22 मई 2023 का ज्ञानप्रसाद
एक बार फिर वही चुनौती- क्या लिखें, कितना लिखें क्योंकि 474 पन्नों के विशाल ज्ञानकोष में से ऐसा कंटेंट ढूंढना जो हम सबके लिए सही मायनों में लाभदायक हो, सच में एक चुनौती है। “पंडित श्रीराम शर्मा-दर्शन एवं दृष्टि” शीर्षक के इस ज्ञानकोष में से चयन किया गया आज का लेख उन साथियों के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है जो शांतिकुंज जाने वाले हैं/शांतिकुंज हो आये हैं लेकिन उनसे कुछ छूट गया है।
शब्द सीमा के कारण कुछ भी और कहने में असमर्थ है, नवीन ऊर्जा के साथ सीधा चलते हैं सप्ताह की प्रथम गुरुकुल पाठशाला की ओर।
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हरिद्वार सप्तसरोवर क्षेत्र में स्थित शांतिकुंज आश्रम की स्थापना जून 1971 में वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं शक्तिस्वरूपा माता भगवती देवी शर्मा रूपी ऋषियुग्म की संकल्प शक्ति से हुई । सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राष्ट्र के नवनिर्माण की शतसूत्री योजना के सूत्रधार एवं आर्ष ग्रन्थों सहित लगभग 3200 पुस्तकों के लेखक आचार्य श्री ने गायत्री तपोभूमि मथुरा, जो उनकी कार्यभूमि थी, छोड़कर हिमालय तप हेतु प्रस्थान किया। एक वर्ष के उपरान्त भारतीय संस्कृति की समस्त ऋषि परम्पराओं की सर्वतोमुखी शिक्षण करने वाली धर्मतंत्र से लोकमानस को बदल देने वाली “एक विश्वविद्यालय स्तर” की इस संस्था को “गायत्री परिवार के प्रमुख संचालन केन्द्र” के रूप में स्थापित किया।
यह जाग्रत तीर्थ लाखों करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है। शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनेटोरियम के रूप में विकसित किया गया है जहां शरीर, मन एवं अन्तःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।
शांतिकुंज में गायत्री माता का मंदिर तथा सप्तऋषियों की प्रतिमाओं की स्थापना की गयी है। गायत्री साधक यहां के साधनात्मक उपचार क्रम में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएं तथा दिव्य ऊर्जा के अनुदान पाते हैं।
इस आश्रमतीर्थ में 1926 से प्रज्ज्वलित अखण्ड दीप स्थापित है जिसके सानिध्य में परम पूज्य गुरुदेव ने कठोर तपश्चर्या करके इसे विशाल गायत्री परिवार की सारी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का मूल स्रोत बनाया। इसके सानिध्य में 2400 करोड़ से अधिक गायत्री जप सम्पन्न हो चुके हैं। इसके दर्शन मात्र से दिव्य प्रेरणा एवं शक्ति संचार का लाभ सभी को मिलता है।
आश्रम की नौ कुण्डीय तीन यज्ञशालायों में प्रतिदिन नियमित रूप से हज़ारों साधक गायत्री यज्ञ सम्पन्न करते हैं। भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत सभी संस्कार जैसे अन्नप्राशन, मुण्डन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह तथा श्राद्ध कर्म आदि यहां निःशुल्क सम्पन्न कराए जाते हैं, इनके व्यावहारिक तत्वदर्शन से प्रभावित होकर यहां नित्य बड़ी संख्या में संस्कारों के लिए लोग आते हैं।
लगभग 60 एकड़ से भी अधिक फैला यह आश्रमतीर्थ बहुमुखी प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण है। इस आश्रमतीर्थ में जीवन जीने की कला के रूप में संजीवनी विद्या का नियमित एक माह का युग शिल्पी प्रशिक्षण कराया जाता है जिसके माध्यम से युग पुरोहितों का “उत्पादन” किया जाता है। ये युगपुरोहित साक्षरता विस्तार, हरीतिमा संवर्द्धन, गृह उद्योग,सहकारिता द्वारा गरीबी उन्मूलन से लेकर समग्र स्वास्थ्य संरक्षण तथा धर्मतंत्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया का प्रशिक्षण लेकर गांव-गांव अलख जगाते हैं व जन-जन की धर्मचेतना को जगाते हैं। तम्बाकू, शराब जैसी दुष्प्रवृत्तियों को समाज से मिटाने के लिए यज्ञ के माध्यम से देवदक्षिणा (बुराइयों का परित्याग ) जैसे प्रयोग चलते हैं। गायत्री परिवार को लगभग पांच करोड़ से अधिक व्यक्तियों को दुर्व्यसनों से मुक्त कर उनके घरों को स्वर्ग बनाने में सफलता मिली है। आदर्श विवाह आंदोलन द्वारा दहेज व फिज़ूल खर्ची जैसी कुरीतियों से लड़कर इस मिशन ने डेढ़ लाख से अधिक आदर्श विवाह मिशन कराये हैं, यह अपने आप में एक कीर्तिमान् है । समाज नवनिर्माण की प्रवृत्तियों के साथ-साथ गायत्री महाशक्ति की साधना एवं यज्ञ का तत्वदर्शन घर-घर फैलाने का शिक्षण इस संस्था के कार्यों की मूल धुरी है।
शांतिकुंज आने के बाद युगऋषि ने 24 कुमारिकाओं के साथ अखण्ड दीपक के समक्ष 240 करोड़ गायत्री जप का अनुष्ठान सम्पन्न किया, जो अब यहां रहने वाले साधकों व निरन्तर आने वाले आगन्तुकों द्वारा नियमित रूप से वर्षभर में सम्पन्न किया जाता है। इस प्रकार
यह अध्यात्म ऊर्जा से युक्त एक ऐसा सिद्धपीठ है, जहां आकर पवित्र मन से ध्यान करने वालों की मनोकामनाएँ स्वतः पूर्ण हो जाती हैं।
शांतिकुंज प्रतिभा-परिष्कार की एक अद्भुत लेबोरेटरी है, जहां समाज में प्रसुप्त पड़ी प्रतिभा को झकझोरने, उनकी सामर्थ्य को जगाने के प्रयोग निरन्तर चलते रहते है। इन प्रयोगों को सार्थक करने के विशेष तौर पर पांच निम्नलिखित माध्यम हैं :
1.प्रतिभा परिष्कार का पहला माध्यम है साहित्य।1937 से अनवरत प्रकाशित हो रही मासिक आध्यात्मिक पत्रिका “अखण्ड ज्योति” इस माध्यम की स्रोत है। यह पत्रिका परम पूज्य गुरुदेव के प्राणचेतना की संवाहक है। पत्रिका में प्रकाशित लेख सोए हुओं को जगाने और मूर्च्छितों में प्राण फूंकने की समर्था रखते हैं। जीवन जीने की कला का शिक्षण, साधनात्मक उपचारों द्वारा आत्मबल संवर्द्धन का प्रशिक्षण तथा विज्ञान और अध्यात्म का समन्वयात्मक प्रतिपादन प्रस्तुत करने वाली यह पत्रिका साहित्य क्षेत्र में अनूठी है। बिना किसी विज्ञापन के मात्र लागत मूल्य पर ही प्रकाशित हो रही इस पत्रिका की ग्राहक संख्या हिन्दी, गुजराती, उड़िया, बंगला, तमिल, तेलगू, मलयाली, कन्नड़, अंग्रेजी व मराठी भाषाओं में पुस्तक के 2012 एडिशन के अनुसार 15 लाख से अधिक है। एक पत्रिका 10 व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाती है। इस प्रकार पुस्तक में प्रकाशित चिन्तन लगभग डेढ़ करोड़ व्यक्तियों तक पहुंचता है।
अखंड ज्योति पत्रिका के अतिरिक्त गायत्री तपोभूमि मथुरा से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका “युग निर्माण योजना” 1963 से परिवार एवं समाज निर्माण सम्बंधी मार्गदर्शन प्रदान कर रही है।
व्यक्ति-निर्माण, परिवार-निर्माण, समाज-निर्माण, राष्ट्र-निर्माण एवं युग-निर्माण सम्बंधी चिन्तन विचारों से भावनात्मक परिष्कार, वैज्ञानिक अध्यात्मवाद एवं व्यक्तित्व के चौमुखी विकास जैसी विधाओं पर युगऋषि द्वारा लिखे साहित्य 3200 से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तिकायें उपलब्ध हैं । इस पूरे साहित्य को पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य “वाङ्मय” के रूप में विश्वकोश आकार के 70 ( कुल 108) खण्डों में प्रकाशित किया गया है।
किसी भी एक व्यक्ति द्वारा संभवत इतना अधिक साहित्य विश्व में अभी तक नहीं लिखा गया।
परम पूज्य गुरुदेव ने समस्त आर्षग्रन्थों की सरल हिन्दी में व्याख्या की है। वेदों व उपनिषदों के साइंटिफिक एडिशन्स को अभी-अभी पुनः प्रकाशित किया गया है। कथानक शैली द्वारा लोक शिक्षण के लिए “प्रज्ञापुराण के चार खण्ड” जीवन के प्रैक्टिकल मार्गदर्शन हेतु पूज्य गुरुदेव द्वारा लिखे गए हैं।
आर्ष ग्रंथों की परिभाषा :
ऋषियों द्वारा लिखित और वेद अनुकूल ग्रन्थ आर्ष ग्रन्थ कहलाते हैं, उदहारण के लिए चारों वेद , चारों उपवेद ,ग्यारह उपनिषद्, दर्शन शास्त्र , स्मृति ग्रन्थ , रामायण, महाभारत ,पाणिनि द्वारा लिखित व्याकरण और उस पर की गयी महाव्याख्या आदि । पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण (व्याकरण एक्सपर्ट) हुए हैं।
2.प्रतिभा परिष्कार का दूसरा माध्यम है वाणी। वाणी के माध्यम से शांतिकुंज में तपस्वी मनीषियों का प्रशिक्षण कर उन्हें उद्बोधन,वर्कशॉप, सेमीनार आदि के लिए देश विदेश में भेजा जाता है। विभिन्न विषयों पर logical explanation प्रस्तुत कर वे “विचार क्रान्ति अभियान” में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस दिशा में लगभग एक लाख आंशिक समयदानी यहीं प्रशिक्षित किये गये हैं जो विश्व भर में यहीं से भेजे जाते रहे हैं। पौरोहित्य द्वारा संस्कार सम्पन्न कराके धर्मतंत्र के प्रगतिशील-परिष्कृत प्रयोगों के माध्यम से इन युग प्रवक्ताओं ने भारतीय संस्कृति को सुरक्षित बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
शांतिकुंज में निवास करने वाले कार्यकर्त्ताओं की संख्या समयदानियों सहित लगभग 1200 से अधिक है, जो अकेले या सपरिवार रहते हैं। इनमें से 500 से अधिक उच्चस्तरीय शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षक स्तर के विद्वान् हैं।
3.प्रतिभा परिष्कार का तीसरा माध्यम है संगीत। शांतिकुंज के कार्यकर्ता संगीत के माध्यम से सोयी भाव संवेदना को जगाकर लोकशिक्षण करते हुए नारद जी की परम्परा के अन्तर्गत जन-जन को नई दिशा देने का कार्य सम्पन्न करते हैं। संगीत प्रशिक्षण निरंतर चलता रहता है। लगभग 100 से अधिक प्रशिक्षित प्रवक्ता युगशिल्पियों को युग गायन (प्रज्ञा गीत) की शैली सिखाते हैं। यही व्यक्ति घर-घर जाकर क्रान्ति गीतों, भक्ति गीतों, प्रेरणा गीतों द्वारा अलख जगा रहे हैं।
4. प्रतिभा परिष्कार का चौथा माध्यम है व्यक्तित्व परिष्कार। व्यक्तित्व परिष्कार ले लिए शांतिकुंज में सरकारी अधिकारियों से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण सत्र चलते रहते हैं। अभी तक 80000 से अधिक केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के अधिकारी यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।
5.प्रतिभा परिष्कार का पांचवा एवं अंतिम माध्यम है वीडियो फिल्म्स, टेलीविजन धारावाहिक, cable TV, मल्टीमीडिया, नृत्य नाटिकाओं, action songs, नुक्कड़ नाटकों आदि द्वारा जन-जन का शिक्षण, मनोरंजन और लोकमंगल करना। इस माध्यम से गुरुदेव के विचार करोड़ों व्यक्तियों तक पहुंचाने में सफलता मिली है।
युगतीर्थ शांतिकुंज की एक महत्वपूर्ण विशेषता आयुर्वेद पर विज्ञानसम्मत अनुसंधान है।शांतिकुंज के कुशल चिकित्सक वनौषधियों पर शोध करके,उन्हें विभिन्न रूपों में प्रयोग करके स्वस्थ जीवनशैली एवं आधुनिक औषधियों के दुष्प्रभावों से बचने का शिक्षण ही नहीं देते बल्कि यहां किये गये प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर निःशुल्क परामर्श भी देते हैं।
250 जड़ी बूटियों के चूर्ण तथा चाय का substitute “प्रज्ञापेय” शांतिकुंज में लागत मूल्य पर उपलब्ध है। इस वैकल्पिक पेय ने सारे विश्व में क्रान्ति ला दी है। अखंड ज्योति जुलाई 2021 अंक में प्रज्ञापेय से सम्बंधित प्रकाशित जानकारी इस यूट्यूब लिंक को क्लिक करके देखी जा सकती है। https://youtu.be/pc3FBWfJzNU
औषधीय वनस्पतियों की एक विलक्षण प्रदर्शनी “हरीतिमा देवालय” के रूप में देवात्मा हिमालय मंदिर के समीप स्थापित है। परम पूज्य गुरुदेव की स्मृति में परम वंदनीया माताजी के निर्देशानुसार हिमालय की एक विराट् प्रतिमा विनिर्मित की गयी है। लगभग 60 फुट चौड़ी, 30 फुट मोटी व 15 फुट ऊँची प्रतिमा के समक्ष परिजन सतत ध्यान करते हैं। विभिन्न चोटियों, तीर्थ स्थलों का दर्शन करने व देव संस्कृति पर बनाये गये मल्टीमीडिया दर्शन को देखकर कृत-कृत्य होकर जाते हैं। इन चोटियों को नमन करती वीडियो हम शुभरात्रि सन्देश में कई बार शेयर कर चुके हैं।
शांतिकुंज में आवास के लिए, भोजन, बिजली, पानी आदि का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। माता भगवती भोजनालय में प्रतिदिन 5000 से भी अधिक व्यक्ति निःशुल्क सात्विक पद्धति से बना भोग प्रसाद प्राप्त करते हैं। श्रद्धा से आगुन्तक जो कुछ भी दान कर जाते हैं उसे स्वीकार कर उसकी रसीद दी जाती है। एक मुट्ठी फण्ड पर चलने वाली इस संस्था में साधक स्तर से जुड़े हुए व्यक्ति, नियमित 20 पैसे, एक रुपये अथवा एक दिन की आजीविका एवं अपने समय का एक घंटा प्रतिदिन देते हैं। परम पूज्य गुरुदेव द्वारा निर्देशित यह सिद्धांत आधुनिक युग में तो अविश्वसनीय, आश्चर्यजनक लगते हैं लेकिन हैं पूर्णतया सत्य; ऐसे अनेकों सत्य इसे विश्व का एक अभूतपूर्व संगठन बनाता है। गायत्री परिवार में कोई भी करोड़पति स्तर का व्यक्ति नहीं जुड़ा हुआ है, फिर भी लगभग 12 करोड़ व्यक्ति इस परिवार से नैष्ठिक स्तर पर जुड़े हैं एवं श्रद्धा भाव से ऋषियुग्म के लिए पुरुषार्थ करते रहते हैं।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 15 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का स्वर्ण पदक सरविन्द जी को जाता है।
(1)चंद्रेश बहादुर-27 ,(2 ) रेणु श्रीवास्तव-33,(3 ) सुमन लता-27,(4 ) अरुण वर्मा-26 ,(5 ) सरविन्द कुमार-44 , (6 )वंदना कुमार-35,(7 )सुजाता उपाध्याय-32 ,(8 ) स्नेहा गुप्ता -37, (9 ) प्रेरणा कुमारी-24,(10 ) पिंकी पाल-46,(11 ) पूनम कुमारी-26,(12 ) वंदेश्वरी साहू-25,(13 ) मंजू मिश्रा-28, (14 ) अनुराधा पाल-25,(15 ) नीरा त्रिखा-26
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।