पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला  का 14वां  एवं अंतिम अंक- विजय कुमार शर्मा, प्रेरणा कुमारी और संध्या कुमार जी   का योगदान। 

20 फ़रवरी  2023  का ज्ञानप्रसाद

अनुभूति  श्रृंखला में आज मुंगेर (बिहार) निवासी विजय कुमार शर्मा जी की अनुभूति प्रस्तुत है जो  हमारी सहकर्मी आदरणीय पुष्पा सिंह जी की प्रेरणा से  लिखी गयी  है,हम बहिन जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। विजय कुमार जी और उनके सीनियर इंजीनियर श्रीराम नरेश मिश्र के बीच हुए अतिसुन्दर संवाद के  विवरण का अमृतपान तो आप करेंगें ही लेकिन हमारी बड़ी बेटी प्रेरणा कुमारी और बहिन संध्या कुमार जी की छोटी-छोटी  अनुभूतियाँ भी अवश्य पढेंगें।

विजय कुमार शर्मा जी की अनुभूति “अद्भुत, आश्र्चर्यजनक किन्तु सत्य भाग 2” में प्रकाशित हुई थी जिसे हमने बिना किसी तोड़ मरोड़ के थोड़ा सा रोचक बनाने का प्रयास किया  है। इसी अनुभूति को बल देता हुआ आदरणीय शिवप्रसाद मिश्रा जी पर आधारित शनिवार वाला शुभरात्रि सन्देश  हमारे पाठक पहले ही देख चुके हैं। 

शब्द सीमा के कारण आज का लेख pdf फाइल में प्रस्तुत किया जा रहा है। कल वाला ज्ञानप्रसाद लेख विराट विभूति महायज्ञ पर आधारित होगा जिसका अमृतपान अभी-अभी हमारे सहकर्मियों ने एक वीडियो के रूप में किया। हम अपने सहकर्मियों को  ह्रदय से नमन करते हैं जिन्होंने हमारे निवेदन को सम्मान देते हुए इस लुप्त वीडियो को लेख प्रकाशित होने के समय तक 512 views और 482 कमेंट देकर गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा-निष्ठा को व्यक्त किया है। 

कल रविवार को हमारी एक और बेटी उपासना का जन्म दिवस था, हमने तो बेटी को फ़ोन से शुभकामना दे दी थीं,आप की शुभकामना की भी आशा करते हैं। बेटी उपासना बहिन साधना सिंह जी बेटी हैं और दिल्ली पब्लिक स्कूल, रांची में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं।  उनको भी हमने गुरुदेव के प्रति सक्रिय होने का आग्रह किया है। 

आज भी ज्ञानप्रसाद लेख का समापन 24  आहुति सूची से हो रहा है।  

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आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 10  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है, सरविन्द पाल  और अरुण वर्मा दोनों ही सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं। अरुण वर्मा जी न केवल स्वर्ण पदक विजेता हैं,double संकल्पित भी हैं, इसलिए उन्हें हमारी double बधाई। 

(1) अरुण वर्मा-44,36,(2)सरविन्द कुमार-45,(3)सुमन लता-27,(4 ) वंदना कुमार-31,(5  ) पूनम कुमारी-25 ,(6 ) सुजाता उपाध्याय-27,(7)निशा भारद्वाज-27,(8) चंद्रेश बहादुर-25, (9) रेणु श्रीवास्तव-34,(10) संध्या कुमार-37,          

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें  तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं।  जय गुरुदेव

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विजय कुमार शर्मा  जी बताते हैं :           

पहले मैं पुनर्जन्म में तो विश्वास करता था लेकिन  प्रेत योनि (भूत, पिशाच आदि) पर मेरा बिल्कुल  भी विश्वास नहीं था। एक दिन प्रसिद्ध लेखक बी. डी. ऋषि की पुस्तक ‘परलोकवाद’  मेरे हाथ लगी। उसे पढ़कर कई तरह की जिज्ञासाओं ने मुझे घेर लिया। मेरे मन में तरह तरह के प्रश्न उठने लगे जैसे कि  

1.परलोक में हमारी ही तरह लोग कैसे रहते हैं? 2.क्या करते हैं? 3.उन्हें भूख-प्यास लगती है या नहीं? आदि आदि ।

ईस्टर्न रेलवे जमालपुर (मुंगेर) वर्कशॉप में नौकरी के रूप में मुझे गुरुदेव का आशीर्वाद 1972 में  मिल चुका था। एक दिन वर्कशाप में ही भोजन के समय विभाग के सीनियर इंजीनियर श्री राम नरेश मिश्र ने भूत-प्रेत आदि की बातें छेड़ दीं। मैंने हल्की अरुचि के स्वर में कहा, “मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता।” मिश्र जी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “तुम मानो या न मानो, मेरे जीवन में तो यह घटित हुआ है। आज मैं तुम लोगों को अपने जीवन में घटी वह सच्ची घटना सुनाता हूँ।” उनकी इस बात पर सबके कान खड़े हो गए। आइये सुने मिश्र जी की अनुभूति उन्ही की ज़ुबानी। 

मिश्र जी ने आपबीती सुनाते हुए कहा- “आज से बीस वर्ष  पहले की बात है। मेरी शादी हो गई थी। उसके कुछ ही दिनों बाद मेरी भेंट एक प्रेतात्मा से हुई और यह भेंट धीरे-धीरे सघन सम्पर्क में बदल गई। वह प्रेतात्मा रोज़  रात में आकर मुझ से भेंट करती और तरह-तरह की बातें भी करती थी। कभी पैरों में लाल रंग लगा देती, कभी कुछ और, तो कभी कुछ और, तरह के क्रिया कलाप होने लगते।”

विजय कुमार जी बता रहे थे कि मिश्र जी रेलवे के अच्छे पद पर कार्यरत थे और मुझसे उम्र में भी बड़े थे, इसलिए मैं उन्हें भैया जी कहा करता था। वे एक गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। इसलिए उनकी बातों को हल्केपन से लेना मेरे लिए संभव नहीं था। उन्होंने अनेकों घटनाएं  इतने जीवन्त रूप में हमारे सामने रखीं कि भूत-प्रेत के अस्तित्व को लेकर मेरी जिज्ञासा दोहरी हो गई थी। उनकी बताई ढेर सारी बातों में मुझे सबसे अधिक आश्चर्य इस बात पर हुआ कि वह थी तो एक मुस्लिम परिवार की प्रेतात्मा लेकिन अपना नाम “शांति” बताती थी। दूसरे दिन जब मिश्र जी आए, तो घबराए हुए थे। सीधे सेक्शन में आकर मेरे पास बैठ गए और कहा,“विजय जी, वह 20 वर्ष  बाद आज रात में फिर से आ गई। मैं तो तबाह हो जाऊँगा। अब मैं एक बाल बच्चेदार आदमी हो गया हूँ।”

उनकी बातें सुनकर विजय कुमार डर गए उन्होंने आश्चर्य से पूछा,“भैया, कौन आ गई,आप किस तबाही की बात कर रहे हैं।” मिश्र जी ने कहा, “वही प्रेतात्मा जो अपना नाम शांति बताती है। कल मैंने तुम लोगों से उसकी चर्चा की थी,वही  फिर आ गयी। समझ में नहीं आता है कि अब मैं क्या करूँ।”

विजय जी ने  उन्हें ढाढस बँधाते हुए कहा भैया जी चिन्ता की कोई बात नहीं। आप अपने यहाँ गायत्री हवन करा लीजिए, सब ठीक हो जायगा। गायत्री चालीसा में लिखा है,“भूत पिसाच सबै भय खावें, यम के दूत निकट नहिं आवें ।” मेरी बातों से मिश्र जी कुछ हद तक आश्वस्त हो गए। तीसरे दिन जब मिश्र जी वर्कशॉप आए तो उन्होंने और भी आश्चर्यभरी बात सुनाई। उन्होंने कहा कि शांति फिर आई थी, कह रही थी कि मैं विजय बाबू को अच्छी तरह से जानती हूँ। अगले दिन की बात है कि मिश्र जी चुपचाप विजय जी को अकेले में ले गए और कहने लगे कि शांति बता रही  थे कि आप उसके गुरु भाई हैं।

मिश्र जी की बात सुनकर विजय जी को कुछ  साहस तो मिला लेकिन वह  सोच-सोचकर पागल हुए जा रहे थे कि वह  इस प्रेतात्मा का गुरुभाई कैसे हो गए । इसका अर्थ  तो यही हो सकता है कि कभी इस जीवात्मा ने परम पूज्य गुरुदेव से दीक्षा ली होगी, लेकिन  एक मुसलमान महिला की दीक्षा। आखिर यह कब और कैसे संभव हुआ? विजय जी ने कहा  कि वे शांति बहिन से इन सवालों का जवाब लेकर आएँ। अब तक शांति नामक उस प्रेतात्मा से विजय जी का भय समाप्त हो गया था। 

एक रहस्य का उद्घाटन: 

अगले दिन मिश्र जी ने एक रहस्य का उद्घाटन किया और बताया कि  शांति तुम्हारे ही गुरु पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य की शिष्या है। विजय जी ने चकित  होकर पूछा कि यह कैसे और कब  संभव हुआ। 

मिश्र जी ने  शांति से  पूछा  कि तुम विजय के  गुरुभाई कैसे हो? तो उसने उत्तर में  कहा कि 1970  में टाटानगर में 1008  कुण्डीय यज्ञ हो रहा था। उसी समय मैं और कई अन्य आत्माओं के साथ भटकती हुई वहाँ पहुँच गई थी। इतने बड़े यज्ञ का आयोजन देखकर हम सभी परम पूज्य गुरुदेव से प्रभावित हो गईं और  हम सभी ने आचार्यश्री से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे ऋषिवर! इन मानवों का तो आप उद्धार कर रहे हैं लेकिन हम प्रेतात्माओं का उद्धार कौन करेगा? हमारे पास न तो स्थूल शरीर है और न टिककर रहने का कोई स्थान । दिन-रात बेमतलब भटकते रहना ही हमारी नियति है। आप तो अवतारी चेतना हैं। कृपया हमारा  भी उद्धार करें। तब परम पूज्य गुरुदेव ने यज्ञ-पंडाल वाले मैदान से अलग हटकर टाटानगर  के ही दूसरे बड़े मैदान में हमें  पंक्तिबद्ध कर दीक्षा संस्कार कराया और सबका नामकरण भी कर दिया। मेरा नाम गुरुवर ने “शांति” रखा था।

शांति के बारे में इतना कुछ जानने पर  विजय जी की जिज्ञासा बढ़ती ही  गई। उन्होंने  मिश्रजी के द्वारा  ही शांति से जानकारी ली कि वह  सभी सूक्ष्म जगत में क्या करती हैं। शांति बहिन का कहना था कि हम सब सूक्ष्म जगत में गुरुदेव के अनुशासन में काम करती  हैं। 

मिश्र जी ने जब जानना चाहा कि इस समय गुरुदेव हिमालय प्रवास में कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं, तो शांति ने कहा कि हमें कुछ भी बताने की आज्ञा नहीं  है।

वही विजय जी जिन्हें  प्रेतात्माओं में कोई रूचि नहीं थी, अब उन्हें प्रेतात्माओं के अस्तित्व पर पूरा विश्वास हो चुका था। उन्हें विश्वास हो गया  था  कि परम पूज्य गुरुदेव की पराशक्ति (Highest Energy) से परिचालित ये सूक्ष्म शरीरधारी शिष्यगण सूक्ष्म जगत में भी “युग परिवर्तन” के लिए कार्यरत रहते हैं।

इस घटना के लगभग एक वर्ष बाद तक परम पूज्य गुरुदेव की प्रेतात्मा शिष्या शांति विजय जी के सम्पर्क में विधेयात्मक रूप में रही। फिर एक दिन ऐसा भी आया कि वह उस इलाके से हमेशा के लिए चली गई। बहुत याद करने पर भी उसका आना नहीं हुआ।

1973 में शांतिकुंज के वशिष्ठ और विश्वामित्र भवनों  में प्राण प्रत्यावर्तन शिविर आयोजित हुए थे। सौभाग्य से  विजय जी को भी इस शिविर में  भाग लेने का अवसर मिला था। इसी शिविर के दौरान एक दिन शांति का ध्यान आया तो  गुरुदेव से भेंट के समय पूछ बैठे गुरुदेव, शांति बहिन का क्या…..? वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि गुरुदेव ने तपाक से कहा, “बेटा, उसका चोला बदल गया….. चोला बदल गया।”

पूज्य गुरुदेव की मुद्रा देखकर विजय जी को आगे कुछ पूछने का साहस नहीं हुआ। साक्षात् शिव की तरह भूत प्रेतों का भार वहन करने वाले महाकाल के अवतार को श्रद्धापूर्वक नमन करके उन्हें वापस लौट पड़ा। 

प्रेरणा कुमारी- सारे विश्व में आग लगी हुई है।  

परम पूज्य गुरुदेव के अध्यात्मिक जन्म दिवस के उपलक्ष्य  में हम  अपनी अनुभूति प्रस्तुत कर रहे हैं। 

आज सारे विश्व में आग लगी हुई है। आग कहां लगी हुई है ?  तो आग लगी है मनुष्य के दिमाग में, उसके मन में, उसके बुद्धि में। आज मनुष्य को जो सोचना चाहिए वो सोचता नहीं है और जो करना चाहिए वह करता नहीं है। मनुष्य का दिमाग विकृत होता जा रहा है। उसके दिमाग में हमेशा कुछ ना कुछ उधेड़बुन चलती ही  रहती  है। आज की  इस विषम परिस्थिति में जहां चारों ओर अंधकार ही अंधकार छाया हुआ है, ऐसे समय में  प्रकाश की किरण लेकर  गायत्री परिवार हमारे  सामने आया और दुनिया की सभी उधेड़बुन से हमें बाहर निकालते चला गया। जीवन की लड़ाई में गुरुदेव के वोह  विचाररूपी हथियार काम आए जिन्होंने  पग-पग पर हमारा  मार्गदर्शन किया और हमारी लड़ाई में सहायक हुए । संसार की कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने  की शक्ति व साहस प्रदान किये  और हमारे अंतर्मन में  हमेशा एक दृढ़ विश्वास बनकर कर खड़े रहे।

हमने अक्सर देखा है कि,जब हम विषम से विषम परिस्थितियों से जूझ रहे होते हैं तो खुद को यह सांत्वना देते हैं कि  चिंता क्यों करते हो, गुरुदेव है न, वोह  सब कुछ ठीक कर देंगे । ऐसा बोलते ही अंतर्मन में  एक दिव्य उर्जा समाहित हो जाती है और हम उन परिस्थितियों से पार पा जाते हैं । 

2009 की बहुचर्चित फिल्म  “Three Idiots” का  बहुचर्चित डायलाग “All is well” का उत्तर भी इसी शिक्षा को दिखा रहा है।  

परम पूज्य गुरुदेव का सत्संकल्प पाठ जिसे “युग निर्माण योजना का संविधान” कहा जाता है हमने  प्रतिदिन पढ़ा और यह अनुभव किया कि हमारे  अंदर बहुत से परिवर्तन आए हैं।  सभी से हमारा आग्रह है कि इसे हमेशा पढ़ें। जय गुरुदेव।

संध्या कुमार-  

परमपूज्य गुरुदेव ने अनेक बार कहा है “बच्चों घबराना नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ “,मैं अपना एक अनुभव साझा कर रही हूँ।  2008 में मेरा कैंसर का दो बार ऑपरेशन हुआ, गुरुवर की कृपा से मैं स्वस्थ्य भी हो गयी एवं साधारणत: सारे कार्य सम्हालने लायक भी हो गयी, इसके बाद हम पति- पत्नि नियम से साल में एक बार पूरा Medical चेकअप कराने लगे। मेरी report देख डॉक्टर ने हिदायत देते हुए कहा कि आप पूरी सावधानी से रहना, चोट ना लगे, आप गिरे  नहीं क्योंकि आपकी bones बहुत कमजोर हैं, अतः गिरने से fracture का पूरा डर है। उन्होंने जरूरी दवा बता दी। 

मैं पूरी सावधानी से रहने लगी,किंतु होनी को कौन टाल  सका है। घर पर ही पोते की Toy train में पैर उलझा और मैं गिर पड़ी, सब इतना अचानक हुआ कि सँभलने का मौका ही नहीं मिला। दोनों घुटने ज़ोर जमीन में पटकाये, मैं दर्द से चीख पड़ी, गिरते- गिरते मन ही मन गुरुवर को याद करने लगी।  मेरी चीख सुन बेटा दौड़ कर आया।  मुझे दोनों घुटने एवं हाथ के बल ज़मीन  पर देख वह भी घबराया। मैं तो हिल भी नहीं पा रही थी, बेटे ने सहारा देकर उठाया एवं बेड  तक लाया। मेरे दिमाग़ में डॉक्टर की हिदायत घूम  रही थी। विचार  आ रहा था कि  ना जाने क्या  हुआ होगा है,ना जाने कितने दिन का बेड रेस्ट करना पड़ेगा  वगैरह वगैरह। मेरे दिमाग़ में पूरा मंथन चल रहा था। मुझे  Orthopaedic surgeon के पास ले जाया गया,जहाँ मुझे एवं मेरे परिवार को अत्याधिक प्रसन्न्ता के साथ घोर आश्चर्य हुआ जब surgeon ने एक्सरे देख कर कहा,लेफ्ट पैर के अंगुठा में हल्का सा hairline fracture है, प्लास्टर की जरूरत नहीं है, बस एक पतली सी cross पट्टी  ही लगायी जायेगी, घुटने एकदम ठीक हैं, कोई घबराने की बात नहीं है।  य़ह भी कहा कि आप नॉर्मल ढंग से चलना फिरना जारी रखिये, सिर्फ 21 दिन तक अंगुठा मोड़ना नहीं  है।  मुझे एवं मेरे परिवार को ऐसा ही महसूस हुआ जैसे गुरुवर ने पूरे से बचा लिया।  पति भी बोले कि तुम पर कोई बड़ा  ग्रह था जिसे  गुरुदेव ने हल्के से निकाल दिया। ऐसे हैं परमपूज्य गुरुदेव,जो हर पल, हर क्षण, हर परिस्थिति में अपने बच्चों की रक्षा करते हैं, ऐसे गुरु को पाकर जीवन धन्य हुआ, गुरुवर आपको कोटि कोटि सादर नमन।  

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