वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

प्रेरणा और ज्वाला से भरपूर  एक लेख  

11 अगस्त  2021 का ज्ञानप्रसाद  – प्रेरणा और ज्वाला से भरपूर  एक लेख  

23  जून 2021  को हमने  इसी चैनल पर एक 4 :22 मिनट की वीडियो अपलोड की थी। इस वीडियो में वाणी और लेखनी हमारी ही एक प्रिय युवा  बच्ची संजना कुमारी  की है।  आज तक इस  वीडियो  को 1155 लोग देख चुके हैं और 157 लोग कमेंट कर चुके हैं। इन नम्बरों से वीडियो की लोकप्रियता का अनुमान लगाना तो कठिन है क्योंकि यह एक ऐसे प्लेटफॉर्म से अपलोड हुई है जिसका उदेश्य गणना नहीं संस्कार है। हर कमेंट का एक -एक अक्षर अपने में एक अद्भुत संस्कार बयान कर रहा है। इस वीडियो में जितनी  वेदना व्यक्त की गयी है, एक दसवीं कक्षा की  विद्यार्थी के स्तर के  मुकाबले में बहुत ही उच्स्तरीय है। आप इस लिंक को क्लिक करके इस छोटी सी वीडियो को अवश्य देखें और अपने सर्किल में शेयर करें।https://youtu.be/ytX2RnJgu1w

 इस वीडियो पर चर्चा करने का क्या उदेश्य है ? क्या हम इसे प्रमोट कर रहे हैं ? क्या हमारा इस बच्ची के साथ कोई विशेष सम्बन्ध है ? क्या हम इस बच्ची की भावनाओं से विचलित हुए हैं ? क्या इन विचारों को हर घर में पहुँचाना है ?इन चारों  प्रश्नों का उत्तर “हाँ” ही है।  इस बच्ची के  साथ हमारा मानवता का सम्बन्ध है और मानवता को प्रमोट करना ऑनलाइन ज्ञानरथ का सबसे बड़ा उदेश्य है।  अभी तक हमने जो कुछ लिखा उसकी पृष्ठभूमि हमारे ह्रदय में पिछले 16 -17 घंटे से बन रही थी जब हमने पल्लवी जी का कमेंट पढ़ा था। कैसे संजना और पल्ल्वी को कनेक्ट करें। पल्ल्वी जी द्वारा व्यथित ह्रदय से लिखा, वेदना से भरपूर यह कमेंट हमने एक बार नहीं बल्कि कई -कई बार पढ़ा , न केवल खुद पढ़ा अपने परिवार के साथ भी पढ़ा और बात यहीं पर समाप्त नहीं हुई ,आप सबके समक्ष भी प्रस्तुत  कर रहे हैं। कितना दुःख, निराशा, वेदना है इन शब्दों में। आखिर की पंक्तियाँ हमें आत्मचिंतन करने को कह रही हैं।  पल्ल्वी जी के विचारों  के आगे हम नतमस्तक हैं -शायद यही है विचार क्रांति।  हमें इनके बारे में कुछ अधिक ज्ञान नहीं है , क्या यह भी एक युवा शक्ति हैं —. जो भी हो  विचार बहुत ही क्रन्तिकारी  हैं और ज्वाला धधक रही है।  युवा शक्ति को नमन।  

अनिल मिश्रा जी का आज का कमेंट भी शेयर कर रहे हैं।  हमने तो रिप्लाई करके लिख दिया था कि हमारा “सहकर्मियों से लिखवाने” का प्रयोग सफल हो रहा है और हमारी धारणा “ हमारे सहकर्मी बहुत प्रतिभाशाली हैं” सत्य साबित हो रही है। अरुण वर्मा जी तो वरिष्ठ हैं लेकिन प्रेरणा बिटिया का कमेंट बहुत ही उच्स्तरीय और विश्लेषणात्मक है। यश भाई साहिब के  कमेंट “ तू प्यार का सागर है तेरी इक बूँद के प्यासे हम” ने 1955 की बॉलीवुड  मूवी “सीमा” की याद दिला दी।  मन्ना डे  साहिब का गाया और बलराज साहनी पर फिल्माया यह सुपरहिट गीत आज भी कई स्कूलों में प्रेयर के तौर पर गया  जाता है।  आप सब हमारे कार्य को बहुत ही सरल कर रहे हैं जिसके लिए हम आपका धन्यवाद करते हैं और आप इन कमैंट्स को पढ़  कर अपने विचार व्यक्त कीजिये। सूर्य भगवान की पहली किरण आपको ऊर्जा और शक्ति प्रदान करे।

जय गुरुदेव

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Pallavi S

एक तरह तो भारत का इतिहास है जो महानता का सागर है और आज भारत का बेहद शर्मनाक कृपण वर्तमान जब 10 साल के बालक के साथ सम्प्रदायिक्ता और नफरत फैलाने वाले माता पिता जंतर मंतर के चौराहे पे खड़े हैं।  छोटी छोटी बच्चियों  के साथ दुराचार कर उनकी हत्या कर दी जा रही है। आखिर अपराधियियों और दुराचारियों का इतना दुस्साहस कैसे और क्यो? पुलिस की नारियां भी सुरक्षित नही दिखतीं बाकियों का तो छोड़ दिजीये।  चलिये सरकारी दारोमदारियों की बात- एक बार मान लिया जाये कि इसमे सरकार की भला क्या गलती है यह तो लोग ही दुष्ट पापी अत्याचारी हैं। ऐसे मे तो बड़े जिम्मेदार फिर हम सामाजिक संगठन ही हुए!  क्यों नही ?  भारत की 10% जनता तक भी ठीक से पूज्य गुरुदेव के विचार नही पहुंचे? कैसे दिन ब दिन समाज का पतन होते ही जा रहा है? बद से बदतर जीवन। नर्क बना के रख दिया है। आये दिन ऐसा कोई कांड हो जाता है कि शर्म आती है की किस भारत मे जन्म ले लिया मैंने।  “हाँ मैं बेहद नाराज हुँ और मेरी वजह जायज है।” रातों को जाग जाग कर बहुत introspect किया है मैने। हरा चश्मा उतार कर देखिये, कोई युग निर्माण का अता पता नही है जमीन पे। आपकी दो चार सोसाइटी मे जप  हवन होने को मत गिनिये, 20 पौधे लगाने को मत गिनायिये युग निर्माण  मे। इमानदारी से आत्म चिन्तन करिये की आखिर कब तक केवल “गौरवशाली” इतिहास पर घमंड करेंगे जब की वर्तमान इतना खस्ताहाल है।”

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Anil Mishra 

एक  ही  शक्ति  है , जो  चिंतन  करती है, भोजन  पचाती है, बोलने और  कुछ करने में  खर्च  हो जाती है , यथार्थत  वह  शक्ति एक ही  होती है, परन्तु  स्थान  विशेष के कारण अलग- अलग जगहों पर  उपस्थित रहकर अलग- अलग कार्य को  सम्पन्न  करती हुई  दीखती  भर  है , परन्तु  शक्ति  एक ही है।  यह बात भैया ने  बहुत अच्छी  तरह  समझायी है  , जो  सबकी  समझ में आ  ही  जायेगा। आज  के लेख में  जोड़ा गया  कमेंट भी हमसे  लिखवाया जाता  है  जबरदस्ती   जोर  देकर  लिखवा जाता है🙏🙏 इसमें  हमारी भूमिका  लिखने भर की  रहती है  मात्र.!!!!  विश्वव-वन्द्य   आदिशक्ति  ही  जब जैसा  भाव -चिन्तन   देती  है, ऊंगलियांं  उनको   टाइप  करने  लग जाती हैं  ,  इसमें  उसी  शक्ति  को  ही  श्रेय  देना चाहिए  जो सबके भीतर आद्यशक्ति   के रूप  में  ह्रदय में  विराजमान है🙏 इसमें  हमारा  नाम  भर  केवल  उछाल  दिया  जाता है , पैकिंग  के  भीतर की सामग्री  वही है ,  बस ब्रांड भर  बदल-बदलकर  विश्वभर में  बेचा जा रहा है , कभी  अनिल भाई नाम से, तो कभी  प्रेरणा  और  कभी संजना  बिटिया  के नाम से.🙏 मुझसे  कमेंट  लिखवा  लिया  जाता है , कई- बार  मन  में  आया  कि  सबको  बताऊँ  कि  गुरुदेव की शक्ति ही  हमारे हाथ  से  लिखवाती   है, इसलिए  सबकुछ  गुरुदेव  स्वयं ही  कर  रहे हैं  , हम  तो जुड़े हुए  अंग- अवयव  भर हैं, सभी के चरणों में प्रणाम 🙏 जयगुरुदेव 🙏

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Arun Verma 

परम पूज्य गुरुदेव परम वंदनीय माता जी एवं मां गायत्री के श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम🙌🙏🙌

आदरणीय एवं परम स्नेहिल अरुण भैया जी को कोटि कोटि नमन ,एवं बहुत बहुत धन्यवाद।और आभार व्यक्त करता हूं। स्वामी राम तीर्थ जी के जीवनी से यही सीख  मिलता है कि परिस्थितियां कुछ भी रहे,हिम्मत और साहस कम ना होना चाहिए। स्वामी जी की  आर्थिक स्थिति इस कदर जकड़े हुए थी  कि ,अपनी  भूख को भी मिटाने में सही तरीके से सक्षम नहीं थे,आज के युवाओं में थोड़ी सी भी किसी तरह का कोई कमी आती है तो वह अपने को असहाय महसूस करने लगता है।और उसी के बारे में रात दिन सोचना शुरू कर देते  हैं ।ऐसे युवाओं को मै यही कहना चाहूंगा कि हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाने से काम नहीं चलेगा।स्वामी जी की  तरह बनकर कुछ आगे करने की सोचो।हमेशा यही बात दिमाग में होना चाहिए कि जब वो कर सकते है तो मै क्यों नहीं।अगर ऐसी धारणा आ जाए तो देश के कोई भी युवा बेरोजगार नहीं रहेगा।स्वामी जी के पिता जी के तरह ही बहुत ऐसे पिता हैं जो अपने बेटे को उतना खर्च वहन नहीं कर सकते, वैसे बच्चे को स्वामी जी के तरह बनकर आगे बढ़ने का है।वे कैसे स्वामी जी के तरह बनेंगे, ऑनलाइन ज्ञान रथ का ज्ञान प्रकाश उनके पास पहुंचेगा तब ना उनको इसके बारे में जानकारी होगा।ऑनलाइन ज्ञान रथ का ज्ञान प्रसाद सभी युवाओं तक पहुंचे ,इसके लिए ऑनलाइन ज्ञान रथ के सभी वरिष्ठ सहकर्मियों से भाव भरा निवेदन है कि सबसे पहले अपने ही घर के बच्चो को इस प्रसाद का स्वाद चखाया जाए क्योंकि बहुत से  ऐसे परिवार हैं जिनमें  ऑनलाइन ज्ञान रथ का प्रसाद पहुंचता है लेकिन बच्चो के पास जाने से वंचित रह जाता है।”  सभी युवा साथियों से आग्रह है कि वे हर अपने साथी को यह प्रसाद पहुंचाने का प्रयास करे,ताकि उनके अंदर भी सुसंस्कारों का संचार उमर पड़े। अनिल भाई साहब का विचार बहुत ही प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक है।उनकी लिखी हुई हर शब्द में देश के प्रति बहुत ही सहानभूति और आत्मसमर्पण का भाव छिपा हुआ है। उनका विचार क्रांतिकारियों जैसा ही है,जो देश के प्रति मर मिटने को तैयार रहते है।उनके  वाट्सअप मैसेज पर भी कुछ इसी तरह के  संवेदनात्मक विचार आते रहते है।वे बहुत ही ज्ञानवान और कर्तव्य निष्ट व्यक्ति है।मै उनको तहे दिल से, हृदय से सत सत नमन करता हूं जो इस तरह के दिव्य आत्माओं के साथ जुड़कर हम लोग गुरु जी के विचारो का फैलाने का काम कर रहे है। ___________________

Prerna 

हमारे परम आदरणीय व परम प्रिय चाचा जी आपके श्री चरणों में नतमस्तक होकर भाव भरा सादर प्रणाम स्वीकार करें। आज के इस लेख को पढ़कर आत्मा तृप्त हो गई और मन में अपार शांति मिली। इस अद्भुत ,ज्ञानमयी, ऊर्जामयी लेख को प्रस्तुत करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद। स्वामी रामतीर्थ का जीवन हम सबके लिए एक तीर्थ के समान ही तो है। जिस प्रकार तीर्थ में जाने से मन में शांति प्राप्त होती है उसी प्रकार स्वामी रामतीर्थ के जीवन से यदि हम कुछ सीख पाए तो हम सब का जीवन भी किसी तीर्थ से कम ना होगा।इनके जीवन का प्रत्येक पहलू हम सब के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आदरणीय चाचाजी यह तो आपने बिल्कुल सही कहा कि आज सभी केवल और केवल आनंद ही चाहते हैं और वह उसी आनंद की प्राप्ति के लिए क्या से क्या नहीं करते परंतु उन्हें वह आनंद मिलता कहां है। वो ढूंढते रहते हैं , ढूंढते रहते हैं परंतु लाख कोशिशों के बावजूद भी उसे आनंद की प्राप्ति नहीं होती है और वह इसी खोज में एक दिन दुनिया से चला भी जाता है। वह मनुष्य जो आनंद की खोज में मारा मारा फिरता रहा उसे यह तक ज्ञात नहीं कि जिस आनंद की तलाश में वह इधर उधर भटक रहा है वह तो उसके अंदर ही विराजमान है। आत्मा में ही परमात्मा का वास है और उस परब्रह्मा परमात्मा से एकाकार होना ही सच्चे आनंद की प्राप्ति कही जाती हैं।

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Yash Banta 

परम पूज्नीय गुरूदेव परम वदंनीय माता जी के चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम  । आ. डाॅ सा. को भाव भरा नमस्कार । स्वामी राम तीर्थ जी ने बहुत ही सरलता से प्रभु के गुणों का वर्णन किया है । वह तो गुणतीत हैं । संसार परिवर्तन शील है । यहाँ कुछ भी स्थाई नही है। एक अटल सत्य है, वो है परमात्मा। उसकी ही जोत सबके अंदर प्रवाहित हो रही है । सभी श्रेष्ठ ऋषि मुनियों तपस्वियों  की खोज उस परम सत्ता, सत्त- चित्-आनन्द के आनन्द मे डूबने को व्याकुल रहती है और उस प्रभु के साथ तारतम्य स्थापित करना चाहती है । उस सत्-चित्-आनन्द को पाने के लिए प्रेम, करूणा, वातसल्य, दया, क्षमा व सरल हृदय का होना बहुत जरूरी है । उस परमसत्ता का हर चीज़ के लिए शुक्राना करते हुए ये पक्ँतियाँ अनयास ही मन मे गुनगुनाने लगी है।  “तूँ प्यार का सागर है ,तेरी इक बूँद के प्यासे हम । बहुत बहुत धन्यावाद ।” सभी को प्रणाम ।


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