31 मई 2023 का ज्ञानप्रसाद
भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा पर आधारित वर्तमान श्रृंखला का यह तीसरा लेख है। ब्रह्मवर्चस द्वारा सम्पादित 474 पन्नों के महान ग्रन्थ “पंडित श्रीराम शर्मा, दर्शन एवं दृष्टि” में इस परीक्षा को समर्पित 60 पन्नों में से ढूढ़ कर, एडिट करके जानकारी निकाल पाना एक चुनौती है। जानकारी का रिपीट होना स्वाभाविक है, जिसे कण्ट्रोल करने में हम असमर्थ हैं।
गुरुवार और शुक्रवार को आ रहा कंटेंट परम पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण को समर्पित है। आपसे ज़्यादा हम इस कंटेंट का अमृतपान करने को उत्सुक हैं।
इन्ही ओपनिंग शब्दों के साथ प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद।
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युगतीर्थ शांतिकुंज के गायत्री मंदिर प्रांगण में बड़े बड़े शब्दों में अंकित यजुर्वेद की उक्ति “वयं राष्ट्रे जागृयाम् पुरोहिताः” हर साधक को राष्ट्र के प्रति जागृत कराती है। इस उक्ति का हिंदी अनुवाद (हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत एवं जाग्रत बनाए रखेंगे) हमारे अंदर कुछ कर गुज़रने की जिज्ञासा उत्पन करता है। पुरोहित का अर्थ होता है जो इस पुर का हित करता है। प्राचीन भारत में शायद ऐसे व्यक्तियों को पुरोहित कहते थे, जो राष्ट्र के चरित्र, गौरव, मर्यादा, आत्मीयता, समृद्धि आदि की वृद्धि और उत्कर्ष की बात का दूरगामी हित समझकर उसकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे।
बॉलीवुड मूवी “जाग्रति” का एक टीचर के ऊपर फिल्माया गया बहुचर्चित गीत “हम लाएं हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के” इस संकल्प को और भी परिपक्व करता है। इसी तरह का एक और गीत “कर चले हम फिदा जान वो तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो” भी ऐसी ही भावना को दर्शाता है। जिन साथियों ने फिल्म “हकीकत” देखी है उन्होंने सैनिकों की भावना को अपने अतःकरण में उतारने का प्रयास किया होगा कि भीषण परिस्थितिओं में सैनिक अपने प्राण त्यागते समय साथियों से देश के प्रति निष्ठा का संकल्प मांग रहे हैं। यही है हमारे गुरुदेव की वसीयत और विरासत। हमारे गुरु ने तो बनी बनाई recipe प्रदान कर दी है, हमें बहुत ही थोड़ा सा प्रयास करने की आवश्यकता है, बाकी वोह सब संभाल लेंगें। आप दो कदम उठाइए, गुरुदेव बाज़ू पकड़ने के लिए सामने खड़े हैं।
2023 के महाप्रयाण दिवस पर हम ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक समर्पित साथी को ऊपर दिए गए गीतों की भावना का संकल्प दोहराने और पूरा करने की प्रतिबद्धता के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि मनुष्य की गरिमा है कि जो श्रेष्ठ संकल्प लें उसे पूर्णता तक पहुंचाएं। पूर्णाहुति इसीलिए दी जाती है। अभी 21 वीं सदी समाप्त होने में 77 वर्ष का समय बाकि है, जिस गति से परिवर्तन हो रहे हैं भारत के विश्वगुरु बनने में कोई संदेह नहीं है।
गुरुदेव की अनेकों योजनाओं में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा एक अद्भुत योजना है, पिछले दो दिनों से हम इस परीक्षा को समझने का प्रयास हैं। आइए इस परीक्षा के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें।
भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का उद्देश्य:
भारतवर्ष अपनी सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धारा के कारण जो हमारे ऋषियों, मुनियों द्वारा प्रतिपादित एवं अनुप्राणित थी कभी जगद्गुरु हुआ करता था। देशवासियों को पुनः आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विचारधारा में समाहित करने एवं विलुप्त होती देवसंस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए परम पूज्य गुरुदेव ने विचार क्रान्ति अभियान प्रारंभ किया। गुरुदेव द्वारा रचित साहित्य को घर-घर पहुँचाने, गायत्री अर्थात् सद्गान एवं यज्ञ अर्थात् सत्कर्म को चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में लाने हेतु अगणित प्रयास किये जा रहे हैं।
इन्हीं प्रयासों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण प्रयास “भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा” के माध्यम से विद्यालयों के विद्यार्थियों में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करना है। “अध्यापक है युग निर्माता-छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता” की सोच लिये विद्यार्थियों में पुनः भारतीय संस्कृति का गौरव बोध कराना, वैज्ञानिक आध्यात्मवाद को प्रतिपादित करने एवं समस्त विश्व की पीड़ित, अशांत मानवता को जागृत करने तथा स्थाई शांति एवं खुशहाली के लिए यह परीक्षा मील का पत्थर सिद्ध हो रही है । विद्यार्थियों में दूरदर्शिता, विवेकशीलता एवं उच्चस्ततरीय संवेदनशीलता को जागृत करने, सत्य, प्रेम एवं न्याय का पाठ पढ़ाना, समय और प्रतिभा का उचित उपयोग सिखाना तथा जीवन जीने की कला में प्रवीणता लाने के लिए यह परीक्षा सार्थक है।
भारत राष्ट्र को जगद्गुरु होने का सम्मान, “संस्कृति सूत्रों” को जीवन में अपनाने से ही प्राप्त हुआ था। ऋषि आत्माओं एवं देव सत्ताओं ने अथक परिश्रम के उपरान्त जिन मूल्यों को राष्ट्र में प्रतिष्ठापित किया था, वे सनातन मूल्य, भारतीय संस्कृति की आज भी अमूल्य धरोहर हैं, जो अंतर्मन को परिष्कृत करके हमारे अन्दर प्रसुप्त पड़ी अनंत संभावनाओं को जाग्रत कर विराट स्तर तक पहुँचाते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव ने नई पीढ़ी को सही दिशा देने के लिए “शिक्षा और विद्या” के सार्थक समन्वय पर जोर दिया। मानवीय मूल्यों के विस्तार हेतु खड़ा किया गया विचार क्रान्ति अभियान वस्तुतः भारतीय संस्कृति के विद्या विस्तार का ही अभियान है। विद्यालयों में सभी किशोर किशोरियों में ज्ञान के साथ श्रेष्ठताओं और शाश्वत मूल्यों को विकसित कराने के लिए प्रयास करना ताकि वे स्वयं के मनोविकारों से लड़ाई लड़ के जीवन के हर क्षेत्र से नीचता, निष्कृष्टता एवं अवाँछनीयताओं को दूर कर सकें।
युगदृष्टा गुरुदेव के अनुसार देश की छात्र पीढ़ी को (जो आने वाले कल का भविष्य है) पश्चिमी संस्कृति रूपी असुरता के चंगुल से निकालकर देव संस्कृति रूपी राजपथ (Super highway) पर चला देना ही हम सब का अभीष्ट होना चाहिए । भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा इसका सटीक आधार है। यदि परीक्षा के माध्यम से गाँव-नगरों में फैले विद्यालयों, छात्रों तथा अध्यापकों को संस्कृति सूत्रों से जोड़ा जा सके तो युग परिवर्तन का आधार बनने तथा इसे साकार होते देर नहीं लगेगी।
शिक्षकों ने यदि यह मोर्चा संभाला तो इक्कीसवीं सदी का भारत होगा, अपने खोए हुये गौरव को प्राप्त करता हुआ “नया भारत” होगा जिसमें छात्र-छात्राओं में नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए भारतीय ज्ञान परीक्षा के माध्यम से नया चिन्तन अवश्य ही देगा। इस परीक्षा के माध्यम से छात्र-छात्राओं के जीवन में उत्कृष्टता लाने के लिए विद्यालयों में संस्कृति मण्डलों की स्थापना का कार्यक्रम भी जुड़ा हुआ है। एक से तीन दिवसीय शिविरों के आयोजन से विद्यालय, छात्र, अध्यापक, अभिभावक, मिलजुल कर युग परिवर्तन से सम्बन्धित सप्त आंदोलनों से भी जुड़ेंगे।
परीक्षा का संक्षिप्त इतिहास:
वर्ष 1994 में भोपाल में यह परीक्षा केवल 2000 विद्यार्थियों की भागीदारी प्रारंभ हुई। वर्ष 1996-97 से अन्य प्रदेशों में भी यह परीक्षा प्रारंभ हुई तथा छात्र संख्या बढ़ते-बढ़ते वर्ष 2008 में 40 लाख विद्यार्थी इस परीक्षा से लाभान्वित हुए । आज देश की आठ भाषाओं में 20 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में इसका . आयोजन किया जाता है। लगभग 400 जिलों के एक लाख विद्यालय इस विधा से जुड़े हैं।
परीक्षा का संचालन, गुरुसत्ता के सूक्ष्म संरक्षण एवं प्रेरणा से श्रद्धेया शैल जीजी एवं श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्डया के कुशल मार्गदर्शन में गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार (उत्तराखण्ड) के भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा प्रकोष्ठ द्वारा किया जा रहा है। इसका प्रारंभ दो वर्गों में किया गया तत्पश्चात् तीन व चार वर्गों की परीक्षाएँ आयोजित की गई, लेकिन 2009 से
पांचवीं से बारहवीं तक की आठ कक्षाओं के आठ sections में यह परीक्षा कराई जा रही है। यह परीक्षा प्रायः दिसम्बर में सम्पन्न होती है तथा परिणाम फरवरी तक घोषित होते हैं। परीक्षा के दो माह पूर्व विद्यार्थियों को अध्ययन सामग्री (पुस्तक व प्रश्नबैंक) उपलब्ध करा दी जाती है ताकि अधिक से अधिक विद्यार्थियों को जानकारी का लाभ मिल सके। मूल्यांकन Computerized शीट का प्रयोग करके किया जाता है। समय- समय पर सम्बंधित शिक्षकों, छात्रों तथा परिजनों के शिविर राज्यवार शांतिकुंज में आयोजित किये जाते हैं। इन शिविरों में परम पूज्य गुरुदेव के समाजोत्थान के विचारों एवं भारतीय संस्कृति के उद्देश्यों से परिचित कराया जाता है। परीक्षा सहयोग राशि के रूप में कक्षा पाँच एवं छः के विद्यार्थियों से मात्र 12 रु. तथा कक्षा सात से बारह तक 15 रु. प्रति छात्र लिये जाते हैं। इस राशि से अध्ययन सामग्री, प्रश्न पत्र, प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार आदि की व्यवस्था की जाती है। तहसील, जिला एवं राज्य स्तर पर Merit list में आने वाले सभी स्तरों के छात्र- छात्राओं को विशेष रूप से पुरस्कृत किया जाता है। प्रथम आने वाले विद्यार्थियों को शांतिकुंज की ओर से 10 माह के लिए 200 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है तथा ऐसे विद्यार्थिओं को कक्षा बारहवीं पास करने के बाद देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, शांतिकुंज में प्राथमिकता के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। Merit list में आने वाले विद्यार्थियों के लिए जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर एक से तीन दिवसीय व्यक्तित्व परिष्कार के विशेष शिविर आयोजित किये जाते हैं।
परीक्षा के अतिरिक्त भी विद्यालयों में संस्कृति मण्डलों के गठन के साथ-साथ जन्म दिवस मनाना, सामूहिक श्रमदान, वृक्षारोपण, दीवारों पर महापुरुषों एवं संतों के अमृत संदेशों के पोस्टर लगाना आदि सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन किया जाता है। परीक्षा में ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं, जिससे मानसिक तीव्रता के साथ भावनाशीलता एवं आध्यात्मिकता का भी विकास हो । गायत्री परिवार के परिजन एवं संस्कृतिनिष्ठ अधिकारियों / अध्यापकों/परिजनों के त्याग एवं श्रम के फलस्वरूप यह परीक्षा सफलता के उच्चतम सोपानों तक पहुँच रही है।
परमपूज्य गुरुदेव के जन्म शताब्दी वर्ष 2011-12 में कई करोड़ विद्यार्थियों एवं उनके परिवारों तक पहुँचने का प्रयास किया गया। आज 2023 में इन पंक्तियों को लिखते समय यह संख्या कहीं अधिक हो चुकी है।
हम सभी का कर्तव्य बनता है कि भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा को विस्तार देकर ऋषि प्रणीत संस्कार एवं जीवन मूल्यों पर आधारित विचारों को अध्यापकों, अभिभावकों और विद्यार्थियों के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग तक गहराई से प्रविष्ट कराने का पुरुषार्थ करें।
परीक्षा के लिए प्रेरक पुस्तकें :
समय का सदुपयोग करें, सफलता के तीन साधन, शिष्टाचार और सहयोग, वेशभूषा शालीन रखें, श्रम है सुख का केतु सदाचरण और मर्यादा पालन, बाल निर्माण कहानियाँ (भाग-1 से 16 तक) देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर (भाग-1 से 4), भारतीय संस्कृति के संरक्षक – उद्धारक( भाग 1-6 ), सद्विचार, सत्कार्य एवं सत्साहस की घटनाएँ (भाग 1-2 ) शिष्ट बनें सज्जन कलाएँ, सफलता के सात सूत्र – साधन, बालकों का भावनात्मक विकास, बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, सम्मान के पात्र हमारे वयोवृद्ध, प्रज्ञायोग व्यायाम, ब्रह्मचर्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता, मनोबल के धनी व्यक्तित्व (भाग 1-2 )
इन पुस्तकों के माध्यम से परीक्षा में सफलता के साथ- साथ निम्लिखित उपलब्धियां स्वयं ही आती जायेंगीं:
बढ़ेगी सुघड़ व्यक्तित्व के प्रति जागरूकता, होगा मानवीय गौरव का बोध, परिमार्जित होंगी अभिरुचियाँ, प्रखर होंगे विचार, जागेगा कर्त्तव्य बोध, छूटेंगे कुसंग और दुर्व्यसन, घटेगा वर्ग विद्वेष, जाग्रत् होगा मानवीय सद्भाव, बदलेगा जीवन के प्रति दृष्टिकोण, परिष्कृत होंगी भावनाएँ, सुधरेंगे आचरण, कम होंगे तनाव और अवसाद, विकसित होगा आत्मविश्वास, पनपेगा राष्ट्र गौरव, समग्र बनेगा व्यक्तित्व |
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का स्वर्ण पदक अरुण जी को जाता है।
(1)चंद्रेश बहादुर-32,(2 ) रेणु श्रीवास्तव-34,(3)सरविन्द कुमार-39,(4) संध्या कुमार-26,(5) अरुण वर्मा -75,(6) पिंकी पाल -34,(7)विदुषी बंता-24,(8 ) मंजू मिश्रा-24,(9) स्नेहा गुप्ता-27
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।