वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला  का प्रथम अंक -अरुण त्रिखा का योगदान

26  जनवरी 2023  का ज्ञानप्रसाद

“जब मेरे गुरु की शक्ति ने टेक्नोलॉजी की शक्ति को भी पीछे छोड़ दिया”  

आज कुछ भी लिखने से पहले हम आंवलखेड़ा की उस पावन कोठरी में नतमस्तक होंगें जहाँ दादा गुरु 1926 की वसंत पंचमी वाले दिन 15 वर्षीय बालक श्रीराम से साक्षात्कार करने हिमालय से आये थे। आइए सब अपने गुरु को श्रद्धा सुमन अर्पित करें जिनका आज आध्यात्मिक जन्म दिवस है, हमारा सौभाग्य है कि हम उस महान गुरु के हम शिष्य हैं।     

आज से हम अनुभूतियों की वह शृंखला का शुभारम्भ कर रहे हैं जिसकी राह हम कई दिनों से  देख रहे थे। लगभग एक माह पूर्व हमने परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस ( जो आज वसंत पंचमी वाले दिन है) पर सहकर्मियों को अपनी अनुभूतियाँ लिखने के लिए  सादर निमंत्रण दिया था।  हमें बड़ी प्रसन्नता है कि हमारे इस आग्रह को अटूट सम्मान मिला है जिसके लिए हम सदैव आभारी रहेंगें।परम  पूज्य गुरुदेव से सम्बंधित अनेकों  अनुभूतियां ऑनलाइन/ऑफलाइन उपलब्ध है ,लेकिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों  की अनुभतियों का हमारे ह्रदय में एक विशेष स्थान है। सहकर्मियों से आग्रह करने का अर्थ है उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहित करना, उन्हें गुरु के प्रति समर्पण व्यक्त करने का अवसर प्रदान  करना और जो सहकर्मी सुप्त स्थिति में हैं उनकी चेतना में चिंगारी फूँक कर विस्फोट करना। 

इस विशेष शृंखला का शुभारम्भ हम अपनी ही अनुभूति से कर रहे हैं जो हमने अभी कुछ दिन पूर्व ही experience की थी । अभी अभी प्रतक्ष्यवाद, भौतिकवाद पर कितने ही दिन हम सब ने चिंतन-मनन किया, लेकिन इस अनुभति से यह स्पष्ट हो रहा है कि अंतिम विकल्प वैज्ञानिक अध्यात्मवाद ही है।  हमारी अनुभूति में व्यक्ति की गयी  फ़ोन की समस्या का explanation  टेक्नोलॉजी तो दे  न सकी, आखिरकार अंतरात्मा ने ही किया।         

आइए  गुरुसत्ता के श्रीचरणों में बैठ कर विश्वशांति के लिए प्रार्थना  करें और सत्संग के पथ  पर अग्रसर होते चलें।  

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

आदरणीय सुमन लता बहिन जी से पता चला था कि उन्हें बुखार है, हम सभी उनके जल्द से जल्द ठीक होने की कामना करते हैं। 

भारतीय रिपब्लिक डे की सभी को हार्दिक शुभकामना। 

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आधुनिक युग में जब टेक्नोलॉजी अपने चरम पर है तो हमारी अनुभूति को पढ़कर कर अगर “गुरु के प्रति अंधभक्ति की धारणा” बनती है तो हम यह आरोप भी  सहर्ष स्वीकार करने को तैयार हैं।  

यहाँ लिखी जा रही हमारी अनुभूति अभी कुछ दिन ही पुरानी, दिसंबर 2022 की है जब हमारे  मन मस्तिष्क में  परम पूज्य गुरुदेव की ईस्ट अफ्रीका यात्रा पर आधारित लेख श्रृंखला की योजना हिलोरें ले रही थी। श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या और आदरणीय ज्योतिर्मय जी द्वारा सम्पादित पुस्तक “चेतना की शिखर यात्रा खंड 3 में 20 पन्नों का एक चैप्टर” रेफरन्स के लिए तो  उपलब्ध था ही, लेकिन हमारी इच्छा थी कि इस विषय पर और अधिक जानकारी प्राप्त की जाए, और रिसर्च की जाए, सारे विश्व में पहिले  कुछ और परिजनों से सम्पर्क किया जाए शायद कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उभर कर  आ सकें।

लगभग तीन वर्ष पूर्व इसी विषय पर दो लेख लिखे थे जो हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध थे, उन्हें खोज कर पढ़ना आरम्भ कर दिया, चेतना की शिखर यात्रा उपलब्ध थी, उसे भी प्रयोग करके कुछ-कुछ पृष्ठभूमि बनानी आरम्भ कर दी।  कई दिन तक  तो यही उधेड़-बुन चलती रही कि “लिखें यां न लिखें ” क्योंकि जो महत्वपूर्ण तथ्य व्हाट्सप्प पर फ़ोन करके/ व्हाट्सप्प chats  में 3 वर्ष पूर्व उपलब्ध किये थे,आज कोई सम्भावना नहीं थी कि वोह saved हों क्योंकि  टेक्नोलॉजी ने जहाँ हमारे जीवन को सुखमय बनाने की दृष्टि से व्हाट्सप्प में  “disappearing messages” का फीचर add किया है वहीँ  इस फीचर के अंतर्गत व्हाट्सप्प के  सभी messages  कुछ समय के बाद स्वयं ही delete हो जाते हैं।अगर यह फीचर न हो तो फ़ोन slow तो होगा ही, एक समय ऐसा आएगा कि काम करना ही बंद कर दे। ऐसी स्थिति में फ़ोन तभी ठीक से function करेगा जब  हम messages  डिलीट करके कुछ memory free  करते हैं। 

हमारे case  में स्थिति ऐसी थी कि हमने कुछ दिन पूर्व ही फ़ोन चेंज किया था और केवल recent व्हाट्सप्प मैसेज ही  बैकअप किये थे, सारे messages को बैकअप करने में लगभग एक दिन का समय चाहिए था जो हमारे लिए कठिन था। हमारा फ़ोन और laptop एक दिन के लिए बंद होने का अर्थ है, “हमारी आत्महत्या” 19 दिसंबर के ज्ञानप्रसाद में हम अपने सहकर्मियों के समक्ष गुरुदेव की अफ्रीका यात्रा की पृष्ठभूमि प्रस्तुत कर चुके थे। ऐसा  तो  हो नहीं सकता कि ज्ञानप्रसाद लेखन में हम कोई भी ढील बरत सकें यां फिर उनके आगे अपनी असमर्थता व्यक्त कर दें कि proper कंटेंट उपलब्ध न होने के कारण इस लेख श्रृंखला को स्थगित किया जा रहा है।  यह श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण की बात है।  हमें तो स्मरण ही नहीं आता कि  हमने कितने दिन(रात) और घंटे इसी असमंजस और दुविधा में व्यतीत किये और गुरुदेव से सहायता की याचना करते रहे। जहाँ हमें पूर्ण विश्वास था कि गुरुदेव अवश्य कोई न कोई मार्ग निकाल ही देंगें वहीँ यह शंका भी घेरे हुए थी कि टेक्नोलॉजी के  मार्ग में गुरुदेव क्या कर सकते हैं। रह-रह कर गुरुदेव के उद्बोधन रिकॉर्ड करने वाली घटना याद आए  जा रही थी। हमारे पाठक उस घटना से भलीभांति परिचित ही होंगें जब शांतिकुंज स्थित गुरुदेव के कक्ष में EMD कार्यकर्ता गुरुदेव के उद्बोधन रिकॉर्ड करने की ज़िद कर रहा था। गुरुदेव बार-बार टाले  जा रहे थे लेकिन फिर भी   इस कार्यकर्ता ने किसी तरीके से गुरुदेव को रिकॉर्डिंग के लिए मना ही  लिया। कार्यकर्ता ने रिकॉर्डिंग तो कर ली, ख़ुशी ख़ुशी जब नीचे जाकर  रिकॉर्डर को चेक किया को कुछ भी रिकॉर्ड नहीं हुआ था।  कार्यकर्ता ने बार-बार चेक किया  लेकिन सारे का सारा स्पूल blank था, कुछ भी रिकॉर्ड नहीं हुआ था, कई बार सभी स्विच चेक किये, गलती से कहीं कोई ऐसा तो नहीं था जो press करना भूल गया होगा। सब कुछ सही था, यह कार्यकर्त्ता भी कोई नया य अनाड़ी नहीं था, कई वर्षों से यही कार्य कर रहा था। अगर इस विषय पर बहस ही करनी हो तो कई तरह के मनगढंत और illogical explanations दिए जा सकते हैं लेकिन हमारे विवेक को अनुसार यह गुरुदेव की शक्ति  ही थी जिसके आगे टेक्नोलॉजी भी असफल हो गयी। 

वह  घटना भी अविश्वसनीय, आश्चर्यजनक, किन्तु सत्य थी और जो हमारे साथ हुआ वह भी शत प्रतिशत अविश्वसनीय,आश्चर्यजनक  और सत्य है।  

फ़ोन नया था, मैसेज बैकअप किये नहीं थे,मेमोरी  कार्ड था नहीं, तो फिर 3 वर्ष पुराने मैसेज कैसे दिखने शुरू हो गए और वह भी केवल विद्या परिहार जी के। हमें तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। बार-बार scroll up/ down किये जा रहे थे कि यह कैसे हो रहा है। बाकि के chats को भी एक बार नहीं, अनेकों बार ऊपर नीचे करते हुए बड़े ही ध्यान से देखा लेकिन कोई  भी मैसेज 2 सप्ताह से पुराना नहीं था। परिवार में, आजकल के कंप्यूटर sauvy बच्चों से बात की, उनकी पहली प्रतिक्रिया यही थी “पापा, आपने ध्यान से देखा नहीं होगा, बूढ़े हो गए हो, यह आपके बस की बात नहीं है” हमने  फ़ोन उन्हें ही थमा दिया, उन्होंने स्वयं चेक किया, हैरान हो गए, यह कैसे  हो सकता है, बाकि सभी मैसेज तो 2 सप्ताह पुराने ही थे, केवल विद्या परिहार जी के मैसेज ही 3 वर्ष पुराने थे। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था।  अगर किसी के पास उत्तर था तो “केवल हम” और उत्तर था  “ हमारे गुरु की शक्ति और हमारा विश्वास” 

आज के युग की,आज कीअतिविकसित पीढ़ी का स्वभाव है कि जब कोई बात समझ न आए ,किसी समस्या का समाधान न सूझे तो  “विधि का विधान” स्वीकारने के बजाए “I don’t know” कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। विधि के विधान को मानना, कर्मफल के सिद्धांत को मानना, तौबा,तौबा ……. उनके अनुसार यह तो कोरा अन्धविश्वास है लेकिन निम्नलिखित पंक्तियाँ बहुत कुछ कह रही हैं : 

             क्या होता है विधि का विधान ,इसका निर्धारण कौन करता है और कहाँ होता है।  

            होता वही है जो विधि का विधान होता है, जिस को  समझ ना आए वही इंसान होता है।

           आसमां तक पहुंचने का हौसला रखो यारो, बिना पंख फड़फड़ाए कहां उड़ना होता है।

           रुक जाती अगर नदिया तो दरिया बन जाती, निरंतर चलने से ही नदी का सम्मान होता है।

           कौन कहता है कि मंजिलें हासिल नहीं होंगीं,मंज़िल  की भी जरूरत एक इंसान होता है।

           दिल लगा कर तो देखो मंजिलों से ऐ बन्दे, किस रात  के बाद नहीं सुबह नहीं होती  है।  

           किस रात के बाद नहीं सुबह होती ,किस रात के बाद नहीं सुबह होती 

अंतिम पंक्ति को बार-बार पढ़कर हम अपनेआप से यही कह रहे हैं कि हमने भी अपने दृढ संकल्प से, उद्देश्य   से दिल लगाया था, दिन-रात एक कर दिए थे पुराने chats और पन्ने ढूढ़ने में, मेरे गुरु ने असंभव को संभव कर दिखाया, हमें “I don’t know”  कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। श्रद्धा से कार्य करना और उस शक्ति में विश्वास रखना ही बाल्यकाल से  सिखाते जा रहा है –

संकट में गुरु हमारा हाथ तो पकड़ लेता है लेकिन सावधान भी करता है ताकि यही गलती बार-बार न हो। 

इस moral का पालन करते हुए पहला कार्य हमने यही किया : सभी chat messages और media को save करके एक सुरक्षित फोल्डर में favorites में रख लिया , कहीं ऐसा न हो कि 5 वर्ष के बाद फिर परम पूज्य गुरुदेव  को कष्ट देना पड़े कि save तो किया था लेकिन सुरक्षित कहाँ किया था, याद नहीं आ रहा  और गुरुदेव एक नन्हे बालक की भांति डाँटते हुए हमें कहेंगें ,”धत तेरे की,मुर्ख कहीं का” हम इस बार भी यही कहेंगें गुरुदेव आगे से नहीं करेंगें, लेकिन फिर से गलती करेंगें ,बार-बार करते ही रहेंगें, आखिर बुद्धि हीन जो ठहरे। गुरु का संरक्षण है ही ऐसा, बार बार गिरने से बचाता  है।  जय गुरुदेव

आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 6   सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है लेकिन 3 गोल्ड मेडलिस्ट हैं। अरुण जी,संध्या कुमार और सरविन्द जी को   बधाई और उन सभी का धन्यवाद् जिन्होंने गोल्ड मैडल दिलवाने और  सभी को संकल्प पूर्ण करने में सहायता की। 

(1)संध्या कुमार-55 ,(2 ) रेणु  श्रीवास्तव-43,(3 ) सुजाता उपाध्याय-31,(4)अरुण वर्मा-54 ,(5 )सरविन्द पाल-55 ,(6)वंदना कुमार -31


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