वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अध्याय 21.कल्पनाशक्ति के सम्यक् उपयोग का महत्व और अध्याय 22. ध्यान का महत्व

6 दिसंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद-  अध्याय 21.कल्पनाशक्ति के सम्यक् उपयोग का महत्व और अध्याय 22. ध्यान का महत्व

मनोनिग्रह विषय की 30 लेखों की इस अद्भुत  श्रृंखला में आज प्रस्तुत हैं  अध्याय 21  और 22 । दोनों लेख बहुत ही छोटे हैं -केवल ढाई  पन्नों के।  हर लेख की तरह आज भी हम लिखना चाहेंगें यह अद्भुत श्रृंखला आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के स्वाध्याय पर आधारित  प्रस्तुति है।ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार  रामकृष्ण मिशन मायावती,अल्मोड़ा के वरिष्ठ सन्यासी पूज्य स्वामी बुद्धानन्द जी महाराज और छत्तीसगढ़ रायपुर के विद्वान सन्यासी आत्मानंद जी महाराज जी का आभारी है जिन्होंने  यह अध्भुत  ज्ञान उपलब्ध कराया। इन लेखों का  सम्पूर्ण श्रेय इन महान आत्माओं को जाता है -हम तो केवल माध्यम ही हैं। 

तो आइए चलें लेखों की ओर :

21. कल्पनाशक्ति के सम्यक् उपयोग का महत्व

मनुष्य को कल्पना करने की शक्ति प्राप्त हैlइस शक्ति का दुरूपयोग करने में हम आदी हो गये हैंl इसीलिए मन: संयम में बहुत सी बाधाओं और कष्टों की उत्पत्ति होती हैl हममें से अधिकांश लोग भावनाओं की असंगति, दिवा-स्वप्न, तथा तरह-तरह के निरर्थक अनुमान में व्यस्त रहते हैंl हमारी आशा-अपेक्षाएं भले ही काल्पनिक हों परन्तु उनसे हमें यथार्थ निराशा मिलती हैl भले ही हमारे भय का कोई आधार न हो, पर वह तो सचमुच में हमारे हृदयों को धड़कनों से भर देता हैl अपनी कल्पनाशक्ति के द्वारा हम असत्य को भी अपने लिए सत्य बना लेते हैं और इस प्रकार ऐसी दुश्चिन्ताओं के शिकार हो जाते हैं जिनकी कोई वास्तविक बुनियाद नहीं हैl जब हमारी यह आदत पक जाती है, तो मन : संयम अत्यन्त कठिन हो जाता हैl कभी -कभी तो हमें यह भी पता नहीं चल पाता कि दिन का एक बड़ा भाग हम स्वप्नराज्य और भ्रम की दुनिया में बिताया करते हैं, सत्य और वास्तविकता की दुनिया में नहीं l 

जबतक हम इस आदत को दूर नहीं करते, तबतक मन को वश में करना कठिन होगाl इस आदत को दूर कैसे करें ? निम्नलिखित कथा इस संदर्भ में हमें महत्वपूर्ण संकेत प्रदान करती है :

एक व्यक्ति कुछ कुछ नशे में खोया हुआ धीरे-धीरे सड़क पर जा रहा था l उसके हाथ में एक बक्सा था जिसके ढक्कन और बाजुओं (SIDES) में छेद थे l ऐसा लगता था मानो वह उस बक्से में किसी जीवित प्राणी को ले जा रहा होl रास्ते में एक परिचित मिल गया l उसने उसे रोककर पूछा, ‘तुम्हारे इस बक्से में क्या है?’ 

नशे के झोंक में उसने उत्तर दिया, ‘इसमें एक नेवला हैl’ 

‘भला किसलिए?’

‘तुम तो जानते ही हो कि मेरी आदत कैसी है l अभी मैं पूरी तरह नशे में नहीं हूँ, पर जल्द ही हो जाऊँगा l जब मैं पूरा मदहोश हो जाता हूँ तो चारों ओर सांप ही सांप देखने लगता हूँ l तब मुझे डर लगता है l इसीलिए मैं नेवला लिये जा रहा हूँ ताकि सांपों से मेरी रक्षा हो सकेl’ 

‘ओहो! पर तुम्हारे ये सर्प तो काल्पनिक हैं !’

‘हाँ, पर मेरा यह नेवला भी काल्पनिक हैं!’

वास्तव में बक्सा खाली थाl

इसी प्रकार हम एक कल्पना को काटने के लिए दूसरी कल्पना का सहारा लेते हैं l एक गलत कल्पना को फेंकने के लिए एक सही कल्पना ग्रहण करते हैं l स्वामी विवेकानंद कहते हैं:

“यदि कल्पना का सदुपयोग करें तो वह परम हितैषिणी हैlवह युक्ति के परे जा सकती है और वही एक ऐसी ज्योति है जो हमें सर्वत्र ले जा सकती हैl”

कल्पनाओं में सबसे पवित्र कल्पना तो ईश्वर का विचार है l हम जितना ही ईश्वर के विचार से चिपकते हैं, मन के साथ हमारे संघर्ष उतने ही कम होते हैंl

22. ध्यान का महत्व

ईश्वर का ध्यान मनोनिग्रह का सबसे प्रभावी साधन हैl ध्यान और मनोनिग्रह दोनों साथ-साथ चलते हैंl मन के निग्रह का उच्चतम प्रयोजन है ईश्वर पर या आत्मा पर ध्यान करने में समर्थ होनाl फिर ध्यान भी मन: संयम में सहायक होता है l 

मन को ऐसे तत्व पर केन्द्रित करना चाहिए, जो न केवल अपने आप में शुद्ध हो, बल्कि वह अपनी शक्ति से मन को भी शुद्ध कर देl ईश्वर पर ध्यान का सुझाव इसलिए दिया जाता है कि ध्यान करनेवाला ध्येय वस्तु के गुण को भी आत्मसात् करता हैl ध्यान के समय जब भी मन इधर-उधर चला जाय, तो उसे परिश्रमपूर्वक वापस लाकर ध्यान के विषय में बिठा देना चाहिएl श्रीरामकृष्ण के एक प्रमुख शिष्य स्वामी ब्रह्मानन्द कहते हैं:

“जबतक तुम ध्यान का अभ्यास नहीं करोगे, मन को वश में नहीं किया जा सकता; और जबतक मन नियंत्रित नहीं है, तुम ध्यान नहीं कर सकते l पर यदि तुम सोचो , ‘ पहले मुझे मन को वश में करने दो, फिर मैं ध्यान करूँगा ‘ तो तुम अध्यात्म-जगत् में प्रवेश ही नहीं पा सकते l तुम्हें दोनों एकसाथ करने होंगे-मन को स्थिर करना होगा और साथ ही ध्यान। 

इसलिए एक बार जब एक शिष्य ने स्वामी ब्रह्मानन्द से पूछा, ”महाराज, मन को कैसे वश में किया जाय ?” तो उन्होंने जो उत्तर दिया वह वास्तव में उपर्युक्त निर्देश को अभ्यास में उतारने का तरीका है l उन्होंने कहा:

“नियमित अभ्यास के द्वारा धीरे-धीरे मन को ईश्वर पर केन्द्रित करना चाहिए l मन पर तीक्ष्ण दृष्टि रखो ताकि उसमें कोई विक्षेप या अवांछनीय विचार न पैदा हो जायंं l जब भी ये तुम्हारे मन में घुसने का प्रयत्न करेंगे, तब मन को ईश्वर की ओर फेर दो और हृदय से प्रार्थना करो l ऐसे अभ्यास के द्वारा मन वश में आता है और शुद्ध होता हैl

जय गुरुदेव 

______________________________

24 आहुति संकल्प  सूची एवं  इतिहास :

जो सहकर्मी हमारे साथ लम्बे समय से जुड़े हुए हैं वह जानते हैं कि हमने कुछ समय पूर्व काउंटर कमेंट का  सुझाव दिया था जिसका पहला उद्देश्य  था कि जो कोई भी कमेंट करता है हम उसके  आदर-सम्मान हेतु  रिप्लाई अवश्य  करेंगें। अर्थात जो हमारे लिए अपना   मूल्यवान समय निकाल रहा है हमारा कर्तव्य बनता है कि उसकी भावना का सम्मान किया जाये।  कमेंट चाहे छोटा हो य विस्तृत ,हमारे लिए अत्यंत ही सम्मानजनक है। दूसरा उद्देश्य था एक परिवार की भावना को जागृत करना।  जब एक दूसरे के कमेंट देखे जायेंगें ,पढ़े जायेंगें ,काउंटर कमेंट किये जायेंगें ,ज्ञान की वृद्धि होगी ,नए सम्पर्क बनेगें , नई प्रतिभाएं उभर कर आगे आएँगी , सुप्त प्रतिभाओं को जागृत करने  के अवसर प्राप्त होंगें,परिवार की वृद्धि होगी और ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का दायरा और भी  विस्तृत होगा। ऐसा करने से और  अधिक युग शिल्पियों की सेना का विस्तार होगा। हमारे सहकर्मी  जानते हैं कि हमें  किन -किन सुप्त प्रतिभाओं का सौभाग्य  प्राप्त हुआ है, किन-किन महान व्यक्तियों से हमारा संपर्क  संभव हो पाया है।  अगर हमारे सहकर्मी चाहते हैं तो कभी किसी लेख में मस्तीचक हॉस्पिटल से- जयपुर सेंट्रल जेल-मसूरी इंटरनेशनल स्कूल तक के विवरण  compile कर सकते हैं। 

इन्ही काउंटर कमैंट्स के चलते आज सिलसिला इतना विस्तृत हो चुका  है कि  ऑनलाइन ज्ञानरथ को एक महायज्ञशाला की परिभाषा दी गयी है। इस महायज्ञशाला में  विचाररूपी हवन सामग्री से कमैंट्स की आहुतियां दी जा रही हैं।  केवल कुछ दिन पूर्व ही कम से कम 24 आहुतियों  (कमैंट्स ) का संकल्प प्रस्तुत किया गया।  इसका विस्तार स्कोरसूची के रूप में आपके समक्ष होता  है।  आप सब बधाई के पात्र है और इस सहकारिता ,अपनत्व के लिए हमारा धन्यवाद्।  प्रतिदिन स्कोरसूची  को compile करने के लिए आदरणीय सरविन्द भाई साहिब का धन्यवाद् तो है ही ,उसके साथ जो उपमा आप पढ़ते हैं बहुत ही सराहनीय है। सहकर्मीओं से निवेदन है कि संकल्प सूची  की  अगली पायदान पर दैनिक ज्ञानप्रसाद के संदर्भ में कमेंट करने का प्रयास करें -बहुत ही धन्यवाद् होगा। 

4 दिसंबर 2021 वाले  लेख के स्वाध्याय के उपरांत  9 सहकर्मियों ने विजय पताका को विश्व पटल पर उजागर कर सम्मान प्राप्त किया है। ऑनलाइन ज्ञानरथ की इस  भाव रूपी महायज्ञशाला  में अपने विचारों की हवन सामग्री से कमेन्ट्स रूपी आहुति डाल कर  24 आहुति  संकल्प पूर्ण करने में  इन विजेताओं ने न केवल  अपने जीवन का कायाकल्प किया हैं बल्कि  हम सबका भी कल्याण किया है।  इससे प्रतक्ष्य दर्शित  है कि इस छोटे से  परिवार में श्रेष्ठ, महान एवं  दिव्य आत्माओं की कोई भी कमी नहीं है। इन विजेताओं को नवरत्न कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी : (1) सरविन्द कुमार पाल – 58, (2) संध्या बहन जी – 36, (3) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 30, (4) अरूण कुमार वर्मा जी – 27, (5) डा.अरुन त्रिखा जी – 25, (6) प्रेरणा कुमारी बेटी – 25, (7) निशा भारद्वाज बहन जी – 25, (8) कुसुम बहन जी – 24, (9) उमा सिंह बहन जी – 24 सभी को अनंत हार्दिक शुभकामनाएँ व  बधाई हो।


Leave a comment