पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला  का 13वां अंक-मंजू मिश्रा  जी  का योगदान। 

16  फ़रवरी  2023  का ज्ञानप्रसाद :

सर्वप्रथम मैं स्वयं के बारे में संक्षिप्त परिचय देना चाहूँगी। मेरा नाम मंजू मिश्रा है। मैं पटना  की निवासी हूँ। मेरी शिक्षा दीक्षा महाकाल की नगरी उज्जैन (MP) में हुई है।

बहुत दिनों से सोच रही थी कुछ लिखूँ । गायत्री मंत्र लिखती हूँ तो पतिदेव कहते हैं कि इतना लिखती हो, बेहतर होगा एक पुस्तक ही लिख लेती। विगत तीन सालों से मैं गायत्री मंत्र लिख रही हूँ । गुरूदेव की कृपा से यही एक काम मैं भली प्रकार से कर पाती हूँ। प्रथम लॉक डाउन से लिखना आरम्भ किया था। हवन भी शुरू किया था। कई बातें भी सुनी परन्तु मन में सोचा लिखना है तो लिखना है। हवन करना है तो करना है। अड़चने आती रही किन्तु मैं अपना काम करती रही। गुरूदेव जी की ऐसी कृपा हुई कि घर के अधिकतर लोग आज मेरे साथ है, खासतौर पर मेरी सासू माँ जो मेरे हवन करते समय गायत्री मंत्र बोलने से कतराती थी, आज वही कहती हैं गायत्री मंत्र से हवन करो। वाह रे गुरु तेरी माया,शत शत नमन है ।

गुरूदेव से मेरी प्रथम मुलाकात 12,13 वर्ष की आयु में सपने में हुई । मेरे पापा गायत्री माँ के उपासक हैं। गुरूदेव,माता जी से उनका मिलना जुलना लगा रहता था। वह ऑवलखेडा, मथुरा, शांतिकुंज जाया करते थे। मैने गुरूदेव जी को 6,7 वर्ष की आयु में भी देखा था,लेकिन ध्यान नहीं। 12-13 वर्ष की आयु में हमारे दरवाजे पर गुरूदेव जी को आलथी-पालथी मारकर बैठे देखा था। इस दृश्य को  मैं आज तक  भूल नहीं पायी हूँ। उस समय तो  मैंने कहा, “पापा एक बूढ़े बाबा को दरवाज़े पर बैठे देखा है।” पापा जी क्या बोले याद नही। मैं और मेरा छोटा भाई रोज़ “यन्मन्डलम् दीप्तीकरम् विशालम्” गाया करते थे । बड़ा आनन्द आता था अधिकतर हवन गोष्ठी हुआ करती थी। घर में बड़ा दिव्य वातावरण लगता था। अभाव होते हुए भी कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं हुई।हमारे  यहाँ अखण्ड ज्योति पत्रिका एवं  गुरूदेव की छोटी-छोटी पुस्तकें आया करती थीं,मैं  उन्हे पढ़ा भी करती थी। मैं स्केचिंग भी  किया करती थी। एक पुस्तक पर गुरूदेव के चरण बने हुए थे  मैंने चरणों  स्केचिंग की, मुझे बहुत अच्छा लगा। 

इन्ही दिनों  नागदा (M.P) में गायत्री शक्ति पीठ बनना शुरू हो गया था। उसी समय गायत्री मंत्र लेखन की पुस्तक मिली। गायत्री मंत्र लिखने के लिये मैंने एक कॉपी भी ली। उसी समय कॉलेज में “तृतीय विश्व युद्ध आज और आज से कितनी दूर”  विषय पर निबंध लिखने का अवसर मिला।  अखण्ड ज्योति  तो मैं पढ़ती ही थी, 3-4 अंक पढ़े,रिसर्च की और  निबंध लिख डाला। गुरूदेव की कृपा से फर्स्ट प्राइज  मिला । धन्य हैं हमारे गुरूदेव जी ।

हर पग, हर क्षण मेरे साथ हैं गुरूदेव:

गुरुदेव शक्तिपीठ का उद्घाटन करने आये थे। परिजन उनके उद्बोधन  का अमृतपान कर रहे थे। समाप्ति पर सभी लोग चरण स्पर्श के लिए पंक्तिबद्ध हो गये लेकिन मैं किसी कारणवश इस सौभाग्य से वंचित रह गई। उस समय लगा कोई खास बात नहीं है। जीवन की गाड़ी चलती रही, शादी हुई, बच्चे हुए और मैं गृहस्थी में व्यस्त हो गयी। पूजा पाठ कम हो गया लेकिन  गुरूदेव मेरे हृदय में बसे हुए थे। जीवन में कितने ही उतार चढ़ाव आये, गुरूदेव,माता जी सदैव साथ खड़े रहे। बच्चे बड़े होने लगे,मन में कसक उठने लगी कि नौवीं कक्षा से हसरत थी कि गुरुदेव के चरण स्पर्श नहीं किये हैं। हृदय में जो वेदना उठती  थी मैं बता नही सकती। दिन रात इसी सोच में डूबी रहती थी। एक दिन पानी पी रही थी, जिन चरणों का  मैने स्केच बनाया था गिलास के तले  में दिखायी दिये। मैं बहुत खुश हुई लेकिन आज तक इसके बारे में किसी से कुछ नहीं कहा। इससे भी मन को चैन नहीं मिला  । फिर एक दिन सपने में आये, मैंने देखा गुरुदेव माता जी को लेकर ऊपर लेकर जा रहे हैं । मन दुःखित हो उठा।

मेरा पूजा पाठ धीमी गति से चलती रही : 

इतने में मेरे पास मोबाइल फोन आ गया, Facebook browse करने  लगी । उसमें गुरूदेव के  अमृत वचन  और शांतिकुंज विडियोज आती थीं, मै देखकर अति प्रसन्न रहने लगी। गुरूदेव जी की  अमृतवाणी आये दिन सुनती थी। लगता था हर बात  मेरे लिए ही कह रहे हैं । उनके कहे अनुसार चलना शुरू किया, सुबह उठकर पूजापाठ, जाप करना आरम्भ किया, तल्लीनता आती गई, आत्म सुधार होना शुरू हो गया। हर समय प्रेरणा मिलती चली गयी, सूर्य देवता में गुरूदेव के  साक्षात दर्शन कर मै धन्य हो गयी। जाप के समय एक दिन गुरूदेव  के दर्शन हुए। प्रेरणा मिली कि हमारी कॉलोनी के पीछे भागवत गीता चल रही थी, गायत्री माँ की पूजा चल रही थी, मुझे वहां जाना चाहिए लेकिन  मेरे जैसी बेवकूफ केवल रोती रही, हिम्मत नहीं जुटा पायी,पता नही क्यों । आज भी अफसोस होता है। परीक्षा में फेल हो गयी।आये दिन घर में सबसे कहा करती थी मुझे शांतिकुंज जाना है। हरिद्वार जाना है, अब मोहमाया से मन उचट गया है। सब हँस के रह जाते। पर मेरा मन हरिद्वार जाने को व्याकुल रहता था । घर में किसी को गायत्री माँ से लगाव नहीं था परन्तु जब से मैं गायत्री मंत्र लिखने लगी हॅू, भजन सुनती हूँ तब से मेरे पतिदेव को गुरूदेव  से लगाव हो गया है। “शांतिकुँज गुरूकुल है पावन” वाला गीत मुझे बेहद पसंद है जिसमें सब लोग कार्य कर रहे है, कोई गेहूँ चुन रहा है, कोई रोटी बना रहा है, कोई हवन कर रहा है आदि आदि। मन खुश भी होता और लेकिन  कसक सी रहती है कि सब लोग हरिद्वार पहुंचे जा रहे है और मै नहीं जा पा रही । लेकिन यह भी पता था की  जब गुरुदेव बुलायेंगें तभी तो कोई जा पायेगा। 

आखिरकार बुलावा आ ही गया :

फिर अचानक मेरे भतीजे की शादी तय हो गई । उसकी  शादी ऋषिकेश से करनी थी। 12 मई 2022 को शादी तय हुई । मैं तो शादी  से ज्यादा हरिद्वार जाने को उतावली थी । मैने मन ही मन प्लान बना लिया कि हरिद्वार चलेगें,पतिदेव  मान भी गये । 13 मई 2022 को वह सुनहरा पल आ ही गया। गुरूदेव  ने अपनी कृपा मुझ पर बरसा ही दी। मेरा खुशी का ठिकाना न था, ऋषिकेश से करीब 2:00 बजे शांतिकुंज पहुॅचे। पर्ची कटवाने के लिये लाइन में लगे,वहाँ गुरूदेव माताजी के फोटो लगा था।अंतरात्मा खुशी से  भर उठी, ऑसू रुक ही नही रहे थे, सबसे छुपाती रही। धर्मशाला में रूकने की जगह मिली, मेरे पतिदेव बोले नीचे कैसे सो पाओगी क्योंकि मेरे कमर में दर्द रहता है, उठने बैठने में दिक्कत होती है। हम लोग वापस पर्ची काटने वाले भाई के पास गए उन्होंने कहा आप बगल में रूम है वहाँ जाकर बात करें। मैं  और मेरे पतिदेव वहाँ चले गए मैने कहा मेरे को रूम चाहिए, उन्होंने पूछा दो लोगों  के लिए मैने कहा हाँ तो उन्होने कहा वहाँ दो लोग पैहले से  रह रहे हैं, चलेगा क्या ? मैने हाँ कर दी । मेरे साथ मेरी बुआजी के दो बेटे भी आये थे। उनका  वहाँ पर कोई परिचित था तो वो लोग उनसे मिलने जाने लगे इतने में मेरे पतिदेव ने कहा हम चार लोग एक साथ रह लेते है तो भईया ने हाँ कह दी। सभी लोग तो बातचीत  कर रहे थे लेकिन मेरे आँसू ही नहीं रूक रहे थे, फूट फूट कर रो रही थी। वहाँ के कर्मचारी कहने लगे “इनको गुरूदेव ने स्वयं बुलाया है इसलिये इतना रो रही है।” फिर रूम मिला, त्रिपदा भवन,  सजल श्रद्धा प्रखर  प्रज्ञा के सामने,अपने पास रखने के लिये गुरूदेव जी ने वो रूम दिलाया था, इतनी खुशी कि  मै वर्णन  नहीं कर सकती। लगा मैं मैके में आई हूँ, ऐसे लग रहा था जैसे लड़की मैके आई हो, आवभगत हो रही हो। खाना खाकर लौटे तो गायत्री मंदिर के दर्शन किये, अखण्ड दीप के दर्शन किये । गुरूदेव के कक्ष के दर्शन नहीं हुए। यूटयूब  पर देखा था कि गुरुदेव का कक्ष अखंड दीप के पास ही था। फिर नीचे आई बात करी तो उन्होंने मुझे दर्शन करवाये। अति आनन्द की प्राप्ति  हुई। मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रही था। सब कार्य गुरूदेव ही करा रहे थे। गुरुदेव माताजी से मन ही मन प्रार्थना की, मुझे जीजी से अवश्य मिला दें। रात भर सो नहीं पायी थी, उठ-उठ कर सजल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा देखती रही। फिर  सुबह 4:00 बजे नहाकर तैयार हो गई, गायत्री मंत्र की कापियां व अंशदान गुरूदेव व माता जी को समर्पित करना था,उत्साह से मन हल्का हो गया। अचानक हवन होते देखा, हवन में बैठ गयी। मेरा तो कोई प्लान नहीं था लेकिन गुरूदे मेरी आत्मा को तृप्त करने के लिए स्वयं  ही सब काम करवाए जा रहे थे। मै तो हूँ भुलक्कड इसीलिए  गुरूदेव अपनी कृपा बरसाए जा रहे थे। मैं तो  स्वर्ग मे मै आ गई थी, सच में  “धरती पर स्वर्ग है शांतिकुँज।” यज्ञ के बाद दर्शन किए,  खाना खाने गये तो  वहाँ  एनाउन्स हुआ कि जो बहन रोटी बनाना चाहती है वो आए। मैने खाना खाया तो मेरे पतिदेव बोले जाओ रोटी बना लो। मैं प्रफुल्लित हुई रोटी बनाने चली गयी  मन नही भर रहा था, कितनी ही रोटियाँ बनाती जाउँ लेकिन मन मसोस कर छोड़ कर आ गयी। पतिदेव भी खुश थे कि बेटी माता-पिता के पास आयी है तो फिर चिंता किस बात की। बुक स्टॉल से पुस्तकें  खरीदी, आसन लिया, गंगाजल आदि लिया। जीजी से मिलने गए, बस यही बैचनी थी कि जीजी के दर्शन कर लूँ और धन्य हो जाउँ। लाइन में लगे हमारा नम्बर आया। मै कुछ बोल ही नहीं  पा रही थी। अजीब सी स्थिति थी, जीजी ने प्यार से पूछा,”तुम कैसी हो, बच्चे कैसे हैं, तबीयत कैसी है ।” मै हॉ हॉ करती गई। जीजी बोली कि ये तुम्हारा मायका है। मैनें  कहा गुरूदेव जी की कृपा से सब ठीक है। आपके दर्शन करने और आशीर्वाद लेने आये है। जीजी ने आशीर्वाद दिया। अंत में जीजी के पीछे गुरूदेव जी की एक झलक सी दिखाई दी । प्रणाम कर हम नीचे आ गये,माता भगवती  भोजनालय  का खाना खाने के बाद अन्य कोई भी  भोजन अच्छा ही नहीं लगता था। भूख लग ही नही रही थी।  

रात 2:00 बजे ट्रेन थी, स्टेशन जाने के लिए कोई ऑटो वाला मान नहीं रहा था। अचानक एक जीप में से ड्राइवर आया और बोला कि आप चिन्ता न करें, कोई नहीं जाएगा तो हम स्टेशन छोड़ आयेंगें।

वाह रे मेरे गुरूदेव की कृपा। 

मेरी तड़प को गुरुदेव ने देखा था सो शांति कुँज बुलाकर मेरे सारे  कार्य करा दिये। यहाँ पर अब मन ही नही लगता। भाभी फिल्म का यह गाना याद आता रहता है- “चल उड़  जा रे पंक्षी कि अब यह  देश हुआ बैगाना “। 

गुरूदेव की कृपा से और OGGP के माध्यम से अपनी अनुभूति लिख ही डाली लेकिन शांति कुंज का प्यार दुलार अनुभव किया जा सकता है, उसे लिखा नहीं जा सकता । भैया जी को तहेदिल से सादर प्रणाम ।

जय गुरूदेव

Winners 13,Gold Medalist -Arun Verma 

(1)संध्या कुमार-37 ,(2 )अरुण वर्मा-41 ,(3)निशा भारद्वाज-26 ,(4)चंद्रेश बहादुर-28,(5 )सुजाता उपाध्याय -25,(6 )प्रेरणा कुमारी-24,(7 )विदुषी बंता-28,(8 )अशोक तिवारी-24, (9)सरविन्द पाल-35, (10) वंदना कुमार-37,(11 रेणु  श्रीवास्तव-31,(12) सुमनलता-27,(13)मंजू मिश्रा-27   

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