वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

धर्म और फिलॉसफी के शाश्वत स्वरूप को समझने के लिए ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर की रचना की गयी थी। 

28  मार्च 2023 का ज्ञानप्रसाद

सप्ताह का दूसरा दिन, सम्पूर्ण जगत के मंगल की कामना करता मंगलवार और समय है  ब्रह्मवेला। यह समय है  दिव्य ज्ञानप्रसाद के  वितरण का शुभ समय , ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों की चेतना के  जागरण का समय।  सभी संयोग एक ही ओर  इशारा कर रहे हैं कि आइए हम सब इक्क्ठे होकर, एक परिवार की भांति परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी के श्रीचरणों में बैठ कर आज के  दिव्य ज्ञानामृत  का पयपान करें, प्रज्ञागीत गाते-गाते सत्संग करें,अपने जीवन को उज्जवल बनाए, दिन का शुभारंभ सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा  से करें। दिव्य  ज्ञानपान से अपनी  एवं  सृष्टि के सभी प्राणियों की मंगल कामना करते हुए विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें। 

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”

अखंड ज्योति के अगस्त 1996 अंक  पर आधारित लेख शृंखला में ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर का यह दूसरा लेख है। यह स्पेशल अंक युगतीर्थ शांतिकुंज की रजत जयंती को समर्पित है।  56 पन्नों के इस “रजत जयंती स्पेशल” अंक के एक-एक पन्ने पर, एक-एक लाइन में ऐसे तथ्यों का वर्णन है जिनको जानने के लिए शायद कितनी ही पुस्तकों का अध्ययन करना पड़े। इतने परिश्रम से तैयार किये गए इस दुर्लभ अंक के समक्ष हमारा शीश स्वयं ही झुक जाता है।

कल वाले  लेख में  ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर की बैकग्राउंड प्रकाशित की गयी थी और  उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम  गणपतराव देवजी  तपासे के शब्द आज के लेख के लिए सुरक्षित कर लिए थे। आज हम उनके  शब्दों को तो सुनेगें  ही, उनके साथ ही इस रिसर्च सेंटर के बारे में  महत्वपूर्ण जानकारी भी देने का प्रयास है। चित्रों के माध्यम से हम आपको इस दिव्य शोध केंद्र की यात्रा तो करायेंगें ही लेकिन  गुरुदेव की देख रेख में प्रतिष्ठित की गयी गायत्री माता की 14 मूर्तियों के दर्शन अति विशिष्ट हैं। हमनें तो 14 फोटो ही लिए थे लेकिन symmetry कायम रखने के लिए 12 ही शामिल किये हैं। पाठक इन मूर्तियों  के दर्शन ब्रह्मवर्चस के बरामदे में कर सकते हैं। 

तो आइए सुने राज्यपाल तपासे क्या कह रहे हैं :       

“शांतिकुंज ने आज एक नए आयाम को उद्घाटित किया है। विश्व ने अभी तक “वैज्ञानिक भौतिकवाद” (scientific materialism ) को देखा है। विज्ञान अभी तक पदार्थ विज्ञान बना हुआ है। रिसर्च तो बहुत हुई है लेकिन यह रिसर्च केवल पदार्थ की ही रिसर्च है जिसमें किसी वस्तु को  लेकर प्रयोगशाला में टेस्ट किया जाता रहा है, नई वस्तुएं बनाई जाती रही हैं। इस रिसर्च में कुछ ऐसी वस्तुओं का भी आविष्कार किया गया जिनसे विनाश के सरंजाम भी जुटाए गए हैं ।“मानव चेतना” की रिसर्च करना अभी बाकी है। यह एक बहुत ही बड़ा और विस्तृत विषय  है। इस विषय को  समझने के लिए उचित बैकग्राउंड भी चाहिए। अभी तक  मानव प्रकृति( Human nature)  के रहस्यों की खोज-बीन नहीं की गई, शायद इसलिए कि यह कार्य फिजिकल साइंस की सीमा से बाहर है। फिजिकल साइंस ऐसी रिसर्च करने में सक्षम नहीं है क्योंकि यह रिसर्च मानवी चेतना ,मानवी शरीर पर करनी होगी। इसे संपन्न करने के लिए साधकों को आध्यात्मिकता अपनानी होगी और अध्यात्म को विज्ञान सम्मत  होना पडेगा। काम तो लगभग असंभव सा ही है लेकिन आचार्य जी के प्रयासों से यह असम्भव कार्य सम्भव हो रहा है। 

आज  वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के रूप में  ज्ञान की बिल्कुल ही नवीन धारा अवतरित हो रही है। चेतना का विज्ञान अपना रूप धारण कर रहा है। इस नवीन धारा का अवतरण गंगा अवतरण से किसी भाँतिभी  कम नहीं है। कई युग  पूर्व भगीरथ के कठोर श्रम और दुष्कर तपस्या से आज ही  के दिन गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस गंगा अवतरण ने छटपटाते हुए  मानव जीवन को शीतलता प्रदान की थी। उसी तरह की  छटपटाहट आज भी है, शायद उस से भी अधिक, लेकिन  यह छटपटाहट  “मानसिक और बौद्धिक” है। इस छटपटाहट का  समाधान “जल की धारा” के अवतरण से  नहीं बल्कि  “ज्ञान की धारा” के अवतरण से संभव होना है। आधुनिक  युग के ऋषि (युगऋषि) आचार्य जी ने विश्वामित्र और भगीरथ की तरह वही किया है”

श्री तपासे ने अपने भाषण में जिस छटपटाहट का जिक्र किया उसे आज हम सब भी  अपने चारों ओर देख सकते हैं। ऐसा नहीं है कि इसके समाधान के लिए प्रयत्न नहीं किये गए, समस्याओं और विपत्तियों के निवारण में मूर्धन्य प्रतिभाएँ जुटी हैं। अनेकानेक उपाय-उपचार भी हो रहे हैं। पर जितना जोड़ते हैं उससे अधिक टूटने का दुर्भाग्य ही पल्ले पड़ता है। शान्ति के समाधान आज निकलें या हज़ार वर्ष  बाद, उनका स्वरूप एक ही होगा कि जनमानस पर छाए हुए आस्था संकट का निराकरण किया जाए। इस निराकरण के दो ही उपाय हैं- चिन्तन में अध्यात्म, तत्वज्ञान का और व्यवहार में धर्म-धारणा का समावेश। इस प्रयास को जब तक नकारा जाता रहेगा, तब तक उज्ज्वल भविष्य की आशा, मृगतृष्णा ही बनी रहेगी। धर्म और अध्यात्म की पुनः स्थापना   के मार्ग में दो बाधाएँ ही इन दिनों प्रमुख हैं। इन दो मोर्चों पर जूझा जा सके तो ही आगे बढ़ने का रास्ता प्रशस्त होगा अन्यथा अवरोधों (speed breaker)  की चट्टानें रास्ता रोक कर खड़ी ही रहेंगी। इन्हें कैसे हटाया जाय? इस प्रश्न का उत्तर एक ही है कि दोनों ही क्षेत्रों की भ्रान्तियों का निराकरण करने के लिए समर्थ तंत्र खड़ा किया जाय। फिलॉसफी   का उत्तर फिलॉसफी  से, तर्क का उत्तर तर्क से और विज्ञान का उत्तर विज्ञान से दिया जाय । 

धर्म और अध्यात्म को समझने के लिए एक  ऐसे शोध संस्थान की आवश्यकता है जो धर्म और फिलॉसफी के शाश्वत स्वरूप को प्रस्तुत कर सके और उस स्वरुप की उपयोगिता एवं प्रामाणिकता पर पुनर्विचार के लिए विवश कर सके। 

आधुनिक युग में नास्तिकवाद का पक्ष प्रबल  हुआ है और अनास्थावादी आचरणों ने इतना ज़ोर पकड़ा है कि कुछ ठोस कदम अवश्य ही उठाने चाहिए। हमने प्रतक्ष्यवाद पर कई full  length लेख लिखे हैं जो हमारी  वेबसाइट/ ब्लॉग पर उपलब्ध हैं। प्रतक्ष्यवाद ने अध्यात्मवाद के रास्ते में वह  रोड़ा अटकाया हुआ है कि अगर इन दोनों विरोधी क्षेत्रों को समझने के लिए  कुछ न किया गया तो अध्यात्म को अंधविश्वास समझकर लोग इससे दूर भागते जायेंगें। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक सदस्य का यह परम कर्तव्य है कि धर्म और विज्ञान को जितना भी समझ सकें, समझने का प्रयास करें  और स्वयं समझने के बाद औरों को भी समझाने का प्रयास करें।  किसी विषय को समझकर प्रैक्टिस की जाए तो  उस ज्ञान  लाभ अनेकों गुना  होता है। परम पूज्य गुरुदेव ने  ऐसी ही  स्थिति को बहुत ही बारीकी से देखा  और निर्णय लिया कि  ऐसा अनुसंधान तंत्र (रिसर्च सेंटर) खड़ा होना चाहिए जो प्रत्यक्षवाद  को चुनौती दे सके और उस क्षेत्र में छाए हुए संदेह और शंकाओं को परास्त कर सके। 

परम पूज्य गुरुदेव अखण्ड ज्योति के माध्यम से इस तरह के प्रयास कई वर्षों से  कर रहे थे। सन् 1965 में वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर विशेष लेख मालाएँ भी प्रकाशित हुई थीं  लेकिन 1971 की  हिमालय यात्रा के समय तक उनके चिन्तन में यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि  प्रतक्ष्यवाद के साथ युद्ध करने के लिए केवल  लेख प्रकाशन  पर्याप्त नहीं। इसके लिए रिसर्च  का दृश्यमान रूप खड़ा करना होगा, शोध का समर्थ तंत्र विकसित करना होगा। शोध संस्थान का स्वरूप कैसा हो, शोध अन्वेषण के सूत्र कैसे  हों ? आदि ,आदि। गुरुदेव ने इन प्रश्नों के उत्तर अपनी तप साधना के समय खोजे। निम्लिखित पंक्तियाँ गुरुदेव के ही शब्द हैं :  

हमारी भावी तपश्चर्या का दूसरा प्रयोजन आध्यात्मिकता के विज्ञान पक्ष को मृत, लुप्त तथा विस्मृत, दुःखद परिस्थितियों में से निकालकर ऐसी  स्थिति में लाना है जिसके  प्रभाव और उपयोग का लाभ जनसाधारण को मिल सके। जनसाधारण को भौतिक विज्ञान (Physical science)  का लाभ मिल सका, इस लाभ का प्रभाव यह हुआ कि आज हर कोई  विज्ञान सम्मत बातों को ही सच माना जाता है। जो बातें विज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं  उन्हें एकदम मिथ्या घोषित कर दिया जाता है। इसी उलझी हुई स्थिति में हमें आस्तिकता, धार्मिकता तथा आध्यात्मिकता की मान्यताओं को विज्ञान के आधार पर सही सिद्ध करने का प्रयत्न करना पड़ रहा है। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की सहायता से हमें एक नई दिशा का निर्माण करना पड़ रहा है, एक ऐसी दिशा जो जनसाधारण को हमारे द्वारा आरम्भ किये गए कार्यों को समझने और आगे ले जाने में सहयोगी सिद्ध हो।

इक्क्सवीं सदी में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि अनेकों उपलब्ध sources से यज्ञोपैथी, मंत्रविद्या आदि विषयों को समझना बहुत ही सरल हो गया है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय की अनुभवी एवं काबिल faculty ने कितने ही जटिल विषयों को न केवल समझने में सफलता प्राप्त की है बल्कि अनेकों को मार्गदर्शन भी प्रदान किया है। हम पाठकों से प्रार्थना करते हैं कि देव संस्कृति यूनिवर्सिटी की वेबसाइट को विजिट करके रिसर्च tab को क्लिक करें और स्वयं ही जानने का प्रयास करें कि 1979 में ब्रह्मवर्चस रिसर्च सेंटर से आरम्भ हुई शोध प्रणाली आज 2023 में किन शिखरों को छू रही है। 

अखंड ज्योति पत्रिका के प्रत्येक अंक में “ब्रह्मवर्चस- देव संस्कृति शोध सार एवं विश्व विद्यालय परिसर से” शीर्षक से अनेकों रोचक लेख प्रस्तुत हो चुके हैं। हमारा विश्वास है कि पूरे-पूरे  रिसर्च  पेपर पढ़ना और समझना शायद जनसाधारण के लिए कठिन हो लेकिन इस तरह के  शोध सार ( summary ) बहुत ही लोकप्रिय और रोचक हैं। आशा करते हैं कि हमारे सहयोगी ज्ञानप्रसाद लेखों की भांति इन लेखों में भी रूचि दिखाएंगें। कभी समय आने पर हम भी इस अति जटिल विषय को समझकर कर, सरल करके,common-man भाषा में आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगें। 

हम एक दिन जुलाई 2021का अखंड ज्योति अंक देख रहे थे तो श्रद्धेय कुलाधिपति डॉ प्रणव पंड्या जी के संरक्षण और डॉ वंदना श्रीवास्तव जी की guidance में researcher डॉ अजय गुप्ता द्वारा पुरातन भारत में सर्जरी और वेदों  पर की गयी  रिसर्च ने  हमारा मन मोह लिया था। इस रिसर्च के लिए  Department of Oriental Studies की जितनी प्रशंसा की जाए कम  है।

हमें खेद है कि  हमें इन लेखों का समापन  abruptly करना पड़ रहा है। ऐसा करने का  कारण  शब्द सीमा तो है ही लेकिन विषय भी बहुत काम्प्लेक्स है, उसे थोड़ा-थोड़ा ही प्रकाशित करना उचित है ताकि पाठक ध्यान से पढ़कर-समझकर ही कमेंट करें। आखिर जल्दी किस बात की है ?

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तो आज के लेख का समापन करते हैं लेकिन उससे पहले संकल्प सूची; सूची सिकुड़ तो रही है लेकिन कारण हम सब जानते हैं, आखिर परिवारजन जो हैं।    

आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 5   सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है, सरविन्द  जी आज फिर  गोल्ड मेडलिस्ट हैं, उन्हें बहुत बहुत बधाई।   

(1) सरविन्द कुमार-36,(2 )संध्या कुमार-24 ,(3) वंदना कुमार-27,(4)चंद्रेश बहादुर-26, ,(8 )रेणु श्रीवास्तव-27  सभी विजेताओं को हमारी  व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।


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