5 अप्रैल 2021 का ज्ञानप्रसाद जैसा हमने अपने सहकर्मियों के साथ कुछ दिन पूर्व शेयर किया था, परमपूज्य गुरुदेव के माता जी के नाम पर स्थापित इंटर कॉलेज में मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा यज्ञ सम्पन्न किया गया। श्री दान कुंवरि इंटर कॉलेज आंवलखेड़ा में स्थित है। आंवलखेड़ा परमपूज्य गुरुदेव की जन्मभूमि है ,यहीं पर वह हवेली भी स्थित है जहाँ 1926 में गुरुदेव का दादा गुरु सर्वेश्वरानन्द जी से साक्षात्कार हुआ था। कॉलेज के बिल्कुल सामने main रोड पर ही गायत्री शक्तिपीठ स्थित है जहाँ गायत्री परिवार की समस्त गतिविधियां समपन्न करवाई जाती हैं। हम शक्तिपीठ के कार्यकर्ताओं के बहुत ही आभारी हैं जिनके सहयोग से हम दुर्लभ वीडियोस शूट कर सके।
आशा करते हैं आप हमारे लेखों की तरह वीडियो को भी पूरा स्नेह ,आदर और समर्पण प्रदान करेंगें। एक बात हम आपके साथ शेयर करना चाहते हैं कि इस वीडियो को बनाने में बहुत अधिक समय लगा है। कारण केवल एक ही है कि वीडियो बहुत ही बड़ी है ,हमारा सॉफ्टवेयर इतनी बड़ी वीडियो को प्रोसेस करने में असमर्थ है ,लेकिन पूज्यवर का आशीर्वाद ऐसा रहा कि हम इस को पूर्ण कर सके। यज्ञ के सारे ही steps हमने include करने का प्रयास किया है। हम अपने चैनल पर बड़ी videos को अपलोड करने में झिझकते हैं क्योंकि लेखों की तरह ,वीडियो की भी सीमा रखी है। आखिर अपने सहकर्मियों के अमूल्य समय का ध्यान रहता है और हम यह भी नहीं चाहते कि बिना देखे ही फॉरवर्ड करते जाएँ। यह हमारी वीडियो का अपमान होता है और गुरुदेव इससे प्रसन्न नहीं होते। आदरणीय डॉ ममता शर्मा प्रिंसिपल श्री दान कुंवरि इंटर कॉलेज के हम आभारी हैं जिन्होंने यह वीडियो भेज कर हमें और ऑनलाइन ज्ञानरथ के सभी समर्पित सहकर्मियों को कृतार्थ किया। इन्ही शब्दों के साथ अपनी लेखनी को विराम देते हैं जय गुरुदेव परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्रीचरणों में समर्पित है स्वर्णिम सूर्य के साथ दिव्य दर्शन -सुप्रभात
1984 से लेकर 1990 तक परमपूज्य गुरुदेव द्वारा दिए गए महाप्रयाण के संकेत
मित्रो आज का ज्ञान प्रसाद हमने प्रज्ञावतार हमारे गुरुदेव शीर्षक वाली अंग्रेजी अनुवादक पुस्तक “ Gurudev Prophet of New Era” पर आधारित किया है। महामहिम पंडित लीलापत शर्मा जी द्वारा लिखित इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद आदरणीय वसंत चौकसी जी ने किया है। इस लेख का मुख्य उदेश्य गुरुदेव द्वारा अपने महाप्रयाण से 5 -6 वर्ष पूर्व दिए गए संकेतों को अंकित करना है। आप लेख का अध्यन करें और स्वयं पूज्यवर की शक्ति को महसूस करें। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करके आप के समक्ष इस लेख को प्रस्तुत करना एक अत्यंत challenging कार्य था विशेषकर तब जब हम सम्पूर्ण जीवन अंग्रेजी में ही कार्यरत रहे। बोलने में तो ठीक थे लेकिन लिखने का तो कभी भी अवसर न मिला। गूगल महाराज ने बहुत साथ दिया ,हम उनके चरणों में नतमस्तक हैं। एक शब्द जिसका हिंदी अनुवाद करने का बहुत परिश्रम किया और google महाराज भी कोई पर्याप्त उत्तर न दे सके वह है “ईथर” तो हम आपसे यही निवेदन करेगें कि भाव को समझने का प्रयास करें न कि word meaning .
गुरुदेव 1984 में चौथी और संभवत: आखिरी बार हिमालय गए थे। दैवी शक्ति के साथ अपनी मुलाकात के बारे में ,दादा गुरु सर्वेश्वरानंद, से मिलने के बाद उन्होंने एक बार कहा था :
“यात्रा हमेशा की तरह कठिन थी, गोमुख तक पहुंचना , वीरभद्र से मिलना और फिर तपोवन तक बहुत ही आसानी से पहुंच जाना । लेकिन इस बार की यात्रा में एक बहुत महत्वपूर्ण अंतर था। इस बार मुझे सूक्ष्म शरीर में आने के लिए बताया गया था। दादा गुरु से मिलते ही ह्रदय में प्रसन्नता की एक विद्युत तरंग कौंध जाती थी। इस बार भी वैसा ही हुआ। एक क्षण के भीतर ही अभिवादन और आशीर्वाद-औपचारिकता समाप्त हो गई। मार्गदर्शक के साथ इतने घनिष्ट सम्बन्ध होने के कारण औपचरिकता में व्यर्थ समय नष्ट नहीं किया जाता था। तुरंत ही दिव्य गुरु कहने लगे,
“अब तक जो कुछ तुम्हें बताया और किया गया वह स्थानीय और सरल था। अग्रणी लोग इस तरह का काम पहले भी करते रहे हैं। लेकिन अब हम आपसे जो कह रहे हैं वह बहुत ही बड़े स्तर का कार्य है। ”
सूक्ष्मीकरण :
“भौतिक और ईथर दोनों वायुमंडल इन दिनों बेहद प्रदूषित हो गए हैं। न केवल मनुष्य बल्कि इस ग्रह पर हर प्रकार के जीवन का अस्तित्व खतरे में है। भविष्य चुनौतियों से भरा है। इस स्थिति से निपटने के लिए, तुम्हे एक से पांच ( सूक्ष्मीकरण ) बनना होगा। तुम्हें अपनी शक्ति को पांच खंडों में विभाजित करना होगा और उससे पांच गुना काम लेना होगा। ये पाँचों अस्तित्व वातावरण को प्रदूषण से मुक्त करने, प्रतिभाओं के विकास और विनाशकारी संभावनाओं को हटाने, एक उज्ज्वल भविष्य के लिए आशातीत परिस्थितियाँ बनाने और लाने के लिए जिम्मेदार होंगे। इस विशाल कार्य को सम्पन्न करने के लिए स्थूल शरीर तो पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि स्थूल शरीर की कुछ निर्धारित सी सीमा ही होती है इसके लिए अपने शरीर के ईथर भाग के विकास के लिए काम करना “।
1984 की वसंत पंचमी से गुरुदेव ने लोगों से मिलना जुलना बंद कर दिया। यहां तक कि मिशन-कार्यकर्ताओं ने भी उन्हें कई दिनों तक नहीं देखा । माताजी हमें बताती थीं कि हमें यह कदापि नहीं सोचना चाहिए कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है यां उन्हें कोई प्रॉब्लम है। गुरूजी इस समय अपने गुरु की संगति में है और भौतिक शरीर से ईथर शरीर में प्रवेश कर रहे हैं । गुरूजी न तो थक गए हैं, न ही काम करने से बचने की कोशिश कर रहे हैं यां बहाने ढूंढ रहे हैं, बल्कि अपनी शक्तियों को और अधिक बड़े पैमाने पर बढ़ा रहे हैं ।
परमपूज्य गुरुदेव ने पहले कभी कहा था, यह मौन साधना है और इसे एक विशाल अभियान को सम्पन्न करने से पहले अपनाया जाता है। तब गुरुदेव ने लिखा था कि भौतिक शरीर में रहने वाली आत्मा को अगर सर्वोच्च कार्य करना है तो कोई विशेष या असामान्य स्थितियों में पांच भिन्न-भिन्न शरीरों के माध्यम से ही हो सकता है। यदि कार्य एक ऐसी प्रकृति का है जिसे पांच अलग-अलग शरीरों द्वारा बहुत लंबे समय तक किया जाना है, तो भौतिक, मानव शरीर द्वारा सांसारिक कार्यों को रोकना होगा। मेरे पांच शरीरों में से एक को विशेष रूप से दुखी, असमर्थ और पीड़ित लोगों की मदद के लिए नियुक्त किया गया है।
गुरुदेव के असंख्य दर्शनार्थी जी हर रोज़ प्रातः चरणस्पर्श करने आते थे इस सूक्ष्मीकरण साधना से बहुत ही दुखी थे क्योंकि गुरुदेव किसी के लिए भी बिल्कुल उपलब्ध नहीं थे। लेकिन गुरुदेव इतने दयालु थे कि इसे सहन नहीं कर सके। उन्होंने दर्शन देने के लिए एक अपनाई गई विधि से सुबह का समय तय किया।
अपनाई गई विधि इस प्रकार थी:
गुरुदेव अपने कमरे में बैठकर लेखन कार्य करते थे, दर्शन चाहने वालों के लिए उनके कमरे की खिड़की एक निश्चित समय के लिए खुली रहती थी और लोग केवल बाहर से ही देख कर चले जाते।
इस तरह से दो साल बीत गए।
1988 के वसंत में परमपूज्य गुरुदेव ने कहा:
‘यह संभव है कि आपके गुरुजी जीवन के 80 वर्ष पूर्ण कर सकते हैं । जिस क्षण मैं अपने दिए गए अपरिहार्य कार्यों को पूर्ण कर लेता हूँ तो मैं दूसरों को अपनी जिम्मेदारी सौंप दूंगा। परिजनों को यह संदेह हो सकता है कि उनके उपरांत मिशन की प्रगति रुक सकती है और कार्यक्रमों में अव्यवस्था प्रबल हो सकती है। लेकिन जो लोग गहराई से देखने में सक्षम हैं, वे जानते हैं कि यह मिशन साधारण मानवों के द्वारा नहीं बल्कि दिव्य सत्ताओं द्वारा चलाया जा रहा है। लोगों की साधारण भाषा में कह सकते हैं एक बाजीगर (जादूगर) इसे चला रहा है। अगर कोई गलती होती है, तो वह ही इसे सही करेगा। हानि या लाभ उसका ही होगा। हर किसी को मिशन के भविष्य के बारे में इसी तरह से सोचना चाहिए और निराशा को पास नहीं आने देना चाहिए।
अगले वर्ष 1989 के वसंत उत्सव में परमपूज्य गुरुदेव ने कहा:
जो लोग मेरे शरीर के बाद मुझे नहीं देखना चाहते हैं, वे मुझे मेरे विचारों में, मेरे साहित्य में देखेंगे। मेरे विचार ही मेरी मूल शक्ति है। तब भी कई लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि गुरुदेव नश्वर शरीर छोड़ने के बारे में बता रहे हैं।
ईथर अवस्था में प्रवेश करने की प्रक्रिया के बारे में गुरुदेव ने समझाया :
“अब इस जीवन का एक नया अध्याय शुरू होता है। मैंने हड्डियों और मांस के इस शरीर से उतना ही काम निकाला है जितनी मुझे आवश्यकता थी । अब मुझे और भी महत्वपूर्ण कार्य करने हैं। ये केवल ईथर अवस्था के द्वारा ही किया जा सकता है । आपको विश्वास होना चाहिए कि इस दशक के अंत तक मैं दुर्लभ ईथर शरीर के साथ काम करूंगा और आप उन कार्यों के परिणामों को देख और अनुभव भी कर पाएंगे।
एक और वर्ष बीत गया और वर्ष 1990 का वसंत आ गया। गुरुदेव ने कहा कि:
“अगले दस वर्ष युगसंधि की बेला है दो शताब्दियों की संधि की बेला । आप इस नश्वर शरीर को देख सकेंगें या नहीं लेकिन विशेष कार्यों के लिए नियुक्त यह सैनिक पूरी जागरूकता के साथ अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करेगा।”
इन शब्दों के बाद भी, भक्त यह विश्वास नहीं कर रहे थे कि गुरुदेव अपना नश्वर फ्रेम उतार कर फेंक देंगे।
30 अप्रैल, 1990:
30 अप्रैल, 1990 को परमपूज्य गुरुदेव ने अपने शिष्यों की एक विशेष बैठक बुलाई और भारत के छह बड़े शहरों में छह बड़े ब्रह्मयज्ञों की व्यवस्था करने के लिए कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए। उन्होंने उन्हें 100,000 दीपक प्रज्वलित करने का निर्देश दिया।
फिर एक दिन गुरुदेव ने यह संदेश लिखा,
“युग के परिवर्तन को ठीक से तय किया गया है। वर्ष 2000 तक, यह दो युगों के संगम की सुबह होगी। विचारशील, दूरदर्शी लोगों को इस अवधि के दौरान आक्रामकता और उत्साह के साथ काम करना चाहिए। उन्हें आगे की पंक्ति में खड़े होने का साहस प्रदर्शित करना चाहिए। उन्हें लोगों को व्यक्तिगत रूप से और लोगों के उद्धार के लिए साहस देने के लिए दिल और आत्मा से काम करना चाहिए। “
एक दिन गुरुदेव ने कहा,
“जब मैं इस शरीर को छोड़ता हूं तो मुझसे इस में लौटने की अपेक्षा न करें। और न ही आपको इस शरीर से कोई लगाव होना चाहिए। गायत्री-तीर्थ के प्रवेश द्वार पर इस शरीर का दाह संस्कार किया जाना चाहिए। शांतिकुंज में। दाह-संस्कार के बाद मेरे अवशेषों को पास ही स्थित प्रखर प्रज्ञा पर रखा जाना चाहिए। पास का स्थान माताजी के लिए रखा गया है। वह आपके बीच रहेंगीं और मेरे बाद वह स्वयं आपका मार्गदर्शन करेंगीं”।
उन्होंने अंतिम संस्कार के संबंध में अन्य दिशा-निर्देश भी दिए। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि उनके शरीर को भक्तों द्वारा दर्शन के लिए नहीं रखा जाना चाहिए लेकिन दाह संस्कार गायत्री जयंती वाले दिन ही तुरंत किया जाए जो 2 जून 1990 को आता है।
उपरोक्त तिथि से आठ दिन पहले, गुरुदेव ने भोजन और पानी लेना छोड़ दिया, और अपने अनुयायियों से कहा कि समय आ गया है कि वे ईथर अवस्था में प्रवेश करें और दादा गुरु सर्वेश्वरानंद के साथ विलय करें, उनकी ही तरह ईथर शक्तियों के माध्यम से ईथर अवस्था में काम करें।
2 जून 1990 का ऐतिहासिक दिन आ गया। सूरज उगने वाला था।
गुरुदेव ने हाथ जोड़कर कहा,
“हे दिव्य माता, मैं आपके दिव्य चरण में सिर झुकाता हूं” और नश्वर शरीर को छोड़ दिया।”
उस समय माताजी लगभग 7000 कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं। जिस क्षण गुरुदेव ने अपना नश्वर शरीर छोड़ा, माताजी ने अपनी आंखों से आंसू पोंछे और अपना व्याख्यान जारी रखा। व्याख्यान के बाद, उन्होंने भक्तों को सूचित किया कि गुरुदेव ने अपना शरीर त्याग दिया है और अब हमारे बीच व्याप्त है और हमें उन्हें अपने अंतःकरण में प्रकट होने देना चाहिए और हमें उनकी कृपा के योग्य बनाना चाहिए।
तो मित्रो ऐसे होते हैं दिव्य पुरष। हमने देखा कैसे उन्होने अपनी इच्छा से अपने महाप्रयाण का दिन और समय न केवल नियत किया बल्कि परिजनों को पांच वर्ष तक संकेत भी देते रहे। वंदनीय माता जी ने कैसे संयम से सब कुछ श और संभाला।
” सूर्य भगवान की प्रथम किरण आपके आज के दिन में नया सवेरा ,नई ऊर्जा और नई उमंग लेकर आए।
जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित
15 वर्षीय ग्रामीण बालक सविंदर पाल के ऊपर परमपूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद , भाग 2
मित्रो, आज का लेख सविंदर पाल जी के गायत्री महायज्ञ के संदर्भ में दूसरा और अंतिम भाग है। हमने बहुत प्रयास किया है कि आपके समक्ष प्रस्तुत करने से पहले इस लेख में कोई भी त्रुटि दर्शित न हो लेकिन फिर भी अगर कोई अनजाने में रह गयी हो तो हम आपके सबके क्षमा प्रार्थी हैं। लेख के दोनों भागों में लेखनी का कमाल तो सविंदर भाई साहिब का ही है परन्तु हमने कुछ एक स्थानों पर अपने विवेक के अनुसार कुछ एडिटिंग की है।
हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि हमारे सहकर्मी सविंदर जी के इस पुरुषार्थ से अवश्य ही प्रोत्साहित होंगें और आने वाले दिनों में इसी तरह के लेख लिख कर भेजेंगें।
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तो चलते हैं लेख की ओर :
तत्पश्चात आदरणीय डॉक्टर साहब गुप्ता जी व हमारे बीच आध्यात्मिक चर्चा शुरू हुई I उस समय हमारा विद्यार्थी जीवन था उम्र लगभग 14-15 वर्ष की थी I अध्यात्म में हमारी रुचि बाल्यावस्था से थी,हमारे बुजुर्गो में हमारे परदादा आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे वह हमेशा स्नान-ध्यान के पश्चात ही भोजन ग्रहण करते थे, हम भी उनके साथ नकल किया करते थे तो घर में सब लोग मना किया करते थे, कहते थे कि अभी तुम्हारी यह सब-कुछ करने की उम्र नहीं है I तुम्हारा भविष्य खराब हो जाएगा लेकिन हम किसी की बात नहीं मानते थे I हम सिर्फ अपने परदादा की बात मानते थे और वह हमसे बहुत प्यार करते थे। वह जब तक जीवित रहे तब तक कोई ज्यादा आपत्ति नहीं हुई I कुछ दिन बाद उनका स्वर्गवास हो गया तत्पश्चात हमारे नियम-संयम पर प्रतिबंध लग गया Iअब हम सबकी तरह परिवार के माहौल में ढल गए I प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा भी चल रही थी फिर भी अध्यात्म से रुचि कम नहीं हुई , कहीं भी सत्संग होता तो हम छिपकर सुनने जरूर जाते थे जानकारी हो जाने पर चाहे मार क्यों न पड़ जाती I यह सिलसिला चलता रहता था I अंतःकरण में अच्छे मार्गदर्शक की तलाश रहती थी I
इसी कड़ी में आदरणीय डॉक्टर साहब गुप्ता जी से हमारी पहली मुलाकात चिकित्सा के दौरान हुई और उन्होंने हमसे हमारे विषय में जानकारी ली, पढ़ाई-लिखाई के बारे में भी पूछताछ की तो हमने सारी जानकारी दी वह हमसे बहुत प्रभावित हुए। तत्पश्चात उन्होंने हमें आध्यात्मिक चर्चा में परम पूज्य गुरुदेव के विषय में, उनके मिशन के विषय में व गायत्री परिवार के विषय में बहुत कुछ बताया उस दिन से आदरणीय डॉक्टर साहब गुप्ता जी से हमारी आध्यात्मिक दोस्ती हो गई और फिर हम हमेशा उनकी क्लीनिक जाने लगे और घंटो परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक विचारों व मिशन के कार्यक्रमों की चर्चा किया करते और हम आनंदमय हो जाते I हमें बहुत अच्छा लगता तथा हम आदरणीय डाक्टर साहब गुप्ता जी से परम पूज्य गुरुदेव के विषय में तमाम प्रकार की जानकारी लिया करते थे।
उन्होंने हमें सर्वप्रथम आदिशक्ति जगत् जननी गायत्री माता के महामंत्र की उपासना करने को कहा। उन्होंने कहा इस महामंत्र के जाप करने से विद्या आएगी और तुम्हें वह सब-कुछ मिलेगा जो तुम चाहते हो I चाहत तो हमारी बहुत बड़ी थी वह भी सांसारिक सुखों की I हम आदरणीय डाक्टर साहब गुप्ता जी के कथनानुसार प्रातःकाल गायत्री महामंत्र की उपासना करने लगे, एक खूबी हमारे पास प्राकृतिक थी, वह थी प्रातःकाल ब्रम्हमुहुर्त में जागना और शौचादि-क्रिया से निवृत्त होकर उसी समय स्नान कर अपनी प्रातःकालीन पढ़ाई में बैठ जाते थे वही नियम आज भी कायम है I
पंच कुण्डीय गायत्री महायज्ञ :
पंच कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में अति प्रसन्नता का माहौल था I कार्यक्रम के व्यवस्थापक परम आदरणीय महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी, कार्यक्रम का उद्घाटन कर रहे माननीय राकेश सचान जी विधायक घाटमपुर व कार्यक्रम का संचालन कर रहे हम सरविन्द कुमार पाल एक साथ एक मंच में उपस्थिति होने का संयोग परम पूज्य गुरूदेव के आशीर्वाद से अदभुत था I मंच में उपस्थित चार प्राणवान आत्माओ में से तीन आत्माए महान थी, जिनमें सबसे श्रेष्ठ व वरिष्ठ परम आदरणीय महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी थे I विधायक राकेश सचान जी व हमारे शैक्षिक गुरु प्रधानाचार्य श्री जयनारायण पाल जी दोनों महान आत्माएं महामहिम कुदैशिया जी के शिष्य थे I
परमपूज्य गुरुदेव द्वारा रचा गया यह अद्भुत दृश्य अवश्य ही अविश्वसनीय था ,तीन पीढ़ीयां एक साथ एक ही मंच पर, एक ही पावन कार्य के लिए , एक ही समर्पण के साथ, सच में अविश्वसनीय ,गुरुदेव हमारा नमन ,वंदन स्वीकार करें,अपने चरणों में स्थान दें।
इतना सुखद एवं रुचिकर दृश्य कि शब्द कम पड़ गए हैं। कार्यक्रम का माहौल एकदम ही बदल गया था I चारों तरफ आनंद ही आनंद था क्योंकि कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोग उन महान आत्माओ के सम्बन्ध से परिचित थे I माननीय विधायक श्री राकेश सचान जी के कर-कमलों द्वारा कार्यक्रम सम्पन्न किया गया I सबने अपने-अपने विचार रखे , हम सबका मार्गदर्शन कर उत्साहवर्धन किया I कार्यक्रम परम पूज्य गुरूदेव की कृपा से तीनों दिन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। कार्यक्रम में हमारे पूरे गांव का व आस-पास के गाँव का बहुत अच्छा सहयोग व समर्थन मिला जिसकी हमें कभी कल्पना भी नहीं थी कि हम पहली बार और इतनी छोटी आयु में , विद्यार्थी जीवन में इतना बड़ा कार्यक्रम सम्पन्न करवा पायेंगें। लेकिन यह सब परम पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा व आशीर्वाद था कि उन्होंने हमें इतनी कम उम्र में इतना विशाल दायित्व सौंपा, यह हमारे लिए परम् सौभाग्य की बात है I हम अपने गाँव में अकेले ही गायत्री परिवार में थे I हमारे गाँव के आस-पास दूर-दूर तक लोग मिशन से अपरिचित थेI कार्यक्रम का दायित्व अपने कन्धों पर लेने के उपरांत ही अपने गाँव में सभी लोगों से सम्पर्क स्थापित किया तो हमारे गाँव के मुखिया व ग्राम पंचायत प्रधान श्री मद्दीलाल पाल जी का बहुत बड़ा सहयोग मिला था I गाँव के और सम्भ्रान्त लोग जैसे कृष्ण कुमार पाल, दिलबहार पाल, क्षेत्रपाल, राजेन्द्र कुमार पाल, रामशंकर पाल भरुआ सुमेरपुर जिला हमीरपुर एवं समस्त ग्रामवासियों का भी बहुत अच्छा सहयोग मिला I कार्यक्रम में प्रथम दिन थोड़ी समस्या कार्यक्रम आयी, समापन के बाद शाम को व्यवस्था सम्पन्न करने में परेशानी भी आयी। उस दिन रात को भयंकर कुहरा था लेकिन परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से समस्या का समाधान आसानी से हो गया I नवल किशोर मिश्रा जी के हाथ कार्यक्रम की कमान थी , कार्यक्रम तीनो दिन सुचारू रूप से चला, फिर किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं आयी और कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। तत्पश्चात हम सबको राहत मिली I हमें सम्पूर्ण विश्वास हो गया कि इस तरह परम पूज्य गुरूदेव द्वारा रचित कार्य सम्पन्न होता है I उनके आशीर्वाद से कोई कमी नहीं रहती I
पंच कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में सहकर्मियों का सहयोग :
पंच कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में हमारी माताओ-बहनो का भी बहुत बड़ा सहयोग रहा I कार्यक्रम में भोजन व्यवस्था उन्हीं के हाथों में थी जिसके कारण भोजन व्यवस्था में कोई कमी आ ही नहीं पायी। श्रीमती राजपती पाल, श्रीमती फूलमती पाल, श्रीमती सावित्री देवी, कुमारी रानी पाल, सरोज देवी पाल, सुनीता देवी, फूलन देवी, सुषमा देवी, रूबी देवी, अनीता देवी, शशी देवी, साधना सिंह, सुशीला देवी, नीलम कुशवाहा आदि आदि का कार्यक्रम में बहुत बड़ा योगदान था जो बहुत ही सराहनीय व प्रशंसनीय था I माताओं और बहनों की इतनी लंबी सूची है कि सबका विवरण देना असंभव सा लग रहा है
युगतीर्थ शांतिकुंज से आयी गायत्री परिवार की टोली का भी बहुत बड़ा सहयोग था I दो दिन पहले से ही आकर, घूम-घूमकर आस-पास के गाँवों में कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया जिसमें कुछ प्रमुख नाम हैं – बाबूराम कश्यप, चन्द्रिका कुशवाहा, अनिल कुशवाहा, रमेश सचान, रामबाबू शिकौहला, डा.रामप्रकाश पाल सूलपुर, विमल पाल असेनियाँ,रामजीवन पाल भर्थुवा नेवादा, रामआसरे बुढ़ावां।
और भी दूर-दराज से बहुत से लोगों ने कार्यक्रम में आकर भाग लिया I कार्यक्रम में भीड़ बहुत थी I जिसको देखते हुए माननीय विधायक राकेश सचान जी ने पुलिस प्रशासन की व्यवस्था की थी व आर्थिक सहयोग भी दिया था I कई अधिकारियों व ग्राम प्रधानों का भी सहयोग था I हमारे ब्लॉक भीतरगांव के ए. डी. ओ. , पंचायत माननीय श्रीराम गुप्ता जी, जहानाबाद से डा.प्रभात कुमार निगम, योगेन्द्र कुमार सक्सेना अंग्रेजी प्रवक्ता आदर्श इन्टर कालेज कोड़ा जहानाबाद , हमें गायत्री परिवार में लाने वाले परम पूज्य आदरणीय डाक्टर साहब रामकुमार गुप्ता जी। परम पूज्य गुरूदेव के कार्यक्रम में शामिल और भी भाई-बंधु, माताएं-बहनें आदि सभी प्राणवान आत्माओ को ह्रदय से साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई देते हुए सादर प्रणाम व नमन-वंदन करता हूँ जिनका तहेदिल से स्नेह्,प्यार व सहयोग मिला। सभी को बारम्बार स्वागत व अभिनन्दन करता हूँ।
परम पूज्य गुरूदेव, वन्दनीया माता जी व आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती गायत्री माता की कृपा सदैव इन सब पवित्र आत्माओ पर सदैव बरसती रहे,यही हमारी परम पूज्य गुरूदेव से मंगल कामना है I साथ ही परम आदरणीय अरुण भैया जी को व आनलाइन ज्ञानरथ के सभी पाठकगण व सहकर्मी भाइयों को सादर प्रणाम व हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई जो ज्ञानरथ के माध्यम से परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक विचारों को जन-जन तक पहुंचाने में निस्वार्थ भाव से अपना पूरा सहयोग दे रहे हैं I सभी को हमारी तरफ से हार्दिक अभिनन्दन, सभी का हार्दिक स्वागत।
अपनी लेखनी को विराम देते हुए आप सभी से अपनी हर किसी गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ I धन्यवादI I जय गुरुदेव जय माता दी सादर प्रणाम I
सरविन्द कुमार पाल संचालक गायत्री परिवार शाखा करचुलीपुर कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
15 वर्ष के बालक सविंदर पाल के ऊपर परमपूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद , भाग 1
मित्रो, अपने पिछले लेख में हमने आदरणीय सविंदर पाल जी के बारे में जानकारी दी थी ,आज प्रस्तुत है उनके जीवन का 1995 का अविस्मरणीय संस्मरण जब वह केवल 15 वर्ष के थे और हाई स्कूल के विद्यार्थी थे। आज वाला लेख दो भागों का प्रथम भाग है, कल इसका दूसरा और अंतिम भाग प्रस्तुत करेंगें।
करचुलीपुर ( उत्तर प्रदेश ) नामक जिस ग्राम की यह घटना है आज भी बहुत ही छोटी जगह है। हमने जिज्ञासावश गूगल में देखना चाहा तो पता चला कि 2011 की जनसंख्या केआधार पर केवल 228 घर हैं और 1230 के करीब लोग रहते हैं I सविंदरजी ने हमें सभी घटना कर्मों को पूर्ण विस्तार से लिख कर भेजा था , हमने कई बार पढ़ा और अपने विवेक के अनुसार कुछ एडिटिंग की है, कुछ औरअधिक पंक्तियाँ भी जोड़ी हैं I अगर कोई त्रुटि हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हैं।
हम आशा करते हैं कि इस लेख को पढ़ने के उपरांत ऑनलाइन ज्ञानरथ के और भी सहकर्मी आगे आयेंगें और अपने संस्मरण ,कथाएं आदि लिखने में प्रोत्साहित होंगें।
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प्रातःकाल ब्रम्ह्मुहुर्त में उठ जाने की प्रक्रिया हमारी आज भी अनवरत चल रही है इसमें किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं है उसी क्रम में आदरणीय डाक्टर साहब गुप्ता जी हमारा मार्गदर्शन करते रहते थे I हमारा सपना साकार दिखता नजर आ रहा था पूज्य गुरूदेव के प्रति हमारी निष्ठा व श्रद्धा-विश्वास निरंतर बढ़ रही थी धीरे-धीरे परम पूज्य गुरूदेव के प्रति समर्पित होते जा रहे थे I
हम अपने घर का विरोध भी झेल रहे थे I हमारे सामने घोर संकट था I बहुत ज्यादा उम्र भी नहीं थी कि हम अपने घर वालों का सामना कर सकें I विरोध के बावजूद भी हमने अपना पथ नहीं छोड़ा, हम लुक-छिपकर परम पूज्य गुरूदेव का काम पूरा करते रहे I हम अपने गाँव में अकेले ही गायत्री परिवार में थे उस समय हमारे सिवा दूसरा कोई व्यक्ति नहीं था जो हमारा समर्थन कर सहयोग कर सके I
अचानक हमारे अंतःकरण में कुछ ऐसे भाव जागृत हुए कि परम पूज्य गुरूदेव के काम को आगे बढ़ाने में पूर्णतया सहयोग गाँव का लिया जाए तो हमने अपने गाँव में परम पूज्य गुरूदेव का एक कार्यक्रम कराने की योजना बनाई और इस योजना के बारे में आदरणीय डाक्टर साहब गुप्ता जी के समक्ष अपनी जिज्ञासा रखी I उन्होंने हमारे परम आदरणीय महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी पूर्व व प्रथम प्रधानाचार्य जी ,आदर्श इन्टर कालेज कोड़ा जहानाबाद से अवगत कराया I कुदेशिया जी ने नवलकिशोर मिश्रा जी से बात कर हमें तीन दिवसीय पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ का कार्यक्रम दिलवा दिया जिसकी तिथि भी दिनांक 13,14 व 15 जनवरी 1995 के लिए निर्धारित हो गई I
हमारे लिए यह काम बहुत बड़ा काम था क्योंकि उस समय हम मिशन में अकेले ही थे I कार्यक्रम के लिए गाँव में किसी से पहले सलाह-मशविरा भी नहीं लिया था केवल परम पूज्य गुरुदेव की हमारे अंतःकरण में अभिलाषा थी और उन्हीं का मार्गदर्शन था। यही मार्गदर्शन और आशीर्वाद था जिसने हमसे अकेले इतना बड़ा कार्यक्रम करवा लिया था और उन्हीं की कृपा से सफलता पूर्वक सम्पन्न भी हो गया I हम स्वयं नहीं समझ पाए कि यह सब कैसे हो गया I
“ उस समय हम बेरोजगार थे विद्यार्थी जीवन था I हमारे घर से किसी भी तरह का कोई सहयोग नहीं था , न आर्थिक न शारीरिक बल्कि विरोध भयंकर था I”
आप सभी मित्र ,भाई , बहिनें , माताएं – पाठकगण एवं ज्ञानरथ सहकर्मी खुद समझदार हैं कि हाई स्कूल में पढ़ने वाला विद्यार्थी क्या कर सकता है यह सब परम पूज्य गुरूदेव का ही आशीर्वाद था I हमारे गाँव व पास-पड़ोस का भरपूर सहयोग मिला I तीन दिन तक लगातार भंडारा चलता रहा , कार्यक्रम में किसी प्रकार की कमी नहीं हुई, काफी धन व अनाज बच गया जिसे शान्तिकुन्ज हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित नेत्र शिविरों में भेज दिया गया I कार्यक्रम में चार-चाँद जब लग गए तब का नजारा और भी रोचक हो गया।
उस समय को कभी नहीं भूलते और न ही कभी भूलेगे :
वह दिन हमारी इस छोटी सी उम्र की प्रेरणादायी घटना है I कार्यक्रम उसी विद्यालय के प्रांगण में सम्पन्न हुआ था जहाँ उस समय हम पढ़ते थे जिसके प्रधानाचार्य आदरणीय श्री जयनारायण पाल जी थे उनका भी कार्यक्रम में अच्छा सहयोग था , जिनके माध्यम से कार्यक्रम मिला था परम आदरणीय महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी भी कार्यक्रम में शामिल हुए और कार्यक्रम का उद्घाटन माननीय राकेश सचान जी विधायक घाटमपुर के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न होना निश्चित हुआ था। वह भी कार्यक्रम में आये , अब तीन महान हस्तियाँ एक साथ एक मंच में विराजमान थी I कार्यक्रम के संचालक चौथे हम थे I
“उस समय का द्रष्य हमारी जिन्दगी की पहली खुशी थी जो परम पूज्य गुरूदेव के आशीर्वाद से मिली हम आनंद से ओतप्रोत हो गए I” कृतार्थ हो गए I
अब अपनी इस अपार खुशी कारण बता रहे हैं :
यह घटना कार्यक्रम में प्रथम दिन की हैI कार्यक्रम के संचालक हम सरविन्द कुमार पाल कक्षा 10 के विद्यार्थी अपने प्रधानाचार्य श्री जयनारायण पाल जी के विद्यालय में सम्पन्न करवाया जिसमें हमारे प्रधानाचार्य जी के शिक्षण काल के प्रधानाचार्य महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी अपने शिष्य के विद्यालय में आए जो कार्यक्रम की व्यवस्था देख रहे थे तथा माननीय श्री राकेश सचान विधायक घाटमपुर जिनके कर-कमलों से कार्यक्रम का उद्घाटन सम्पन्न होना था उनके भी शिक्षण काल के प्रधानाचार्य कुदैशिया जी ही थेI यह सब परम पूज्य गुरूदेव का आशीर्वाद था जो इस तरह का संयोग एक साथ मिला I बताने का हमारा तात्पर्य यह है कि हमें खुशी है कि हमारे प्रधानाचार्य जी ने हमारा भरपूर सहयोग दिया और उन्हें खुशी कि हमारे शिष्य ने इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा कार्यक्रम सम्पन्न करवाया वह भी हमारे विद्यालय में और हमारे प्रधानाचार्य जी को ख़ुशी कि उनके शिक्षण काल के प्रधानाचार्य और इसी विद्यालय के विद्यार्थी विधायक राकेश सचान जी सब एक साथ कैसे इक्क्ठे हो गए। अवश्य ही परमपूज्य गुरुदेव की कृपा ही होगी जिन्होंने तीन पीढ़ीओं को एक साथ एक ही मंच पर ,एक ही समय पर, एक ही पुनीत कार्य को सम्पन्न करने को प्रोत्साहित किया। केवल इतना ही नहीं ,हम तो बेझिझक यह भी कह सकते हैं कि गुरुदेव ने यह भी सुनिश्चित किया कि एक छोटे से बच्चे द्वारा इतने विशाल कार्य को बिना किसी अड़चन के सम्पन्न करवाया जाये। अवश्य ही परमपूज्य गुरुदेव की सूक्ष्म सत्ता इस महान आयोजन में कार्यरत होगी।
हमारा यह कहना अत्यंत तर्कसंगत है – क्योंकि गुरुदेव का महाप्रयाण 1990 में हो गया था और यह घटना 1995 की है। गुरुदेव ने कहा था कि इस हाड़ -मास के चोगे को त्यागने के उपरांत और भी सक्रीय हो कर अपने बच्चों के कार्य करूँगा। और यह तो गुरुदेव ने अपने साहित्य में कितनी ही बार दोहराया है “ तू मेरा काम कर मैं तेरा कार्य करूँगा “
इन्ही शब्दों के साथ अपने लेख को विराम देने की आज्ञा लेते हैं और आपको सूर्य भगवान की प्रथम किरण में सुप्रभात कहते हैं।
जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित
क्रमश जारी : भाग -2 कल प्रस्तुत करेंगें
इस लेख में दिए गए चित्र गायत्री शक्तिपीठ किदवई नगर कानपूर के हैं I
मित्रो आज के ज्ञानप्रसाद के साथ कोई चित्र नहीं है। इसका कारण लेख की लम्बाई है। पशुपति बिस्कुट कंपनी कानपूर के श्री रामप्रकाश जेसलानी जी की कथा इतनी आश्चृर्यजनक ,अविश्वसनीय परन्तु सत्य है कि गुरुदेव की शक्ति पर एकबार फिर मोहर लगा सकते हैं
यह जीवन उनका ही है
श्री रामप्रकाश जेसलानी, श्रीमती शालिनी जेसलानी
कानपुर के श्री रामप्रकाश जेसलानी जी कहते हैं कि मैं, सन् 1995 में गायत्री परिवार के सम्पर्क में आया। सन् 1998 में मुझे विचित्र प्रकार की तकलीफ हुई। मुझे अचानक ही खून की उल्टियाँ होने लगीं। मेरा पूरा परिवार घबरा गया कि अचानक यह क्या हो गया? दिन में चार- पाँच बार मुझे खून की उल्टी हो जाती थी। मेरा मुँह कड़वा होता और एकाएक लगभग आधा गिलास खून निकल जाता। मेरी तकलीफ देखकर हमारे तीनों बच्चों ने पूजा घर में अनवरत् गायत्री महामंत्र का जप प्रारंभ कर दिया। यह क्रम चलते हुए जब तीन दिन हो गये तो मुझे लगने लगा कि अब शायद मेरा अंतिम समय आ गया है। मैंने पत्नी से कहा कि मुझे अस्पताल में भर्ती करा दो, शायद खून की जरूरत पड़े। हमने हमारे पड़ोसी मित्र जो कि डॉक्टर हैं, उनसे चर्चा की। उन्होंने मेरे खून की जाँच की। मेरा हीमोग्लोबिन ठीक था। वह हैरान हो कर कहने लगे ऐसा कैसे हो सकता है? इतने दिन से खून की उल्टी हो रही है और हीमोग्लोबिन नार्मल है? मुझे खून की उल्टियाँ बराबर हो रही थीं, सो अगले दिन हम दिल्ली में एम्स अस्पताल में दिखाने गये।
इस बीच हमारे घर पर अखण्ड जप भी चलता रहा। कानपुर के गायत्री परिवार के बहुत से भाई बहनों ने अपने घर पर ही मेरे लिये जप प्रारंभ कर दिया। शक्तिपीठ पर भी मेरी जीवन रक्षा के लिये जप होने लगा।
मुझे एम्स में भर्ती करा दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाक्टर ने मेरा ब्रॉन्कोस्कोपी टैस्ट किया। सप्ताह भर बाद रिपोर्ट आई, पर रिपोर्ट के आने के बाद मुझे दुबारा टैस्टिंग के लिये बुलाया गया और दुबारा मेरे टैस्ट हुए। दुबारा टेस्ट करने का करण पता करने पर मालूम हुआ, दोनों ही बार मेरी रिपोर्ट नार्मल थी।
वहाँ के सबसे बड़े डाक्टर ने मेरी सभी रिपोर्ट पर एम्स के बड़े डाक्टरों की मीटिंग बुलाकर चर्चा की, फिर मुझसे मेरी सारी तकलीफ के बारे में चर्चा की। मेरी सारी जाँच रिपोर्ट नार्मल थी, अतः डाक्टरों ने मुझे स्वस्थ घोषित कर दिया।
लगभग 24 दिन तक मुझे खून की उल्टियाँ आती रहीं फिर अकस्मात् 24वें दिन खून की उल्टियाँ बंद हो गईं। किन्तु मेरी सब रिपोर्ट नार्मल कैसे आई।
इसका पूरा- पूरा श्रेय मैं पूज्य गुरुदेव को देता हूँ।
क्योंकि जैसे ही मेरी तबीयत बिगड़ी तो हमारे परिवार में सबने मिलकर अखण्ड जप प्रारंभ कर दिया। जेसलानी जी कहते हैं कि मैं अन्तर्हृदय से समझ रहा था कि
जब गुरु कृपा हो गयी, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
उसके बाद मैं सक्रिय हो गया। जो कोई भी नया आफिसर कानपुर आता, मैं उन्हें दो गायत्री मंत्र की कैसेट देता था। एक घर में सुनने के लिए, दूसरी वाहन में। कुछ वर्षों में समर्पण का भाव परिपक्व हुआ, और अपनी “पशुपति बिस्किट” की पूरी फैक्टरी बंद करके फरवरी, 2006 में हरिद्वार, शान्तिकुञ्ज में सेवा के लिए आ गया। सभी मित्रों, सम्बन्धियों ने कहा, ‘तुम पागल हो गये हो क्या? दिमाग सरक गया है क्या? जो तुम अपनी जमी जमायी फैक्टरी बन्द कर रहे हो।” लेकिन मेरी अन्तर्थिति को कोई कहाँ समझ सकता था? और जब परमपूज्य गुरुदेव का बुलावा और आदेश आया है तो उसे कौन रोक सकता है।
पूज्यवर ने ही नया जीवन दिया
फरवरी सन् 2006 में हम हरिद्वार आ गये और शान्तिकुञ्ज में अपना पूरा समय देने लगे। दो- तीन माह बाद हम अपनी कम्पनी के सेल टैक्स- इन्कम टैक्स के मामले निपटाने के लिए कानपुर गये। 5 जून 2006 को हम अपने सब मामले निपटाकर, अपनी कार द्वारा सपत्नीक हरिद्वार लौट रहे थे कि दिन में 12.30 बजे के लगभग अलीगढ़ से 15 किमी० पहले जशरथपुर कस्बे में हमारी कार का एक्सीडेण्ट हो गया। इस जबर्दस्त एक्सीडेंट में मुझे स्पष्ट अनुभव हुआ कि हमें पूज्यवर ने ही नया जीवन दिया है।
मैं गाड़ी चला रहा था और मेरी पत्नी मेरे बगल में बैठी थी। एक टाटा सफारी गाड़ी तीव्र गति से सामने आ रही थी। उस गाड़ी ने हमारी गाड़ी में जोरदार टक्कर मारी। हमारी गाड़ी एकदम पिचक गयी और हम दोनों को काफी गंभीर चोटें आयीं। टाटा सफारी का ड्रायवर अपनी गाड़ी लेकर फरार हो गया। मैं तो एक्सीडेंट होते ही बेहोश हो गया। मेरी पत्नी को कुछ- कुछ होश था, पर हम दोनों गाड़ी में बुरी तरह फँस गये थे। अलीगढ़ जिले में उस दिन साम्प्रदायिक दंगों की वजह से कर्फ्यू लगा हुआ था। सड़क पर एकदम सन्नाटा था, न कोई आदमी कहीं नजर आ रहा था, न ही कोई गाड़ी आ जा रही थी। इतनी देर में मेरी पत्नी ने देखा कि पूज्य गुरुदेव उनके पास खड़े हैं। गुरुदेव को वहाँ देखकर वह आश्चर्यचकित रह गयी, और अर्धमूर्छित सी अवस्था में वह गुरुदेव को बस देखती रही। उसके आस- पास जो कुछ हो रहा था, वह सब देख पा रही थी।
मित्रो हम आपको बता दें यह 2006 की बात हो रही है जब परमपूज्य गुरुदेव को स्वेच्छा से महाप्रयाण लिए लगभग 16 वर्ष हो चुके थे। है न कितना आश्चर्यजनक ,अविश्वसनीय परन्तु सत्य।
तो आइये चलते हैं आगे :
मेरी पत्नी ने देखा कि गुरुदेव कार के बाहर लगातार टहल रहे थे, इतने में दो व्यक्ति आये और उन्होंने हम दोनों को हमारी कार का दरवाजा तोड़कर बाहर निकाला। मेरी जेब में लगभग 20,000 रु. थे। वो भी उन्होंने निकाले। मैं 3 सोने की अंगूठियाँ पहने हुए था, वे उतारी। फिर उन्होंने मेरी पत्नी के हाथों से चूड़ियाँ एवं अन्य गहने उतारे। साथ ही मेरी पत्नी से कहा कि बहन, किसी भी बात की चिन्ता मत करना। आपका एक भी रुपया व गहना गुम नहीं होगा। कुछ और भी है, तो हमें दे दो। ‘आपका कुछ भी सामान गुम नहीं होगा’ इस बात को उन्होंने 3-4 बार दुहराया ताकि मेरी पत्नी को विश्वास हो जाये। मेरी पत्नी ने आँखों से इशारा करके बताया कि मेरे पति की ड्राइविंग सीट के नीचे सामान रखा है। उसमें एक अखबार में लपेटे हुए 4 लाख रु. रखे थे। उन दोनों ने वह धन भी निकाल लिया। मेरी पत्नी का पर्स भी सँभाला। गहने और पैसे मिलाकर लगभग 8 लाख रु. की सम्पत्ति थी।
फिर उन्होंने हम दोनों को अपनी गाड़ी में लादा। उस समय तक पूज्य गुरुवर बराबर मेरी पत्नी को हमारे पास खड़े दिखाई देते रहे। जब हम लोगों को वह व्यक्ति गाड़ी में लाद कर चल दिये, तो गुरुवर अन्तर्ध्यान हो गये। गुरुवर के अन्तर्ध्यान होने तक मेरी पत्नी ने उन्हें देखा। उसके बाद वह कब बेहोश हो गई, उसे नहीं पता। उन लोगों ने हमारे मोबाइल से ही हमारे सब रिश्तेदारों व मित्रों को हमारे ऐक्सीडेंट की सूचना भी कर दी।
मेरी दिल्ली वाली बेटी ने उन लोगों से कहा कि हम आपके बहुत- बहुत ऋणी हैं। मैं तुरंत पहुँच रही हूँ पर मुझे पहुँचने में कम से कम तीन घंटे लगेंगे, तब तक आप कृपाकर वहीं रहियेगा। हमसे मिले बिना नहीं जाइयेगा। वह लोग बोले कि हम लोग मुस्लिम हैं और यहाँ दंगा चल रहा है। हम दोनों पुलिस के किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते। मेरी बेटी ने जब बहुत अनुनय- विनय किया, तो उन लोगों ने कहा कि ठीक है, तुम्हारे आने तक हम तुम्हारे मम्मी- पापा की देखभाल कर रहे हैं, पर हम तुमसे मिलेंगे नहीं। इसके बाद उन लोगों ने हमारा सब सामान, गहने व पैसे आदि नर्सिंग होम के डॉक्टर को दे दिये व कहा, “डॉ. साहब यह इन दोनों घायलों की अमानत है। इनके बेटी- दामाद कुछ देर में आने वाले हैं, आप कृपाकर सब सामान उन्हें दे दीजियेगा।” जैसे ही हमारी बेटी व दामाद नर्सिंग होम में पहुँचे, वैसे ही वे लोग दूसरे दरवाजे से निकल गये। हमारी बेटी व दामाद ने उन्हें बहुत खोजा, पर वे कहीं नहीं मिले।
हमें आज भी यही आभास होता है कि वह दोनों व्यक्ति और कोई नहीं पुज्य गुरुदेव के भेजे देवदूत ही होंगे, जिन्हें पूज्यवर ने हमें अस्पताल तक पहुँचाने का माध्यम बनाया। इसीलिये वे हमारे बच्चों के पहुँचते ही वहाँ से चले गये। कोई सामान्य व्यक्ति होते, तो हमारे बच्चों से अवश्य मिलते।
गुरुदेव ने तो कई बार अपने उद्बोधनों में कहा है अगर मेरे बच्चे को कोई कष्ट होगा तो मैं स्वयं उसे कंधे पर उठा कर हस्पताल पहुंचाऊंगा।
शाम तक हमारे सभी परिजन अलीगढ़ पहुँच गये और हमारी यथोचित चिकित्सा व्यवस्था हो गई। हमें इतनी गंभीर चोटें लगी थीं कि हमारे बचने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी। परंतु गुरुदेव ने हमारे चारों ओर सुरक्षा चक्र बना दिया था, तो भला मृत्यु कैसे पास फटकती? हम दोनों को अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 28 दिन तक वहाँ भर्ती रहे। पत्नी और मेरे, दोनों के पैरों में रॉड डालनी पड़ी, कई ऑपरेशन हुए। हड्डियों के छोटे- छोटे टुकड़े प्लेट में रखकर जोडे गये फिर वह प्लेट अन्दर डाली गयी। कई महीने हमें स्वस्थ होने में लग गए।
1 जून 2008 से मैंने फिर अपना समयदान शांतिकुंज में आरम्भ कर दिया
जय गुरुदेव परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्रीचरणों में समर्पित है