वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अपने सहकर्मियों की कलम से- सप्ताह का सबसे लोकप्रय सेगमेंट :विनीता पाल, मीरा देवी, योगेश शर्मा जी के योगदान  

https://drive.google.com/file/d/1iDmSsxKw3ACWYiVxHSYMbdWUkBWN8A1Z/view?usp=share_link ( Yogesh ji ki video) This was a drive link. it is not available now.

https://life2health.org/2023/05/12 (Yogesh ji ka 13 May wala lekh) https://life2health.org/2023/04/21 (Yogesh ji ka 22 April wala lekh) https://youtube.com/shorts/CmKr5qRV8zw?feature=share ( Leelapat ji ki Short) https://youtu.be/V_1AiXhHvQU (Prgya geet )

सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट “अपने सहकर्मियों की कलम से”  लेकर हम आपके समक्ष सम्पूर्ण नियमितता से प्रस्तुत हो चुके हैं, हर बार की भांति आज भी साथियों के योगदान आपको अवश्य प्रभावित एवं प्रेरित  करेंगें। 

आज का सेगमेंट आरम्भ  करने से पूर्व नियमितता पर बल देना बहुत ही आवश्यक है। प्रेरणा, संजना, स्नेहा, पिंकी- सभी बेटियां जिस नियमितता से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, हम आशा करते हैं कि उपासना,अनुराधा और बबली भी इनसे कुछ प्रेरणा लें और गुरुकार्य में योगदान देकर अपने जीवन को सफल बनाने की ओर अग्रसर हों।  हम तो केवल निवेदन ही कर सकते हैं, स्कूल के हेडमास्टर तो हैं नहीं कि absent होने पर जुर्माना कर दें। बहुत बार पहले भी लिख चुके हैं, आज फिर लिख रहे हैं कि “यह परिवार देने वाला परिवार है ,भिखारियों का जमावड़ा नहीं है।” अरुण वर्मा जी ने स्पेशल कमेंट करके लिखा है कि कमेंट पढ़कर आँखों में आंसू आ गए, यह कोई ड्रामेबाज़ी नहीं है, सही भावना है। हमें बेटियों के भविष्य की चिंता है इसलिए इतना आग्रह करते रहते हैं। 

योगेश जी के ज्ञानरथ के बारे में आप पहले जान चुके हैं आज वीडियो द्वारा हम आगरा चलेंगें। सरविन्द भाई साहिब की पत्नी मीरा देवी की सत्यकथा गुरुदेव के प्रति श्रद्धा को और दृढ़ करती है। पंडित लीलापत जी को श्रद्धांजलि देते हुए हम 55 सेकंड की Short शेयर  कर रहे हैं। योगेश जी के हमारी वेबसाइट लिंक्स भी दे रहे हैं। 

तो आइए चलते हैं आज की गुरुकुल पाठशाला की ओर।         

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1.विनीता पाल : 

विनीता पाल बहिन जी का आज जन्म दिवस है  और ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार  का प्रत्येक सहकर्मी बहिन जी को अपनी  शुभकामना प्रदान करता है। परम पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं कि बहिन जी को विवेकदान प्रदान करें क्योंकि जिसके पास यह अमूल्य सम्पति है उसके लिए कुछ भी संभव है। 

शब्द सीमा के कारण  पिछले सेगमेंट में बहिन जी के जो  विचार प्रकाशन से वंचित रह गए थे आज प्रकाशित कर रहे हैं जो निम्नलिखित हैं :  

मेरे जीवन में भी ऐसा ही  उतार चढाव का समय आया था।  सही राह दिखाने वाला कोई नहीं था, भटकाने  वाले बहुत लोग मिले, इतना तंग आ चुकी थी कि जीने की इच्छा ही  खत्म हो चुकी थी।  तब मैंने मां गायत्री  से ही प्रार्थना की, उन्होंने ही  मुझे सही मार्ग दिखाया।  मैं भटक गई थी, मां बाप ने बहुत  समझाया लेकिन सब दुश्मन लग रहे थे। अज्ञान थी, समझ नहीं थी।  मां गायत्री  ने ही मुझे  विवेक  का ज्ञान दिया।  पूजा पाठ  तो बचपन से ही करती थी लेकिन  किसी काम में सफल नहीं होती थी, संघर्ष भरा जीवन था, सफलता  कम मिलती थी।  अब मुझे ज्ञात हुआ कि शायद गुरु दीक्षा  नहीं ली शायद इसीलिए असफ़ल होती हूँ। मैं एक मसीही परिवार से हूँ, गुरु दीक्षा भी नहीं ले सकती लेकिन  तन मन से मैं उन्हें गुरु मान चुकी हूँ। अब गुरुदेव मेरे साथ हैं।  जय गुरुदेव, जय महाकाल।

2.सरविन्द जी की पत्नी श्रीमती मीरा देवी को जीवनदान मिला, एक सत्य घटना । 

सरविन्द जी बताते हैं कि जुलाई  2001 की बात है, धान की रोपाई चल रही थी l उस समय हम तीनों भाई एक साथ रहते थे।  पिता जी व बड़े भाई खेती का काम देखते थे और हम जरकला कानपुर में पशु चिकित्सा की तैयारी कर रहे थे।  पत्नी मीरा देवी घर में रहकर पिता जी के साथ खेती  में हाथ बँटाती थी। छोटा भाई गाँव में ही रहकर पढ़ाई कर रहा था l 

उस दिन मीरा देवी पशुओं के लिए खेतों से हरा चारा ला रही थी,सिर पर हरे चारे का गट्ठर था कि तभी खेत में घास के बीच पड़े बहुत बड़े काले साँप ने उसके ऊपर पैर पड़ जाने के कारण पैर की अंगुली में डस लिया। मीरा देवी ने समझा कि कोई लकड़ी लग गयी है, उसने परवाह नहीं की और गट्ठर लेकर घर आ गई।  तब तक शरीर में जहर संबंधी कोई हरकत नहीं हुई थी और वह पुनः दूसरा गट्ठर लेने खेत चली गयी। मीरा देवी ने उस स्थान को  देखा, जहाँ साँप ने डस लिया था। जिसे वह लकड़ी की एक मामूली खरोंच समझ रही थी, वहां  पहुँचने पर सच्चाई का पता चला कि वह लकड़ी नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा काला साँप था ।  मीरा देवी को  विश्वास हो गया  कि इसी ने हमें डस लिया है। समय व्यतीत होने के साथ शरीर में जहर का प्रवाह बढ़ने लगा। वह खेतों से दूसरा गट्ठर लेकर घर आ रही थी, तब तक शरीर में जहर का प्रभाव तेज़ी  से बढ़ चुका। मीरा देवी घर न पहुँच पायी, जहर चरम सीमा तक  पहुँच चुका था l हमारे घर के ठीक सामने प्रेमनारायण तिवारी जी का घर था, वह उनसे केवल यही बता पायी  कि हमें बहुत बड़े काले साँप ने डस लिया है, भइया जी आप हमारे घर वालों को  इसकी अविलंब सूचना देने की कृपा करें। मीरा देवी केवल इतना ही कह पायी और  बेहोश हो गई। जहर सारे शरीर में  फैल चुका था। यह बात पूरे गाँव में आग की तरह फैल गयी और गाँव के सभी लोग इकट्ठा हो गए।  मीरा देवी को कानपुर  ले जाने की तैयारी होने लगी। हमें  इस घटना की सूचना दी गई तो हमें बहुत दुःख  हुआ। हम कानपुर में अनेकों स्थानों पर  इंजेक्शन ढूंढने  गए लेकिन इंजेक्शन नहीं मिल पाया। 

थक हार कर हमने  परम पूज्य गुरुदेव का स्मरण किया कि हे गुरुवर इस विषम परिस्थिति में आप ही हमारी सहायता  कर सकते हैं। आप साक्षात महाकाल हैं और जिनके सिर पर  महाकाल का  हाथ होता है उसका कभी अमंगल नहीं हो सकता है l विश्वास के साथ की गई प्रार्थना को  परम पूज्य गुरुदेव ने सुन लिया और बिना बुलाए ही पड़ोस के गाँव से एक व्यक्ति परम पूज्य गुरुदेव का फ़रिश्ता  बनकर हमारे गाँव आ गया। उस समय गांवों में आवागमन के साधन का अभाव था। हमारे  गाँव से लगभग दो किलोमीटर दूर कानपुर जाने के लिए  बस का साधन था। वहाँ तक पहुँचाने के लिए मीरा देवी को मरणासन हालत में बैलगाड़ी में लिटा दिया गया था, तभी गुरुदेव का भेजा हुआ फ़रिश्ता आकर बैलगाड़ी के सामने खड़ा हो गया और कहने लगा कि अभी रुक जाओ और इस मरीज को हमें देखने दो। फ़रिश्ते ने कहा  हम एक जड़ी-बूटी देंगे लेकिन स्थिति गंभीर होने के कारण कुछ लोगों ने जड़ी-बूटी पर विश्वास न करते हुए आपत्ति जतायी, फिर भी  उस फ़रिश्ते  ने पूर्ण विश्वास के साथ कहा कि एक बार हमें इलाज करने का मौका तो दीजिए, अगर मरीज ठीक न हो तो हमें गोली से मार देना l जब इतने विश्वास के साथ फ़रिश्ते ने कहा तो उसे मौका दिया गया और उसने अपना इलाज करना शुरू किया।  बहुत ही जल्द लाभ मिलना शुरू हो गया, मीरा देवी को होश आने लगा, कुछ देर बाद वह ठीक हो गयी इसलिए  कानपुर ले जाना कैंसिल हो गया।  यह सब प्रक्रिया हुए लगभग एक घंटे हुए होंगे कि डाक्टर बलराम सिंह यादव, जो हमारे वरिष्ठ पशु चिकित्सक थे, की लैंडलाइन पर  सूचना आयी  कि अब आप बिल्कुल चिन्ता न करें परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से मीरा देवी  ठीक है l हम यह  सूचना पाकर बहुत खुश हुए  और परम पूज्य गुरुदेव को बहुत बहुत धन्यवाद किया, साथ ही परम पूज्य गुरुदेव के प्रति हमारा और विश्वास बढ़ गया कि परम पूज्य गुरुदेव सचमुच में हम सबके सुरक्षा कवच हैं जो हर बच्चे को किसी भी परिस्थिति से उबारने का काम करते हैं l  परम पूज्य गुरुदेव एक श्रेष्ठ व महान दिव्य आत्मा हैं और हमारा परम सौभाग्य है कि हम उनके संरक्षण में हैं l 

इस तरह परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से हमारी पत्नी मीरा देवी को जीवनदान मिला।  ऐसे प्रचण्ड तपस्वी व महान दिव्य आत्मा के श्री चरणों में नतमस्तक होकर शत-शत नमन वन्दन करते हैं l हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत अभिव्यक्ति व अनुभूति से सभी को  प्रेरणा व ऊर्जा मिलेगी और परम पूज्य गुरुदेव के प्रति  हमारा विश्वास बढ़ेगा l 

आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार अपने मन की बात को सार्वजनिक करने अतिउत्तम  प्लेटफार्म  है जिसमें सबकी भावनाओं का सम्मान किया जाता है और सुप्त पड़ी प्रतिभा जगायी जाती है। यह परिवार सम्मान करते हुए सबका स्वागत करता है लेकिन टिक  केवल वही व्यक्ति सकता है जिसका अंतःकरण पवित्र है और  श्रद्धा ,समर्पण और विश्वास से परिपूर्ण है। अगर आप चाहते हैं कि आपकी प्रतिभा/योग्यता से औरों को भी लाभ हो तो इस परिवार में आपको सादर निमंत्रण है। यह परिवार एक दानवीर की भांति  “देने की प्रवृति” का प्रचार कर रहा है न कि भिखारी की भांति लेने की।

3.योगेश जी का योगदान : 

आदरणीय लीलापत जी की पुण्यतिथि पर योगेश जी द्वारा  भेजी गयीं कुछ पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं जिनके लिए हम उनका  धन्यवाद् करते हैं : 

पंडित जी ने अपने समय मे 15 पैसे तक की बुक छापी थी, कहते थे कि कुछ तो पढ़, आत्मा भूखी बैठी है। आत्मा का भोजन सद्साहित्य  है, अरुण भाई साहिब भी आत्मा को भोजन करा रहे है। आज अमावस्या है, आज भोजन का बहुत महत्व है, आप आत्मा को भोजन करा रहे है बहुत बहुत बधाई धन्यवाद   प्रणाम प्रणाम प्रणाम।

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पंडित जी जैसी महान आत्मा के बारे में कुछ लिख पाने के लिए हमारी ( अरुण त्रिखा) पात्रता ही कहाँ  है।  फेसबुक का धन्यवाद् जिन्होंने हमारी रिसर्च  को मेमोरी में remind कराया और हम फिर से वही पंक्तियाँ लिख रहे हैं जो पिछले कई वर्षों से लिख रहे हैं।  

परम् पूज्य गुरुदेव  के पुत्र पंडित  लीलापत शर्मा जी की पुण्यतिथि  पर भावभरी श्रद्धांजलि। पंडित जी  गुरुदेव के एकमात्र शिष्य थे जिनके बारे में उन्होंने “पत्र पाथेय” पुस्तक में अनेकों पत्र लिखे थे।   

30 सितम्बर 1961 के पत्र में गुरुदेव लिखते हैं : 10 वर्ष अभी इधर रहना और है। इस अवधि में आपको उसी  स्तर पर पहुंचा देने का हमारा विचार है जिस पर आज हम स्वयं हैं। आपका  यह जीवन पूर्णतया सफल और सार्थक हो, ऐसी हमारी आंतरिक कामना है।

30 जुलाई 1964 के पत्र में गुरुदेव लिखते हैं : युग निर्माण के लिए आप हनुमान की तरह जो कार्य कर रहे हैं उससे हमें बड़ा संतोष है।  आप जैसी लगन के 100 व्यक्ति भी देश में हों  तो बहुत बड़ा कार्य हो सकता है।

13 अप्रैल1965 के पत्र में गुरुदेव लिखते हैं :  एक शरीर की दो आंखों की तरह हम लोग परस्पर प्रत्येक दृष्टि से आपस में जुड़े हुए हैं।

11 सितम्बर 1966 के पत्र में गुरुदेव लिखते हैं :  5 वर्ष बाद हमारे जाने से पूर्व आप उधर से निश्चिंत हो लें हमारा स्थान आपको संभालना है। 

14अक्टूबर1966 को गुरुदेव लिखते हैं :  हम अपना स्थान खाली कर रहे हैं उसकी पूर्ति आपको करनी हैं।

पंडित जी ने गुरुदेव के इस विश्वास को ईमानदारी से  2002 तक कायम रखा। इस  दिव्य देवआत्मा को हम सब नमन वंदन करते हैं। 

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आज  की  24 आहुति संकल्प सूची  में 12   युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का  स्वर्ण पदक संध्या जी को जाता है । बहुत बहुत बधाई संध्या जी।  

(1)संध्या कुमार-40 ,(2 )चंद्रेश बहादुर-31,(3) रेणु श्रीवास्तव-36,(4) सुमन लता-24,(5) अरुण वर्मा-32,(6) सरविन्द कुमार-27, (7)वंदना कुमार-33,(8  )सुजाता उपाध्याय-26,(9 ) स्नेहा गुप्ता -24, (10 ) प्रेरणा कुमारी-24,(11 ) पिंकी पाल-24,(12 ) पूनम कुमारी-25                            

सभी को हमारी  व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  


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