वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला  का 12वां अंक- पुष्पा सिंह जी  का योगदान। 

15  फ़रवरी  2023  का ज्ञानप्रसाद

आज शब्द सीमा कुछ कहने की अनुमति दे रही है इसलिए तीन महत्वपूर्ण बातें करने की आज्ञा चाहते हैं।  

1.सबसे पहले बात करते हैं पुष्पा सिंह जी द्वारा प्रस्तुत आज की अनुभूति के बारे में। बहिन जी द्वारा गुरुदेव के स्थूल शरीर  में दर्शन करने और फिर वापिस सूक्ष्म में चले जाना एक बहुत ही उच्स्तरीय साधना और पात्रता के बाद ही संभव हो सकता है। हम बहिन जी की निष्ठा और विश्वास को नमन करते हैं। जब बहिन जी ने यह अनुभूति हमें भेजी तो हमने उन्हें लिखा कि  “स्थूल शरीर के त्यागने के बाद गुरुदेव सशरीर आये” इस विषय पर  कुछ चर्चा की जाए तो पाठकों को बहुत लाभ हो सकता है। आपके सहयोग से प्रतक्ष्यवाद के इस युग में तरह-तरह की शंकाओं का समाधान हो सकता  है। किसी और की बात क्यों करें, 50 वर्ष पूर्व जब हमारी अपनी स्वर्गीय आदरणीय बहिन छाया  जी  गुरुदेव को साक्षात् देखने की बात करती थीं तो हम मज़ाक उड़ाते थे, गुरुदेव तो शांतिकुंज में थे लेकिन उन्हें कभी सपनों में,कभी सड़क पर और कभी कहीं भी दिख जाते थे। उनकी आस्था को हम सदैव नमन करते रहेंगें । यह हम  इसलिए कह रहे हैं कि उस स्तर की साधक को ऐसा अनुभव हो सकता है। अपनी बहिन जी को श्रद्धांजलि देते उनकी फोटो शेयर कर रहे हैं। बहिन पुष्पा जी ने हमारे निवेदन का सम्मान करते हुए जो लिखा उसे हम अनुभूति के अंत में प्रस्तुत कर रहे हैं। 

2. कल मंजू मिश्रा बहिन जी की अनुभूति से दिव्य अनुभूति श्रृंखला का समापन कर रहे हैं।  शब्द सीमा के कारण सीधा अनुभूति की ओर ही चलेंगें लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बातें करने के लिए स्थान ढूंढ  रहे हैं।   

3.शुक्रवार को रिलीज़ होने वाली   “विराट विभूति ज्ञानयज्ञ” वीडियो केवल 9 मिंट की है लेकिन description box में दी गयी जानकारी अवश्य देखें, इसी पर आधारित होगा एक full-length लेख। 

तो आइये आंवलखेड़ा की दिव्य माटी को मस्तक पर धारण करते हुए पुष्पा जी की बातचीत सुनें।  पहली अनुभूति 2012 की है। मैं अपने बेटे के साथ जमशेदपुर जाने के लिए दानापुर  स्टेशन आई।  गाड़ी में बैठने पर  पता चला कि बेटे की जेब काट गयी है और  टिकट, पैसा आदि सब निकाल लिया है। हम दोनों बहुत परेशान हुए  कि  अब क्या होगा। मैं मन ही मन गुरुदेव को याद करने लगी और गायत्री मंत्र जाप करने  लगी और गुरुदेव जी से प्रार्थना करने लगी कि गुरुदेव अब आप ही संभाल लेना। उन दिनों  बेटे की सेहत बहुत खराब चल रही थी, बहुत जल्दी घबराने लगता था। TTE  आया और टिकट मांगने लगा।  हमने  बताया गया कि पॉकेटमार ने पॉकेट मार लिया है, टिकट-पैसा आदि  सब ले गया है। वह  मानने को तैयार नहीं था और पैसा मांगने लगा। लोगों ने जब हम दोनों को परेशान देखा तो किसी ने कहा कि अरे लिस्ट लग गयी है, उसे तो देख लो। बेटे ने देखा कि रिजर्वेशन लिस्ट में नाम है लेकिन फिर  भी TTE  पैसा के फिराक में था। लोगों के कहने पर उसने जनरल टिकट बनाया और डराया भी कि आगे का टिकट चेकर क्या करेगा मैं नहीं जानता। 

खैर गाड़ी आगे बढ़ी।  हम दोनों बहुत ही  परेशान थे। इतने में एक संन्यासी गेरुआ वस्त्र में आकर हमारे सामने वाली  बर्थ पर आकर  बैठे। इन साधु महाराज जी को  देख कर मुझे  कुछ अजीब सी फीलिंग हुई और मैं बार-बार उन्हें  देखे जा रही थी  मन में  “हे गुरुदेव जी”, ”हे मां गायत्री”  का जाप किये जा रही थी। इतने में जब  खाने के लिए टिफिन खोलती हूँ तो बार- बार मन किये जा रहा था कि साधु बाबा को भी दिया जाए लेकिन बेटे ने इशारा से मना कर दिया। उसकी धारणा थी कि  आजकल खाने के बाद झूठ-मूठ का बेहोश होने का नाटक करके पैसा वसूल करते हैं। यह बात मेरा मन मानने को तैयार नहीं था क्योंकि मुझे यह साधु महाराज कोई मामूली व्यक्ति नहीं दिख रहे थे, मुझसे उनके सामने खाया भी हीं जा रहा था। मैंने देखा कि वह साधु महाराज ने मुंह फेरकर दूसरी तरफ कर लिया । लगभग 3:00 बजे के आसपास TTE   फिर आया, कुछ पूछताछ करके उसी टिकट पर साइन करके चला गया। सुबह हो गई, गाड़ी आसनसोल (WB)  पहुंच गयी । उसके आगे किसी और स्टेशन पर वह साधु बाबा उठकर दातून वाले  से दातून लेने लगे और मेरा ध्यान थोड़ा इधर-उधर हुआ और वह  पता नहीं किधर चले गए,तब अचानक ही मैंने अपने मन से कहा,“अरे यह  तो गुरुदेव जी ही थे।”  मेरी आंखों में आंसू आ गए कि मुझे पहले क्यूं नहीं समझ आया,मन बहुत  दुःखी हुआ। 

इससे पहले  भी  गुरुदेव सामने ही थे लेकिन  भीड़ की वजह से मैं पैर छूकर आशीर्वाद नहीं ले पायी थी। बात उस दिन की है जब गुरुदेव हमारे शहर आरा(बिहार) में आए थे। गुरुदेव जी को मेरी सहपाठी के घर ठहराया गया था, मैं अपने माता पिता जी  के साथ गई थी। मैं 2-3  फुट की दूरी से केवल दर्शन ही कर सकी,चरण स्पर्श  का सौभाग्य नही प्राप्त हुआ। इसका कारण केवल संकोच ही था। मेरी सहपाठी  कॉलेज में पढ़ रही थी लेकिन पढ़ने की इच्छा के बावजूद  मेरी शादी कर दी गई और उस दिन मेरी  गोद में 21  दिन का मेरा बड़ा बेटा  था।  मैं लोगों की नजरों से बच रही थी कि  कोई देख न ले कि  इतनी छोटी आयु  मेरी शादी हो गयी  और बच्चा भी हो गया। मैट्रिक की परीक्षा के बाद ही शादी हो गई थी।

एक बार फिर  गुरुदेव जी सामने रही लेकिन पहचान नहीं पाई, जब वोह  शरीर छोड़ने के बाद भी शरीर में आए और चले गए। 2020 में  गुरुदेव रोहतास के गायत्री मंदिर में  जब मैं बहू के मायके में छठ पूजा में गयी तो पता चला की गायत्री मंदिर नजदीक ही है। 19 नवंबर को छोटे बेटे का जन्म दिन था। मैं बोली चलो मंदिर चलते हैं। अपनी ही गाड़ी से  घर से निकले, आकाश में हल्के से बादल थे लेकिन निकलते ही मूसलादार  बारिश होने लगी। मंदिर के पास आते-आते बारिश हल्की हो गई लेकिन सड़क  पर कोई नहीं दिख रहा था, हर  जगह पानी ही पानी था । एक दुकान खुली थी, हम लोगों ने  मिठाई और फूल खरीदे,मंदिर का गेट  बंद था।  बहुत देर तक गेट खटखटाने पर भी कोई नहीं आया तो हमने सोचा  कि मंदिर बंद है। ड्राईवर को विश्व नहीं हुआ, उसने कहा कि मंदिर तो दिन भर खुला रहता है।  हम सोचने लगे कि हो सकता है कि  किसी कारणवश बंद हो। ऐसा लग रहा था कि आज हमारा आना बेकार हो गया।  मैं बहुत दुःखी हुई कि  मंदिर के द्वार पर आकर  भी दर्शन नहीं हो पाए। इतने में  ड्राईवर किसी से पूछताछ करने चला गया। इतने में एक लम्बा चौड़ा साधारण सा  दिखने वाला  आदमी आया और बोला, “ क्या बात है   मंदिर बंद है ?” हम लोग बोले कि हमें ऐसा ही  लग रहा है। उन्होंने  हाथ बढ़ा कर मंदिर का  छोटा गेट खोल दिया, बड़े  गेट में बाहर से ताला लगा हुआ  था। और वोह अंदर चले आये। उनकेे पीछे-पीछे  हम लोग भी मंदिर के अंदर आ गए। उसी समय पंडित जी के परिवार में से कोई आकर बोला कि पंडित जी बाहर गए हैं, ये लीजिए चाबी और  खोलकर पूजा कर लीजिए। मैंने देखा कि वोह  आदमी यज्ञशाला के पास जाकर अपना धोती-कुर्ता बदल रहे थे। हम लोग गायत्री माता का मंदिर खोलकर पूजा करने लगे, मन ही मन बहुत ख़ुशी  हो रही थी कि चलो आज हमें खुद  पूजा करने का मौका मिला है। दोनों  मां बेटा ने मिलकर पंच उपचार पूजा की, बाद में  आराम से गायत्री जप किया  और आरती करके दानपेटी में दक्षिणा डालकर प्रसाद वैगरह रखकर रवाना हुए। उसी क्षेत्र में और भी मंदिर थे भगवान शिव, विष्णु, हनुमान जी  आदि के, सभी मंदिरों में पूजा करके  यज्ञशाला में आए तो वहां गुरुदेव माता जी की भी पूजा की। अचानक वोह  आदमी फिर से  दिखे और  बोले, “हो गया दर्शन, पूजा।  मैं सिर हिला कर हाँ व्यक्त की और फिर  पूछने लगे आप लोग कहां से आए हैं, इस कॉपी में  नाम पता लिख दीजिए। इतना करने के बाद जब हम लोग निकलने लगे तब वोह  भी हम लोगों  से आगे ही निकल गये।जैसे ही निकले मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह  तो गुरुदेव ही थे।   मैं कैसे नहीं पहचानी, बिल्कुल वही कद-काठी, वही धोती कुर्ता, वही लम्बाई-चौडाई। बस अफसोस ही अफसोस रह गया  लेकिन फिर संतोष भी हुआ कि  गुरुदेव ने हमारी कितनी सहायता की, अगर वह न होते तो हम वापिस ही  लौटने वाले थे। 

हम तो इतना ही सोचते रह गए कि अगर हमें पहले पता चल जाता तो भक्त और भगवान में क्या फर्क रहता। शायद  अभी मेरी पात्रता इस स्तर की नहीं कि गुरुदेव के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाएँ।सोच कर  बहुत ही संतोष हुआ कि  जितना हुआ वह  भी कितनों को नसीब होता है। जय गुरुदेव, जय वंदनीय  माता जी, कोटि-कोटि प्रणाम वंदन करते हैं बस ऐसे ही साथ बना रहे जय महाकाल जय हो 

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पुष्पा सिंह: मैंने अपनी अनुभूति में परम पूज्य गुरुदेव जी को  दो बार शरीर धारण किये हुए  देखा, वो भौतिक में आकर ही मेरी सहायता किए जब मैं बिल्कुल हताश-निराश होकर उनको याद कर रही थी। हालांकि गुरुदेव 2 जून 1990  को ही सूक्ष्म शरीर में चले गए थे लेकिन लेकिन जितनी भी देर हमारे साथ रहे मुझे यह  एहसास ही नहीं होने दिया कि वोह स्वयं पधारें हैं। उन्होंने  मेरी सहायता की  और मैं मूढमती ज़रा  भी नहीं सोच पायी कि  जिसे हृदय से याद कर रही थी वो ही मेरे सामने हैं, शायद ये भी उनका ही मेरे मन पर डाला गया एक आवरण ही था कि  मैं पहचान नहीं पाई। जैसे ही मेरा मन शांत हुआ मेरी समस्या ख़त्म हुई वो जाते ही वो बोध मुझे दे गये कि  अब समझो कि कौन आया था तुम्हारी सहायता को, किसे याद कर रही थी। मेरे गुरुदेव ही आए थे इस बात की पुष्टि इसलिए भी होती है कि  दोनों बार ही  पलक झपकते ही वो किधर चले गए पता ही नहीं चला।  मैंने  नजरें घुमाकर इधर-उधर देखने की बहुत कोशिश की लेकिन वो तो जैसे गायब ही हो गये और तब मेरी तंद्रा टूटी कि  अब मत खोजो, वो अपने सूक्ष्म जगत को चले गए जय गुरुदेव जी कोटि-कोटि प्रणाम वंदन। 

मंदिर में भी जितना देर हम  रूके वो पता नहीं यज्ञशाला की  तरफ ही कुछ कर रहे थे। मैंने केवल उन्हें कपड़े बदलते ही देखा। मैंने सोचा कि  कोई होंगें  जो भींग गये हैं तो चेंज कर रहे हैं और उतनी देर में मंदिर में  हम तीनों के आया भी नहीं। हमें मंदिर में 1 घंटा से उपर हो गया होगा,जैसे ही हम निकलने लगे वो भी साथ ही निकले पूछे भी “हो गया न” और बाहर निकलते ही पता नहीं किधर को चले गए।

आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 11   सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है,अरुण  जी  सबसे अधिक अंक प्राप्त करके  गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1)संध्या कुमार-31 ,(2  )अरुण वर्मा-68,(3)निशा भारद्वाज-27 ,(4)चंद्रेश बहादुर-27,(5 )संजना कुमारी-25 ,(6) स्नेहा गुप्ता-25,(7)नीरा त्रिखा-26,(8)सुजाता उपाध्याय -27,(9)प्रेरणा कुमारी-24,(10 )विदुषी बंता-24,(11) पूनम कुमारी-29          


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