28 फ़रवरी 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज सप्ताह का दूसरा दिन मंगलवार है,फ़रवरी माह का अंतिम दिन है, ब्रह्मवेला का दिव्य समय है, ज्ञानप्रसाद के वितरण का शुभ समय है। यह समय होता है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों की चेतना के जागरण का, इक्क्ठे होकर एक परिवार की भांति गुरुसत्ता के श्रीचरणों में बैठ कर दिव्य ज्ञानामृत के पयपान का, सत्संग करने का,अपने जीवन को उज्जवल बनाने का, सूर्य भगवान की प्रथम किरण की ऊर्जावान लालिमा के साथ दिन के शुभारम्भ का।
आज भी हम अखंड ज्योति के उस अंक तक नहीं पहुँच पाएं हैं जिसने हमें वर्तमान चर्चा के लिए प्रेरित किया। उपासना बेटी का रिफरेन्स तो कल दिया था लेकिन हमारी संजना बेटी के ह्रदय में उठ रहे विचार भी संकेत दे रहे थे कि स्वयं को जानने के विषय पर चर्चा की जाए । “स्वयं को जानना” विषय बहुत ही विशाल है, अनंत है। हम तो केवल इसे नर्सरी के विद्यार्थी की भांति समझने का प्रयास कर रहे हैं।
जब मनुष्य स्वयं को कुछ-कुछ जान लेता है तो अगला कदम बहुत ही सरल हो जाता है। फिर तो संकल्प की ही सारी बात है, इस संकल्प को ही तो हम दिन रात तोते की भांति रटते रहते हैं। अरुण जी ने कल रात ही हमारे साथ संकल्प लिया और संकल्प सूची को कहाँ पंहुचा दिया। संकल्प सूची हमारे सरविन्द जी का आविष्कार है। सुमनलता जी ने तो अनेकों अविष्कार किये हैं,किस किस का नाम लें, सभी सहकर्मी बहुत ही समर्पित एवं निष्ठावान हैं। हम तो केवल यही कह सकते हैं कि अगर संकल्प रूपी बीज को आत्म-विश्वास की भूमि में सकारात्मक सोच के साथ रोपा जाए और श्रम की बूंदों से सींचा जाए तो जो परिणाम प्राप्त होते हैं वह सच में अविश्वसनीय ही होते हैं। ऐसे ही अविश्वसनीय परिणाम हमारे इस छोटे से समर्पित परिवार में देखने को मिलते रहते हैं। अभी तीन दिन पहले की ही बात है जब हमें परिस्थितिवश Gp Arun Trikha टाइटल से ओपन व्हाट्सप्प ग्रुप बनाना पड़ा।अनेकों unknown, so called समर्पित परिजन मेंबर बनने को कूद पड़े, 24 घंटे में 600 notifications आए जिनमें अधिकतर अपनी ही मार्केटिंग के लिए थे। ऐसे ही so called समर्पित परिजनों में से कुछ को जब हमने फॉलो किया, ज्ञानप्रसाद लेख पढ़ने के लिए निवेदन किये एवं यूट्यूब पर कमेंट करने के लिए कहा तो बहानेबाज़ी की पराकाष्ठा देखने को मिली। बहानेबाज़ी तो थी ही लेकिन एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि कमेंट करने के लिए किसके पास समय है,आजकल तो thums up भी 1 प्रतिशत लोग ही करते हैं। हमारे सहकर्मी अनुभव कर सकते हैं कि यह सुनकर हमारे ह्रदय में किस स्तर की प्रसन्नता का आभास हुआ होगा, है न सच में अविश्वसनीय !,यही है संकल्प शक्ति एवं श्रम की बूँदें जो हम जैसे साधारण से मनुष्यों को असाधारण बनाए जा रही हैं,नमन करते हैं अपने एक-एक सहपाठी को जिन्होंने इस बात को सरासर झुठला दिया कि “कमेंट करने के लिए किसके पास समय है”।
इसी सुखद आभास के साथ,विश्वशांति के लिए प्रार्थना करते हुए आज के सत्संग का शुभारम्भ करते हैं :
“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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तुम जानते नहीं मैं कौन हूँ ?
हमारे दैनिक जीवन में अनेकों बार यह वाक्य “तुम जानते नहीं मैं कौन हूँ, मैं तुम्हारा कुछ भी कर सकता हूँ।” बोलने वाले लोग मिले होंगें। ऐसे लोगों को स्वयं ही पता नहीं होता कि वह कौन हैं। शायद लोगों से पूछ रहे होते हैं “बताएं मैं कौन हूँ” और जिन को धमका रहे होते हैं उनमें से बहुत कम को शायद मालूम हो कि वह कौन हैं। ऐसा कहना उचित लग रहा है कि यह आत्मज्ञान और आत्मपरिचय का विषय है जिसे समझना इतना सरल नहीं है, लेकिन यह प्रश्न हमारे जीवन का सबसे गूढ़ प्रश्न है क्योंकि इसे समझ लेने पर बहुत से काम सरल हो जाते हैं। स्वयं को जानना ही सबसे पहला और सबसे आवश्यक तथ्य है जो हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए। अपने स्वयं की और संकेत करके पूछिए “यह कौन है, इसका क्या अस्तित्व है, इसके अस्तित्व की प्रकृति क्या है? अगर हम अपने अस्तित्व की प्रकृति नहीं जानते तो फिर हम संयोग से (chance) ही जी रहे हैं। सब कुछ संयोग-वश, और धारणाओं के आधार पर ही हो रहा है ।
“मैं कौन हूं?” प्रश्न कोई प्रयोग या जिज्ञासा मात्र नहीं है। यह एक ऐसा प्रश्न है जो हमें अपने शरीर की dissection करने के लिए विवश कर देता है। जब तक यह विवशता चीर कर हमारे दो टुकड़े न कर दे, तब तक हम जान ही नहीं पाएंगे कि हमारे अंदर कौन है।
आप ज़रा सोच कर देखें कि आपको जिस कार्य की जानकारी भली प्रकार होती है आप उस कार्य को बेहतर तरीके से कर पाते हैं। छोटे बच्चे को जब प्राथमिक कक्षाओं में विद्या प्राप्त करने के लिए विद्यालय में भेजा जाता है तो सबसे बड़ी समस्या बच्चे के aptitude की आती है। Aptitude को इंग्लिश में कौशल कहते हैं। अगर इसे प्राकृतिक कौशल Natural aptitude कहें तो शायद अधिक बेहतर होगा। एक ऐसा कौशल जो भगवान उपहार की भांति देकर हमें इस धरती पर भेजते हैं। कई बार तो यह कौशल जन्म के बाद कुछ ही वर्षों में बच्चे में प्रकट होने लगते हैं तो कई बार सारा जीवन भी दिखाई नहीं देते।
पहली स्थिति वाले बच्चे जिनमें स्पेशल qualities प्रारंभिक वर्षों में प्रकट होने लगती हैं, वही बच्चे मानव से महामानव बनते हैं और उन्हें भगवान ने किसी स्पेशल reason से ही इस धरती पर भेजा है। इस तथ्य को इतिहास के कितने ही उदाहरणों से परखा जा सकता है लेकिन जीवंत उदाहरण तो हमारे गुरुदेव स्वयं ही हैं जिनका इस धरती पर अवतरण किसी विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था। गुरुवर द्वारा की गई जीवन लीलाओं से हम भलीभांति परिचित हैं,उन्होंने स्वयं को जाना,स्वयं को पहचाना और जो कुछ कर डाला, हम सबके के समक्ष है।
हम स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे हैं,इसी जानने को इंग्लिश में कहते हैं Know yourself. जब विद्यार्थी जीवन की बात कर रहे हैं, aptitude की बात कर रहे हैं तो अक्सर कहा जाता है Know your potentials, know your traits, know your strengths and weaknesses. तो स्वाभाविक सी बात है कि स्वयं को जाने बिना इन बातों का ज्ञान कैसे हो सकता है। जिन्हे भी इन बातों का ज्ञान हो जाता है वही सफलता के शिखर पर पहुंच पाते हैं। जब हम स्वयं को जान लेते हैं तो हम “वह कुछ” कर लेते हैं जो हमें स्वयं को भी पता नहीं होता। “वह कुछ” को हमने विशेष ज़ोर देकर लिखा है क्योंकि उस स्थिति में ईश्वर भी हमारे साथ होते हैं और जब ईश्वर का साथ हो तो कुछ भी हो सकता है।God helps those who help themselves, केवल प्रचार के लिए ही तो नहीं है,इसका सच में अस्तित्व है।
विद्यार्थी की दूसरी स्थिति जिसमें aptitude का ज्ञान ही नहीं हो पाता, जीवन एक बोझ बन जाता है। यह कर लो, वोह कर लो,वाली स्थिति बन जाती है ।बच्चा बनना चाहता है wildlife photographer लेकिन माता पिता उसे इंजीनियर देखना चाहते हैं। है न कैसी विडंबना! माता पिता भविष्य का निर्णय ले रहे हैं। हमारे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में बहुत सारे वरिष्ठ, सूझवान, अनुभवी parents होंगें, लेकिन वर्षों का अनुभव,सूझबूझ और बच्चों के aptitude अगर साथ-साथ चलें तो कुछ भी संभव हो सकता हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति मनुष्य जीवन की भी है।जो मनुष्य स्वयं को नहीं जान पाते उनके जीवन की डोर किसी और के हाथ में होती है लेकिन दूसरी तरफ जो मनुष्य स्वयं को जान पाते हैं, अपनी strengths and weaknesses को जान पाते हैं इनकी डोर ईश्वर के हाथ में होती है।
गुरुदेव का ही कथन है “ईश्वर को अपना नौकर बना लो” गुरुवर कहते हैं कि ईश्वर में इतना समर्पित हो जाओ कि वह भक्त के लिए दौड़ा चला आए।
इंटरनेट के माध्यम से स्वयं को पहचानने के लिए भांति भांति के tools उपलब्ध हैं लेकिन निम्नलिखित tools को जानना भी कोई हर्ज़ नहीं है :
1.अंदर की आवाज को पहचानें (Recognize the inner voice):
अपने आपको पहचाने के लिए सबसे पहले अपने अंदर की आवाज़ को सुनना होगा। जिस प्रकार एक छोटे से बीज में बड़ी-बड़ी संभावनायें छिपी होती हैं,उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर भी अनन्त संभावनायें विद्यमान होती हैं। बस संकल्प रूपी बीज को आत्म-विश्वास की भूमि में सकारात्मक सोच के साथ रोपते हुए श्रम की बूंदों से सीचने की आवश्यकता होती है। जिस बीज को लगाया जा चुका हैं, उसका पौधा भी बनेगा और विशाल वृक्ष भी बनेगा। भूल जाइए कि आप कम पढ़े-लिखे हैं या आपको तकनीकी शिक्षा का ज्ञान नहीं है।
2.आगे बढ़ते रहने की आदत(Habit of moving forward):
स्वयं को पहचानने के लिए आपको अपने रास्तों पर सदैव आगे ही बढ़ते रहना होगा। तनिक हिसाब तो लगाइए कि अब तक अपने जीवन में आपने कितनी चीज़ों को प्राप्त किया है। जब आप यहाँ तक आ पहुँचे हैं, तब यहाँ से आगे बढ़ते रहने में कौन सी कठिनाई है। याद रखें, आपकी क्षमताओं का मूल्यांकन आपके इलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता।
3. अपने होने के कारण को पहचानें (Know the reason of your existence ):
अपने आपको पहचानने से पहले याद रहे, सफलता आपके कारण है, सफलता के कारण आप नहीं हैं। अपने आपको जानना, सुनना और मानना ही सबसे बड़ी सफलता है। जब तक अविश्वास और आशंकाएं हैं, तब तक स्वयं को जान पाना कठिन ही है। अपने आन्तरिक संचार-तन्त्र ( Internal communication system) को पहचानिए, सही वक्त पर सही संदेश प्राप्त करने की आदत डालिए और इसके लिए आपको ध्यान के माध्यम से अपने भीतर उतरना होगा.
4.स्वयं को अलग( unique ) समझें (Consider yourself unique ):
यह किसने कह दिया कि आप एक ‘साधारण’ व्यक्ति हैं, यहाँ हर व्यक्ति ‘असाधारण’ ही है। वस्तुतः मनुष्य-जन्म ही अपनेआप में एक अद्भुत एवम् असाधारण घटना है लेकिन दुर्भाग्यवश तथाकथित साधु-सन्त और धर्म के ठेकेदार अपने अतिरिक्त अन्य सभी को साधारण श्रेणी में रखते हैं और ‘असाधारण’ होने के लिए अपनी शरण में आने की शर्त रखते हैं। ऐसे चालाक लोगों से हमें बचना चाहिए। स्मरण रहे कि एक मशीन पचास साधारण व्यक्तियों का कार्य कर सकती है, किन्तु पचास मशीनें मिलकर भी एक असाधारण व्यक्ति का कार्य नहीं कर सकतीं क्योंकि इन मशीनों का अविष्कारक भी एक असाधारण व्यक्ति ही तो है।
5.दूसरों से तुलना क्यों करना(Why compare with others):
जब बनाने वाले ने आपको एक परिपूर्ण एवम् सबसे अलग कैरेक्टर दिया है, तब दूसरों से तुलना करने की आवश्यकता ही क्या है ? जब सभी लोगो की शारीरिक अनुकृति, प्रवृत्ति, अनुभूति, यहाँ तक कि अंगूठे-अंगुलियों की छाप तक एक-दूसरे से अलग एवम् अनूठी होती हैं, तब सफलता के किन्हीं दो व्यक्तियों की कार्यप्रणाली या कार्य प्रगति एक सी कैसे हो सकती है ?
6.अपने काम के प्रति ईमानदार रहें(Be honest with your work):
यह सही है कि हर व्यक्ति हर कार्य नहीं कर सकता, आयु की अल्पता एवम् संसाधनों की न्यूनता के कारण ऐसा संभव भी नहीं है. फिर भी जो कार्य आप कर रहे हैं या करना चाह रहे हैं, उसे पूरा करने के लिए आप अपना बेस्ट देने का प्रयास करें,अपने काम के प्रति हमेशा ईमानदार रहें, बहुत कुछ संभव हो सकता है।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 14 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है और अरुण जी गोल्ड मेडलिस्ट हैं । उन्हें परिवार की सामूहिक एवं हमारी व्यक्तिगत बधाई।
(1) वंदना कुमार-30,(2)चंद्रेश बहादुर-27,(3) मंजू मिश्रा-28,(4)अरुण वर्मा-62,(5) सरविन्द कुमार-28,(6) अशोक तिवारी-24,(7)रेणु श्रीवास्तव-40,(8)पुष्पा सिंह-30,(9)सुमन लता-24, (10)प्रेम शीला मिश्रा-26,(11)कुमोदनी गौराहा-25,(12) विदुषी बंटा-24,(13) पूनम कुमारी-30,(14 ) संध्या कुमार-28
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव