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गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्मदिवस पर अनुभूतियों के श्रद्धा सुमन -3   संध्या कुमार (दो अनुभूतियाँ)

8 फ़रवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्मदिवस पर अनुभूतियों के श्रद्धा सुमन -3 

आज के ज्ञानप्रसाद में संध्या कुमार बहिन जी की दो अनुभूतियाँ प्रस्तुत हैं। अनुभूतियों की इस शृंखला को प्रस्तुत करने का एकमात्र उदेश्य उन परिजनों को गुरुदेव की शक्ति से अवगत कराना है जो गुरुदेव के बारे में बिल्कुल अनजान हैं। लेकिन एक बात अटल सत्य है, अगर विश्वास है तो सब कुछ है नहीं तो जीवन भर सबूत ही ढूँढ़ते रह जायेंगें। 

रेनू श्रीवास्तव जी ने अनुभति को एडिट करने के लिए धन्यवाद् किया है। ज्ञानप्रसाद को रोचक एवं आकर्षक बनाना तो हमारा कर्तव्य है जिसको अनवरत करते ही रहेंगें। 

आज के लेख के साथ एक छोटी सी वीडियो अटैच कर रहे हैं जिसमें गुरुदेव बता रहे हैं कि वह एक्सीडेंट से कैसे बचाएँगें। https://youtu.be/t8cvsJ38E-E

तो आइये सुने संध्या जी दो घटनाएं। 

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बात उन दिनों की है जब हम स्टील सिटी बोकारो, झारखण्ड में रहते थे।हमारे घर के पास ही गायत्री शक्ति पीठ होने के कारण मुझे पहली बार वहां जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरे ससुराल या मायके में कोई भी गायत्री परिवार से परिचित नहीं रहा है। मैं एक दुकान से पूजा के लिए कुछ सामान लेने गयी, वहां मेरी नजर अखण्ड ज्योति पत्रिका पर पड़ी। 

बचपन में मैंने अपनी माँ को इस पत्रिका को पढ़ते हुए कई बार देखा था। हालांकि मेरी माँ भी गायत्री परिवार से जुड़ी नहीं थीं लेकिन आध्यात्मिक आस्था वाली एवं शिक्षित होने के कारण वह अपनी परिचित से यह पत्रिका लेकर बड़ी रूचि से पढ़ती थीं। मेरी माँ अक्सर अखंड ज्योति की प्रशंसा भी करतीं तथा हम बच्चों को भी पढ़ने को प्रोत्साहित करती। हम बच्चों को अखंड ज्योति के लेख में तो कोई रूचि नहीं होती लेकिन पेज के नीचे दी हुई लघु कहानीयां पढ़ लेते जो हमें बहुत अच्छी लगती थीं।

आज लम्बे अन्तराल के बाद मुझे यह पत्रिका मिली, सच कहूँ तो माँ को याद करते हुए मैंने पत्रिका ले ली। घर आकर जब पढ़ना शुरू किया तो घण्टों पढ़ती ही चली गयी। इतनी उच्स्तरीय भाषा, उत्तम लेख एवं विभिन्न विषयों की जानकारी। मेरे पति भी बहुत प्रभावित हुए तथा उन्होंने पत्रिका की आजीवन सदस्यता ले ली। गायत्री शक्ति पीठ पास होने के कारण अक्सर वहां भी जाती एवं अखण्ड ज्योति के अध्ययन से मुझे परमपूज्य गुरुदेव के प्रति आस्था अनुभव होने लगी। मुझे इच्छा हुई कि मैं गुरुदीक्षा लूँ। मैंने पति से कहा और उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया एवं हमदोनों ने गुरु दीक्षा ले ली। गुरुदीक्षा लेकर मैंने कुछ खास तो नहीं किया लेकिन अब मैंने नियमितता से गायत्री मंत्र का जप करना आरम्भ कर दिया तथा कभी कभार शक्तिपीठ की सहायता से हवन करवाने लगी। अखण्ड ज्योति का स्वाध्याय तो अनवरत चलता रहा। धीरे-धीरे मुझे भी यज्ञ-हवन करवाने का अभ्यास हो गया और मैं भी रिश्ते-नाते, पड़ोस में हवन करवाने लगी।

घटना 1

2007 में मुझे जीभ में एक छाले सा हो गया था मैं जमशेदपुर में थी, वहां डॉक्टर को दिखाया, इलाज करवाया किंतु वह बना ही रहा। मुझे तो यही लगता है कि परमपूज्य गुरुदेव ने ही मेरे मन में यह विचार डाला कि मेरे पति बंगलौर ट्रांसफर ले लें,क्योंकि हमने बंगलौर ट्रांसफर का कभी सोचा भी नहीं था। हमने तो जमशेदपुर में ही settle होने के उद्धेश्य से एक फ्लैट भी ले लिया था। अनायास ही एक दिन मैंने पति से कहा: 

“हमारे दोनों बेटे बंगलौर में हैं और आप भी वहीँ ट्रांसफर ले लीजिए। कुछ समय बेटों के साथ रहेंगें, फिर दोनों की शादी भी करनी है, जहाँ उन लोगों को ठीक लगेगा रहेंगे। अगर हमें रिटायर्मेंट के बाद लौटना होगा तो लौट आयेंगे।” 

मेरे पति को यह बात ठीक लगी और हम बंगलौर आ गये। इस बीच जीभ के छाले का इलाज चलता रहा लेकिन दर्द बहुत ही बढ़ गया। बंगलौर में जब डॉक्टर को दिखाया तो जांच से पता चला कि मुझे जीभ का कैंसर हो गया है। कोई बुरी आदत तो थी नहीं, दिनचर्या एवं क्रिया कलाप काफी अनुशासित रहे थे । हम सभी चिंता में पड़ गये। एक दूसरे के सामने तो मैं स्वयं को नॉर्मल दिखाने की असफल कोशिश करती लेकिन अकेले में बहुत ही घबराहट और बैचेनी महसूस होती। मन में विचार आते कि अगर मुझे कुछ हो गया तो पति और बेटे कैसे मैनेज करेंगे, अभी तो उनकी शादी भी नहीं हुई है, मेरी गृहस्थी को कौन देखेगा। हाँ एक बात अवश्य हुई कि बंगलौर आने से मुझे उत्तम इलाज मिल गया। पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर गोपी नाथ ने मेरा ऑपरेशन किया जो सफल रहा। जीभ के कैंसर में lymph nodes तक फैलने का खतरा रहता है, अतः मेरे साथ भी वही हुआ। नवंबर 2008 में एक बार फिर ऑपरेशन की बारी आ गयी। चार घंटे के मेजर ऑपरेशन से मेरे 11 नोडस निकाल दिए गये। घर में चिंता, घबराहट वाला माहौल बन गया था, मुझे तरह तरह-तरह की चिंताएं सताती किंतु सच कहूं तो केवल एक ही शक्ति पर ध्यान जाता था और उसी पर भरोसा था। अंतर्मन से बार -बार यही आवाज आती- वह जरूर कुछ न कुछ हल निकालेंगे। वह शक्ति ,वह आवाज़ थी – परमपूज्य गुरुदेव की आवाज़,परमपूज्य गुरुदेव की शक्ति। यही विश्वास मेरी ताकत बना। उस कठिन समय में भी गायत्री मंत्र का मानसिक जप चलता रहता, यहाँ तक कि ICU में भी मेरा यह क्रम चलता रहा। दूसरा ऑपरेशन तो बहुत बड़ा था, मेरा दाहिना हाथ, गरदन, कान , कन्धे सभी प्रभावित हो गये थे, कुछ भी काम नहीं कर पाते थे, किंतु डॉक्टर ने कहा था जितना चला सकें उतना ठीक रहेगा वर्ना जिन्दगी भर अच्छा नहीं हो पायेगा। मैंने हिम्मत कर असहनीय दर्द को बर्दाश्त करते हुए गायत्री मंत्र लेखन आरम्भ किया। कुछ ही समय बाद धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा। 

आज मैं बिल्कुल नॉर्मल जीवन जी रही हूँ, खाने में, बोलने में, हवन करने में किसी भी कार्य में कोई दिक्कत नहीं है। यह सब परमपूज्य गुरुदेव की ही अनुकम्पा है, उन्हीं का ‘चमत्कार’ है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैंने तो गुरुदेव का कोई कार्य भी नहीं किया। मैं तो स्वार्थवश अपने ही कार्यों में लगी रही लेकिन दयानिधान गुरुदेव ने हाथ बढ़ाकर मुझे दुःख-चिंता से बाहिर निकाला है।

घटना 2 : 

यह घटना 2012 की है। मेरे पति सदा बहुत ही स्वस्थ रहे हैं। मैं बड़े बेटे के पास हैदराबाद गयी हुई थी। बैंक की अत्यधिक जिम्मेदारियाँ एवं स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही के कारण उन्हें ब्रैन हेमरेज हो गया। छोटा बेटा पत्नी के साथ बंगलौर में था, वही बेहोशी की हालत में पापा को हॉस्पिटल ले गया। डॉक्टरों ने बताया कि इनके पास ज़्यादा समय नहीं है, यदि तुरन्त ऑपरेशन किया गया तो शायद बच जाएँ। डॉक्टर ने कहा वैसे हमें तो ज़ीरो प्रतिशत उम्मीद ही है। बेटे ने फोन पर ही मुझसे बात की और ऑपरेशन के लिए हस्ताक्षर करवा लिए । जब मैं बड़े बेटे के साथ पहुंची तो उनका ऑपरेशन हो चुका था।जब उन्हें ICU में कई तरह के उपकरण लगे देखा तो बहुत ही घबराहट हुई एवं एकदम धक्का सा लगा कि इतना स्वस्थ्य इंसान इस हाल में !! बहुत ही कठिनाई से अपनेआप को संभाल पाई। पति तो होश में नहीं थे, लेकिन आश्चर्य की बात थी कि डॉक्टर ने हिदायत दे रखी थी कि मैं तथा मेरे बेटे जब भी इन्हें देखना चाहें तो हमें रोका ना जाये। इतना ही नहीं डॉक्टर ने उनके नजदीक हमारे लिये अतिरिक्त कुर्सियां भी लगवा दी थीं। मनिपाल जैसे बड़े अस्पताल में ICU में ऐसी व्यवस्था देखकर मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ था क्योंकि अपने ऑपरेशन के समय मुझे भी ICU में रखा गया था लेकिन मुझे केवल Glass door से ही देखने की इजाज़त थी और वह भी निश्चित समय पर ही 

,यह तो बाद में समझ में आया कि इनके ना बचने की उम्मीद के कारण डॉक्टर हमें मिलने की छूट दे रहे थे। मुख्य डॉक्टर अपनी टीम के साथ इन्हें देखने आते थे, उन्होंने मुझसे कहा अपने पति से कुछ बोलिये। मैंने बोलना शुरू किया,

 “आप एकदम नहीं घबराएँ आप एकदम ठीक हो जायेंगे, गुरुदेव हमारे साथ हैं वह आपको इस कष्ट से निकाल लायेंगें। गुरुदेव यहाँ भी आपके साथ हैं, आपके ऊपर इतनी बड़ी आफत आई किन्तु समय पर आपको इलाज मिल गया, सब उनकी ही कृपा है।” 

मुझे अच्छे से याद है डॉक्टर कभी मुझे देखते, कभी अपने टीम मेंबर्स को देखते, उनके चेहरे पर ऐसा भाव था कि यह औरत किस दुनिया में रहती है जो इतनी उम्मीद लगा कर बैठी है। मेरे पति 20 दिन ICU में रहे, डॉक्टर अपनी टीम के साथ चेकअप के लिये आते, रोज ही बड़ा सा राउंड बनाकर बोलते 

‘हमें ज़ीरो प्रतिशत उम्मीद भी नहीं थी। मैडम आपके आत्मविश्वास से हमें आत्मविश्वास मिला, आप बहुत ही पॉजीटिव थिंकिंग वाली हैं। मैंने डॉक्टर से कहा- सर आप मेडिकल साइंस जानते हैं आपको ज़ीरो प्रतिशत भी उम्मीद नहीं थी, मैं जीरो प्रतिशत भी मेडिकल साइंस नहीं जानती हूँ पर मुझे अपने गुरुदेव पर 100 प्रतिशत विश्वास था, मैं उसी कारण वैसा बोलती या करती थी। अस्पताल की उलझन के समय भी मेरा गायत्री मंत्र का मानसिक जप निरन्तर चलता रहता था, घर पर अखण्ड दीप जलता रहा, प्रतिदिन गायत्री परिवार के एक भाई जी आकर मंत्र जप करते थे तथा अखण्ड दीप की व्यवस्था भी देखते थे। मैं तो पूरे समय अस्पताल में ही रहती थी, जब पति घर लौट आये तब उन भाई जी ने हवन सम्पन्न किया एवं मेरे पति से पूर्णाहुति करवाई। 

आज मेरे पति पूर्णतः स्वस्थ्य हैं, बहुत बड़ा स्ट्रोक होने के कारण शरीर पर असर तो पड़ा है,किंतु अपने सब काम स्वयं कर लेते हैं इसके अलावा गृहस्थी के कार्यों में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक सभी तरह से सहयोग देते हैं। यह परम पूज्य गुरुदेव की ही अनुकम्पा है। दया निधान ने अपार दया बरसायी। ऐसे समर्थ गुरु को पाकर मैं स्वयं को धन्य मानतीं हूँ। हर समय अन्तरात्मा से यही आवाज निकलती है गुरुदेव आप महान हैं, आपकी लीला अपरम्पार है, आप असम्भव को सम्भव बना देते हैं, बस आपकी कृपा बनी रहे।आपके कोई काम आ सकूँ तो स्वयं को धन्य मानू। जय गुरुदेव।

2014 में मुझे दादी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बहु आर्मी ऑफिसर है, बच्चा तीन माह का ही था, बहु को ड्यूटी जॉइन करना पड़ा अतः पोते की देख रेख की जिम्मेदारी मैंने ले ली, अतः नित्य की पूजा, कुछ माला गायत्री मंत्र के होने लगे,मेरा मानसिक गायत्री मंत्र का जप चलता रहा, घर की जिम्मेदारियाँ से पूजा कम ज्यादा होती किंतु परमपूज्य गुरुदेव पर आस्था बढ़ती ही चली 

 गयी।

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हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

कंटेंट को बड़े ही ध्यानपूर्वक एडिट किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।


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