वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

युगतीर्थ शांतिकुंज, परम पूज्य गुरुदेव का डाक बंगला  

4 अप्रैल  2023 का ज्ञानप्रसाद

सप्ताह के दूसरे  दिन  मंगलवार को आपका स्वागत है। हमारे भारतीय साथियों के ब्रह्मवेला समय को आधार बना कर ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का यह दिव्य दैनिक ज्ञानप्रसाद कनाडा से पोस्ट किया जाता है। प्रयास तो यह होना चाहिए कि  हम सब  एक परिवार की भांति, एक साथ  परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी के श्रीचरणों में बैठ कर एक ही समय पर ज्ञानामृत का पयपान करें, सत्संग करें लेकिन विश्व के अलग-अलग देशों में  परिवारजन  होने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाता। इसलिए हर कोई अपने समयानुसार इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करता है और अमृतपान के उपरांत अधिकतर पाठक कमेंट करके अपनी फीडबैक भी देते हैं जिसके लिए हम सदैव आभारी हैं। इन कमैंट्स से हमें ऊर्जा मिलती है जो हमारे कार्य में refinement और perfection लाती है।  

आज का ज्ञानप्रसाद में कितने ही cross reference हैं, इसके लेखन के समय साथ- साथ उन references को भी देखा गया है लेकिन निष्कर्ष यही निकला है कि 1971-72 के अन्य अखंड ज्योति अंक भी study किये जाएँ और उन पर आधारित लेख भी लिखे जाएँ। अभी तो वर्तमान अगस्त अंक से  ही बहुत कुछ लिखने वाला है।  हम अपना पल्ला झाड़ने के लिए उन सभी अखंड ज्योति अंकों के references दे सकते हैं लेकिन क्या हमें चैन आएगा, कदापि नहीं। Study करके, निचोड़ निकाल कर, मक्खन प्रस्तुत करने में परिवार के साथ अमृतपान करने में जो आत्मिक शांति मिलती है वोह अकेले में कहाँ। So Fasten your seat belts and get ready for the excellent content in the coming days.आज के लेख में शांतिकुंज के लिए नर्सरी, गुरुदेव का डाक बंगला, ऊर्जावान संपन्न गायत्री शक्तिकेंद्र, नारी शक्ति का तूफ़ान केंद्र आदि विशेषण प्रयोग किये गए हैं, सच में यह सभी विशेषण आज उजागर होते दिख रहे हैं। 

 20 मार्च से आरम्भ हुए अखंड ज्योति अगस्त 1996 के रजत जयंती स्पेशल अंक पर आधारित  हमने कितने ही लेख लिख दिए हैं । अभी भी कोई अंत नहीं दिख रहा क्योंकि विवरण है ही इतना विशाल कि लिखते लिखते पता हम कहाँ खो जाते हैं।   

आज का लेख पाठकों को 50  वर्ष पुराने शांतिकुंज की ओर ले जायेगा। निवेदन है कि अगर आपको ऐसा लगे कि यह तो पहले भी पढ़ा हुआ  है, तो भी पूरे लेख को श्रद्धा से पढ़ें क्योंकि विषयों की overlapping के कारण अलग करना बहुत ही कठिन है। 

तो आइये आज के दिन का शुभारंभ सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा  से करें, सभी के  मंगल की कामना  करते हुए विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें। 

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”

देव कन्याओं की संख्या बढ़ते-बढ़ते ठण्डक के बाद 24  तक पहुंच गई । ठण्डक के दिन बड़े ही कष्टकर थे और अप्रैल मई 1972 तक अतिरिक्त निर्माण की आवश्यकता आ पड़ी।  दोनों ओर पहाड़ की श्रृंखलाएं, बीच  में गंगा,उसके किनारे पर  बसा शाँतिकुँज , सबसे बढ़कर था आराध्य का बिछोह। यह सारी परिस्थियाँ  माताजी के लिए अत्यधिक दबाव का कारण बन गयीं । जनवरी 1972 के बाद जब माताजी की छाती में कभी दर्द हो उठता था तब वे हर लड़की या आगंतुक से आकुलता-व्याकुलता यही पूछ बैठती “देखना कहीं तुम्हारे पिताजी तो नहीं आये।”  2020 में हमनें माता जी के हार्ट अटैक के बारे में दो विस्तृत लेख लिखे थे। दोनों के लिंक दे रहे हैं ,पाठक इन लिंक्स को क्लिक करके फिर से revise कर सकते हैं। वेबसाइट  और यूट्यूब  

माताजी का ऐसा पूछने का आशय गुरुदेव की ओर था जो उन दिनों हिमालय में कष्टसाध्य तपश्चर्या हेतु स्वयं को नियोजित किये हुए थे। उन्ही  दिनों पाकिस्तान से  बंगला देश की मुक्ति का युद्ध आरम्भ हो चुका था एवं वंदनीय  माताजी और पूज्यवर की समग्र उग्र तपश्चर्या उस प्रतिकूलता से जूझने में लगी थी।

माताजी का हार्ट अटैक : 

इसी अवधि में एक दिन वन्दनीय माताजी को दिल का दौरा पड़ा जो वे सह तो गई परन्तु  उस दौरे ने उन्हें माताजी को बिस्तर  पर ही  लिटा दिया । अगले ही दिन बिना किसी पूर्व सूचना, के “बेतार-तार”  से सूचना की तरह सम्वेदना की कड़ी से जुड़े गुरुदेव शाँतिकुँज आ पहुँचे । माताजी के साथ बैठकर एकांत में विचार-विमर्श किया, सतत् उनके पास संरक्षण हेतु बने रहने  की बात कही एवं भावी गतिविधियों का जो जून 1972 के बाद आरम्भ होना थी, एक नक्शा खींचकर पाँच दिन बाद चले गये ।

“गुरुदेव क्यों आये, क्यों चले गये” शीर्षक से अप्रैल 1972 की अपनों से अपनी बात में वंदनीय  माताजी ने पूर्णतः स्वस्थ स्थिति में एक संपादकीय लिखा। इस सम्पादकीय में  उन्होंने स्पष्ट किया है कि गुरुदेव का आकस्मिक आगमन क्यों हुआ ? अपने निज के स्वास्थ्य के संबंध में माताजी ने इसी सम्पादकीय में लिखा “ इस समय उनके आने का कारण मेरा स्वास्थ्य  ही था। इन दिनों हृदय के कई अत्यंत घातक दौरे आये, वे असामान्य थे। सारा जीवन सहनशीलता  का अभ्यासी तो हो गया है,गुरुदेव के संपर्क में यही बढ़ाई  रही कि रोने धोने  को मुस्कान में कैसे परिवर्तित किया जाय?  इस बार जो कष्ट हुआ उसे चिकित्सकों ने एक स्वर से प्राणघातक ठहराया एवं उनसे बच निकलने पर आश्चर्य प्रकट किया। बसंत तक कड़ी तपश्चर्या में लगे रहने का एवं शाँतिकुँज न आने का  गुरुदेव का प्रतिबंध था सो पूर्ण हो चुका था। यह कष्ट बसंत के बाद एकाएक आया और पूज्यवर के आने  का कारण बन गया ।” महापुरुषों की लीला बड़ी निराली होती है । माताजी लिखती हैं कि जैसे ही गुरुदेव तक पुकार पहुँची वह अविलम्ब शाँतिकुंज पहुँच आये । विराट परिवार के विविध प्रकार का भार मेरे ऊपर आ पड़ा । शक्ति कम और बोझ अधिक पड़ने से अपना ढाँचा चरमराने लगा तो उसमें कोई आश्चर्य करने की बात नहीं थी । यही है अपने रोग के प्रकोप का कारण।”

संयोगवश जिन आदरणीय लेखक द्वारा यह दिव्य पंक्तियाँ लिखी गयी हैं उस समय उनकी आयु केवल 21-22  वर्ष की ही थी। वोह लिखते हैं कि उनकी बाल बुद्धि इसी निष्कर्ष पर पहुंची है कि  गुरुदेव का अचानक शांतिकुंज आना माताजी की व्याधि ही थी।

शाँतिकुंज का भविष्य क्या है ? कैसे भावी निर्माण किये जाएँ ? जब तक गुरुदेव आते, तब तक छत के ऊपर ही खुले में कुछ स्थान का चयन किया, उस स्थान को तप -ऊर्जा से अनुप्राणित करके, देवी स्वरूपा  24 बालिकाओं के  रहने की व्यवस्था बना दी गई । यहीं पर रहकर पूज्य गुरुदेव को ऊर्जा सम्पन्न कार्यकर्त्ताओं का प्राण प्रत्यावर्तन एवं महत्वपूर्ण शिक्षण सम्पन्न करना था । प्राण प्रत्यावर्तन विषय पर भी हमनें 2022 में सात विस्तृत लेख लिखे थे। उन सभी के  लिंक देना तो संभव नहीं है, परिजन वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। इन सत्रों का उद्देशय एवं कार्यप्रणाली को समझने की दृष्टि से यह सात लेख बहुत ही लाभदायक हैं।      

मई 1972 का पूरा अंक परिजनों से गुरुदेव की आशाओं और अपेक्षाओं पर केन्द्रित था । माताजी ने इस अंक में शाँतिकुंज को गुरुदेव का डाक बंगला बताया और लिखा कि गुरुदेव अगले दिनों स्थूल व सूक्ष्म शरीर से जब चाहेंगे ऋषि सत्ताओं से मिलने,मार्गदर्शन के लिए यहाँ से चले जाया करेंगे। परिजन जो अनुभूति और उपलब्धि  जानना चाहते थे, उन्हें समय से पूर्व प्रकाशित न करने का आदेश देकर चले गये । माताजी ने  यह भी बताया कि शांतिकुंज अंततः एक शक्ति केन्द्र के रूप में परिणित होगा तथा प्रत्येक सदस्य महामानवों की प्रत्यक्ष भूमिका अदा करेगा। इस कार्य के लिए जिस युग साधना की आवश्यकता है।  गुरुदेव द्वारा मिले संकेतों से प्रतीत होता है कि वे आत्मबल संग्रह करने और आत्म-कल्याण के साथ लोकमंगल के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या गिनती के आधार  पर नहीं बल्कि  गुणों के आधार पर करना  चाहते थे। इसी कार्य के लिए शांतिकुंज में  समस्त ऋषि परम्पराओं का बीजारोपण करके, नवनिर्माण की पृष्ठभूमि विनिर्मित करना चाहते थे । ऋषि परम्परा, जो कभी सतयुग की मूल आधार थी, का क्रियान्वयन कैसे हो, इसके लिये वे शाँतिकुँज को “एक प्रखर ऊर्जा सम्पन्न गायत्री तीर्थ” का रूप देना चाहते थे। सारी  कार्यप्रणाली की  रूपरेखा, वंदनीय  माताजी एवं उनके सहायकों के साथ फरवरी 1972 के प्रथम सप्ताह में संक्षिप्त प्रवास के दौरान बन गई। परम पूज्य गुरुदेव घोषणा कर गये कि शांतिकुंज अंत में  एक शक्ति केन्द्र के रूप में परिणित होगा । नारी जागरण का महान अभियान यहीं से चलेगा और इक्कीसवीं सदी को नारी सदी बनाने तक तूफान भी यहीं से उठेगा । शाँतिकुँज अन्यान्य आश्रमों की तरह भवनों के एक  समुच्चय के रूप में नहीं बल्कि आत्मबल सम्पन्न “महामानव बनाने की टकसाल” के रूप में विनिर्मित होना था । इस सारे कार्य की पृष्ठभूमि 1971-72 की अवधि में बन गई । अखंड ज्योति मई 1972 अंक के माध्यम से गुरुदेव ने विदाई सम्मेलन के बाद पहली बार लाखों परिजनों के लिए  माताजी के माध्यम से अपना हार्दिक भाव पहुँचाया। 

आज 50 वर्ष बाद जब हम  शांतिकुंज को देखते हैं तो यह कथा गाथा उस संत की दिव्य दृष्टि सम्पन्न अवतारी सत्ता के द्वारा किये गये “एक नर्सरी निर्माण” के रूप में समझ में आती है,एक ऐसी नर्सरी जिसे भविष्य में इक्कीसवीं सदी की गंगोत्री कहे जाने का श्रेय अर्जित करना है । 

आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है।  आहुतियों के आधार पर गोल्ड मैडल के हकदार सरविन्द जी और अरुण वर्मा हैं लेकिन चंद्रेश जी ने दो यज्ञ कुंडों में आहुतियां प्रदान कीं, न केवल प्रदान कीं बल्कि संकल्प भी पूरे किये, इसलिए उन्हें भी गोल्ड  मैडल विजेता घोषित करते हुए हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है। सभी हमारी बहुत बहुत बधाई।    

(1) सरविन्द कुमार-42,(2 )चंद्रेश बहादुर-25,30  (3 ) सुजाता उपाध्याय-25 ,(4 ) अरुण वर्मा-42,(5 ) रेणु श्रीवास्तव-26 ,(6 ) सुमनलता-24 ,(7)राजकुमारी कौरव-24, (8 )संध्या कुमार-26,(9 ) कुमोदनी  गौरहा-32,(10) मंजू मिश्रा-29     

सभी विजेताओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।

सूचना : जब भी कोई सहकर्मी किसी व्यक्तिगत कारणों से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने में असमर्थ होता है और हमें जानकारी नहीं प्राप्त होती तो परिवार के प्रति  ज़िम्मेदारी को समझते हुए हम उनसे संपर्क करते हैं। इसी प्रथा का पालन करते हुए हमने बबली बेटी और निशा भारद्वाज बहिन जी को संपर्क किया। बबली बेटी के मम्मी के हाथ में fracture आया है और वह इस कारण व्यस्त है। निशा बहिन जी की जेठानी हॉस्पिटल में हैं, वोह भी व्यस्त हैं। Respond back करने के लिए  दोनों का ह्रदय से धन्यवाद्।    

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