आज भी प्रज्ञागीत भी वीणावादिनी के चरणों को समर्पित है।
25 मई 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद कल से आरम्भ हुए शिक्षा और विद्या के महत्वपूर्ण विषय का समापन लेख है। कमैंट्स से मिली जानकारी से यही निष्कर्ष निकला है कि शिक्षा और विद्या के बीच एक बहुत ही fine dividing line है जिसके अभाव में दोनों को एक ही समझा जाता है। दो दिन की brainstorming discussion ने इस भ्रम को दूर करने में महत्वपूर्ण सहयोग किया है जिसके लिए हम सभी के आभारी हैं। ब्रह्मवर्चस द्वारा प्रकाशित “पंडित श्रीराम शर्मा, दर्शन एवं दृष्टि” 474 पन्नों की ग्रन्थ स्तर की इस पुस्तक ने जो सहयोग दिया उसके लिए हमारे पास कोई शब्द नहीं हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के एक एक सदस्य का सहयोग बहुत ही सराहनीय है। यह सभी प्रयास और सहयोग तभी सार्थक होंगें अगर हमारे जीवन की दिशा बदलेगी, हमारे परिवारों में स्वर्गीय वातावरण का वास होगा।
भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के बारे में हम इतने उत्सुक हैं कि सोमवार तक प्रतीक्षा करना कठिन हो रहा है। हमारी संजना बेटी ने इस परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया हुआ है,वाह रे वाह मेरी बच्ची। सभी बेटीयों,बेटों को गुरुदेव ऐसे ही अनुदान प्रदान करते रहें।
इन्हीं शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए एवं सूर्य भगवान की प्रथम किरण की लालिमा के साथ ऊर्जावान होकर आज की गुरुकुल पाठशाला का आरम्भ करते हैं।
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पिछले लेख में हमने विवेक यानि Wisdom पर चर्चा करते हुए यही निष्कर्ष निकाला था कि विवेक का अर्थ है उचित/अनुचित की पहचान। जब तक हमें उचित/अनुचित का भेद नहीं समझ आएगा, इस भेद को अपने जीवन में उतारना नहीं आएगा,हम अनुचित का विरोध करने का साहस नहीं बटोर पायेंगें, हम लाखों करोड़ों अन्य लोगों की तरह लीक ही पीटते जायेंगें। हम यही कह कर कि “ हमने क्या लेना है” पल्ला झाड़ कर, कन्नी काटकर अपनी राह निकल जायेंगें। क्या हमारे जीवन का यही उद्देश्य है, मिलियन वर्षों की evolution के बाद, कीड़े- मकोड़ों से ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति की पदवी कन्नी काटने के लिए मिली थी। कदापि नहीं ! विरोध करने के लिए साहस बटोरना पड़ता है, अनुचित के प्रति आवाज़ उठानी पड़ती है, समाज से टक्कर लेनी पड़ती है, जीवन-यज्ञ में अपने कर्तव्य की आहुति देनी पड़ती है। केवल ऐसा करने पर ही मनुष्य स्वयं को ईश्वर का राजकुमार कहलाने का हकदार बन पाता है।
मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी और कठिनाई यह है कि नकलची बंदर की भांति दूसरों को काम करते देखकर उन्ही के रास्ते पर चलना आरम्भ कर देता है,बंदर की औलाद जो ठहरा। यह तो भेड़चाल हुई न, हम मनुष्य हैं, कोई भेड़-बकरी नहीं। अक्सर देखा गया है जिस तरफ भीड़ चल रही होती है, बाकि भी ( बिना कुछ सोचे समझे ) उसी दिशा में चलना आरम्भ कर देते हैं। जहाँ ज्यादा लोग चलें वहीं हम चलें, जो दूसरे लोग करें वही हम करें, जो दूसरे लोग कहें, वही हम कहें। यह भी कोई जीने का ढंग है, कदापि नहीं।
अगर विवेक है, बुद्धि है, विद्या है,समझदारी है,आध्यात्मिकता है तो मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति के बारे में गुण के हिसाब से,मूल्यांकन करके,परिणाम की evaluation करके, स्वयं विचार करना चाहिए। स्वतंत्र चिंतन ( Independent thinking ) इसी का नाम है। अगर किसी के पास स्वतंत्र चिंतन करने की क्षमता है, तभी तो वह उचित/अनुचित का मूल्यांकन करने की क्षमता रख सकता है।
बहुत से लोग शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं, बड़ी बड़ी डिग्रियां ले लेते हैं, समाज में नाम भी अर्जित कर लेते हैं, गर्व भी महसूस करते हैं, बहुत अच्छी बात है, अपनी उपलब्धियों पर गर्व महसूस करना कोई बुरी बात नहीं है।
लेकिन मनुष्य को विद्या से वंचित रहने के अभिशाप से मुक्ति पानी चाहिए। अगर मनुष्य ने गायत्री की महत्ता को पहचान लिया है तो उसका वाहन बनना बहुत ही आवश्यक है।
यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कठोर तप साधना करते हुए,अनेकों लोगों के विरोध का सामना करते हुए गायत्री साधना सर्वसुलभ बना दी। अभी कल की ही बात कि महिलाओं को गायत्री साधना करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन उस महान गुरु ने महिलाओं को गायत्री साधना के लिए वोह आदर सम्मान प्रदान कराया कि आज शांतिकुंज (एवं अन्य देवमंच) में दैनिक यज्ञ का संचालन देवमंच पर विराजमान हमारी आदरणीय बहिनें ही करती हैं।
गायत्री के वाहन की मुख्य विशेषता यह है कि वह नीर (पानी) और क्षीर (दूध) को अलग कर देता है। जो कुछ भी मिलावट है, घपला, गुड़गोबर मिला हुआ है उसे अलग कर देता है। कहीं-कहीं सच्चाई की झलक दिखाई पड़ती है लेकिन उसी के साथ बेईमानी का कितना ही गहरा पुट दिखाई पड़ता है। सच्चाई से बेईमानी को अलग किस तरीके से करेंगे। आपकी विवेकशीलता के माध्यम से यह संभव है कि आप दोनों को अलग कर दें। ऐसा न करने पर, दूध और पानी मिलते ही चले जायेंगें, सच्चाई की थोड़ी सी झलक और बेईमानी का अधिक से अधिक माद्दा, ऐसा ही संसार बनता चला जायेगा।
अधिकतर लोग इसे लोक व्यवहार कहते हैं, दुनियादारी कहते हैं, इस दुनियादारी के आगे घुटने टेक देते हैं। विद्या के सम्बन्ध में परम पूज्य गुरुदेव का सन्देश यही है: आप ऐसा मत कीजिए और हंस बनने की कोशिश कीजिए । अपने समय का सदुपयोग करना सीखें, अपने शरीर का उपयोग करना सीखें, अपनी बुद्धि का सदुपयोग करना सीखिए, अपने प्रभाव का सदुपयोग करना सीखिए। ईश्वर ने उपहार के तौर में हमें जो कुछ भी दिया है, उन सबका ठीक से प्रयोग करना सीखिए। यह सब आपकी सम्पदाएँ हैं, इनका सही प्रयोग करना सीखने का प्रयास तो कीजिये। जिस क्षण आपने यह गुरुमंत्र सीख लिया, देख लेना जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण ही बदल जायेगा। दृष्टिकोण बदलते ही आपके समक्ष खड़ा समस्याओं का विशाल पर्वत चूर-चूर होकर गिरने में कुछ भी समय नहीं लगेगा। वह ढेरों की ढेर समस्याएँ जो कभी आर्थिक तंगी के रूप में, कभी बीमारी के रूप में, कभी मान अपमान के रूप में हमारी रातों की नींद डिस्टर्ब किये जा रही हैं,अवसाद दिए जा रही हैं, एकदम उड़नछू हो जायेंगीं। आप में इतनी हिम्मत आ जाएगी कि आप उन सारी समस्याओं का मुकाबला कर सकते हैं, अगर आपने स्वयं को सही करने का ज्ञान प्राप्त कर लिया और समझदारी, बुद्धिमत्ता को अपने जीवन में धारण कर लिया तो निश्चय ही यह बोझिल लगता जीवन एक खुशबूदार उपवन जैसा लगते देर नहीं लगेगी। जिस दिन आप अच्छाई और बुराई में अंतर करना सीख लें,उसी दिन से आप ज्ञानवान कहलाए जा सकते हैं। ज्ञानवान बनते ही आपका दरिद्र दूर हो जाएगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि आप so -called बड़ों (अमीरों) के साथ मुकाबला करने के बजाए अपने से छोटों के साथ मुकाबला करना शुरू कर देंगे। ऐसा करते ही आपको अनुभव होना आरम्भ हो जायेगा कि आप तो बहुत ही अमीर हैं, संपन्न हैं, भाग्यवान है। अगर आप बड़ों के साथ मुकाबला करते रहेंगे तो यही भावना बनती जाएगी कि हम उनकी बराबरी के नहीं है, उनकी तुलना में गरीब हैं, उनकी तुलना में गए-गुज़रे हैं,उनकी तुलना में दुःखी हैं आदि आदि। तुलना की ही तो बात है, आज इस बात का संतोष नहीं है कि मैं, जो कभी कड़ी धूप में पैदल चला करता था,आज air conditioned गाड़ी का मालिक हूँ ; बल्कि इस बात की चिंता खाए जा रही है कि पड़ोसी के पास लेटेस्ट गैजेट्स वाली luxury गाड़ी क्यों है।
इस दुनिया न कोई गरीब है, न अमीर है। जो आदमी अपना मुकाबला अमीरों से करता है, वह गरीब है और जो गरीबों से मुक़ाबला करता है वह अमीर है।
आपको स्वयं की गतिविधियों के बारे में, दृष्टिकोण के बारे में विचार करना चाहिए। इसमें गलतियाँ कहाँ हैं, जहाँ कहीं गलतियाँ हैं यदि आप उनको सुधार पाएँ तो फिर आपको ऐसी चीज हाथ लग जाएगी जिसके आधार पर आप खुशी की जिंदगी जियेंगें, शांति की जिंदगी जिएँगे,स्नेह- प्रेम की जिंदगी जिएँगे; एक ऐसी जिंदगी जिएँगें जिसमें आपकी खुशी उन सब लोगों को मिलेगी जो आपके नजदीक आते हों, आपसे सम्बंध रखते हों। आपके घर वाले आपसे बेहद खुश देखे जाएँगे।
यदि आप विवेकशीलता को धारण कर लें, स्वयं को अपना ढाँचा बना लें, साँचा बना लें तो कोई भी आपके निकट आएगा उसी सांचे में ढलता हुआ चला जाएगा। आपके पास यानि चंदन के पास आने के बाद में यदि झाड़-झंखाड़ खुशबूदार बन सकते हैं तो कोई कारण नहीं कि आप उन्नत स्तर के व्यक्ति हैं। जो भी आपके निकट आए, जो भी आपका सहयोगी बने, जो भी आपके सम्पर्क में आए, खुशहाल और समुन्नत होता जायेगा ।
यही है आत्मकल्याण का मार्ग, लोककल्याण का मार्ग भी यही है। यह दोनों रास्ते आपकी विद्या के आधार पर, ज्ञान के आधार पर,आपको मिल सके हैं, इसलिए शिक्षा के साथ-साथ विद्या का भी महत्व समझिए, उसको प्राप्त करने के लिए निरंतर कोशिश में लगे रहिए, यही है इस समापन लेख का मैसेज।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का स्वर्ण पदक अरुण जी को जाता है।
(1)चंद्रेश बहादुर-24,(2 ) रेणु श्रीवास्तव-28 ,(3 )सरविन्द कुमार-30,(4) संध्या कुमार-27, (5 ) पिंकी पाल-24,(6) वंदना कुमार-34, (7)अरुण वर्मा-56,(8) स्नेहा गुप्ता-25,(9) मंजू मिश्रा-25,(10) पूनम कुमारी-28
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।