21 फ़रवरी 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज का दिव्य ज्ञानप्रसाद उसी वीडियो से साथ सम्बंधित है जो हमने अभी पिछले शुक्रवार को ही रिलीज़ की थी। 8 अक्टूबर 2000 को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित हुए विराट विभूति ज्ञानयज्ञ की इस वीडियो को रिलीज़ करने के साथ ही हमने एक विस्तृत Description भी लिखी थी जिसने हम सभी को इतना प्रेरित किया कि जितने व्यूज इस वीडियो को 12 वर्ष में मिले थे उससे अधिक 24 घण्टों में मिल गए और अभी भी मिल रहे हैं। इसका श्रेय उन सभी समर्पित प्रज्ञापुत्रों और पुत्रियों को जाता है जो अपनी आँख दिव्य ज्ञानप्रसाद से खोलते हैं और शुभरात्रि सन्देश के साथ मधुर स्वप्नों की गोद में जाते हैं ,इतना ही नहीं, सारा दिन जैसे-जैसे समय मिलता जाता है अपनी सक्रियता का प्रमाण देते रहते हैं। नमन है ऐसे परिवारजनों को।
जब इस वीडियो को रिलीज़ किया था उसी समय हमारी रिसर्च से स्वर्गीय देवेंद्र स्वरुप जी द्वारा लिखित 208 पन्नों की पुस्तक “संस्कृति एक: नाम-रूप अनेक” मिली। उसी दिन से हमने इस पुस्तक को खंगालने का कार्य आरम्भ कर दिया। हालाँकि यह पुस्तक Amazon आदि ऑनलाइन स्टोर्स पर उपलब्ध है, इसकी पीडीऍफ़ कॉपी कहीं भी न मिल सकी। जिन पन्नों ने हमारी अंतरात्मा में चिंगारी फूंकी थी उन तक कैसे पहुंचा जाए,हमने प्रयास जारी रखा, गुरुदेव मार्गदर्शन देते रहे, नमन करते हैं पूज्यवर को जो इस नाचीज़ को ऊँगली पकड़ कर एक-एक कदम चला रहे हैं।
जो जानकारी हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं साप्ताहिक समाचार पत्र पान्चजन्य में 13 अक्टूबर 2000 को ही प्रकाशित हो गयी थी लेकिन इस पुस्तक के preview में ही उपलब्ध है। इससे अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए पुस्तक खरीदने के इलावा कोई विकल्प नहीं है। Preview में भी जितने थोड़े से पन्नें उपलब्ध हैं,सभी पर Copyright material की स्टैम्प लगी है। हालाँकि copyrighted मटेरियल प्रकाशक की अनुमति के बिना शेयर नहीं कर सकते लेकिन यह प्रतिबंध उस स्थिति में होता है जब कोई मनुष्य व्यक्तिगत वित्तीय लाभ के लिए प्रयोग कर रहा है। यह दोनों ही स्थितियां ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में प्रयोग नहीं हो रहीं, हमारे सभी प्रयास केवल व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए ही तो हैं। प्रकाशक को पूर्ण स्वतंत्रता है कि अगर किसी भी समय कोई भी violation का आभास को हम उसकी पालना करने को वचनवद्ध हैं।
तो आप साथ में दी गयी pdf में आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें लेकिन साथ-साथ में प्रज्ञागीत सुनना न भूलें। समापन तो 24 आहुति के साथ ही होगा।
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है, सरविन्द पाल जी सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1) अरुण वर्मा-29(2)सरविन्द कुमार-45,(3)सुमन लता-24,(4 ) वंदना कुमार-25,(5 ) पूनम कुमारी-24,(6 ) सुजाता उपाध्याय-31,(7)विदुषी बंता-25,(8) चंद्रेश बहादुर-30, (9) रेणु श्रीवास्तव-30,(10) संध्या कुमार-32
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव
गायत्री परिवार का विराट विभूति ज्ञानयज्ञ :
“यदि मैं वहाँ नहीं गया होता और केवल समाचार-पत्रों पर निर्भर रह जाता तो मैं जान ही नहीं पाता कि ऐसा अद्भुत विराट् दृश्य मैंने अपनी आँखों से देखा था।” यह शब्द आदरणीय लाल कृष्ण आडवाणी जी के हैं जो उन्होंने आज से 23 वर्ष पूर्व विराट विभूति ज्ञानयज्ञ के बारे में कहे थे। उस समय आडवाणी जी राष्ट्र के गृह मंत्री थे।
8 अक्तूबर, 2000 की सायं, राजधानी दिल्ली का विशालतम जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम। Circular बैठने की व्यवस्था । ऊपर गैलरियाँ, जिनमें बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं । 56 प्रवेश द्वार हैं। उनके नीचे चारों ओर कुर्सियाँ लगी हैं, जिनके लिए 10 प्रवेश द्वार हैं। कुल मिलाकर 90000 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था है, किंतु इस circle के बीच विशाल क्रीड़ांगण है, जिसके बीचो-बीच एक मंच बना है, जहाँ से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रक्षेपण किया जा रहा है । वहाँ कलाकारों का जमघट है। पूरे क्रीड़ांगण में पीली साड़ी धारण किए सैंकड़ों साध्वियाँ व्यवस्था के साथ बैठी हुई हैं। उनके सामने दीप रखे हुए हैं। कार्यक्रम का समापन दीप यज्ञ के साथ होने वाला है । वह क्षण आते ही ये साधिकाएँ 24000 दीपों को प्रज्ज्वलित करके अन्धकार की छाती को प्रकाश से जगमगा देंगी। हजारों कार्यकर्ता व्यवस्था में लगे हुए हैं। यहाँ आनेवाले प्रत्येक सहभागी को पता है कि उसे किस प्रवेश द्वार से घुसना है, उसके बैठने का स्थान कहाँ है । कार्यक्रम प्रारंभ होते-होते प्रत्येक स्थान भर गया है। इस क्रीड़ांगण का परिसर इतना विशाल है कि चारों ओर केवल नरमुंड दिखाई देते हैं, छोटी-छोटी बूँदों की तरह। उन्हें अलग- अलग पहचान सकना कठिन है।
मंच से उद्घोष हुआ कि इस विराट् विभूति ज्ञान यज्ञ में एक लाख परिजन और अतिथि भाग ले रहे हैं । वे पूरे भारत से आए हैं। कोई बस से, कोई ट्रेन से, कोई कार से, कोई स्कूटर या मोटरसाइकिल से। स्टेडियम के बाहर चारों ओर सैकड़ों सैकड़ों बसों का जमघट है। कार पार्किंग के लिए जगह मिलना कठिन है। हम एक दिशा में गए, दूर तक जगह नहीं मिली, वापस लौटे, फिर काफी दूर जाकर गाड़ी पार्क कर पाए। एक अजीब सी अनजानी श्रद्धा प्रत्येक को वहाँ खींचकर लाई है ।
क्या नाप सकेंगे उस श्रद्धा की गहराई को, जो तीन युवकों को हजारों मील दूर उड़ीसा से साइकिल पर दिल्ली खींच लाई और बड़ौदा के वे चार परिजन जो ट्रेन से आए पर हृदयहीन दिल्ली के बस वालों ने उन्हें रास्ता भटका दिया, किंतु उनके चेहरों पर शिकायत नहीं थी, थकावट नहीं थी । कार्यक्रम में पहुँचने का उत्साह था । वह युवक, जो हमसे अगली पंक्ति में बैठा था, आंध्र से आया था। उसका परिचय पत्र बता रहा था कि वह सेना का जवान है। गायत्री परिवार का पीला वेश धारण किए उस जवान की आँखों से श्रद्धा और स्नेह छलक रहा था । हमारे साथ बैठे बच्चों को भूख से परेशान देख उसने तुरंत अपने झोले में से अपना भोजन निकाल उन्हें पकड़ा दिया, बिना इस बात की चिंता किए कि साढ़े चार घंटे लंबा यह कार्यक्रम रात्रि 8:30 बजे समाप्त होगा और तब उसकी भूख का क्या होगा। सही अर्थों में पीले वस्त्र धारण कर सात्विकता और श्रद्धा ही वहाँ सब ओर पसर गई थी ।
युग संधि की बेला
अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा आयोजित इस विराट विभूति ज्ञानयज्ञ में भारत के बाहर विदेशों से भी साधक आए थे। मंच से बताया गया कि 81 देशों में गायत्री परिवार का कार्य चल रहा है । अमरीका के चार नगरों-लॉस एंजिल्स, सान फ्रांसिस्को, शिकागो और ड्रेटायट में गत वर्ष मुझे स्वयं गायत्री परिवार के अस्तित्व के दर्शन हुए थे। इसलिए यह आयोजन केवल राष्ट्रीय ही नहीं वैश्विक भी था । गायत्री परिवार की आस्था है कि सन् 2011 में सतयुग फिर वापस आएगा। आज जो तमोगुणी अँधेरा हमें घेरे हुए है, वह छँट जाएगा। आज सब कुछ उलट गया है, इस उलटे को फिर से उलटाकर सीधा करने के महत्त्कार्य में लाखों-करोड़ों आस्थावान अंत:करणों को जुटना होगा, लेकिन 2011 में ही सतयुग क्यों आएगा, उनका कहना है कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि रामकृष्ण परमहंस के जन्म वर्ष सन् 1836 से युग परिवर्तन का क्रम प्रारंभ हो गया और योगी अरविंद का कहना था कि तब से 175 वर्ष का समय युगसंधि का काल है। दोनों का योग हमें 2011 में पहुँचा देता है, पर गायत्री परिवार के लिए 2011 का वास्तविक महत्त्व है कि वही वर्ष गायत्री परिवार के प्रणेता गुरुदेव पं. श्रीराम आचार्य का जन्म शताब्दी वर्ष भी है। गुरुदेव ने 1926 में पहली बार अखंड दीप प्रज्ज्वलित किया था, जून 1971 में उन्होंने पुण्यतीर्थ हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की थी, उन्होंने गायत्री मंत्र में मानवता की मुक्ति का सूत्र पाया और उस मंत्र को दसों दिशाओं में करोड़ों-करोड़ों मुखों से गुँजाने का संकल्प लिया।
मंच से बताया गया कि इस समय 6 करोड़ अंतःकरण गायत्री परिवार से जुड़ चुके हैं। अगले माह 7 से 11 नवंबर 2000 को हरिद्वार में सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ में हरिद्वार में 2 करोड़ श्रद्धालुओं का अभूतपूर्व समागम होने वाला है । इसके लिए अभी से हरिद्वार के दोनों ओर ऋषिकेश से रुड़की तक 48 अस्थायी नगरों का निर्माण कार्य आरंभ हो चुका है।
इस बाहरी विराटता की तह में एक छिपा हुआ जीवन दर्शन है, एक दिव्य स्वप्न है और उस स्वप्न को साकार करने के लिए एक बहुचरणीय बहुमुखी कार्ययोजना है । गायत्री परिवार के वर्तमान प्रमुख संचालक डॉ. प्रणव पांड्या इस कार्यक्रम को सात शीर्षकों या आंदोलनों का रूप देते हैं ।
सात शीर्षक या आंदोलन:
1.सर्वप्रथम है साधना अर्थात् व्यक्तित्व परिष्कार की जीवन साधना । इसके लिए समय, अर्थ, इंद्रिय और विचार में संयम का पालन करते हुए श्रेष्ठ विचारों का स्वाध्याय और श्रेष्ठ गुणों का व्यवहार दैनिक जीवन में संकल्पपूर्वक करना। इसमें उपासना पद्धति से अधिक महत्त्व आध्यात्मिक चेतना के जागरण का है । गायत्री परिवार का नारा है, ‘हम बदलेंगे, युग बदलेगा’ अर्थात् पहले स्वयं को बदलो, चरित्र की साधना करो।
2.दूसरा आंदोलन है सुसंस्कारी आत्मावलंबी शिक्षा का प्रसार । अध्यात्म चेतना से अनुप्राणित शिक्षकों का निर्माण।
3.तीसरा आंदोलन है स्वास्थ्य – शिक्षा : : संतुलित आहार-विहार, योग-व्यायाम, प्राणायाम, शुद्ध सात्विक स्वच्छ प्रकृति के अनुकूल जीवन का विकास।
4.चौथा है आर्थिक स्वावलंबन | इसके लिए ग्राम केंद्रित कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था की स्थापना । गाँव की ओर वापस लौटने का संकल्प। बहुराष्ट्रीयकरण का उन्मूलन और स्वदेशी कुटीर उद्योगों का पुनरुज्जीवन।
5.पाँचवाँ आंदोलन है पर्यावरण रक्षा का, जिसके लिए हरीतिमा संवर्द्धन और कचरे के विसर्जन का संकल्प हृदय – हृदय में जगाना होगा।
6.छठा आंदोलन है नारी जागरण का । संस्कारवान धर्मनिष्ठ महिलाओं को लोक शिक्षण और परिवार संवर्द्धन की भूमिका सौंपना।
7.सातवाँ आंदोलन है नई पीढ़ी को दुर्व्यसनों से मुक्त कराना। उन्हें संकल्प देना कि स्वयं को ‘व्यसनों से बचाएँ’, ‘सृजन में लगाएँ’ इसके साथ ही प्रगति के मार्ग में बाधक बने ढेरों विकृत रीति-रिवाजों, कुरीतियों, मूढ़ मान्यताओं से समाज को छुटकारा दिलाना।
प्रतिभावानों की फौज
इन सातों आंदोलनों को गति देने के लिए प्रतिभावान, क्षमतावान, संवेदनशील अंतःकरणों की बड़ी फौज चाहिए। सतयुग के पुनः आगमन के लिए प्रतिभाओं को अपनी मानवीय संवेदनाओं को जगाना होगा। ऐसे प्रतिभासंपन्नों को अपने राष्ट्रीय और मानवीय कर्तव्यों का बोध कराने के लिए ही यह विराट् आयोजन किया गया।
इस कार्य में गायत्री परिवार अकेला नहीं है । मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने अपने व्यक्तिगत अनुभव से ऐसे अनेक विराट् प्रयासों का परिचय मंच से दिया । स्वाध्याय प्रवाह, स्वामीनारायण पंथ, सत्य साईं बाबा, शृंगेरी और कोच्चि के शंकराचार्य मठ, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, महर्षि महेश योगी, आर्यसमाज, राधास्वामी मत, निरंकारी और भी अन्य अनेक प्रयास इस एक ही दिशा में कार्य कर रहे हैं। उन सभी के माध्यम से विराट जागरण हो रहा है, आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह बह रहा है। ये सब प्रयास एक-दूसरे के पूरक हैं । सब नैतिक क्रांति के स्रोत हैं। सब भगवतकार्य में लगे हैं । राष्ट्र के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने ठीक ही कहा कि नैतिक क्रांति का सृजन राजनीति से नहीं हो सकता, वह आध्यात्मिक साधना से ही हो सकता है। इस विराट् आध्यात्मिक अनुष्ठान को देखकर वे गद्गद हो गए। उन्होंने स्वीकार किया कि यदि मैं यहाँ आकर अपनी आँखों में इस दृश्य को नहीं देखता तो मैं विश्वास नहीं कर पाता कि गायत्री परिवार राष्ट्र निर्माण की दिशा में कितना मूलभूत महत्त्कार्य कर रहा है। उन्होंने माना कि राजनीति के बाहर जो चरित्र निर्माण का, सांस्कृतिक जागरण का, आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रसारण का महाप्रयास चल रहा है, वही भारत राष्ट्र को विश्व का मार्गदर्शन करने की क्षमता व योग्यता प्रदान करेगा।
इस विराट विभूति ज्ञानयज्ञ में अपनी-अपनी विभूति को राष्ट्र और मानवता की सेवा में समर्पित करने का संकल्प दोहराया गया। पूरा वातावरण भारतमाता की जय के नारों से गूँज रहा था। भारत के सांस्कृतिक अतीत के आलोक में उसके उज्ज्वल भविष्य का विश्वास जगा रहा था । 24000 दीपों के प्रज्ज्वलन से जगमगाती अंधकार में जब महाकाल की स्तुति हुई तो अंत:करण को दिव्य चेतना ने झंकृत कर दिया । उन क्षणों की अनुभूति को, स्पंदन को शब्दों में बाँध पाना कठिन ही है ।
इस कार्यक्रम को देखकर यह आशावाद जगा कि राष्ट्र- जागरण और मानव-उद्धार के वास्तविक प्रयास प्रचार माध्यमों की दुनिया से बाहर हो रहे हैं । प्रचार माध्यम गंदगी फैला रहे हैं तो संतजन सात्विकता का गंगाजल छिड़क रहे हैं किंतु अपनी अपूर्णताओं के बावजूद वे समाज में जिन आदर्शों व मान्यताओं के प्रति श्रद्धा जगाते हैं, वे व्यक्ति को ऊपर उठाने के साथ-साथ राष्ट्र और मानवता के लिए कल्याणकारी हैं।
(पाञ्चजन्य, 13 अक्तूबर, 2000 )
