29 मई 2023 का ज्ञानप्रसाद
एक बार फिर हम रविवार के अवकाश का आनंद प्राप्त करने के उपरांत सोमवार की ब्रह्मवेला की और अग्रसर हो रहे हैं, एक ऐसी वेला जो हमें आमंत्रित कर रही है कि आइए रविवार की संचित ऊर्जा का सदुपयोग करें,परम पूज्य गुरुदेव के विचारों को जन जन तक पहुंचा कर पुण्य प्राप्त करें।
आशा करते हैं हमारे सभी साथी, सहपाठी, सहकर्मी कुशल मंगल होंगें और आज के ज्ञान प्रसाद को आरम्भ करने के लिए उत्सुक होंगें।
हमने तो रविवार से कई दिन पहले ही ब्रह्मवर्चस द्वारा सम्पादित 474 पन्नों के महान-विशाल ग्रन्थ “मंदिर श्रीराम शर्मा, दर्शन एवं दृष्टि” का अध्ययन करना आरम्भ कर दिया था ताकि भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकें। इस विषय को अपने साथियों के समक्ष लाने से पहले स्वयं भलीभांति जान लें कि इस अद्भुत प्रयोग की बैकग्राउंड क्या रही होगी, युग दृष्टा परम पूज्य गुरुदेव की दूरदर्शिता ने क्या देखा होगा, अपने बच्चों से क्या आशाएं रखी होंगीं, 1994 से आरम्भ हुई राष्ट्रिय स्तर की इस परीक्षा से क्या-क्या परिणाम निकल कर आए, गुरुदेव ने निम्लिखित शब्द क्यों लिखे होंगें :
“है नहीं तलवार अपने हाथ में तो क्या हुआ, हम कलम से ही करेंगे सिरफिरों के सिर कलम”
इस तरह के अनेकों प्रश्न ढूंढते -ढूंढते न जाने हमने क्या कुछ अध्ययन कर लिया, कितने लेख पढ़ लिए, कितनी ही वीडियोस देख लीं, कि The more I know, the more I forget, The more I know, the less I understand, the more I know, the more I get confused की स्थिति पर पंहुचते गए। इस महान ग्रन्थ में “भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा” को समर्पित 60 पन्नों को अनेकों बार पलट-पलट कर देखते गए, अपनेआप से बार-बार प्रश्न करते गए कि साथियों से लिया गया संकल्प कि सोमवार से इस परीक्षा की चर्चा का शुभारम्भ करेंगें, पूरा भी कर पायेंगें कि नहीं। इस स्थिति में सही चयन करना, पूरी तरह तैयार होकर गुरुकुल पाठशाला में अपने सहयोगियों के समक्ष प्रस्तुत होना, एक कठिन परीक्षा, एक चुनौती से कम नहीं था। अगर साथियों की आशाओं पर पूरा न उतर पाए, उन्हें कहीं अनजाने में ही सही, निराश कर दिया तो अंडे पड़ने की सम्भावना हो सकती है। अध्यापकों के ऊपर अंडे फेंकने वाले किस्से तो कई बार सुने/देखें हैं, सौभाग्यवश हमारे लम्बे शैक्षिक कैरियर में कभी भी इस तरह की स्थिति नहीं आई। सोमवार की पाठशाला में अंडे पढ़ने का तो डर था ही, लेकिन इस बात की भी चिंता थी कि अगर पाठशाला के मुख्यआचार्य ( हमारे गुरुदेव)/ निर्देशक के आगे शिकायत हो गयी तो नौकरी से सदा के लिए निकाला भी जा सकता है ,Fire भी किया जा सकता है। इन्ही प्रश्नों के उत्तर ढूंढते- ढूँढ़ते, पन्नों को arrange किया और लेखन कार्य आरम्भ कर दिया, फिर क्या था -गुरुदेव एवं वीणावादिनी की कृपा से अपनेआप लेखनी चलनी आरम्भ हो गयी। इसीलिए तो हमें विनीता पाल जी के मिस्टर के प्रज्ञागीत की पंक्ति “चलती रहे बस मेरी लेखनी” इतनी प्रभावित करती है कि क्या कहें। परम पूज्य गुरुदेव के शब्द “है नहीं तलवार अपने हाथ में तो क्या हुआ, हम कलम से ही करेंगे सिरफिरों के सिर कलम” किस तथ्य पर आधारित हैं और भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का साथ कैसे सम्बंधित है,रिसर्च करने पर पता चलता है कि लगभग 200 वर्ष पूर्व जब भारत पर अंग्रेज़ों का राज्य था तो लार्ड मैकाले नामक राजनेता ने क्या कहा था। उस सम्बोधन को अपने साथियों के साथ आज की गुरुकुल पाठशाला में शेयर न करें तो अनुचित होगा। हमें पूर्ण विश्वास है कि इस सम्बोधन के एक-एक शब्द को ध्यान से पढ़ने के बाद, पाठकों के मन में और जानने की जिज्ञासा अवश्य ही उठेगी। पाठक केवल लार्ड मैकाले शब्द को ही गूगल करें तो देख लेंगें कि यूट्यूब वीडियोस, न्यूज़ आइटम्स, विकिपीडिया, गूगल images में कैसे बाढ़ लगी हुई है। हमने अनेकों entries का अध्ययन किया, कोई कहता है कि ऐसा कोई सम्बोधन हुआ ही नहीं, कोई कहता है कि सम्बोधन तो हुआ था लेकिन यह बात नहीं कही गयी थी, कोई कहता है कि यह बात भारत के विषय में नहीं ,अफ्रीका के बारे में कही गयी थी। तो इस स्थिति में हम क्या निष्कर्ष निकालें ? परम पूज्य गुरुदेव की वेदना तो हम समझ ही सकते है जिन्होंने इस परीक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास किया। जब हमने इस तथ्य का विश्लेषण और रिसर्च करने का प्रयास किया तो एक ही बात हमारे अंतःकरण में उठी कि 200 वर्ष पूर्व कही हुई बात को हम सही/ गलत तो तब कहें जब हम यह प्रभाव आज भी अपने आस पास, अपने परिवारों में, यहाँ तक कि गायत्री परिवारों में न देख रहे हों । अंग्रेजी बोलना और अपनी मातृभाषा को नकारना एक फैशन बन चुका है। बाल संस्कार शालाओं में बच्चों और युवाओं को हिंदी पढ़ने/पढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता, यज्ञ कर्मकांड करते तो हैं लेकिन अंग्रेजी में। मातृभाषा की classes तो ज्वाइन की हुई हैं लेकिन केवल फैशन के लिए। परिवारों में माता पिता ,नन्हें बच्चों के साथ यां बच्चे आपस में अंग्रेजी में बात करते हैं, शाम को सैर करते अगर कोई मातृभाषा बोलता मिल जाये तो वोह uncivilized है। तो स्वयं ही उत्तर मिल रहा है कि लार्ड मैकाले की बात सच है कि झूठ। यह बात विदेशों में बसे भारतीओं की ही नहीं है, भारतीय परिवार भी कुछ कम नहीं हैं।
हम अपने साथियों के करबद्ध प्रार्थना कर रहे हैं अगर किसी को हमारी बात से आघात हुआ हो तो हमें क्षमा कर दें। संस्कारित बच्चे, आदर्श बच्चे ही आदर्श परिवार हैं, यह हम प्रतिदिन अपने ज्ञानरथ परिवार में अनुभव कर रहे हैं।
2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में लार्ड मैकाले का सम्बोधन (अनुदित):
“मैंने एक ओर से दूसरी ओर तक सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया है और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा जो भिखारी है, चोर है। मैंने इस देश में ऐसी संपदा, ऐसे उच्च नैतिक मूल्य, ऐसी प्रतिभा के लोग देखे हैं कि मैं नहीं सोचता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे, जब तक कि इस देश की उस रीढ़ की हड्डी को ही न तोड़ दें, जो कि इसकी आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत है। इसलिए मैं प्रस्तावित करता हूँ कि हम इस देश की प्राचीन शिक्षा पद्धति या संस्कृति बदल दें, क्योंकि यदि भारतीय यह सोचने लगें कि अंगरेजी एवं वह सब कुछ जो विदेशी हैं, अच्छा है, हमारे अपने से बहुत बड़ा है, तो वे अपने आत्मगौरव, अपनी भारतीय संस्कृति को खो देंगे और वे वह हो जाएंगे जो हम उन्हें चाहते है- सच्चे अर्थों में एक अधीनस्थ व शासित देश ।”
इसके पश्चात् देश में सिलसिलेवार पश्चिमी सभ्यता का तेज़ी से फैलना तथा ग्राम पंचायत व्यवस्था, कुटीर उद्योग एवं प्राचीन पद्धति तथा पांडुलिपियों को समूल ध्वस्त करने का प्रयास ब्रिटिश शासन द्वारा प्रारंभ कर दिया गया ।
आज पश्चिमी संस्कृति एवं सभ्यता का प्रवेश सिनेमा, टी.वी., इंटरनेट के माध्यम से घर के चौके तक हो गया । परम पूज्य गुरुदेव भारतीय संस्कृति के इस प्रभाव से अत्यंत व्यथित थे । उन्होंने लगभग 3400 पुस्तक-पुस्तिकाओं के माध्यम से लिखकर यह घोषित किया कि “हम उल्टे को उलट कर सीधा कर देंगे, है नहीं तलवार अपने हाथ में तो क्या हुआ, हम कलम से ही करेंगे सिरफिरों के सिर कलम” परमपूज्य गुरुदेव की इसी लेखनी को, उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने, बच्चों-बच्चों तक पहुँचाने के लिए उन्हीं की चेतना के फलस्वरूप वर्ष 1994 में प्रथम बार भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन गायत्री शक्तिपीठ, भोपाल द्वारा किया गया।
आज के ज्ञानप्रसाद का समापन यहीं पर करते हैं लेकिन कुछ निम्नलिखित updates और 24 आहुति संकल्प सूची के बाद।
1.गायत्री जयंती, गंगा दशहरा और परम पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण को समर्पित होते हुए गुरुवार 1 जून वाला लेख “गुरुदेव के महाप्रयाण” पर ही आधारित है।
2.शुक्रवार को रिलीज़ होने वाली वीडियो गुरुदेव को श्रद्धांजलि हेतु अभी-अभी शांतिकुंज द्वारा अपलोड हुई वीडियो होगी। इस पावन दिवस पर हम पिछले कई वर्षों से इसी तरह की वीडियो अपलोड करते आ रहे हैं, हमारा सौभाग्य है कि शांतिकुंज द्वारा मॉडर्न टेक्नोलॉजी के साथ HD वीडियोस बन रही हैं और हम तक पहुँच रही हैं।
3.संजना बेटी ने आज अपने छोटे भाई शुभम के जन्म दिवस की फोटोज और जानकारी भेजी हैं। हम व्यक्तिगत और परिवार का सामूहिक शुभकामना देते हैं कि बेटे शुभम को परम पूज्य का आशीर्वाद और संरक्षण सदैव मिलता रहे।
4.आज ही स्नेहा बेटी की भी वैवाहिक वर्षगांठ है, बेटी और मिट्ठी/निर्झर के पापा को परिवार की और हमारी शुभकामना। बेटी स्नेहा ने बहुत सुन्दर शब्द लिखे थे लेकिन पर्सनल होने के कारण शेयर नहीं कर सकते।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का स्वर्ण पदक अरुण जी को जाता है। (1)चंद्रेश बहादुर-51,(2 ) रेणु श्रीवास्तव-26 ,(3 )सरविन्द कुमार-42 ,(4) संध्या कुमार-54 , (5 ) सुजाता उपाध्याय-24,(6 ) सुमन लता-25 ,(7 )अरुण वर्मा -63 ,(8 ) प्रेरणा कुमारी-25,(9 ) पिंकी पाल -29,(10 )विदुषी बंता-29,(11 ) मंजू मिश्रा-24, (12 )संजना कुमारी-25 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
