समापन तो कल ही होगा लेकिन आज यहीं पर अल्पविराम लेना पड़ेगा। 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। रेणु जी आज की गोल्ड मैडल विजेता हैं । (1)सरविन्द कुमार-31 ,(2 )संध्या कुमार-41,(3) सुजाता उपाध्याय-31,(4) रेणु श्रीवास्तव-53,(5)वंदना कुमार-28, (6) सुमन लता-29,(7) चंद्रेश बहादुर-38, (8,)निशा भारद्वाज-29,(9)मंजू मिश्रा-33  सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई


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