20 मार्च 2023 का ज्ञानप्रसाद
सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार , ब्रह्मवेला का समय, दिव्य ज्ञानप्रसाद के वितरण का शुभ अवसर, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों की चेतना का जागरण, सभी संयोग एक ही ओर इशारा कर रहे हैं कि आइए हम सब इक्क्ठे होकर, एक परिवार की भांति परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी के श्रीचरणों में बैठ कर इस दिव्य ज्ञानामृत का पयपान करें, सत्संग करें,अपने जीवन को उज्जवल बनाए, दिन का शुभारंभ सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा से करें। दिव्य ज्ञानपान से अपना एवं सभी के मंगल की कामना करते हुए विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें।
“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”
पिछले सप्ताह हमने अगस्त 1996 के अखंड ज्योति अंक का रेफरन्स देते हुए कहा था कि यह स्पेशल अंक 1971 में स्थापित हुए युगतीर्थ शांतिकुंज की रजत जयंती को सम्मान देते हुए प्रकाशित किया गया था। 56 पन्नों के इस रजत जयंती स्पेशल अंक के एक-एक पन्ने पर, एक-एक लाइन में ऐसे तथ्यों का वर्णन है जिनको जानने के लिए शायद कितनी ही पुस्तकों का अध्ययन करना पड़े। इतने परिश्रम से तैयार किये गए इस दुर्लभ अंक के समक्ष हमारा शीश स्वयं ही झुक जाता है। हमने शांतिकुंज सम्पर्क करके जानने का प्रयास किया है कि क्या इस तरह का concise अंक स्वर्ण जयंती का भी प्रकाशित करने की योजना है।
पाठकों से करबद्ध अनुरोध है कि आने वाले लेखों को lightly न लिया जाये, यह न समझा जाये कि हमें तो शांतिकुंज के बारे में सब कुछ पता है, और क्या नया होगा, लेकिन सच में बहुत कुछ नया होने वाला है।
लेख आरम्भ करने से पूर्व सहकर्मियों के साथ अयोध्या में विकसित हो रहे “मिनी शांतिकुंज” की जानकारी शेयर कर रहे, हो सकता है बहुतों को इस जानकारी का पता ही हो लेकिन अनेकों के लिए यह नई भी हो सकती है।
तो प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद :
अयोध्या में मिनी शांतिकुंज की स्थापना की जा रही है :
24 करोड़ की लागत से अयोध्या में रामकोट स्थित वर्तमान गायत्री शक्तिपीठ का विस्तार हो रहा है जिसमें अयोध्या,अम्बेडकर नगर,सुल्तानपुर, बस्ती,गोंडा,बाराबंकी,बहराइच, श्रावस्ती,बलरामपुर,लखनऊ आदि जिलों के 24000 गायत्री परिवारों की भागीदारी सुनिश्चित होने की सम्भावना है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के अनेकों समर्पित सहकर्मी इन क्षेत्रों से सम्बंधित हैं और उनके लिए इस पुनीत कार्य में योगदान देकर गुरु के अनुदान प्राप्त करने का परम सौभाग्य है।
इस विस्तार का शिलान्यास आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी द्वारा अप्रैल 2022 में संपन्न हुआ था। अयोध्या शक्तिपीठ की स्थापना परम पूज्य गुरुदेव द्वारा 7 जनवरी 1981 को की गयी थी। यह शक्तिपीठ गुरुदेव द्वारा स्थापित किये गए 24 शक्तिपीठों में से एक है। अपने सहकर्मियों के साथ इस जानकारी को इतने बलपूर्वक हम इसलिए शेयर कर रहे हैं कि इस शक्तिपीठ को “मिनी शांतिकुंज” के स्तर का विकसित किया जा रहा है। जो सहकर्मी शांतिकुंज जाने में असमर्थ हैं उनके लिए यह एक सुविधाजनक विकल्प है।
इस भव्य पांच मंज़िल शक्तिपीठ में 1000 यात्रिओं का आवास,प्रदर्शनी हाल,भव्य द्वार, कार पार्किंग के साथ-साथ सभी आधुनिक सुख सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है। कुछ समय पूर्व हमने तपोभूमि मथुरा के जीर्णोद्धार की जानकारी भी आपके साथ शेयर की थी। 2019 में आरम्भ हुए इस जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण गति से चल रहा है। उस समय शूट की गयीं वीडियोस हमारे चैनल पर उपलब्ध हैं।
युगतीर्थ शांतिकुंज कल्पवृक्ष” पर स्थित है महाकाल का घोंसला :
कल्पवृक्ष का अस्तित्व स्वर्गलोक में माना जाता है और कहा जाता है कि इस वृक्ष की किसी विशेष विधि से पूजा-प्रार्थना करने पर अभीष्ट मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त हुए 14 रत्नों में से एक रत्न यह कल्पवृक्ष भी था । समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना हिमालय के उत्तर में स्थित सुरकानन वन में कर दी थी। पद्मपुराण के अनुसार पारिजात वृक्ष ही कल्पवृक्ष है।
हमने कल्पवृक्ष के विषय पर रिसर्च करके जानने का प्रयास किया कि इस चमत्कारी वृक्ष के बारे में जो कुछ भी कहा जा रहा है कितना सत्य है। सहकर्मियों से केवल इतना ही कह सकते हैं कि कल्पवृक्ष के सम्बन्ध में जिस किसी की भी रूचि हो वह विशाल एवं विस्तृत उपलब्ध साहित्य का अध्ययन कर सकता है क्योंकि अगर हम इस विषय पर चर्चा करें तो अपने असली कंटेंट से भटकने का अंदेशा हो सकता है।
आइए बात करें भूलोक के उस कल्पवृक्ष की जिसका नाम है “युगतीर्थ शांतिकुंज।” हम पुराणों में अंकित तथ्यों की बात नहीं कर रहे,न ही हम हज़ारों वर्ष पहले घटित हुए अमृतमंथन की बात कर रहे हैं। हम तो बात कर रहे हैं उस प्रतक्ष्य कल्पवृक्ष की जिसकी आयु केवल 50 वर्ष ही है, जिसका बीजारोपण परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा एवं परम वंदनीय माता भगवती देवी शर्मा जी द्वारा किया गया था। अभी दो वर्ष पूर्व 2021 में ही हमने इस युगतीर्थ की स्वर्ण जयंती मनाकर गुरु के अनेकों अनुदान प्राप्त किए। पौराणिक कल्पवृक्ष पर तो कोई भी विश्वास/ अविश्वास/ शंका कर सकता है लेकिन “युगतीर्थ शांतिकुंज कल्पवृक्ष” का सुखद अनुभव हर कोई कर सकता है। परम पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी ने इस कल्पवृक्ष का केवल बीजारोपण ही नहीं किया बल्कि दोनों ने अपनी सम्मिलित तपशक्ति से खाद-पानी देकर इस नन्हें से पौधे की सिंचाई की,पालन पोषण किया। पिछले 50 वर्षों में नन्हा सा पौधा एक वटवृक्ष के रूप में इतना विस्तृत हो चुका है कि भूले भटकों पथिकों को मार्गदर्शन देने में समर्थ हो गया है।
ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि समस्त विश्व को इसके शीतल समीर का अहसास होने लगा है। ऐसा अहसास होना अद्भुत है, अनुपम एवं असाधारण है। विश्व के 90 देशों में लाखों करोड़ों परिजनों की मनोकामना पूरी करता हुआ यह युगतीर्थ किसी भी कल्पवृक्ष से कम नहीं है क्योंकि इसके अन्तराल में सम्भावनाओं और सिद्धियों के भण्डार भरे पड़े हैं। इन सिद्धियों और संभावनाओं को प्राप्त करने के लिए अगर कोई आवश्यकता है तो केवल इसकी छाया में बसने और रमने की है। यह भी सच है कि इस वृक्ष की शीतल छाया भी उसी को प्राप्त होती होती है जिस में पात्रता है। पात्रता क्या होती है और कैसे विकसित होती है, इस विषय पर हम अनेकों बार अपने पूर्व प्रकाशित लेखों में, कमैंट्स में चर्चा कर चुके हैं।
परम पूज्य गुरुदेव के शब्दों में इसी कल्पवृक्ष पर स्थित है “भगवान महाकाल का घोंसला।” यहीं युगांतरीय चेतना का हेडक्वार्टर है। क्या होती है युगान्तरीय चेतना ? और युगतीर्थ शांतिकुंज का क्या योगदान है, यह भी बहुत ही बड़ा और विस्तृत विषय है जिसकी यहाँ चर्चा करना उचित नहीं होगा। युगतीर्थ शांतिकुंज से जब जाग्रत् आत्माएँ युगांतरीय चेतना से अनुप्राणित होकर प्रज्ञावतार की सहचरी बनती हैं तो फिर उन्हें सोते-जागते एक ही लक्ष्य अर्जुन की मछली की तरह दिखता है। देश विदेश में फैले अनेकों शक्तिपीठ,प्रज्ञापीठ एवं प्रज्ञा संस्थानों में इसी चेतना के विकास का अनवरत प्रयास हो रहा रहा है। परम पूज्य गुरुदेव ने इन संस्थानों की स्थापना करके नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक पुनर्निर्माण की युगांतरीय चेतना को व्यापक बनाने के सफल प्रयत्न किये हैं और इन प्रयत्नों से जो परिणाम निकले हैं उन सबसे हम भलीभांति परिचित हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित सदस्यों के पुरषार्थ के केवल ऑनलाइन माध्यम का प्रयोग करते हुए ही अनेकों परिवारों में आलोक उजागर हुआ है और इन जागृत आत्माओं ने “युगतीर्थ शांतिकुंज कल्पवृक्ष” की शीतल छांव में बैठ कर मार्गदर्शन प्राप्त किया है। इस मार्गदर्शन से केवल इस छोटे से परिवार को ही लाभ नहीं मिला बल्कि अनेकों को नवीन जीवनदान की प्राप्ति हुई है। पिछले दो वर्षों में प्रकाशित हमारे पाठकों की अनुभूतियाँ इस तथ्य की साक्षी हैं। तो युगतीर्थ शांतिकुंज हुआ न सही मायनों में कल्पवृक्ष ? एक ऐसा कल्पवृक्ष जिसकी शाखों पर है भगवान् महाकाल का घोंसला, जो सबको निर्देश दे रहे हैं।
विश्व के नवनिर्माण में लगी समस्त सूक्ष्म-शक्तियों के अभियान के केन्द्रीय कार्यालय यहीं है। हिमालय के दुर्गम एवं दिव्य क्षेत्र में बसने वाली ऋषिसत्ताएँ सूक्ष्म रूप में यहाँ विचरण करती है। यह ऋषिसत्ताएं शांतिकुंज आने वाले और यहाँ रहने वाले लोगों के हृदयों में उज्ज्वल प्रेरणाओं का संचार करती है। दिव्य देहधारी देवसत्ताएँ यहाँ आने वाले कष्टपीड़ित जनों की पीड़ा निवारण कर उनकी मनोकामनाओं को पूरा करती है।
यह देवभूमि प्रत्येक साधक के लिए प्रत्यक्ष है, प्रत्येक साधक के ह्रदय के निकट है और सबसे वरदायी देवता है। शांतिकुंज के कण-कण में समाया ऋषियुग्म का तप प्राण काले, कुरूप और अनगढ़ लोहे जैसे व्यक्तित्व को खरे सोने में बदलने की समर्था रखता है, जीवन की दशा और दिशा को आमूल चूल बदलने की क्षमता रखता है, परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीय माता जी के आशीर्वाद का अमुक सिंचन जीवन में नवप्राण भरने की क्षमता रखता है एवं नयी ऊर्जा का संचार करता है। यह सब तभी संभव है जब इस कल्पवृक्ष की शक्ति और महत्व का ज्ञान होगा। हमारे सभी प्रयास इसी दिशा की और केंद्रित हैं और हमारे सहकर्मी लाभान्वित हो भी रहे हैं।
पुराणों के अनुसार कल्पवृक्ष से भी कुछ प्राप्त करने का एक निश्चित विधि -विधान है । शान्तिकुँज भी प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है। इससे वह सब कुछ उपलब्ध हो सकता है, जो कल्पवृक्ष से अभीप्सित है। शर्त एक ही है कि अभीष्ट की प्राप्ति के लिए यहाँ रहकर साधनात्मक दिनचर्या अपनाई जाय । इसकी छाया में रहकर साधना परायण जीवन जीने वालों की झोली मनचाहे अनुदानों -वरदानों से भरपूर हुए बिना नहीं रहती । केवल पर्यटन की दृष्टि से यहाँ आकर इस महान, दिव्य कल्पवृक्ष से किसी प्राप्ति की आशा करना उचित नहीं होगा।
जय गुरुदेव