वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

युगतीर्थ शांतिकुंज गायत्री परिवार का प्रमुख संचालन केंद्र है 

19 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद

एक बार फिर से वही सोमवार है, वही गुरुकुल पाठशाला की क्लास है, सविता देवता, माँ गायत्री का ध्यान करते, रविवार के अवकाश के बाद अनंत ऊर्जा लिए अपने महान गुरु के अनेकों  समर्पित शिष्य हैं जो आज के विषय को जानने के लिए उत्सुक हैं।

तीन दशक पूर्व 2012 में प्रकाशित “पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य दर्शन एवं दृष्टि” 474 पन्नों के ग्रन्थ पर आधारित चल रही लेख शृंखला को बीच में रोक कर दिव्य अखंड ज्योति पत्रिका के चार लेख लिखने का अभिप्राय हमारे पाठक भलीभांति जानते हैं, उसे रिपीट करना उचित नहीं होगा। पिछले कुछ समय से हमने इस महान ग्रन्थ पर आधारित अनेकों लेख अपने साथियों के समक्ष प्रस्तुत किये, साथियों ने अपने उच्चकोटि के कमैंट्स (और उन कमैंट्स पर काउंटर कमैंट्स) के द्वारा इन लेखों पर brainstorming discussion  करके इस बात को प्रमाणित कर दिया कि परम पूज्य गुरुदेव एवं उनके क्रियाकलापों पर चर्चा एक ऐसी अनंत चर्चा है जिसे अंत कहना न तो उचित होगा और न ही संभव। हमारी योग्यता तो केवल इतना ही कहने में समर्थ है कि अभी हमने बहुत थोड़ा सा ही जाना है, आगे  बहुत कुछ जानना बाकी है क्योंकि ज्ञान का कभी भी अंत नहीं हो सकता। 

शिक्षा और विद्या एवं भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा पर आधारित लेखों की कॉपियां सुन्दर pdf में इंटरनेट आर्काइव पर उपलब्ध हैं, आप उन्हें वहां पर भी देख सकते हैं।

आज का ज्ञानप्रसाद बहुत ही छोटा है, इसे पढ़ते समय पाठकों को लगेगा कि यह तो पहले भी पढ़ा है।  ऐसा लगना स्वाभाविक है क्योंकि प्रत्येक कंटेंट एक दूसरे  के साथ इतना अधिक घुला मिला हुआ है, उनके बीच में इतनी Fine dividing line है कि हम चेक भी कर लेते हैं कि यह रिपीट हो रहा है फिर भी यही धारणा  रहती है कि “फिर क्या हो गया” गुरु के अमृत का पयपान फिर से हो रहा है, इससे बड़ा परम सौभाग्य क्या हो सकता है।     

आगे आने वाले लेखों में अभी बहुत कुछ जानने को तो है ही लेकिन गायत्री शक्तिपीठ, तपोभूमि मथुरा ,जन्मभूमि आंवलखेड़ा,अखण्ड ज्योति संस्थान जैसे कुछ topics हैं जिन पर priority बन रही है। इससे आगे तो गुरुसत्ता ही जाने क्योंकि हम तो मात्र  कठपुतली ही हैं जिनकी डोर गुरुदेव के हाथों में है।   

बार बार उन्ही टॉपिक्स को नई जानकरी के साथ प्रकाशित करने का उद्देश्य है कि स्वयं को तो educate  करें हीं लेकिन अगर कोई हमसे शांतिकुंज से सम्बंधित (उदहारण के लिए ) प्रश्न पूछे तो वोह हमारी fingertips पे होना चाहिए।

इन्ही opening remarks के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का, सप्ताह के प्रथम लेख का शुभारम्भ विश्वशांति की कामना के साथ करते हैं। 

 ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ 

अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।हे भगवन हमें ऐसा वर दो। 

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जून 2023 में जब हम इस लेख को लिख रहे हैं, शांतिकुंज से सम्बंधित सभी आकड़ों में अभूतपूर्व वृद्धि हो चुकी है। तीन दशक पूर्व 2012 में प्रकाशित “पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य दर्शन एवं दृष्टि” 474 पन्नों के ग्रन्थ पर आधारित इस लेख में सभी आंकड़ों को बिना किसी बदलाव के यथावत रखा गया है।      

हरिद्वार सप्तसरोवर क्षेत्र में स्थित शांतिकुंज आश्रम की स्थापना जून 1971 में वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं शक्तिस्वरूपा माता भगवती देवी शर्मा रूपी ऋषियुग्म की संकल्प शक्ति से हुई । सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राष्ट्र के नवनिर्माण की शतसूत्री योजना के सूत्रधार एवं आर्ष ग्रन्थों सहित लगभग  3200 पुस्तकों के लेखक आचार्यश्री ने 1971 में  अपनी कार्यभूमि गायत्री तपोभूमि मथुरा, छोड़कर हिमालय तप हेतु प्रस्थान किया। एक वर्ष उपरान्त सप्तसरोवर क्षेत्र में शांतिकुंज के रूप में भारतीय संस्कृति की समस्त ऋषि परम्पराओं की सर्वतोमुखी शिक्षण करने वाली धर्मतंत्र से लोकमानस को बदल देने वाली एक विश्वविद्यालय स्तर की इस संस्था को गायत्री परिवार के प्रमुख संचालन केन्द्र के रूप में स्थापित किया।

2012 के आंकड़ों के अनुसार लगभग साठ एकड़ भूमि पर फैले इस तीर्थ आश्रम में बहुमुखी प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण है। जीवन जीने की कला (Life management)  के रूप में संजीवनी विद्या का नियमित एक माह के युग शिल्पी प्रशिक्षण द्वारा लोकसेवी कार्यकर्त्ताओं, युग पुरोहितों का उत्पादन किया जाता है। ये कार्यकर्त्ता साक्षरता विस्तार, हरीतिमा संवर्द्धन ( हरियाली को प्रोमोट करना), गृह उद्योग, सहकारिता द्वारा गरीबी उन्मूलन से लेकर समग्र स्वास्थ्य संरक्षण तथा धर्मतंत्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया का प्रशिक्षण लेकर गांव-गांव अलख जगाते हैं व जन-जन की धर्मचेतना को जगाते हैं। तम्बाकू, शराब जैसी दुष्प्रवृत्तियों को समाज से मिटाने के लिए यज्ञ के माध्यम से देवदक्षिणा (बुराइयों का परित्याग) जैसे प्रयोग चलते हैं। यज्ञ के समापन पर साधकों को देवदक्षिणा के रूप में एक बुराई छोड़ने के प्रेरित किया जाता है   

लगभग पांच करोड़ से अधिक व्यक्तियों को दुर्व्यसनों से मुक्त कर उनके घरों को स्वर्ग बनाने में इस संस्था को अनुपम सफलता मिली है। 1926 से अखंड दीप की स्थापना  के साथ ही आदर्श विवाह आंदोलन आरम्भ किये गए जिसके अंतर्गत दहेज़ प्रथा जैसे अपव्यय एवं  कुरीति से लड़कर इस मिशन ने डेढ़ लाख से अधिक आदर्श विवाह कराये हैं, यह अपनेआप में एक कीर्तिमान् है । समाज के नवनिर्माण की प्रवृत्तियों के साथ-साथ गायत्री महाशक्ति की साधना एवं यज्ञ का तत्वदर्शन घर-घर फैलाने का शिक्षण इस संस्था के कार्यों की मूल धुरी है। 

शांतिकुंज आने के बाद युगऋषि ने 24 कुंवारी कन्याओं  के साथ अखण्ड दीपक के समक्ष 240 करोड़ गायत्री जप का अनुष्ठान सम्पन्न किया।  शांतिकुंज तीर्थ में रहने वाले साधकों व निरन्तर आने वाले आगन्तुकों द्वारा नियमित रूप से वर्षभर दैनिक यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। इस प्रकार यह “अध्यात्म ऊर्जा से युक्त एक ऐसा सिद्धपीठ है” जहां आकर पवित्र मन से ध्यान करने वालों की मनोकामनाएँ स्वतः ही  पूर्ण हो रही  हैं।

शांतिकुंज प्रतिभा-परिष्कार की एक अद्भुत प्रयोगशाला है जहां समाज में प्रसुप्त पड़ी प्रतिभा को झकझोरने, उनके  सामर्थ्य को जगाने के प्रयोग निरन्तर चलते रहते है। ऐसे प्रयोगों को पूर्ण करने के लिए गुरुदेव ने पांच माध्यमों का चयन किया था। इन पांच माध्यम का संक्षिप्त सा वर्णन निम्लिखित है : 

1.पहला  माध्यम,साहित्य :  

गत 87 वर्षों से अनवरत प्रकाशित हो रही मासिक आध्यात्मिक पत्रिका “अखण्ड ज्योति”  को पूज्य गुरुदेव की  प्राणचेतना-संवाहक की संज्ञा देना कोई अतिश्योक्ति नहीं है। अखंड ज्योति में  प्रकाशित लेख सोतों में/मूर्छितों में भी प्राण फूंक देते हैं। इस पत्रिका में प्रकाशित लेख जीवन जीने की कला का शिक्षण देते हैं, साधना द्वारा  उपचार करते हैं, आत्मबल बढ़ाने का प्रशिक्षण देते हैं तथा विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की शिक्षा और ट्रेनिंग देते हैं। अखंड ज्योति  साहित्य क्षेत्र में एक अनूठी पत्रिका है। इसे अनूठी कहने के अनेकों कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है कि इसका प्रकाशन बिना किसी विज्ञापन के हो रहा है और केवल  लागत मूल्य पर प्रकाशित होने वाली  इस पत्रिका की ग्राहक संख्या हिन्दी, गुजराती, उड़िया, बंगला, तमिल, तेलगू, मलयाली, कन्नड़, अंग्रेजी व मराठी भाषाओं में 15 लाख से अधिक है। एक पत्रिका  कम से कम 10 व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाती है। इस प्रकार यह चिन्तन लगभग  एक करोड़ व्यक्तियों तक पहुंचता है। अखंड ज्योति के अतिरिक्त,गायत्री तपोभूमि मथुरा से प्रकाशित हो रही “युग निर्माण योजना” एक और पत्रिका 1963 से परिवार एवं समाज निर्माण सम्बंधी मार्गदर्शन प्रदान कर रही है।

युगऋषि द्वारा लिखित पूरे साहित्य को “पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय”  के रूप में विश्वकोश आकार के अनेकों  खण्डों में प्रकाशित किया गया है। सम्पूर्ण विश्व में किसी भी एक व्यक्ति द्वारा संभवत इतना अधिक साहित्य अभी तक नहीं लिखा गया है । समस्त आर्ष ग्रन्थों का सरल हिन्दी भाष्य गुरुदेव द्वारा किया गया है। वेदों व उपनिषदों के विज्ञानसम्मत संस्करणों को  पुनः प्रकाशित किया गया है। कथानक शैली द्वारा लोकशिक्षण हेतु प्रज्ञापुराण के चार खण्ड जीवन का व्यावहारिक मार्गदर्शन के लिए  प्रस्तुत करने के लिए पूज्य गुरुदेव द्वारा लिखे गए हैं।

2.दूसरा  माध्यम वाणी: 

शांतिकुंज में तपस्वी मनीषियों का प्रशिक्षण कर उन्हें उद्बोधन एवं वर्कशॉप, सेमीनार आदि के लिए देश भर में भेजा जाता है। विभिन्न विषयों पर तर्क सम्मत प्रतिपादन प्रस्तुत कर यह मनीषी  विचार क्रान्ति अभियान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस तरह के लगभग  एक लाख आंशिक समयदानी यहीं प्रशिक्षित किये गये हैं जो विश्व भर में यहीं  से भेजे जाते हैं। पौरोहित्य द्वारा संस्कार सम्पन्न कराके धर्मतंत्र के प्रगतिशील -परिष्कृत प्रयोगों के माध्यम से इन युग प्रवक्ताओं ने भारतीय संस्कृति को preserve  रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। शांतिकुंज में निवास करने वाले कार्यकर्त्ताओं की एवं  समयदानियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यह समयदानी अकेले  एवं  सपरिवार रहते हैं। इनमें से अनेकों  उच्चस्तरीय शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षक स्तर के विद्वान् हैं।

3. तीसरा  माध्यम संगीत:

शांतिकुंज के कार्यकर्ता संगीत के माध्यम से  सोयी भाव  संवेदना जगाकर लोकशिक्षण कर नारदीय परम्परा के अन्तर्गत जन-जन को नई दिशा देने का कार्य सम्पन्न करते हैं। इसका प्रशिक्षण यहां अनवरत चलता रहता है। प्रायः 100 से अधिक प्रशिक्षक स्तर के प्रशिक्षित प्रवक्ता युगशिल्पियों को युगगायन शैली सिखाते हैं। यही व्यक्ति घर-घर क्रान्ति गीतों, भक्ति गीतों, प्रेरणा गीतों द्वारा अलख जगाते हैं।

4. चौथा  माध्यम व्यक्तित्व परिष्कार :  

सरकारी अधिकारियों से लेकर शिक्षक वर्ग के, बुद्धिजीवी वर्ग के लिए नियमित रूप से शांतिकुंज में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र चलते रहते हैं। अभी तक लगभग 80000  केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के अधिकारी यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।

5. पांचवां  माध्यम वीडियो फिल्म्स, टेलीविजन धारावाहिक आदि:  

सूचना के क्षेत्र में हुए  अभूतपूर्व विकास का लाभ लेते हुए वीडियो फिल्म्स,टेलीविज़न, केबल टीवी , मल्टीमीडिया तथा नृत्य नाटिकाओं, एक्शन सांग, नुक्कड़ नाटकों द्वारा शांतिकुंज में जन-जन का शिक्षण अनवरत  हुए जा रहा है  । “लोकरंजन से लोकमंगल” इस मिशन का एक प्रमुख कार्यक्रम है एवं इस माध्यम से करोड़ों व्यक्तियों तक पहुंचाने में इसे सफलता मिली है।

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। संध्या जी आज की गोल्ड मैडल विजेता हैं ।

(1)सरविन्द कुमार-37  ,(2 )संध्या कुमार-40,(3) सुजाता उपाध्याय-31,(4) रेणु श्रीवास्तव-30,(5)वंदना कुमार-35,(6)पिंकी पाल-29,(7) सुमन लता-27,(8) चंद्रेश बहादुर-34   

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई


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