6 मार्च 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार है, ब्रह्मवेला का दिव्य समय है, ज्ञानप्रसाद के वितरण का शुभ समय है। यह समय होता है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों की चेतना के जागरण का, इक्क्ठे होकर एक परिवार की भांति गुरुसत्ता के श्रीचरणों में बैठ कर दिव्य ज्ञानामृत के पयपान का, सत्संग करने का,अपने जीवन को उज्जवल बनाने का, सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा के साथ दिन के शुभारम्भ करने का।
रविवार के अवकाश के बाद सोमवार का दिन हम सब परिवारजनों के लिए एक अद्भुत आशा और ऊर्जा लेकर आता है क्योंकि अवकाश के कारण ऊर्जा का स्तर कुछ अलग ही होता है और सत्संग की क्लास में हम सभी विद्यार्थी अधिक ध्यान और रूचि दिखाने में सक्षम होते हैं।
आज का ज्ञानप्रसाद केवल एक ही भाग का है और आज ही समापन हो जायेगा । इसमें कुछ वीडियो लिंक्स दिए हैं जिन्हें किसी शुक्रवार को अपने चैनल पर अपलोड करने की भी योजना है।
आज हम अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल, मस्तीचक बिहार की उन दो जुड़वां बेटियों ,छाया और छवि, की बात करेंगें जिनके पिता ने एक मोटी तार से उनकी मां की हत्या कर दी थी। उस समय बेटियों की आयु केवल 4 वर्ष थी। मां की हत्या से भयभीत बच्चियां डरी सहमी देखती रहीं, रो भी नहीं पाईं क्योंकि पिता धमकी देता रहा कि अगर शोर किया तो उनकी भी हत्या कर देगा। हमारे लिए यह दृश्य क्राइम पेट्रोल के किसी एपिसोड से कम नहीं था। बहुत वर्ष पूर्व हमने शायद इसके 1-2 एपिसोड देखें होंगें लेकिन violence सहन नही हो पाया।
हम अपने आपको अति सौभाग्यशाली मानते हैं कि नियति ने हमें इन बेटियों की दुःखभरी लेकिन प्रेरणादायक कथा आपके समक्ष लाने का पुनीत कार्य सौंपा। अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल, Orbis, WION न्यूज एजेंसी आदि का किन शब्दों में धन्यवाद करें जो हमें 3 वर्ष अनवरत प्रेरित करते रहे और उन्ही के कारण आज यह लेख हम आपके समक्ष ला पाए हैं।
लेख आरम्भ करने से पहले आइए इससे सम्बंधित इतिहास के पन्नों को टटोल लें : जो सहकर्मी हमारे साथ कुछ देर से जुड़े हैं जानते हैं कि चिरंजीव बिकाश शर्मा के माध्यम से हम शिष्य शिरोमणि शुक्ला बाबा और आदरणीय मृतुन्जय तिवारी जी से संपर्क स्थापित कर पाए। अप्रैल 2021 में मृतुन्जय तिवारी जी के साथ अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल में कार्यरत नारी शक्ति की प्रतीक तीन बेटियों, शशि मिश्रा,ज्योति शुक्ला और मनीषा द्विवेदी, से ज़ूम द्वारा वीडियो कांफ्रेंस की। इस ज़ूम कांफ्रेंस की दो वीडियो हमारे चैनल पर उपलब्ध हैं।
2021 में ही 27 अगस्त वाले दिन बेटी शशि मिश्रा ने सहायता की और दोनों बहिनों से वीडियो कांफ्रेंस का असफल प्रयास संपन्न हुआ। असफल इसलिए कि बेटी छवि तो शशि के पास आ गयी थी लेकिन बेटी छाया मार्ग में ही बस के ख़राब होने के कारण पहुँच न पायी। बहुत देर प्रतीक्षा के बाद इस कांफ्रेंस को कैंसिल करना पढ़ा। निराशा तो बहुत हुई लेकिन इन बेटियों की दर्दनाक दास्तान को स्टडी करने का प्रयास निरंतर जारी रखा। अखंड ज्योति हस्पताल का फिर से नए सिरे से अध्ययन आरम्भ किया, Orbis चैरिटी, WION न्यूज़ एजेंसी, डॉ श्रॉफ चैरिटी हस्पताल आदि के बारे में जो कुछ भी ऑनलाइन उपलब्ध था ,एक एक करके पढ़ना, समझना और सेव करना आरम्भ कर दिया। शुक्ला बाबा के महाप्रयाण के दिनों में इन बेटियों से फिर से संपर्क स्थापित हुआ लेकिन शोक के उस वातावरण में इस विषय पर बात न हो पायी। जनवरी 2022 में भी कुछ प्रयास किया गया लेकिन कोई सफलता न मिल पायी। दिसंबर 2022 में मृतुन्जय भाई साहिब से इस विषय में बात हुई तो उनसे बहुत ही प्रोत्साहन मिला, उन्होंने छवि बेटी से भी संपर्क करने को कहा लेकिन इस बार भी असफलता ही हाथ लगी। छवि बेटी को हमने 14 महीने पुराने विषय का स्मरण कराते हुए कहा कि हम आप दोनों बेटियों की जीवन गाथा अपने चैनल पर शेयर करने का प्रयास कर रहे हैं। 2023 का नववर्ष दिवस शायद हमारे लिए गुरुदेव का निर्देश था कि जो हमने ऑनलाइन रिसर्च की है उसे ही प्रकाशित कर दिया जाये तो कम नहीं है। छवि बेटी ने हमें मस्तीचक आने के लिए निमंत्रण देते हुए कहा कि यहाँ पर बहुत से लोग हैं जिन्हें आपको मिलने का अवसर मिलेगा। हमने सोचा कि मस्तीचक जा पाएं कि नहीं लेकिन गुरुदेव का निर्देश हमारे लिए शिरोधार्य है। इसीलिए हमने यह लेख लिखने का निर्णय लिया।
विश्वशांति की प्रार्थना के साथ सत्संग का शुभारम्भ करें उससे पूर्व एक अपडेट: हमारी समर्पित बहिन संध्या कुमार जी के 10 से 30 मार्च तक Naturopathy Treatment होने के कारण कुछ OGGP में अनियमितता की आशंका है। हम सब ट्रीटमेंट की सफलता के लिए कामना करते हैं।
“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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छाया और छवि की दर्दभरी किन्तु प्रेरणा दायक कथा :
छाया और छवि तिवारी दो जुड़वां बहिनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका एक पुरस्कृत, पेशेवर करियर होगा। दुनिया भर के कई समुदायों में महिलाएं क्या कर सकती हैं इस बारे में भांति भांति के दृष्टिकोण प्रचलित हैं। इन जगहों पर लड़कियों और महिलाओं को उनके भाइयों और पिता के समान अवसर नहीं मिलते हैं, हम एक पुरुष प्रधान समाज की बात कर रहे हैं। जुड़वां बहनों को उनकी नानी सुनैना देवी ने बिहार, भारत के एक छोटे से गांव में पाल पास कर बड़ा किया। दोनों बहिने चार वर्ष की थीं जब उनके पिता ने माँ की निर्मम हत्या कर दी। बच्चियां सहमी हुई सारा दृश्य देखती आ रहीं, पिता धमकाता रहा कि अगर रोईं या शोर मचाया तो उनको भी मार देगा।
यह दर्दनाक कहानी दामोदरपुर गांव की है जो डिस्ट्रिक्ट भोजपुर आरा (Arrah) में पड़ता है। आज की स्थिति का तो पता नहीं लेकिन उन दिनों न बिजली थी, न अस्पताल और न ही योग्य सड़कें थीं। लड़कियों को प्रतिदिन प्राथमिक विद्यालय के लिए 3 मील पैदल चलना पड़ता था। गांव में प्रचलित प्रथा कि थोड़ी सी बेसिक शिक्षा दिलाकर लड़कियों को परिवार की सहायता में लगा दिया जाता था।
भविष्य के लिए बड़े ऊंचे सपने हमारे दिमाग में कभी नहीं आए :
जुड़वां बहिनों ने कभी भविष्य के ऊँचे सपनों के बारे में तो सोचा नहीं था लेकिन Orbis नामक अंतर्राष्ट्रिय चैरिटेबल संस्था, Orbis पार्टनर अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल और इसके संस्थापक मृत्युंजय तिवारी का धन्यवाद् करती हैं जिन्होंने एक उल्लेखनीय मौका दिया गया। अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य चैरिटेबल ट्रस्ट का एक यूनिट है। मृतुन्जय तिवारी और अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल के बारे में अगर हम यहाँ लिखना आरम्भ कर दें तो शायद इस विषय से भटक जायें। मृत्युंजय जी ने ग्रामीण बिहार, में जो तीन तत्काल ज़रूरतें देखीं वह थीं
1. नेत्र अस्पताल, 2. इसे चलाने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ता, और 3.लड़कियों की शिक्षा।
इन तीनो ज़रूरतों का निवारण करने के लिए लड़कियों और महिलाओं की क्षमताओं के बारे में जनसमुदाय के दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत थी। मृतुन्जय जी स्वयं एक फुटबाल खिलाडी हैं तो उन्होंने फुटबाल को ही इसका आधार बनाया। इनके विचार में यह खेल बिहार के जनसमुदाय के लिए आइसब्रेकर होगा। बिहार का उस समय का पुरुष प्रधान समाज यह समझ जायेगा कि लड़कियों में लड़कों की ही तरह उच्च उपलब्धि हासिल करने की क्षमता है। “Football to Eyeball” प्रोग्राम ही था जिससे छाया और छवि की नेत्र स्वास्थ्य शिक्षा शुरू हुई। दोनों बहनें अपनी नानी के आशीर्वाद से कार्यक्रम में शामिल हुई। अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल के सौजन्य से उन्होंने फ़ुटबॉल खेलना आरम्भ किया और उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया गया जिसने अंततः उन्हें optometrist बनने के लिए प्रेरित किया। फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित करने का उद्देश्य था कि पुरुष प्रधान समाज में जहाँ लड़कियों पर तरह- तरह के प्रतिबंध थे, उन्हें घर से बाहिर लाना था। एक बार बेटियां घर से बाहिर आ गयीं, लड़कों की भांति खेल कूद में भाग लेना आरम्भ कर गयीं तो प्रगति के द्वार खुलने में देर न लगेगी । इस द्वार को खोलने में Orbis समर्थकों ने मदद की; दोनों बहनें एवम उनकी जैसी अनेकों लड़कियों को अपनी क्षमता तक पहुँचाने और पुरुष प्रदान समाज में एक शक्ति बनने के लिए अपने दृढ़ संकल्प का उपयोग किया।
Blindness is a gender issue
छाया और छवि जैसी महिलाओं और लड़कियों को पुरुषों और लड़कों के समान करियर के अवसर देना Gender equality का भाग है। विश्व भर में, 1.1 अरब लोग अंधेपन सहित दृष्टिहीनता के साथ जी रहे हैं। इन लोगों में 55% महिलाएं और लड़कियां हैं जो पुरुषों की तुलना में 112 मिलियन अधिक हैं। कई बाधाएं महिलाओं और पुरुषों दोनों को नेत्र स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने से रोकती हैं। हालाँकि, दुनिया के कई हिस्सों में, महिलाओं को आँखों की देखभाल तक पहुँचने में अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो पुरुषों को नहीं करनी पड़ती।
मृतुन्जय तिवारी बताते हैं कि हम अपने कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों पर अंधेपन के असमान प्रभाव को दूर करने के लिए काम करते हैं। हमारे दीर्घकालिक देश व्यापी कार्यक्रम, Flying Eye Hospital schemes और Online cybersight ट्रेनिंग और परामर्श सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए आंखों की देखभाल की बेहतर पहुंच प्रदान करने में मदद करते हैं।
अखंड ज्योति नेत्र अस्पताल में छाया और छवि की तरह ही अनेकों Graduate optometrist हैं। Football to eyeball जैसी जुड़वां स्कीम ने जुड़वां बहिनों को Twin-power प्रदान करके Eye health professional बनकर अपने समाज में gender रूढ़िवादिता को तोड़ दिया। Orbis ने विचार लिया कि अस्पताल को कम दृष्टि वाले रोगियों के पुनर्वास की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। उनके इस विचार को इतना पसंद किया गया कि छाया ने अकेले ही दो सप्ताह के भीतर अस्पताल में Low vision क्लिनिक स्थापित कर लिया! छाया की तरह छवि ने भी दिल्ली स्थित डॉ. श्रॉफ के चैरिटी नेत्र अस्पताल में Orbis समर्थित प्रशिक्षण में भाग लिया। डॉ श्रॉफ चैरिटी हॉस्पिटल दरियागंज में 1927 में आरम्भ हुआ था। छवि pediatric counseling के लिए प्रशिक्षित पहली उम्मीदवार थीं। इस अनुभव ने उन्हें सिखाया कि मरीजों के माता-पिता के साथ संबंध कैसे बनाया जाए ताकि वे अपने बच्चे के लिए दृष्टि उपचार स्वीकार करने के लिए राजी हो सकें।
छवि कहती हैं: इस प्रशिक्षण ने मुझे परामर्श के नरम पक्ष को समझने में मदद की जो रोगियों के साथ संबंध बनाने में मदद करता है। जब मरीज परामर्श के बाद सर्जरी के लिए अस्पताल में वापस आता है तो मुझे बहुत खुशी होती है। हमें एक मरीज की दृष्टि वापिस लाने से अधिक और कोई खुशी नहीं होती,जिसने फिर से देखने में सक्षम होने की सारी उम्मीद खो दी थी । हम जैसी कई ग्रामीण लड़कियों के जीवन को प्रभावित करने के लिए हम donors के आभारी हैं।
समापन
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 13 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है, अरुण जी गोल्ड मेडलिस्ट हैं। उन्हें परिवार की सामूहिक एवं हमारी व्यक्तिगत बधाई। Good job
(1) वंदना कुमार-32,(2)चंद्रेश बहादुर-26,(3) मंजू मिश्रा-35,(4)संध्या कुमार-34,(5 )स्नेहा गुप्ता-27,(6) सुजाता उपाध्याय-24,(7) कुमुदनी गौराहा-30,(8)अरुण वर्मा-51,(9)सरविन्द कुमार-3,(10) नीरा त्रिखा-26,(11)रेणु श्रीवास्तव-32,(12)प्रेरणा कुमारी-24,(13)विदुषी बंटा-25