वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अपने सहकर्मियों की कलम से -21 मई 2022 

अपने सहकर्मियों की कलम से -21 मई 2022 

प्रत्येक शनिवार को आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहे इस स्पेशल सेगमेंट में  जिसका शीर्षक “अपने सहकर्मियों की कलम से” है  हम अपने सहयोगिओं की  गतिविधियों को प्रकाशित करते हैं। आज के एपिसोड में पांच सहकर्मियों – सरविन्द भाई साहिब, प्रेमशीला बहिन जी, विनीता पाल बहिन जी, कुसुम त्रिपाठी बहिन जी और हमारी सबकी प्रिय प्रेरणा बिटिया की contributions शामिल की गयी हैं।  इन सभी का हम ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं और आशा करते हैं कि जो भी इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, वह भी प्रेरित होंगे और अधिक से अधिक अपने अनुभव इस प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करवाने का प्रयास करेंगें। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ प्लेटफॉर्म पर आपके द्वारा किया गया कोई भी प्रयास व्यर्थ  नहीं जाता है। आप गुरुकार्य एवं गुरुभक्ति में अपना गिलहरी और रीछ-वानर जैसा योगदान देकर बहुत ही बड़ा कार्य कर रहे हैं। कार्य और कर्मफल का  आभास तो आपको सरविन्द जी के लेख से मिल ही जायेगा लेकिन विनीता जी भी कर्मफल  की ही बात कर रही हैं। विनीता जी जिन्होंने  अंग्रेजी में  केवल  गायत्री मन्त्र और फूलों द्वारा कमेंट करके हम सबका अभिनन्दन करना आरम्भ किया था, आजकल कुछ अधिक भी लिखना आरम्भ किया है। बहिन जी की आज की contribution हमें व्हाट्सप्प पर अंग्रेजी में ही प्राप्त हुई थी।  हमने उन्हें हिंदी में लिखने के लिए निवेदन किया था लेकिन उनके प्रयास करने के बावजूद संभव न हो पाया -कोई बात नहीं – बहिन जी, हमने अपनी समझ  के अनुसार अनुवाद किया है। अगर कोई त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी हैं। कुसुम बहिन जी हर रविवार को मौलाबाग शक्तिपीठ में योग प्राणायाम एवं आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी के बारे में बताती  हैं।  प्रेरणा बिटिया ने अपने घर में बुद्धपूर्णिमा यज्ञ का संचालन  किया।  बेटी को हम सबका आशीर्वाद प्रदान हो।

हम उन सभी सहकर्मियों का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं जो ऑनलाइन ज्ञानरथ के स्तम्भ – शिष्टाचार, आदर, सम्मान, श्रद्धा, समर्पण, सहकारिता, सहानुभूति, सद्भावना, अनुशासन, निष्ठा, विश्वास, आस्था, प्रेम, स्नेह, नियमितता,  का अनवरत पालन करते हुए सभी के लिए एक उदाहरण तो कायम कर ही रहे हैं, नए परिजनों को इस प्लेटफॉर्म में जुड़ने के लिए एक Fuel भी प्रदान कर रहे हैं।  आज पग पग पर भटके हुए देवता देखने को मिल रहे हैं। वह  बेचारे भी क्या करें ? लाखों में यूट्यूब चैनल, व्हाट्सप्प  ग्रुप, फेसबुक ग्रुप, twitter ग्रुप, धर्मगुरु, धर्मग्रुप  इत्यादि इत्यादि। गुरुदेव की भांति हमने भी ठानी है कि विज्ञापन तो करना नहीं है  अपने आचरण और कंटेंट से ही हमने परिजनों को अपने साथ जोड़ना है।  हमारा सबसे शक्तिशाली विज्ञापन tool हमारे समर्पित सहकर्मी ही हैं। कमैंट्स के रूप में पोस्ट हो  रही उनकी श्रद्धायुक्त भावनाएं व्यर्थ नहीं जा रही हैं, उन्हें पढ़ा जा रहा है, परिणाम प्रतिदिन उजागर हो रहे हैं। हमने विज्ञापन न करने के बारे में लिखा है लेकिन फिर भी हमारी वेबसाइट य अन्य प्लेटफॉर्म पर कभ कभार कोई ad आ जाने का कारण owner की मर्ज़ी है जो हमारे कण्ट्रोल से बाहिर है। 

इन शब्दों के साथ हम अपनी वाणी को सोमवार तक  विराम देते हैं जब हम सब एक नई ऊर्जा के साथ कार्यरत होंगें।  जय गुरुदेव    

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सरविन्द कुमार  पाल:

प्रारब्ध में किए गए कर्मो का  फल खुद को भोगना ही पड़ता है  

हम अपनी लेखनी को आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं l आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस प्रस्तुत लेख का स्वाध्याय करने से आप सबको बहुत बड़ी प्रेरणा मिलेगी l यह लेख परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित साहित्य से संकलित किया गया है। 

परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि निसंदेह कर्म की गति बड़ी गहन है l धर्मात्माओं को दुःख , पापियों को सुख, आलसियों को सफलता, उद्योगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति, मूर्खो के यहाँ सम्पत्ति, दंभियों को प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों  को तिरस्कार प्राप्त होने के तमाम उदाहरण इस दुनियां में हम सबको निरंतर देखने को मिल रहे हैं।  कोई जन्म से ही वैभव लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को आजीवन दुःख ही  भोगने पड़ते हैं।  सुख और प्रगति के जो नियम निर्धारित हैं, वे सभी तथ्यों पर पूरे नहीं उतरते हैं और हम सब अज्ञानता के कारण अपने सही मार्ग से विचलित हो जाते हैं l 

इन बातों को देखकर भाग्य, ईश्वर की मर्जी व कर्म की गति के विषय में हमारे मन में नाना प्रकार के सवालों  की झड़ी लग जाती है।  इन संदेहजनक प्रश्नों का समाधान जो  पुरानी पुस्तकों में मिलता है, उससे आज के तर्कशील युग में ठीक प्रकार से  समाधान सम्भव नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप नई पीढ़ी  आत्मा के आस्तित्व से इंकार किये जा रही  है। इस पीढ़ी में अक्सर कहा जाता है कि कर्म फल देने की शक्ति, राज्यशक्ति के अतिरिक्त और किसी में नहीं है l ईश्वर और भाग्य कोई वस्तु नहीं है।  नाना प्रकार के नास्तिक विचार हमारी नई पीढ़ी में घर करते जा रहे हैं, जिसका नकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है l अतः इस लेख में बताया गया है कि जो कुछ भी फल प्राप्त होता है, वह अपने कर्म के कारण ही प्राप्त होता है l प्रस्तुत लेख से कर्मफल सम्बन्धी जिज्ञासाओं का समाधान किसी हद तक अवश्य मिलेगा। 

परम पूज्य गुरुदेव महाभारत का उदाहरण देते लिखते हैं :

एक बार महाभारत युद्ध टालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को दुर्योधन के पास भेजा और कहा कि उससे कहना कि हमें पाँच गाँव दे दो, हम युद्ध नहीं करना चाहते हैं लेकिन दुर्योधन ने पाँच गाँव देने से मना कर दिया और कहा कि हम बिना युद्ध किए सूई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं देंगे। पांडवों ने यह बात भगवान श्रीकृष्ण को बताई , तब भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कौरवों के राजमहल गए। उस समय राजमहल में धृतराष्ट्र, विदुर व दुर्योधन मौजूद थे l भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा: संधि के प्रस्ताव के लिए पांडवों को मैंने ही भेजा था l दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण से भी वही बात कही जो बात पांडवों से कही  था l मुझे यह संधि प्रस्ताव मंजूर नहीं है और बिना युद्ध के ,मैं  सूई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूंगा।  

तब भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा:

“मैं कौन हूँ तुम नहीं जानते , मैं तुम्हें अपना वास्तविक रूप दिखाता हूँ। तब धृतराष्ट्र ने कहा कि हे प्रभु आप यह बताने  की कृपा करें कि हम अनंत  सुखों  से ओतप्रोत होने के बावजूद भी नेत्रहीन क्यों हैं l भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इसके लिए मुझे तुम्हारे पूर्व जन्मों का अध्ययन करना होगा।  धृतराष्ट्र ने कहा – अध्ययन करिए और बताने  की कृपा करें प्रभु ! भगवान श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र के पूर्व जन्म को देखना प्रारंभ किया और कहा कि सात जन्मों तक तुमने बहुत ही शानदार काम किया।  तब धृतराष्ट्र ने कहा कि फिर भी मैं नेत्रहीन क्यों हूँ ? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि अभी तुम्हारे अन्य जन्मों  को देखना शेष है।  अन्य जन्मों  का अध्ययन करने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं देख रहा हूँ कि एक जन्म में तुम एक विशाल वृक्ष के नीचे खड़े हो, जहाँ अनगिनत चिड़ियाँ अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ हैं, तुम नुकीले काँटो से उन बच्चों की आँखें फोड़ रहे हो।  यह सजा तुम्हें उसी जन्म के पापों की मिली है।  इसलिए  साथियों कर्मफल का विधान अटल है। हमारे  द्वारा किए गए पापों को किसी न किसी जन्म में भोगना ही पड़ता है।  किए गए कर्मो का फल खुद को ही  भोगना पड़ता है, उसमें भगवान भी तुम्हारी सहायता नहीं कर सकते हैं, हाँ  कष्ट सहन करने की शक्ति अवश्य  प्रदान कर सकते हैं। 

इस कहानी से शिक्षा लेते हुए हमें  परम पूज्य गुरुदेव के बोओ और काटो के सिद्धांत पर चलना चाहिए। जय गुरुदेव 

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विनीता पॉल:

आदरणीय  भाई साहब जी आपको सादर प्रणाम  और धन्यवाद। हमारे घर में बच्चों  को सही राह दिखाने  को लेकर  झगड़ा, मनमुटाव  हो गया।  मैं  अकेला महसूस करने  लगी। मैं डर गई कि  पता नहीं क्या होगा।  तभी गुरुदेव ने मुझे संभाला।  मैं बस  मां गायत्री और  गुरुदेव जी को याद करके  ​​गायत्री मंत्र बोलने  लगी, सब कुछ ठीक हो गया। हमारे  मिस्टर क्रोध में आके रास्ते में ही  अपशब्द बोलते  गए, घर से निकाले  जाने तक बात पहुँच गयी परन्तु  माँ गायत्री और  गुरुदेव ने  हमारी प्रार्थना सुनी , सब कुछ नॉर्मल हो गया। वकाई वो साक्षात् भगवान्  हैं,जो भी  दिलों में हो  जान लेते  हैं। जय गुरुदेव जय महा काल

अब  मैंने निर्णय  लिया कि  किसी को कुछ नहीं कहना और उनके ही  हाल पे छोड दिया।  जैसा  कर्म करेंगे वैसा फल  मिलेगा।

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प्रेमशीला बहिन जी :

बहिन जी की बहु की स्थिति कुछ ठीक नहीं है। सोमवार 23 मई को बहु का  ऑपरेशन है। Uterus में साढ़े तीन किलो का Tumor है लेकिन सौभाग्यवश cancerous नहीं है।  बहिन जी बहुत चिंतित हैं। 2012 में शादी के बाद 2013 में वैष्णवी नामक बेटी हुई थी, लेकिन उसके बाद दो बार miscarriage हो गयी। सभी सहकर्मियों से करबद्ध निवेदन है कि अपनी दैनिक साधना में बेटी की सफल सर्जरी के लिए प्रार्थना करें।  अपनी समर्था -सुविधा अनुसार गायत्री मन्त्र ,महामृत्युंजय मन्त्र,गायत्री स्तवन जो भी हो सके अवश्य करें और सहकारिता और परिवार की फीलिंग दें। 

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20  मई 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:  

(1) संध्या कुमार-24, (2 ) अरुण वर्मा-24   

संध्या कुमार जी और अरुण वर्मा जी दोनों ही गोल्ड मैडल विजेता हैं । दोनों  को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद


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