ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का सप्ताह का अंतिम योगदान “अपने सहकर्मियों की कलम से” दिन ब दिन लोकप्रिय होता जा रहा है। इस लोकप्रियता का कारण परम पूज्य गुरुदेव का संरक्षण और मार्गदर्शन ही है। सभी सहकर्मी अपना योगदान देने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं लेकिन गुरुदेव के मार्गदर्शन के बिना कुछ भी संभव नहीं है क्योंकि हम सब एक दिव्य मदारी के हाथों में कठपुतलिओं की भांति वही सब कुछ करे जा रहे हैं जिसके लिए वोह हमें समर्थ समझते हैं ।
रंगमंच पर कठपुतली का तमाशा देखकर दर्शक ताली बजाकर वाह वाह तो कर रहे हैं लेकिन कठपुतली का क्या योगदान है ? सारे का सारा करतब तो मदारी का है, उसकी बीन का है। इस शो का निर्माता, निर्देशक, लेखक, नायक, संगीतकार ,गीतकार सब मदारी ही तो हैं । मदारी का योगदान तो यहाँ तक है कि उन्होंने कठपुतली के लिए काठ(लकड़ी ),रबर बैंड, गोंद ,रंग बिरंगे कपड़े आदि को तो चुना ही, रंग रूप को संवारने, आकर्षक बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, डोर भी अपने हाथ में ही ले ली, उँगलियाँ भी अपनी ही चला लीं, तभी तो वाहवाही मिलती ही गयी।
तो हुआ न यह सारे का सारा खेल मदारी का, और श्रेय मिल रहा है पुतली को, ठीक उसी तरह जैसे कल वाली शुभरात्रि सन्देश यूट्यूब Short में गुरुदेव कह रहे थे कि सब कुछ बना बनाया है, आपको तो केवल श्रेय ही लेना है।
आज के स्पेशल सेगमेंट का स्पेशल component हमारे स्पेशल सहकर्मी आदरणीय सरविन्द जी एवं उनकी धर्मपत्नी आदरणीय मीरा देवी,अनुराधा,पिंकी और आयुष के स्पेशल माता पिता की स्पेशल वैवाहिक वर्षगांठ है ,स्पेशल वर्षगांठ इसलिए कि यह कोई साधारण वर्षगांठ न होकर रजत वर्षगांठ ,25 वर्षीय सिल्वर जुबली वर्षगांठ है। इस शुभ अवसर पर हमारी व्यक्तिगत और परिवार की अपनत्व भरी सामूहिक बधाई भेजते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। सरविन्द जी और बहिन मीरा जी को गुरुदेव इसी प्रेम, स्नेह और रक्षा सूत्र में आने वाले अनेकों वर्षों तक बांधे रखें और दोनों बेटियों और बेटे आयुष को मार्गदर्शन मिलता रहे।
सरविन्द जी द्वारा लिखित पंक्तियाँ एडिटिंग के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत हैं :
सरविन्द कुमार पाल संग मीरा देवी पाल का विवाह दिनांक 17/06/1998 दिन बुधवार को हिंदू रीति-रिवाज के साथ सकुशल सम्पन्न हुआ था और उसी समय से हम गुरुदेव की कृपा से इसे विवाह दिवस की वर्षगाँठ के रूप में सादगी तरीके से निरंतर मनाते चले आ रहे हैं और दांपत्य जीवन के हर उतार-चढ़ाव को सहर्ष स्वीकार करते आगे बढ़ते जा रहे हैं। आनलाइन ज्ञान रथ गायत्री परिवार के सूत्राधार व संचालक परम पूज्य व परम स्नेहिल व परम आदरणीय अरुन भइया जी के अथक प्रयास व सार्थक मार्गदर्शन से प्रेरित होकर आज हम यहाँ तक पहुँचे हैं। इससे पहले हम एक सीमित दायरे में थे। आज सम्पूर्ण विश्व प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप में अवश्य जान रहा है और सभी का भाव भरा आशीर्वाद अनवरत मिल रहा है l यह हमारा परम सौभाग्य है कि यह आशीवार्द और प्यार हमारे बच्चों को भी मिल रहा है, इस प्यार की हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
हमें पूर्ण विश्वास है कि साथियों का स्नेह,प्यार, आशीर्वाद निरंतर मिलता रहेगा क्योंकि हम सब एक ऐसे दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत दिव्य प्लेटफार्म की छत्रछाया में आ चुके हैं जिसमें हम सबकी भावनाओं का सम्मान किया जाता है और हमारी सुप्त प्रतिभा जगायी जाती है,परस्पर स्नेह, आदर-सम्मान और सहकारिता का पाठ पढ़ाया जाता है। शनिवार को हमारी 25वीं वैवाहिक वर्षगाँठ है जिसे हम यादगार हेतु मनाने जा रहे हैं जो कि बहुत ही सादगीपूर्ण होगा। हम सुखी दांपत्य जीवन की कामना हेतु परिवार के अपने सभी सहकर्मियों से सामुहिक आशीर्वाद व शुभकामनाओं की आशा करते हैं।
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इस स्पेशल event के बाद प्रस्तुत हैं हमारी बहिन सुजाता जी का समर्पण :
हमारी सुजाता बहिन जी ने अगस्त 1990 की अखंड ज्योति के स्मृति अंक को ऐसे संभाल कर रखा हुआ है जैसे एक बेटी पुरखों की निशानी को संभाल कर रखती है और यह निशानी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे से आगे चलती ही जाती है। हम उन क्षणों की बात कर रहे हैं जब हम अखंड ज्योति पत्रिका पर दिव्य लेख शृंखला लिख रहे थे। बहिन जी ने पत्रिका के उड़िया एडिशन में प्रकाशित हुई “मत प्रलाप” शीर्षक के अंतर्गत परमपूज्य गुरुदेव की रचनाओं को हमारे व्हाट्सप्प पर शेयर किया। हम स्वयं देख सकते हैं कि 24-25 वर्ष के युवक, पूज्यवर की लेखनी में कितना प्रभाव था। उसी दिन थोड़ी देर बाद बहिन जी ने गुरुदेव के कुछ दुर्लभ चित्र भेजे। चित्र देख कर हमें दो वर्ष पुरानी वीडियो स्मरण हो आयी जो हमने गुरुपूर्णिमा को समर्पित करते अपलोड की थी,बहिन जी द्वारा भेजे गए चित्र हमने वीडियो में शामिल किये थे। वर्षों पुराने होने के कारण चित्रों की क्वालिटी वोह नहीं है जो आज कल की डिजिटल दुनिया की है लेकिन अविस्मरणीय यादों को क्वालिटी के मापदंड पर तोलना उचित नहीं होना चाहिए। बहिन जी के इस पुरषार्थ से प्रेरित होकर हमने फिर से अपनी रिसर्च आरम्भ की और अगस्त 1990 के गुजराती एडिशन में भी कुछ चित्र मिल गए । बहिन जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। कुछ ही दिनों में गुरुपूर्णिमा का महापर्व आने वाला है, देखते हैं गुरु के मार्गदर्शन में हम क्या कर पायेंगें।
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निम्नलिखित पंक्तियों से यह प्रमाणित हो जायेगा कि हमारे सहपाठी कितनी कमैंट्स लिखने में कितना गंभीर हैं :
संध्या बहिन जी लिखती हैं कि अखण्ड ज्योति पत्रिका मात्र एक पत्रिका नहीं है, जैसा कि आदरणीय प्रोफेसर भटनागर जी ने भी कहा है कि अखण्ड ज्योति मात्र एक पत्रिका नहीं है, परम पूज्य गुरूदेव की साधना का निचोड़ है,य़ह गुरुवर के विचार हैं,और ऐसे विचार हैं जो व्यक्ति का दृष्टिकोण बदलकर कायाकल्प करने का सामर्थ्य रखते हैं, गुरुवर की दूरदृष्टि को नतमस्तक हो नमन करती हूँ, उन्होंने भांप लिया था कि व्यक्ति एवं समाज दुर्गुणों का अड्डा बन रहा है, इसे सत्साहित्य के माध्यम ही सँवारा जा सकता है, उन्होंने लागत से भी कम दाम में एवं बिना किसी विज्ञापन के अखण्ड ज्योति पत्रिका का प्रकाशन 500 पाठक संख्या से प्रारम्भ किया, जो सदस्य संख्या आज कई लाखों में पहुंच चुकी है तथाआज य़ह सात भाषाओं में प्रकाशित हो रही है। आज भी इसके प्रकाशन हेतु कोई समझोता नहीं किया जाता है, प्रोफेसर भटनागर ने जिक्र किया था कि व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य हेतु सत्साहित्य पढ़ना बहुत आवश्यकहै ताकि व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाए ( प्रोफेसर भटनागर जी का यह वीडियो आदरणीय त्रिखा भाई जी ने कुछ दिन पहले साझा किया था),जब व्यक्ति सोचता है तभी सुधरेगा एवं बदलेगा, दुर्गुणों को त्याग कर सद्गुणों को अपनाएगा, तभी तो नवयुग का निर्माण संभव है, साधारणत: गुरुवर ने “मनुष्य में देवत्व” एवं “धरती पर स्वर्ग” अवतरण की पूरी पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। इस पथ पर चल कर अपने गुरू के प्रति गुरु भक्ति सिद्ध करने का सुअवसर हमें मिला है, इस हेतु सर्वप्रथम अपने अंदर पहुँचना होगा, अपने दुर्गुणों की सफाई कर आंतरिक प्रकाश को प्रज्वलित कर अखण्ड ज्योति पत्रिका का अध्ययन कर जीवन में आत्मसात करना होगा, इससे व्यक्ति का सुधार अवश्य होगा, तभी नवयुग का निर्माण संभव है, “हम सुधरेंगे युग सुधरेगा”,अतः अखण्ड ज्योति पत्रिका एवं गुरुवर के विपुल साहित्य का स्वाध्याय एवं साथ ही अन्य को पढ़ने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए सत्संग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, अखण्ड ज्योति पत्रिका को घर घर पहुँचाने का बीड़ा हर परिजन को लेना होगा, यह संजीवनी बूटी ,ज्ञान का भंडार है, इसकी ज्योति के प्रकाश से व्यक्ति का जीवन परिष्कृत होना ही है, आदरणीय त्रिखा भाई जी, जो भी श्रंखला ज्ञानप्रसाद के रुप में प्रस्तुत करते हैं, दिल करता है चलती ही रहे, समापन हो ही नहीं। वर्तमान दिव्य पत्रिका की लेख श्रंखला पर गुरुकुल पाठशाला में, स्वाध्याय और सत्संग का सुअवसर देकर भाई जी ने हम सब को धन्य कर दिया, OGGP से जुड़ कर स्वयं को धन्य मानतीं हूँ, इस मंच पर भी एक भी विज्ञापन नहीं लिया जाता है, इसका उद्धेश्य भी आर्थिक लाभ नहीं, केवल गुरुवर के साहित्य का प्रचार प्रसार है।
इसी तरह का कमेंट करते हुए हमारी आदरणीय बहिन सुमन लता जी ने पंडित लीलापत जी का रिफरेन्स दिया जिसमें पंडित जी सबसे पहले गुरुदेव की लेखनी से प्रभावित हुए थे और वोह भी अखंड ज्योति पत्रिका से। बहिन जी अपने बारे में लिखती हैं कि “ हमने स्वयं जब इस पत्रिका को पहली बार पढ़ा था तो एक अदृश्य शक्ति हमें बांध कर शान्तिकुंज ले गई थी। हमने दूसरी आध्यात्मिक पत्रिकाओं को भी पढ़ने का प्रयास किया तो कुछ खास आकर्षण अनुभव नहीं हुआ जो अखंड ज्योति से अनुभव होता है। इसमें आध्यात्म की पुरानी और बार बार दोहराई गयी बातें नहीं होती अपितु ऐसी सामग्री होती है जो हर प्रकार की सूचना और ज्ञानवर्धन से भरपूर और हर बार एक नवीनता को लिए होती है।
अखंड ज्योति के बारे में ही अरुण वर्मा जी लिखते हैं कि इस विषय पर मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि अखंड ज्योति पढ़ने से जो लाभ की प्राप्ति होती है शायद इसका वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता, अगर इसका लाभ देखना चाहते हैं तो इस अखंड ज्योति को अपने हृदय में उतार कर देखिए फिर पता चलेगा कि क्या लाभ हो सकता है। परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित यह एक ऐसा अमृत का पिटारा है जिसका रसपान करते ही सारा कलेश दूर हो जाता है, यह परम पूज्य गुरुदेव की आत्मा की पुकार है जो अपने अंत:करण की आवाज को जन जन तक पहूंचाने का काम करता है, जिसके माध्यम से आज हजारों नहीं, लाखों नहीं, करोड़ों परिजन इस अमृत का रसपान कर अपने गृहस्थ जीवन को स्वर्गीय वातावरण में ढाला है, और अपने परिवार को संस्कारवान बनाया है। आज पैसा कमाने के कईं इंस्टीट्यूट खुल गयें हैं लेकिन पैसे के साथ-साथ सद्बुद्धि का होना भी बहुत जरूरी है। ऐसा इंस्टीट्यूट कहीं नहीं मिलेगा, अगर मिलेगा तो सिर्फ और सिर्फ गुरुदेव के मार्गदर्शन में चल रहे, “औनलाइन ज्ञान रथ गायत्री परिवार” के प्लेटफार्म पर ही मिलेगा। गुरुदेव की महिमा का बखान करने हेतु इतना कुछ लिखा जा सकता है कि कई पुस्तकें लिख दें लेकिन अब अपनी लेखनी को विराम देना ही उचित होगा।
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“चलती रहे बस मेरी लेखनी इतना योग्य बना देना माँ सरस्वती” की दिव्य पंक्तियों से आज के स्पेशल सेगमेंट का समापन करते हैं लेकिन संकल्प सूची के बाद।
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में केवल 4 युगसैनिकों ने ही संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड मैडल सरविन्द जी को प्रदान किया जाता हैं।
(1)सरविन्द कुमार-44 ,(2 )संध्या कुमार-36 ,(3) सुजाता उपाध्याय-24 ,(4) रेणु श्रीवास्तव- 29
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई

