पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला का दसवां अंक- डॉ सुमति पाठक,रेणु श्रीवास्तव और सुजाता उपाध्याय जी का योगदान।

13 फ़रवरी 2023 का ज्ञानप्रसाद

राम माहेश्वरी द्वारा निर्देशित 1968 की बहुचर्चित फिल्म “नीलकमल” का आरम्भ निम्नलिखित डायलाग से होता है, “अगर आप मानते हैं कि रूहें हैं और वह भटकती हैं तो आपको किसी भी सबूत की ज़रूरत नहीं है और अगर आप इस बात को नहीं मानते तो हमारा कोई भी सबूत आपके लिए काफी नहीं है”

हमारे सभी प्रयास (लेख, वीडियोस अनुभूतियाँ आदि) आपके ह्रदय में परम पूज्य गुरुदेव को एक अटूट विश्वास के साथ ( बिना किसी शंका के) स्थापित करने की दिशा में हैं ताकि वहीँ से गुरुदेव एक कट्रोल टावर की भांति आपके जीवन की गाड़ी का नियंत्रण संभालें।

अनुभति-शृंखला की अधिकतर प्रस्तुतियां हमारे जीवन की उन बातों का वर्णन कर रही हैं जो देखने में बहुत ही साधारण दिखती हैं,जिन में गुरुदेव का योगदान होना य न होना एक चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन अपने गुरु में श्रद्धा और विश्वास हमें केवल यही कहने की प्रेरणा देता है “तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा”

अपने वचन के अनुसार हम आज का अंक डॉ सुमति पाठक की अनुभूति से आरम्भ करते हैं। संयोग है कि बहिन रेणु और सुजाता जी की अनुभूतियों का विषय एक ही है।

1.डॉ सुमति पाठक- तेरे काल को टाल दिया

आज हम आप सभी को एक दिव्य शक्ति की अनुभूति सुनाते हैं। बात उस समय की है जब हम कॉलेज मे M.Sc. की क्लास अटैण्ड करने जाते थे, डेली बस से 25 किलोमीटर अप-डाउन करते थे। आने जाने का समय निश्चित होने के कारण, आने और जाने वाला बस भी निश्चित थी, रोज उसी समय पर आते-जाते थे, उसी बस मे आते जाते थे। बस के ड्राइवर भैया और कंडेकटर भैया भी अब हमारे अच्छे जान पहचान वाले हो चुके थे। हमें दूर से आते देखते तो गाड़ी रोक दिया करते थे लेकिन पतान हीं उस दिन क्या हुआ, बस में काफी भीड़ थी और भैया भी हमें आते हुए नहीं देख पाए। हम रोड क्रॉस कर ही रहे थे कि गाड़ी निकल गई।

बहुत गुस्सा आया पर सोचा चलो अब अगली बस का ही इंतजार करना है, और कर भी क्या सकते थे। प्यास के कारण गला सूख रहा था, तेज धूप थी, पसीने और गर्मी से हालत खराब हो रही थी, कब घर पहुँचेंगें। इंतजार करते-करते डेढ़ घंटा बीत गया। हर 10 मिनट मे जिस रास्ते गाड़ी आती थी, वहाँ डेढ़ घंटे से कोई बस नहीं आयी,अब तो हद ही हो गई थी।भोलेनाथ पर बड़ा गुस्सा आया, मन ही मन उनसे लड़ पड़ी कि ये कैसा साथ है तुम्हारा, जो तुम्हें याद करे उसके साथ होने की बात कहते हो, मैं तो तुम्हे हर पल याद करती हूँ और तुम्हारे साथ होने के बाद भी इतनी परेशानी उठानी पड़ रही है, यह कैसा साथ है तुम्हारा ……. आखिरकार एक बस आई जिसमें इतनी भीड़ थी कि खड़े, लटक कर जाना पड़ता, लेकिन कर भी क्या सकते थे, और कोई विकल्प भी नहीं था, पहले ही इंतजार करते डेढ़ घंटा बीत चुका था। यह बस भी छोड़ देते तो न जाने कितनी देर और रुकना पड़ता, मन मार कर उस बस में सवार हो गई। भोलेनाथ से मन में इस विषय पर लड़ाई चल ही रही थी कि एक तो मेरी बस निकाल दी आपने, दूसरा बस का इंतजार डेढ़ घंटे तक कराया, मौसम भी ऐसा कि आग उगलती गर्मी, उसे भी शान्त नहीं कर सका, दूसरी बस जल्दी नहीं बुला सकते थे क्या? अब जब बस आई भी तो इतनी भीड़, कम से कम खड़े होने की जगह तो आराम से दे देते, क्या मतलब है तुम्हें हर समय याद करने का या तुम्हारे साथ रहने का, जब तुम भगवान होकर इतनी छोटी सी परेशानी को दूर नहीं कर सकते… यह सब सोचते-सोचते थोड़ी दूर निकले ही थे कि हमने देखा जिस बस मे हमारा रोज़ आना जाना होता था उस बस का जबरदस्त एक्सेडेंन्ट हुआ था, कितनों के हाथ-पैर टूटे, दाँत टूट गये थे, किसी के सर से खून, भीड़ जमा थी, हमारी बस भी थोड़ी देर रुकी फिर निकल गई।

मैं लगभग 12:00 बजे कॉलेज से निकली थी और 4 बजे सही सलामत घर पर अपने मम्मी साथ लंच कर रही थी। बहुत इंतजार किया, बहुत भीड़ में लटक कर आई, बस के न आने तक प्यास, धूप, पसीने और गर्मी से परेशान थी, बार-बार लग रहा था कि मैं अब गिर जाऊंगी, तब गिर जाऊंगी, थोड़ा लंच का टाइम भी बिगड़ा, मम्मी से लेट आने के कारण डांट भी पड़ी, उनको सब बात बतानी पड़ी, पूरे रास्ते भोलेनाथ से लड़ती आई लेकिन जब बस का एक्सीडेंट हुआ देखा तो सारे जवाब मिल गए:

ऐसा लग रहा था जैसे भोले नाथ मुझ पर हंस रहे हों और कह रहे हों, तुझे अपनी बस पकड़नी थी, तुझे छाया चाहिए थी, तुझे जल्दी बस पकड़नी थी, तुझे आराम से खड़े हो के या बैठ कर आना था, तू अपना सुख और सुविधा देख रही थी लेकिन मै तेरा संरक्षक तेरी सुरक्षा देख रहा था, मैं महाकाल हुँ, तेरे साथ हुँ इसलिए तेरे काल को टाल दिया। तेरे सुख और सुरक्षा में से मैंने तेरी सुरक्षा चुनी…इसीलिए अब अपनी मम्मी के साथ बैठ कर गप्पे लगा रही है…।

यह घटना तो बहुत ही छोटी सी है लेकिन हमारा अनुभव यही कहता है कि अगर जीवन में कोई भी कष्ट है तो उसमें अवश्य ही कोई न कोई भलाई छिपी है। किसी के पास स्वास्थ्य नहीं, किसी को जीवन साथी सही नहीं मिला, किसी की संतान नहीं है.अगर है तो अच्छी नहीं है, पैसे नहीं है, नौकरी नहीं है इत्यादि इत्यादि। इन सब के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य ही होता है। उस सर्वशक्तिमान,परम पिता परमात्मा की लीला हमारी समझ में नहीं आती, हर कार्य में वह हमारी भलाई पहले देखते हैं, सुरक्षा पहले देखते हैं फिर कोई दूसरी चीजों को हमारे जीवन मे महत्व देते हैं। पाठक तो यही सोच रहे होंगें यह क्या बात हुई, “मुसीबत देकर मुसीबत टालना” लेकिन ईश्वर भी प्रकृति के कठिन नियमों से बंधे हैं, हम पर आने वाली समस्त विपदाओं को कम तो कर सकते हैं लेकिन टाल नहीं सकते क्योंकि जीवन की प्रत्येक घटना हमारे कर्मो से जुड़ी होती है और कर्मफल कभी भी टाला नहीं जा सकता।

इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी की दिव्य चौपाई हर युग में सत्य है “कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करहिं सो तस फल चाखा ॥” अर्थात संसार की रचना कर्म के लिए की गई है। जीवन में कर्म ही प्रधान है। यही हमारे जीवन की गति है। यही हमारे जीवन का लक्ष्य है। श्रीमद्भगवत् गीता में भी यही कहा है, मनुष्य एक क्षण भी बिना कर्म के नहीं रह सकता। हमारे अनुभव के अनुसार इसी तथ्य को इस तरह भी समझा जा सकता है कि हमारी किसी गलती के कारण हमें जेल होनी थी लेकिन समझा बुझाकर छोड़ दिया जाता है, यही है दयालुता। इसलिए उन पर भरोसा रखें, सकारात्मक रहें। परम पूज्य गुरुदेव कहते हैं, “ईश्वर का वास किसी मंदिर मे नहीं,श्रद्धा और विश्वास में है ” और गुरुदेव का दिखाया मार्ग कभी गलत नहीं हो सकता।

2. रेणु श्रीवास्तव जी की अनुभूति :

ऊँ श्री गुरुसतायै नमः।सादर नमन भाई जी। गुरुदेव की महिमा किन शब्दों में लिखूँ, मेरा तो रोम-रोम पूज्य गुरुदेव के उपकार का ऋणी है। प्रतिदिन अनुभूतियाँ होती हैं, प्रतिदिन गुरुवर की उपस्थिति अनुभव होती है। आज एक बहुत ही संक्षिप्त सी अनुभूति प्रस्तुत का रही हूँ। बात जुलाई 2022 की है। 7 जुलाई को मेरी बेटी के घर दूसरी देवी का आगमन हुआ जो समय से पहले पैदा हुई। जब मेरी बेटी रेगुलर चेकअप के लिये गई तो डाक्टर ने कहा कि बच्चा बहुत कमजोर है हम को भी रिस्क नहीं ले सकते। 5 जुलाई को बेटी को admit किया गया जबकि expected delivery date 24 जुलाई थी। डाक्टरों ने कोशिश की कि नार्मल डिलीवरी हो लेकिन 6 जुलाई रात तक नहीं हो पाई। सभी परेशान होकर कहने लगे कि और रिस्क नहीं ले सकते,बच्ची की heart beat कम होती जा रही है। मैं तो उस समय लखनऊ में ही थी लेकिन जब पता चला तो मैंने गुरुदेव से प्रार्थना की कि गुरुदेव आप ही रक्षा करें । प्रार्थना करने की ही देर थी कि डाक्टर आपरेशन की तैयारी करने लग पड़े। ऑपरेशन थिएटर में ले जाने के लिये स्ट्रेचर भी आ गया। बेटी ने कहा कि यदि 20 मिंट में नार्मल नहीं पैदा हुई तो आप सर्जरी कर दें । बेटी ने भी गुरुदेव से प्रार्थना की ,गुरुदेव ने ऐसी कृपा की 6 जुलाई रात को 12.47 पर बच्ची का जन्म हुआ और वह भी नार्मल । 5 पौंड से कुछ कम था लेकिन बाकि सब टेस्ट above normal थे । बाकि के टेस्ट देखकर डॉक्टर भी चकित थे। मैं तो हर क्षण गुरुचरणों का गुणगान करती हूँ। जो भी श्रद्धा विश्वास से गुरुदेव का स्मरण करेगा, गुरुदेव सदैव उसकी नैया पार करते रहेंगें ।धन्य हैं हमारे गुरुदेव, कहाँ कहौ गुरु नाम बढाई । गुरु चरणों में समर्पित श्रद्धा सुमन।

3.सुजाता उपाध्याय जी की अनुभूति:

अनुभूतियां तो अनेकों हैं लेकिन प्रस्तुत अनुभूति बहुत ही अद्भुत और आश्चर्यजनक है, मैं तो केवल यही कह सकती हूँ कि “गुरुदेव की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं” बात 2002 की है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि मुझे तो गायत्री मन्त्र के सिवाय और कुछ भी पता ही नहीं था। गुरुदेव माता जी के बारे में भी कुछ नहीं जानती थी। शादी के बाद जब में गर्भवती हुई तो आठवें महीने में मायके गयी थी। मायके में मुझे गायत्री चालीसा की पुस्तक मिली, कहाँ से आयी मुझे नहीं पता। उस पुस्तक में एक श्लोक का वर्णन बहुत ही विस्तार से हुआ था। मैंने जब वह पुस्तक पढ़ना शुरू किया तो कुछ अजीब सा अनुभव हुआ। मन में विचार आया कि जब इस पुस्तक का पढ़ना समाप्त होगा तो मेरी डिलीवरी हो जाएगी और सचमुच हुआ भी ऐसा ही, इस कथन पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा। जब पुस्तक का अध्ययन समाप्त हुआ तो मेरी बेटी का जन्म हुआ और एक-दो घंटे में ही मैं घर वापिस भी आ गयी। कितनी आश्चर्यजनक बात है कि due date में अभी तो एक महीना बाकी था, डॉक्टर भी अचंभित हो गए कि कोई दर्द नहीं, कोई परेशानी नहीं; यह कैसे हो गया, मैं एक-दो घंटे में ही घर कैसे वापिस आ गयी। मेरा तो मानना है कि यह सब गायत्री चालीसा पाठ करने से ही हुआ है। तब से मैं गुरुदेव की शरण में आ गयी और गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर ही दीक्षा भी ली। मेरी भावना इतनी परिपक्व हो गयी कि उसी दिन से मानती हूँ कि गुरुदेव की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। मुझे तो इतना अच्छा लिखना भी नहीं आता, फिर भी कोशिश कर रही हूँ ,अगर कोई त्रुटि हो तो इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है,अरुण जी सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)रेणु श्रीवास्तव-37,(2)संध्या कुमार-34 ,(3 )अरुण वर्मा-51,(4 )सरविन्द कुमार-30,(5 )वंदना कुमार-31,(6) सुजाता उपाध्याय-27,(7 ) निशा भारद्वाज-32,(8 )पूनम कुमारी-24 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव

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