5 जून 2023 का ज्ञानप्रसाद
सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार हम सबके लिए एक विशेष ऊर्जा का सन्देश लेकर आता है क्योंकि रविवार को हम विश्राम करते हुए,पिछले 6 दिनों की अस्तव्यस्तता को समेटते हुए, अगले 6 दिनों के लिए ऊर्जा संचित करते है। गुरुकुल पाठशाला का प्रत्येक सहपाठी सोमवार को अथक परिश्रम का संकल्प लेकर आता है और एक से बढ़कर,आगे निकलने के लिए तत्पर होता है।
भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की आधारशिला हमारे युगदृष्टा गुरु ने हमारे परिवारों में, समाज में तेज़ी से बढ़ रही पश्चिमी संस्कृति को देखते ही रखी थी। भारतीय संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति में inherent conflict होने के कारण इन पंक्तियों के लिखने वाले/ पढ़ने वाले सभी के मन में गुरुदेव का “हम सुधरेंगें, युग सुधरेगा” का सूत्र अवश्य ही कर्त्तव्य- परायणता के लिए प्रेरित करेगा। चाहे जितनी भी बाधाएं हों,जितनी भी विवशता हो, संकल्प शक्ति से क्या नहीं हो सकता।
आज की पाठशाला में पुरातन, सनातन भारतीय संस्कृति को संक्षेप में जानने का प्रयास है । ब्रह्मवर्चस द्वारा सम्पादित एक विशाल ग्रन्थ “ पंडित श्रीराम शर्मा, दर्शन एवं दृष्टि” (2012) में बहुत ही संक्षेप में, कुछ ही पन्नों में, भारतीय संस्कृति का वर्णन किया गया है। गुरुदेव द्वारा लिखित “समस्त विश्व को भारत का अजस्त्र अनुदान” हमारे सहपाठियों ने अवश्य ही देखी होगी, पढ़ी होगी। लगभग 500 पन्नों का यह ज्ञानग्रंथ एक ऐसा कोष है जो पाठकों को भारत जैसी दिव्य भूमि को नमन करने पे विवश कर देगा।
2017 में जब हमनें Kingston Canada में इस पुस्तक पर आधारित आदरणीय चिन्मय जी का powerpoint presentation देखा था तो आंखें खुली की खुली रह गयी थीं।
तो आइए चलते हैं आज की पाठशाला की और।
********************
भारतीय संस्कृति:
अंग्रेजी शासन के प्रारंभिक दौर में 18वीं सदी तक अंगरेजों ने लिखा है कि भारत के लोग समृद्ध हैं और संस्कृतिनिष्ठ हैं। लगभग 30-40 वर्ष में ही अंग्रेज़ों की सोच में इतना परिवर्तन हो गया कि लार्ड मैकाले ने 1835 फरवरी में भारतीय संस्कृति की रीढ़ तोड़ने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में प्रस्ताव पेश किया जो निम्नानसार है :
2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद मैलार्ड मैकाले का सम्बोधन (अनुदित)
“मैंने एक ओर से दूसरी ओर तक सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया है और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा जो भिखारी है, चोर है। मैंने इस देश में ऐसी संपदा, ऐसे उच्च नैतिक मूल्यों वाले प्रतिभा के लोग देखे हैं कि मैं नहीं सोचता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे, जब तक हम इस देश की उस रीढ़ की हड्डी को ही न तोड़ दें, जो इसकी आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत है। इसलिए मैं प्रस्तावित करता हूँ कि हम इस देश की प्राचीन शिक्षा पद्धति या संस्कृति को बदल दें क्योंकि यदि भारतीय यह सोचने लगें कि अंगरेज एवं वह सब कुछ जो विदेशी हैं, अच्छा है, हमारे अपने से बहुत बड़ा है, तो वे अपने आत्मगौरव, अपनी भारतीय संस्कृति को खो देंगे और वे वह हो जाएंगे जो हम उन्हें चाहते है। एक अधीनस्थ और हमारे द्वारा शासित देश “
इस सम्बोधन के पश्चात् भारत में सिलसिलेवार पश्चिमी सभ्यता का तेज़ी से फैलना तथा ब्रिटिश शासन द्वारा ग्राम पंचायत व्यवस्था, कुटीर उद्योग एवं प्राचीन पद्धति तथा पांडुलिपियों को समूल ध्वस्त करने का प्रयास आरम्भ हो गया था ।
इस लेख के माध्यम से हम सब यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य ने किन-किन देशों में अपना प्रभाव आज भी अक्षुण्ण बनाए रखा है हमें अपनी संस्कृति पर गौरव का अनुभव होना चाहिए ।
हमने अपने अन्य लेखों में भी लिखा है कि लार्ड मैकाले से सम्बंधित शिक्षा नीति के बारे में कुछ न कहें तो ही उचित होगा क्योंकि इस नीति के Favour में और Against इतना कुछ उपलब्ध है कि कोई भी अध्ययन करके अपनी शंकाएं दूर कर सकता है।
लेकिन हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि लार्ड मैकाले की बात केवल 200 वर्ष पुरानी है और 200 वर्ष का समय किसी संस्कृति के मूल्यांकन के लिए बहुत ही कम समय है, जिन तथ्यों का निम्नलिखित पंक्तियों में वर्णन किया गया है, वोह तो हज़ारों लाखों वर्ष पुराने हैं।
**************
यजुर्वेद में कहा गया है – “सा प्रथमा संस्कृतिः विश्ववारा’ अर्थात हमारी देव संस्कृति का विश्व में सर्वप्रथम उदय भारत में हुआ । इसीलिए यह भारतीय संस्कृति भी कहलायी। इसका Evolution हिमालय में हुआ, जिसे ब्रह्मवर्त, उत्तराखण्ड अथवा उत्तरांचल कहा जाता है। यहीं से इस संस्कृति का संदेश हमारे ऋषि- मनीषियों द्वारा पूरे विश्व में ले जाया गया जिससे यह विश्व संस्कृति बनी और आध्यात्मिक रूप से हमारा देश “जगद्गुरु” कहलाया ।
हमारी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर इतनी समृद्ध है कि उसने एक समय समस्त विश्व को अपने रंग में रँग लिया था । इतिहासकारों के अनुसार एक समय अमेरिका भारत का एक उपनिवेश था, जहाँ शिव, गणेश, इंद्र, सूर्य, अग्नि आदि देवी देवता पूजे जाते हैं।
1.पेरू: (साउथ अमेरिका) लगभग 100 वर्ष पूर्व की ही बात है कि 1927 में अमेरिकी तथा मिश्र की पुरातत्व विभाग की टीम ने संयुक्त रूप से पेरू में (जो साउथ अमेरिका का एक देश है) खुदाई की जिसमें एक ऐसा शिव त्रिशूल मिला जिसकी लम्बाई 850 फुट है। इसी के साथ 20 टन भारी और 24 फीट ऊँचा एक शिवलिंग भी मिला जिस पर ग्रह-नक्षत्रों की अंतर्राक्षीय स्थितियाँ अंकित हैं। कालगणना के अनुसार इनका कालखंड 27000 वर्ष पूर्व का माना गया।
2.मैक्सिको भी साउथ अमेरिका का ही एक देश है। इस देश में की गयी पुरातत्वीय खुदाई में एक सूर्य मंदिर के अवशेष मिले जिसमें 10 टन भारी सूर्य-प्रतिमा एवं तीन कतारों में उपलब्ध 48 प्रतिमाएँ भी उस काल की, भारतीय कला एवं संस्कृति की साक्षी हैं। मैक्सिकों में प्रति वर्ष ‘रामसितवा’ त्यौहार भारी हर्षोल्लास के साथ अब भी मनाया जाता है जिसमें रामलीला की झांकियाँ निकाली जाती हैं। मैक्सिको के ही प्राचीन मंदिर “कोपन” की दीवारों पर हाथी पर सवार महावत के चित्र, वासुकि नाग, तक्षक नाग, सूर्य आदि भारतीय चित्रकला की अमिट छाप है।
3.साउथ अमेरिका का ही एक और देश है बोलीविया, महाभारत के अनुसार इस देश में भी सूर्यवंशी राजाओं का राज्य था। आस्ट्रेलिया में भी भारत से मिलते-जुलते रिवाज आज भी वहाँ की मूल जातियों में विद्यमान हैं।
4.इसी प्रकार मिश्र के प्रसिद्ध नगर ग़िज़ा में स्थित पिरामिड के भीतर वहाँ के राजाओं के शवों के सिरहाने रखे स्वर्ण पत्र पर भगवान सूर्य का चित्र अंकित है। यह शव कई वर्ष पूर्व यहाँ सुरक्षित रखे गए थे। सूर्य की ओर जाते हुए एक गाय का चित्र है जिसकी पूँछ पकड़े हुए एक मानव की आकृति अंकित है, जो गाय की पूँछ पकड़कर वैतरणी पार करने का संदेश देती दृष्टिगोचर होती है। कहा जाता है कि यहाँ अतीत में सूर्यवंशी राजाओं का राज्य था तथा बाद में मय संस्कृति विद्यमान थी ।
5.जर्मनी के प्रसिद्ध इतिहासकार मैक्समूलर ने वेदों का अनुवाद करते हुए लिखा है – ‘भारत ही वह देश है जिसने विश्व को 18 विद्याओं तथा 64 कलाओं का प्रकाश प्रदान किया है, जिसने ईश्वर और जीव संबंधी समस्त समस्याओं को सुलझाया है, जिसने अपने लोगों को हमेशा यही सिखाया है कि दुःख सहना देवत्व है और दुःख देना आसुरी प्रवृत्ति है। यही वह देश है जोअच्छे कार्य में विश्वास रखता है, अच्छी जाति में नहीं।
भगवान बुद्ध का संदेश तथा बौद्धकालीन संस्कृति की विरासत आज भी पूरे मध्य एशिया, चीन, जापान, श्रीलंका, मलेशिया, जावा, सुमात्रा आदि देशों में जीवंत देखी जा सकती है।
6.हर्षवर्धन के लगभग एक हजार वर्ष उपरांत सोलहवीं सदी के अंत में शहंशाह अकबर के वजीर अबुलफजल ने “आइने अकबरी” में लिखा है कि हिंदू लोग धार्मिक, सहनशील, नम्र, न्यायप्रिय, त्यागी, सत्यनिष्ठ, कृतज्ञ, प्रभु-भक्त तथा अपरिग्रही होते हैं। अपरिग्रही का अर्थ है जो किसी से कुछ भी ग्रहण नहीं करते, दान को अस्वीकार करते हैं, लेने में नहीं, देने में विश्वास करते हैं, त्याग का जीवन व्यतीत करते हैं एवं जीवन-निर्वाह के लिए न्यूनतम ज़रूरतों से ज़्यादा कुछ भी नहीं लेने में विश्वास करते हैं।
7.इण्डोनेशिया: इन्डोनेशिया में अनेक नगरों के नाम भारत के नगरों जैसे ही हैं जैसे अयोध्या, तक्षशिला, हस्तिनापुर, गांधार, विष्णुलोक, लवपुरी आदि। यहां की राजधानी का नाम जकार्ता वस्तुतः यज्ञकर्ता/ जयकर्ता से ही लिया हुआ लगता है । विष्णु वाहन गरुड़ इण्डोनेशिया निवासियों का श्रद्धापात्र है, उनके नाम से “गरुड़ एयरवेज कम्पनी” चलती है। “गरुड़ पर सवारी कीजिए-गरुड़ गति से प्रवास करिए” जैसे विज्ञापन बाँटे व चिपकाए जाते हैं। गरुड़ नाम के साथ ही विमान पर logo भी गरुड़ ही बना है। इण्डोनेशिया में रामलीला बहुत लोकप्रिय है और यह क्रमशः अधिकाधिक कलात्मक होती गई है। यहाँ की संस्कृति में रामायण के लिए गहरी श्रद्धा है। न्यूयार्क में एक इण्डोनेशियाई के होटल का नाम रामायण होटल’ है।
8.सुमात्रा: सुमात्रा का प्राचीन नाम ‘श्रीविजय’ था । सुमात्रा मैं पाए जाने वाले प्राचीन खंडहरों में से अधिकांश शिव मंदिर हैं। यहाँ अभी भी रामसीता, हनुमान, रुद्रशिव, भवानी दुर्गा के मंदिर हैं और यथावत् पूजा होती है।
9.बर्मा ( आजकल का म्यान्मार) : इस क्षेत्र में विशाल विष्णु मंदिर जिसकी दीवारों पर दशावतारों की प्रतिमाएँ अंकित हैं। हिंदू देवी-देवताओं और रीति-रिवाजों का अनुकरण होता है।
10.श्रीलंका: राजतंत्र चलाने वाले विज्ञान-धर्म गुरु तथा व्यवसायी भारतीय वंशधर ही रहे थे। उत्तर भारत के भारतीयों ने ही इस द्वीप को बसाया। धर्म प्रचारक बौद्ध संघमित्रा और महेन्द्र पहुँचे थे। भारतीय धर्म ग्रंथों रामायण आदि में स्वर्गगिरि – लंका के विषय में वर्णन मिलता है।
11.कम्बोडिया: साउथ एशिया के देश कम्बोडिआ में इतिहासकार केण्टलई और ली. टाओ युआन के कथनानुसार ईसा की तीसरी शताब्दी में यहाँ हिंदू राज स्थापित हो चुका था। सोमा (कम्बोडियन) और कौडिन्य (भारतीय) से उत्पन्न पुत्र कम्बोडिया का शासक बना। वर्मन बंधु सभी इसी वंश के थे। कम्बोडिया का प्राचीन नाम कम्बुज था। कम्बु लोग अपने को मनु की संतान मानते हैं। श्रीबागची के द्वारा प्राप्त शिलालेखों से कम्बोडिया के प्राचीन निवासी भारतीय नस्ल के थे। कम्बोडिया की प्राचीन भाषा भारतीय मुण्ड एवं खस भाषा से बहुत कुछ मिलती है। भाषा में संस्कृत शब्दों की भरमार है तथा 14वीं सदी तक संस्कृत राजभाषा रही। साहित्य में रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों की कलाओं का बहुल्य है तथा पूजा, उपासना, कर्मकाण्ड, प्रथा,परम्पराएँ भारत के समान हैं जिनका प्रमाण मंदिरों, चित्रों, मूर्ति तथा शिलालेखों से मिलता है। लोकप्रिय शासकों में जयवर्धन, यशोवर्धन माने जाते हैं। इनके शासन काल में 100 महाविद्यालय उच्च कोटि की शिक्षा, पुस्तकालय तथा मंदिर थे। सांस्कृतिक दृष्टि से यह भारत के बहुत निकट है।
*******************
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने पूर्णतया को प्राप्त किया है। रेणु बहिन जी स्वर्ण पदक विजेता हैं। (1)सरविन्द कुमार-35 ,(2 ) संध्या कुमार-30 ,(3) सुजाता उपाध्याय-33,(4) अरुण वर्मा-34, (5 )सुमन लता-28 ,(6 )रेणु श्रीवास्तव-45 , (7 ) चंद्रेश बहादुर-25 ,(8) मंजू मिश्रा-27
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।