अपने सहकर्मियों की कलम से – अनुभूति श्रृंखला का समापन (???) तो हो गया था लेकिन…….

18 फ़रवरी 2023

आज इस स्पेशल सेगमेंट का शुभारम्भ हम महाशिवरात्रि की शुभकामना से करते हैं, तो आइये चलें देव संस्कृति यूनिवर्सिटी  स्थित  प्रज्ञेश्वर महाकाल मंदिर के प्रांगण में और दिव्यता से ओतप्रोत हो जाएँ। इस 10 मिंट की वीडियो का लिंक हम नीचे दे रहे हैं। वीडियो के आरम्भ में मधुर प्रज्ञा गीत “गुरु मेरी पूजा” की कुछ पंक्तियाँ आपको इस मंगलवेला में चार्ज करने की कोई कसर नहीं छोडेंगीं।

https://youtu.be/Dk0G1h1OqQo   

इसी सेगमेंट में अरुण वर्मा भाई साहिब द्वारा भेजे गए दानापुर गायत्री शक्तिपीठ के स्थापना दिवस के अवसर पर हो रहे 9 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के बारे में जानकारी देता पोस्टर। 

आज हमारी बड़ी बहिन आदरणीय छाया दुबे जी की पुण्य तिथि है, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की ओर से बहिन जी को नमन। काल के निर्दय पंजों ने बहुत ही  छोटी आयु में हमारी बहिन जी को हमसे छीन लिया लेकिन परम पूज्य गुरुदेव ने इस समर्पित साधिका को अपने चरणों में स्थान देकर हम पर बहुत ही बड़ा उपकार किया है। हमारे छोटे भाई राजीव ने भी फेसबुक पर इस तरह का समर्पण शेयर किया है। धन्यवाद् 

इसी अपडेट और रिपोर्ट कार्ड के साथ आरम्भ करते हैं आज का यह वाला स्पेशल सेगमेंट अंक, अंत में संकल्प सूची तो है ही। हमारा अगला मिलन आज रात को शुभरात्रि सन्देश से  होगा     

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हम सब  का जीवन परम पूज्य गुरुदेव और संयोग को समर्पित है। शायद यह भी एक संयोग, यां गुरुदेव का निर्देश ही था कि पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस, 26 जनवरी 2023 जब  हमने अनुभूति श्रृंखला का शुभारम्भ था उस  दिन गुरु का दिन यानि गुरुवार था, इससे भी बड़ा संयोग देखिये जिस दिन समापन(???) हुआ उस दिन भी गुरुवार ही था। इस संयोग को देखकर हम कैसे “विश्वास” कर लें कि हमारे जीवनरुपी विमान के पायलट स्वयं परम पूज्य गुरुदेव नहीं तो और कौन हैं। विश्वास शब्द को हमने quotes unquotes के बीच लिखा है जिसका अर्थ है कि हम कह रहे हैं कि  अगर आपको विश्वास है तो ही यह बात सत्य समझी जा सकती है। 

अनुभूति श्रृंखला का आरम्भ हमारी पर्सनल अनुभूति से हुआ था जिसमें हमने गुरुशक्ति के आगे टेक्नोलॉजी को झुकते देखा था। समापन(???) मंजू मिश्रा जी की अनुभूति से हुआ जिसमें हमनें श्रद्धा, विश्वास और गुरुभक्ति का एक दुर्लभ उदाहरण देखा। शायद हमीं ने इस सन्दर्भ में लिखा था कि अगर शिष्य में गुरुभक्ति हो तो, हिमालय के बियाबान जंगलों को भी चीरकर  गुरु आपके समक्ष खड़ा होता है। शायद यह गुरुभक्ति ही थी जिसने बहिन जी को युगतीर्थ शांतिकुंज की पावन भूमि का स्पर्श करवा के ही दम लिया। इससे भी बढ़कर संयोग देखिये: बहिन जी ने इतना परिश्रम करके जब पहली बार अपनी अनुभूति handwritten form में भेजी तो हमारे तो होश ही उड़ गए कि बहिन जी ने कितनी श्रद्धा,समर्पण,निष्ठा से यह चार पेज लिखे थे, उन में से एक पेज का स्क्रीनशॉट स्लाइड नंबर 4 में दिखाया गया है। होश उड़ने वाली बात हम इसलिए लिख रहे हैं कि बहिन जी ने उस युग में इतना परिश्रम कर दिखाया है जब हम पेपर-पैन को भूलते जा रहे हैं। टेक्नोलॉजी ने हमारे हाथ ऐसे काट कर रख दिए हैं कि अगर कहीं हमें पैन लेकर पेपर पर कुछ पंक्तियाँ  लिखनी पड़ जाएँ तो शायद बहुत बड़ी समस्या बन जाय क्योंकि आज सब कुछ तो फ़ोन और लैपटॉप कर रहे हैं। हमें तो यह सोचने की आवश्यकता भी  नहीं है कि इस शब्द का spelling क्या है। वाह रे टेक्नोलॉजी !!!!  जब इस स्तर  का परिश्रम देखा तो हमसे रहा न गया और हमने उसी समय पढ़ने  का प्रयास करना आरम्भ कर दिया, लगभग एक घंटा चारों पन्नों को बीच-बीच  में zoom करकेपढ़ने का प्रयास करते रहे कि शायद कुछ बात बन जाए क्योंकि हम हिम्मत हारने  वालों में से तो  है नहीं। ज़ूम करने से शब्द blurr हो जाते थे और unzoom से बहुत ही साथ-साथ और नज़दीक थे। रात हो रही थी, सोने का समय निकट आ रहा था  इसलिए इस प्रयास को अगले दिन के लिए पोस्टपोन करना पड़ा। अगले दिन उठते ही सबसे पहले गूगल महाराज से निवेदन किया और महाराज ने लगभग 5 घंटे हमारे साथ बैठ कर प्रयास  किया  लेकिन वह भी हथियार डाल कर चलते बने। अब हमारे पास एक ही विकल्प था कि बहिन जी को फिर से लिखने के लिए कहा जाये,लेकिन यह कहने के लिए साहस कहाँ से लाएं, जिन्होंने चार पेज इतने परिश्रम से लिखे थे, क्या वह फिर से लिख पायेंगें, उनका साहस  नहीं टूट जायेगा और हमें जो गलियां पड़ेंगी वह अलग।  खैर गुरुदेव से मार्गदर्शन मिला, बेटा अरुण जब ओखली में सिर दिया है तो डर किस बात का। गुरुदेव कह रहे थे , “सहकर्मियों की गालियां  सिर आँखों पर, हमें तो हर किसी ने गलियां ही दी हैं, तो उठ बटोर साहस।”  हमने गुरु निर्देश का पालन किया और बहिन जी को सारी कहानी लिख डाली। इस कहानी में जो सबसे महत्वपूर्ण वाक्य था,वह था “बहिन जी अगर कुछ पैसे देकर किसी से टाइप भी करवाना पड़े तो कोई बात नहीं, समयदान और अंशदान दोनों हो जायेंगें, ज्ञानदान तो हो ही रहा है।” कुछ दिन के बाद बहिन जी ने जब टाइप कराके भेजा  तो आप हमारे ह्रदय की स्थिति को समझ सकते हैं। स्लाइड नंबर 3 इसी पेज का स्क्रीनशॉट है। प्रकाशन के कुछ ही घंटों बाद बहिन जी ने धन्यवाद् के लिए फ़ोन किया,जिन जिन शब्दों का प्रयोग किया वोह  तो हम नहीं लिखेंगें लेकिन इतना अवश्य लिखेंगें “यही है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार, जिस पर हम इतना गर्व करते हैं।”

हमने यह इतनी लम्बी कथा क्यों लिखी ? अपने बढ़ाई के लिए ? अपनी महानता दर्शाने के लिए ? कदापि नहीं।  सिर्फ इसलिए कि जो सहकर्मी इस समय इस स्पेशल सेगमेंट को पढ़ रहे हैं स्वयं ही मूल्यांकन कर लें कि  सभी सहकर्मी  कितने समर्पित हैं। ऐसे ही  समर्पण को दर्शा रही हैं बाकी की slides. हाथ से लिख कर भेजना, हिंदी में टाइप करके  भेजना, इंग्लिश में टाइप करके भेजना, जीमेल पर, व्हाट्सप्प पर ,यूट्यूब पर, भेजना,  हमारे लिए सभी अमूल्य  है, सभी contributions को हम अपने मस्तक पर धारण करते हैं, चाहे वह 100 शब्दों की हो यां 4000 शब्दों की। अन्य सभी contributions के बारे में हम ऐसे ही  ग्रन्थ लिखने की समर्था रखते हैं,चाहे आप विश्वास करें या न करें, हमें अपनेआप पर पूरा विश्वास है। जब विश्वास होता है तो सब कुछ संभव है क्योंकि गुरु का साथ जो होता है।

कैसे भूल गए हम ?   

लेकिन इतने अमूल्य योगदान को हम भूल कैसे गए ? जी हाँ हम सही लिख रहे हैं, हम सच में भूल गए थे।   बुधवार को पुष्पा बहिन जी की अनुभूति पोस्ट करते समय हमने 3 पॉइंट लिखे थे,पॉइंट नंबर 2 बता रहा था कि मंजू मिश्रा जी की अनुभूति से इस श्रृंखला का समापन हो रहा है। क्या हमारा इस तरह लिखना ठीक था ? नहीं। क्योंकि शायद हम भूल गए थे कि हमारे पाठक ज्ञानप्रसाद लेखों का कितना श्रद्धा और ध्यान से अमृतपान कर रहे हैं और हमारी भूल को, गलती को  पकड़ ही लेंगें।   

आज के इस स्पेशल सेगमेंट में हमारे पाठकों ने नोटिस किया होगा कि शीर्षक एवं आरम्भ के वाक्यों में जितनी बार  “समापन” शब्द का प्रयोग हुआ,उसके साथ sign of interrogative ??? था। इसका अर्थ था कि हम अपनेआप को समझाने का प्रयास कर रहे थे कि क्या सच में समापन हो गया है -नहीं। 

जब हमने पॉइंट 2 में समापन की बात  लिखी तो कुछ ही समय बाद हमारी बड़ी बेटी  प्रेरणा का और बहिन संध्या जी का मैसेज आया कि “हमारी अनुभूतियाँ प्रकाशित नहीं हुई हैं”   Exact messages  और हमारे रिप्लाई  भी हम अपने सहकर्मियों से शेयर कर सकते हैं लेकिन हम तो यही  लिखेंगें कि हमारे पाँव से ज़मीन ही खिसक गयी कि यह गलतियां कैसे हो सकती हैं। अगर श्रद्धा,समर्पण और निष्ठा न होती तो हम तो कोई  भी बहानेबाज़ी कर देते, लेकिन यह तो हमारी प्रवृति में  हीनहीं है। गलती हुई है तो माननी तो पड़ेगी ही, बार-बार अपनेआप  को कोसे जा रहे थे, लेकिन यह भी कहे जा रहे थे कि बेटा- औखली में सिर  दिया है तो मूसलों से क्या डर। बार-बार एक ही प्रश्न हमें कचोट रहा था कि हमने अपने समर्पित सहकर्मियों के विश्वास को चोट पहुंचाई है, उन सहकर्मियों को जो मंगलवेला में आँख खुलते ही ज्ञानप्रसाद लेखों को न केवल  इतना सम्मान देते हैं बल्कि हमारे लिए “दक्ष शेफ” जैसे विशेषणों का प्रयोग करते हैं। इस गलती के बाद क्या हम उनके आगे आँख उठा कर चल पायेंगें।  कैसे होगा इसका निवारण, इस गलती की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेते हमने संध्या बहिन जी को मैसेज कर दिया कि हम दक्ष शेफ जैसे विशेषण के हकदार नहीं हैं, इस गलती की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी लेते हुए, इस सेरेमोनियल टाइटल का परित्याग करते हैं। बहिन जी का एकदम रिप्लाई आया “ भाई जी ऐसा जुलुम न कीजिये, आप दक्ष शेफ हैं और रहेंगें” बहिन जी ने तो अपनी शुद्ध भावना प्रकट कर दी लेकिन गलती का निवारण कैसे होगा? क्योंकि जब तक निवारण नहीं होगा, हमें चैन कहाँ आएगा। एक बार फिर “विश्वास” और “गुरुकृपा” का समन्वय हो गया। यहाँ भी परम पूज्य गुरुदेव का मार्गदर्शन ही सहयोगी बना। 

आइए देखें क्या था यह मार्गदर्शन ?

कुछ समय पूर्व आदरणीय पुष्पा सिंह जी ने कमेंट किया था जो हम नीचे पेस्ट कर रहे हैं : 

“आदरणीय डॉ अरूण भाई साहब कल हमारे टाटा नगर के आदित्यपुर क्षेत्र में हुए नौ कुण्डीय तीन दिवसीय राष्ट्र-जागरण गायत्री यज्ञ का समापन हो गया और इस समापन के दौरान शांति कुंज हरिद्वार से आए टोली के भाई साहब ने 1971  में हुए यज्ञ का जिक्र किया जिसे कराने स्वयं गुरुदेव जी आए थे और उस यज्ञ में गुरुदेव जी ने भूतों को बैठाकर हवन कराया था और उनको दीक्षित करके उनका पुनर्जन्म भी कराया था इस घटना का किस्सा सुनाया । मैं चाहती हूं कि आप इस घटनाक्रम से संबंधित कोई विडियो अगर उपलब्ध हो तो उसे सबके लिए इस आनलाइन ज्ञानरथ प्रसाद में प्रस्तुत कीजिए।”

जिस दिन बहिन जी का कमेंट आया था हमने उसी दिन रिसर्च आरम्भ कर दी थी। वीडियो तो कोई नहीं मिली लेकिन मुंगेर( बिहार ) निवासी विजय कुमार शर्मा जी की अनुभूति मिल गयी। यही है वह दिव्य अनुभूति जिससे अनुभूति श्रृंखला का समापन होगा, बड़ी बेटी प्रेरणा  और बहिन संध्या जी की छोटी-छोटी दोनों अनुभूतियाँ विजय कुमार जी की अनुभूति के साथ सोमवार को प्रकाशित करेंगें। हमें पूर्ण विश्वास है कि ऐसा करने से हम उस अपराध से मुक्त हो जायेंगें जो हमसे अनजाने में हो गया था, जान बूझकर ऐसा अपराध तो शायद हम कभी सपने में भी न कर पाएं।  बेटी और बहिन का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं जिन्होंने बहुत ही सुन्दर शब्दावली का प्रयोग करके हमें स्मरण कराया और अपराध की तीव्रता को कम करने में सहयोग दिया।  

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आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 12 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है, सरविन्द पाल   जी  सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1) अरुण वर्मा-63 (2)सरविन्द कुमार-71,(3)मंजू मिश्रा-31,(4 )सुमन लता-32 ,(5) वंदना कुमार-33,(6 ) पूनम कुमारी-31,(7 ) सुजाता उपाध्याय-25         

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें  तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं।  जय गुरुदेव

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