14 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज के ज्ञानप्रसाद का समापन निम्लिखित पंक्तियों से हो रहा है :
आप आत्म निरीक्षण कीजिए, एकान्त में बैठकर स्वयं को सबसे अलग अकेला अनुभव कीजिये और विचार कीजिए कि शरीररूपी कपड़ा उतार कर अलग रख दिया है। कपड़ा उतारने के बाद एक कुशल डाक्टर की भाँति अपने सूक्ष्म शरीर का परीक्षण कीजिए, अच्छी तरह तलाश कीजिए कि इसमें कौन- कौन से शैतान के दूत छिपे बैठे हैं, उनके रूपों को भली प्रकार परखिए और प्रश्न कीजिए कि आप सही मायनों में हैं क्या और क्या बन गये हैं? गुरुदेव आश्वासन दे रहे हैं कि कुछ समय तक लगातार अन्तर्मुख होने के बाद आपकी पीड़ा मेरी तरह उमड़ पड़ेगी, तब आप अखण्ड ज्योति परिवार के सच्चे सदस्य होंगे। ऐसे सदस्यों की आत्मा को चूमता हुआ उनके हृदय से लग जाने के लिए मैं व्याकुल हो रहा हूँ ।
ऐसे ही दिव्य विचारों को दर्शाते गुरुदेव के Golden words आज के ज्ञानप्रसाद को सुशोभित कर रहे हैं। गुरुदेव अखंड ज्योति पत्रिका को “सन्देश वाहिका सेविका” और अखंड ज्योति परिवार के प्रत्येक परिवारजन को “एक महान पथ का पथिक” कह कर सम्मानित कर रहे हैं। आज के ज्ञानामृत की एक-एक बूँद का पयपान करते हुए अमरत्व को प्राप्त होने के सिवाय पाठक के पास और कोई choice ही नहीं रहती।
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परम पूज्य गुरुदेव अखंड ज्योति परिवार को समझाते हुए कहते हैं :
हमारा आपका सम्बन्ध मामूली दुकानदार और बाज़ारी ग्राहक का नहीं है। हम कागज़ छाप कर बेचने वाले और आप टाइम पास करने के लिए अखबार खरीदने वाले नहीं है। हम आपके साथ “एक महान पथ के पथिक” के रूप में अपना सम्बन्ध स्थापित करने को प्रयासरत हैं। अखण्ड ज्योति हमारे और आपके विचारों, अनुभवों और जिज्ञासाओं को एक दूसरे के पास पहुँचाने वाली “सन्देश वाहिका सेविका” है। हम लोग अपनी एक छोटी सी अलग दुनिया अलग बसाए हुए हैं। हमारा अपना ही एक अलग प्रकार का परिवार है। हो सकता है आप सेठ साहूकार, राजा, धनी, विद्वान, बलवान, शक्तिशाली, उच्चपद प्राप्त अधिकारी , सौभाग्यशाली हों; कोई दीन, दरिद्र, अशिक्षित, रोगी, निर्बल, दुःखी, शक्तिहीन, पीड़ित, चिन्तित और साधनहीन हों यां फिर पुरुष,स्त्री, बालक,बालिका कोई भी हों, कोई भी रूप धारण किये हों, यह सब भेदभाव बाहरी हैं। यह सब बाहरी आवरण मात्र हैं। मान लीजिए कि सब एक तरह की बाहरी स्थितियाँ हैं, एक प्रकार के कपड़े हैं। रंग बिरंगे कपड़े, भांति भांति की पोशाकें। अगर हम कहें कि क्षण भर के लिए अपने इन सब कपड़ों को,बाहरी आवरणों को उतार कर बाहर रख दीजिए और बिल्कुल नंगे होकर हमारी कुटिया में चले आइए, ऐसी स्थिति में हम सब एक समान दिखेंगें,न तो कोई राजा होगा न ही रंक, न कोई विद्वान होगा, न कोई अशिक्षित, न कोई सशक्त, न कोई रोगी, हम सब में आयु का भेद भी नहीं रहेगा।
गुरुदेव ऐसा क्यों कह रहे हैं ?
गुरुदेव बता रहे हैं कि हम सब उस एक अखण्ड, अमर और आदि-अन्त रहित सच्चिदानन्द महान तत्व के अंश हैं जिसे राम रहीम,कृष्ण आदि किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है। “ईश्वर अंश जीव अविनाशी” हम शरीरधारी जीव मनुष्य उसी महासूर्य की किरणें हैं, उसी एक अखण्ड ज्योति की प्रकाश रश्मियाँ हैं। हम सब केवल भाई, सहोदर, साथी और मित्र ही नहीं वरन् इससे कुछ अधिक ही हैं। जो सम्बन्ध सूर्य की एक किरण का दूसरी किरण से होता है, सिक्के की एक तरफ का दूसरी तरफ से होता है, शरीर के एक अंग का दूसरे अंग से होता है,हमारे और आपके बीच का वही सम्बन्ध है। दो बर्तनों में भरे हुए वायु के अंश, क्या एक दूसरे से अलग हैं? क्या उन्हें मिलाने के लिए यां उनके बीच कोई सम्बन्ध स्थापित करने की जरूरत पड़ेगी? बिलकुल नहीं क्योंकि वह एक ही हैं।
ऐसी ही बात अखंड ज्योति परिवार पर भी लागू होती है। बाहिर से तो हम सब अलग दिखते हैं लेकिन अंतर्मन में सब एक हैं, घुले मिले हैं । गुरुदेव इस दिव्य परिवार के बारे में समझाते हुए कहते हैं आप हमसे बहुत दूर अपने घरों में बैठे हुए हैं। हमसे अलग स्थिति में हैं लेकिन हम और आप एक ही हैं, आत्मीय हैं,अभिन्न हैं, अविभाज्य (Inseparable ) हैं।
पृथ्वी के विकास और विनाश में असंख्य युग लगे हैं। ऐसी असंख्य पृथ्विओं का विकास और विनाश हुआ और होने वाला हैं। अब ज़रा लम्बी दृष्टि पसार कर भूत और भविष्य के जीवन काल को देखिए। इस काल में इतने युगों का समय निहित है कि यदि अनेकों जीवन भी व्यतीत हो जाएँ तो भी गणना संभव नहीं है। तो फिर मनुष्य जैसे आदिहीन अंतहीन जीव का lifespan तो इतना ही है जितना समस्त पृथ्वी के मुकाबले में धूल का नन्हा सा कण। हम सबके जीवन की भिन्नता केवल परिस्थिति के कारण ही है, छोटा-बड़ा,अमीर-गरीब केवल परिस्थिति के कारण ही तो है। क्या यह कारण हमें एक दूसरे से अलग कर सकता है ? कदापि नहीं। हम सब एक हैं, उसी विशाल सत-चित-आनंद के ही अंश हैं। जीवन के चंचल और क्षण भंगुर आवरण ( Short-lived covering) हमारे और आपके बीच में किसी भी प्रकार की खाई पैदा नहीं कर सकते, हमें अलग नहीं कर सकते।
एक नया परिवार क्यों ?
इसलिए हे अभिन्न, हम और आप आपस में पूर्ण ऐक्य ( Oneness ) हैं और एक जैसा अनुभव करते हुए एक नई दुनियाँ बसाते हैं, एक नया परिवार बनाते हैं। आप पूछेंगें, नई दुनियाँ क्यों? नया परिवार क्यों? जब हम सब सनातन और शाश्वत है तो नयापन क्यों? आप द्वारा ऐसे प्रश्न करने स्वाभाविक हैं और उत्तर देना कठिन भी है, लेकिन थोड़ा गंभीरता से विचार करने पर इन प्रश्नों का समाधान हो जाता है।
नयापन तब आता है यां लाया जाता है जब प्राचीनता में कुछ दोष आ जाता है। प्राचीनता निर्दोष है,उसमें कोई नवीनता लाई ही नहीं जा सकती। लेकिन आज हमारी प्राचीनता दोषपूर्ण हो गई है, दूषित हो गयी है। हम लोग जिस स्थिति में है, उस स्थिति में हमारी प्राचीनता दुःखदायी हो गई है। हमारी आत्मा आनन्दमय है,इसलिए हमें आनन्द मिलना चाहिए। आनन्द के लिए हमारा जन्म हुआ है, हमारे चारों ओर आनन्द का महासागर है लेकिन दूषित प्राचीनता के आवरण ने मुँह पर ऐसी पट्टी बाँध दी है कि हम सामने रखे हुए अमृत को भी चख पाने में असमर्थ हैं,भूख और प्यास को तृप्त करने के लिए के मारे-मारे फिर रहे हैं और त्राहि-त्राहि चिल्ला रहे हैं। जो घोड़े हमें सवारी के लिए प्रदान किये गए थे वही हमारे ऊपर सवार हो गये हैं? नौकरों ने बादशाहत अख्तियार कर ली है। हथियारों ने हमें अपना चौकीदार बना लिया है। मनोविनोद की शतरंज के सिपाही, प्यादे, घोड़े, ऊँट एक फौज बना कर लड़ने के लिए सामने आ खड़े हुए हैं और हम इन परिस्थितियों को देख कर अज्ञानी बालक की तरह भयभीत हो गये हैं तथा हमने स्वयं को भेड़ियों के सुपुर्द कर दिया है।
यही परिस्थतियाँ हैं जिनके कारण हम आनन्द से वंचित हो गये हैं और चारों ओर दुःख और दुःख ही दिखाई पड़ता है। यही है प्राचीनता का दोष । वर्तमान परिस्थितियों ने हमारी दृष्टि को ऐसी बहिमुर्ख बना दिया है कि हम स्वयं को बिल्कुल भूल ही गये हैं। बिल्ली को देखकर हँसते है और ऊँट को देखकर रो पड़ते हैं। पुत्र, धन, यश प्राप्त हुए तो उछलते हैं, नष्ट हुए तो रोकर घर भर देते हैं। किसी ने कुछ हानि पहुँचाई तो बदले की भावना से हृदय में भट्टी जल उठती है। ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, ममता, मद, मत्सर, लोभ रूपी कलाबाज़ों और बाज़ीगरों के हाथ में पड़कर कठपुतली की तरह हम नाच रहे हैं और थकान एवं दुःख से छटपटा रहे हैं। गुरुदेव कहते हैं कि मान लिया आप भाग्यशाली हैं आपके पास जर, जोरू,ज़मीन है लेकिन जब सब कुछ होने के बाद भी सन्तोष नहीं है तो आप अपनेआप को भिखारी से कम कैसे मान सकते हैं, अधिक ही होंगें।
दूषित प्राचीनता से हमारा तात्पर्य इसी भूतकाल से लिपटी हुई विकार और अविवेकपूर्ण स्थिति से है। हमारी नई दुनिया और नए परिवार की रचना इसी दूषित प्राचीनता से छुटकारा पाना ही है। हम दुःखों की कांटेदार झाड़ियों में भटकते हुए ऊब गये हैं और शान्ति के उद्यान ( यानि शांतिकुंज ) में विश्राम करने की इच्छा रखते हैं। इस शांति मन्दिर की टोह में चलते हुए जो साथी हमें मिल जाते हैं वही हमारे परिवार के सदस्य हैं।
अखण्ड ज्योति परिवार का उद्देश्य जिज्ञासु, ज्ञान पिपासु और आनन्द खोजी पथिकों का कोष बनाना है, एक ऐसा कोष जिसके सब राहगीर अपनी समर्था अनुसार आनन्दमार्ग, ईश्वरभक्ति पथ और सदाचार की राह पर चलते हुए सच्ची शान्ति ढूँढ़ने का प्रयास करेंगे। सभी परिवारजन एक दूसरे को अपना अनुभव बताने और सहयोग देने को तत्पर रहेंगे।
गुरुदेव ने प्रश्न पूछा, “तो फिर यह कोई संस्था ही है न ?” उत्तर है, “नहीं, आजकल पाश्चात्य सभ्यता की नकल करके जिस प्रकार की संस्थायें बन रही हैं “अखण्ड ज्योति परिवार” कदापि उस तरह की कोई संस्था नहीं है। हमारे परिवार में जितने भी परिवारजन हैं, सब एक दूसरे के हित को अपना हित समझते हुए सम्मिलित होकर रहते हैं। यदि ऐसे परिवार को कोई संस्था का नाम दे दे तो अखण्ड ज्योति परिवार एक संस्था हो सकती है।
आप अंतर्मुखी हो जाइए :
हमें इस बात की कोई परवाह नहीं कि आप धनी हैं या निर्धन।अधिक धन है तो उसे सत्कर्मों में लगाइये, निर्धन हैं तो परिश्रम करके अधिक कमाइये। हमारी चिंता केवल एक ही है, वह यह कि आप अनन्त आनन्द से वंचित न रहें, आपका हृदय विकारों की भट्टी न बना रहे। हमारे पास धन, दौलत,ज़मीन , जायदाद, पुत्र, स्त्री, सुन्दरता के भण्डार नहीं हैं यह चीजें हम आपको नहीं दे सकते लेकिन आप चाहें तो उस ख़ज़ाने को उंगली के इशारे से बता सकते हैं जिसे पाने के बाद और कुछ पाने की इच्छा ही नहीं रहती । खज़ाना आपके स्वयं के भीतर ही है। आप अंतर्मुखी हो जाइए,आत्म निरीक्षण कीजिए, एकान्त में बैठकर स्वयं को सब से अलग अकेला अनुभव कीजिये और विचार कीजिए कि शरीररूपी कपड़ा उतार कर अलग रख दिया है। कपड़ा उतारने के बाद एक कुशल डाक्टर की भाँति अपने सूक्ष्म शरीर का परीक्षण कीजिए, अच्छी तरह तलाश कीजिए कि इसमें कौन- कौन से शैतान के दूत छिपे बैठे हैं, उनके रूपों को भली प्रकार परखिए और प्रश्न कीजिए कि आप सही मायनों में हैं क्या और क्या बन गये हैं? गुरुदेव आश्वासन दे रहे हैं कि कुछ समय तक लगातार अन्तर्मुख होने के बाद आपकी पीड़ा मेरी तरह उमड़ पड़ेगी, तब आप अखण्ड ज्योति परिवार के सच्चे सदस्य होंगे। ऐसे सदस्यों की आत्मा को चूमता हुआ उनके हृदय से लग जाने के लिए मैं व्याकुल हो रहा हूँ ।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड मैडल अरुण जी को प्रदान किया जाता हैं।
(1)सरविन्द कुमार-26,(2 )संध्या कुमार-38 ,(3) सुजाता उपाध्याय-41,(4) अरुण वर्मा-53, (5 )रेणु श्रीवास्तव-44, (6) चंद्रेश बहादुर-25 ,(7) निशा भारद्वाज-24, (8)वंदना कुमार-29,(9 ) पिंकी पाल-24 (10 ) सुमन लता-24,(11) उपासना भारद्वाज-24, (12)बबली विशाखा-24
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई