9 फ़रवरी 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज के ज्ञानप्रसाद में फिर से नारी शक्ति की जय हो रही है, गुरुदेव की लाल मशाल जिसे हम प्रतिदिन शांतिकुंज में देख रहे हैं, हमारी बहिनों के हाथों में आकाश को छु रही है।
तो आइए बिना कोई और बात किये सीधा अनुभूतिओं का अमृतपान करें।
स्मरण रहे कल हम श्रद्धेय डॉ साहिब और जीजी के साथ नौका विहार करने वाले हैं।
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1.डॉ सुमति पाठक की अनुभूति :
2023 के गणतंत्र दिवस वाले दिन (26 जनवरी) ही परम पूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म दिवस (वसंत पंचमी ) आया है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार परिजनों के लिए यह दिन दो गुना सौभाग्य लेकर आया है। पहला सौभाग्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म दिवस है। 1926 की वसंत पंचमी वाला दिन था जब दादा गुरु आंवलखेड़ा आगरा की उस कोठरी में आये जहाँ 15 वर्षीय बालक श्रीराम साधना में लीन थे। गुरु सर्वेश्वरानन्द जी साक्षात्कार करके, अनेकों प्रकार के निर्देश देकर वापिस हिमालय लौट गए। दूसरा सौभाग्य था इसी बालक द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता ,तो हुआ न दो गुना सौभाग्य।
इसी दो गुना सौभाग्य के अवसर पर मैं अपने सहकर्मियों के समक्ष अपनी एक छोटी सी अनुभूति प्रस्तुत कर रही हूँ।
ऐसे ही गणतंत्र दिवस का अवसर था, मैं दसवीं कक्षा की विद्यार्थी थी और मैंने भाषण प्रतियोगिता में भाग लेना था। मेरे जीवन का यह पहला अवसर था जब मुझे इतने लंबे भाषण को याद करके और इतने लोगों के सामने बोलना था । डर लग रहा था, हाथ पैर कांप रहे थे,स्टेज पर गई, पहले तो इतने लोगों को देखकर घबरा गई और घबराहट के कारण एक भी शब्द मुंह से नहीं निकला। मैंने समझ लिया कि शायद मैं यह भाषण न दे पाऊंगी और मैं डिसक्वालीफाई हो जाओगी। लेकिन जब मैंने कोशिश की और अपने भोलेनाथ को याद करके भाषण आरम्भ किया, अपने महाकाल के अवतार परम पूज्य गुरुदेव को स्मरण करके भाषण की पहली लाइन ही बोली तो फिर ना जाने क्या हुआ मुझे खुद भी नहीं मालुम। मैं ज़रा भी नहीं रुकी और पूरे जोश के साथ अपना भाषण पूरा किया। अभी मैंने एक पैराग्राफ भी ख़त्म नहीं किया था कि पूरा का पूरा स्कूल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, ऐसा लगा जैसे यह भाषण मैं नहीं बल्कि मेरे गुरुदेव, मेरे महाकाल स्वयं बोल रहे हैं। जैसे-जैसे तालियां बजतीं वैसे वैसे मन में जोश भरता रहा और मैं पूरे जोश के साथ अपना भाषण देने लगी। यह भाषण गुरुदेव की ही एक समर्पित शिष्या जो कि मेरे गुरुदेव को पूरे मन से मानती है, उन पर भरोसा करती है मेरी मम्मी (कुमोदनी गौराहा) ने लिखा था जो शायद स्वयं गुरुदेव ने अपनी शिष्या का हाथ पकड़ कर लिखवाया हो। इस भाषण प्रतियोगता में मुझे उस वर्ष का प्रथम स्थान प्राप्त हुआ और न जाने कितने महिनों तक मुझे अपने शहर के हर गली, हर चौराहे पर कोई न कोई व्यक्ति बधाई देता ही रहता था और मेरी मम्मी गर्व से अपना सिर उठाए घूमती थीं क्योंकि उन्हें भी हर कोई बोलता था कि सुमति आपकी बेटी है जिसने बहुत ही अच्छा भाषण दिया है।
इस सफलता से मैंने एक बात सीखी और समझी कि जब भी कोई काम कठिन प्रतीत हो तो भोलेनाथ को याद कर कोशिश करने से किसी की हार नहीं होती क्योंकि यदि इस कोशिश में महाकाल का साथ मिल जाए तो उस सफलता की गूँज लंबे समय तक गूँजती है। बिना महाकाल के साथ के कोई भी सफलता पाना संभव नही है, तभी तो कहा जाता है कि विश्वास में बहुत बड़ी शक्ति है, और जँहा शक्ति है वहीँ मेरे शिव है, और जँहा शिव है वहाँ जीत पक्की है। और मुझे अपने महाकाल पर अटल विश्वास है। इतना अटल कि जो कभी मुझे गिरने नही देता, न ही झुकने देगा। बहुत से लोग मुझसे कहते है कि मेरे पास न तो अधिक धन है, न जन है फिर किसी बात का गर्व है? उन लोगों को मै एक ही जवाब देती हूँ : मेरे पास उसका साथ है जिसके सामने यह भौतिक धन एक तिनके बराबर है, और जिसके पास महाकाल का साथ है वो अकेला कैसे हो सकता है? तो स्वयं पर गर्व करना तो लाज़मी है।
“जिसके सिर तू स्वामी सो दुःख कैसा पावे।”
जय महाकाल
2.विदुषी बंता बहिन जी की अनुभूति:
कई दिनों से मन में कसक थी कि मै अपनी अनुभूति भेजूँ, परन्तु चाह कर भी समय नहीं निकाल पा रही थी।अपने परिवार में केवल मैंने ही 2009 में दीक्षा ली हुई है । गुरु जी की बहुत कृपा है।
घटना जनवरी 2022 की है ज़ब हमारी माता जी (सासु माँ )का स्वर्गवास हुआ। हम हरिद्वार फूल लेकर जा रहे थे, जैसा विदित है कि हरिद्वार में अपने (कुल) के हिसाब से पंडो के पास ही जाकर सारी प्रक्रिया सम्पन्न करनी होती है। मैं अपने देवर, ज्येष्ठ व देवरानी के साथ जा रही थी, पति कुछ अस्वस्थ थे तो वह नहीं गए। सुबह तड़के ही हम निकल पड़े थे। गुरु जी की वाणी में हमने गायत्री मंत्र लगा दिया था उसके बाद हम अपनी देवरानी के साथ गुरु जी की चर्चा करते जा रहे थे। हमने कहा कि कल वापसी में हम शांतिकुंज दर्शन कर के घर लौटेंगे। इतने में ही हिमाचल से हमारे गुरुभाई जी का फोन आ गया वे देहरा शक्ति पीठ में कार्यरत हैं तथा हमारे घर देव स्थापना पर भी आये थे। उन्होंने कहा कि वर्ष में 24 यज्ञ करवाने का संकल्प लिया है तो आपके घर पर भी यज्ञ करना चाहते हैं। हमने कहा कि वोह सब तो ठीक हैं परन्तु अभी हम हरिद्वार जा रहें हैं, उन्हें सारी बात बता दी। वे एकदम तपाक से बोले कि शांतिकुंज जाइए वहाँ पूरी विधि विधान से तर्पण आदि की क्रिया सम्पन्न हो जायगी। हमने जाने से एक दिन पहले घर पर बात भी की थी कि तर्पण आदि शांतिकुंज में भी सम्पन्न कराये जाते हैं लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और हम चुप हो गए। गुरुभाई जी को हमने कहा कि हम अपनी मर्जी नहीं कर सकते, अपने बढ़ों से पूछ कर ही राय लेंगे। जैसे ही हमने फोन रखा, मेरे ज्येष्ठ और देवर ने अपनी स्वीकृति दे दी, हमारे पतिदेव से भी स्वीकृति मिल गई। हमने झट से शांतिकुंज फ़ोन लगाया, उन्होंने कहा कि 2:00 बजे तक पहुँच जाओ, संस्कार सम्पन्न हो जायेगा। हम अभी रुड़की से थोड़ा पीछे थे, रफ्तार बढ़ा दी गई, जाम भी लगा मिला, मन में उथल पुथल थी कि समय से पहुँच पाएंगे कि नहीं। गुरु कृपा से हम समय पर पहुँच गए व पूरे विधि विधान से तर्पण आदि की प्रक्रिया सम्पन्न हो गई।
इस अनुभति को वर्णन करने का अभिप्राय यह है कि शांतिकुंज में जाने का कोई विचार नहीं था, गुरुदेव जी ने समय रहते हमें सचेत व प्रेरित किया कि कहाँ जा रहे हो शांतिकुंज जाओ, गुरुभाई माध्यम बने, सभी परिवार के सदस्यों की स्वीकृति भी मिल गयी। हम जा कहाँ रहे थे और पहुँच कहाँ गए। यह सब गुरुदेव की ही प्रेरणा व कृपा थी।
हम पहली बार शांतिकुंज रात्रि में ठहरे, अगले दिन अखंड दीप के दर्शन किये, आदरणीय शैल जीजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उन्होंने बड़े प्रेम से कुशलक्षेम पूछी, कहा कि सब ठीक है, कोई परेशानी तो नहीं हुई,हमने कहा नहीं, आपसे मिलने की हमें बहुत इच्छा थी, हमें आपका आशीर्वाद मिल गया। फिर हमने सारा शांतिकुंज घूम कर देखा व अपनी सासु माँ की स्मृति में रुद्राक्ष का पौधा लगाने के लिए लाए ।
गुरुदेव का कहना है कि “बच्चों तुम एक कदम बढ़ाओं मैं चार कदम बढ़ाऊंगा।”
गुरुदेव माता जी के चरणों में बारम्बार प्रणाम है। सभी को प्रणाम
3.निशा भारद्वाज बहिन जी की अनुभूति
परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर गुरु श्रीचरणों में समर्पित मेरी अनुभूति ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार पर आधारित है।
मैं उस दिन को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूँ जिस दिन oggp से जुड़ी क्योंकि इससे पहले मैंने केवल गायत्री मंत्र के बारे में ही सुना था, वह भी स्कूल प्रेयर में। मैं आदिशक्ति वेदमाता, माँ गायत्री, परम पूज्य गुरुदेव, परम वंदनीय माता जी के बारे में कुछ नहीं जानती थी लेकिन आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा जी के लेखों को पढ़ने और समझने के बाद गुरुदेव के बारे में ही कुछ जानकारी प्राप्त हुई। कितने ही सयोंग की बात है कि जब मैंने oggp प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित हुआ पहला लेख पढ़ा तो उसमे परम पूज्य गुरुदेव से मिलने के चार स्थानों का विवरण था। इस लेख को पढ़ने के बाद मैं नियमितता से लेख पढ़ने लग पड़ी।गुरुदेव द्वारा लिखित पुस्तक “हमारी वसीयत और विरासत” पर लेख श्रृंखला चल रही थी। लेखों ने इतना प्रभावित किया कि बचपन से ही मैं जैसा गुरु चाहती थी मुझे मिल गया। गुरु के साथ-साथ आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा जी गुरुभाई भी मिल गए और बहुत ही प्यारा परिवार, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार भी मिला। मुझे लगा मेरी तो लाटरी ही लग गयी।
इस परिवार से जुड़ने से पहले अक्सर होता था कि पूजा के समय मन अशांत रहता था, मन में इधर-उधर के, तरह-तरह के ख्याल आते थे। ऐसा बहुत कम हुआ होगा कि पूजा करते समय मन शांत रहा हो। परिवार से जुड़ने के बाद आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा जी के लेख पढ़ते समय कभी भी किसी अशांति का अनुभव नहीं हुआ,इन ज्ञानप्रसाद लेखों में इतना खो जाती हूँ कि अगर एक बार समझ न आए तो बार-बार पढ़ लेती हूँ। जब तक लेख पढ़ने के बाद कॉमेंट न कर लूँ, सहकर्मियों के कमैंट्स का रिप्लाई न कर लूँ , तब तक भूख भी नही लगती थी। शायद आध्यात्मिक भूख की तृप्ति भौतिक भूख से कहीं ऊपर है। कई बार पारिवारिक व्यस्तता के कारण लेट हो जाऊं तो मन में बेचैनी महसूस होती है, इसलिए ऐसी स्थिति में अपनी उपस्थिति केवल “जय गुरूदेव” लिखकर ही काम चला लेती हूँ। यह एक ऐसा समर्पित, अपनत्व भरा परिवार है कि जिस किसी की भी उपस्थिति कुछ घंटों के लिए यूट्यूब /व्हाट्सप्प पर अदृश्य हो जाती है तो परिवारजन प्रश्न करना शुरू कर देते हैं कि सब कुशल मंगल तो है न।
कई बार कमेंट न करने का कारण व्यस्तता के इलावा कुछ और भी होता है। आखिर हम भौतिकवाद के युग में रह रहे हैं तो कोई न कोई समस्या लगी ही रहती है। ऐसी स्थिति में चल रही समस्या के कारण मस्तिष्क कूड़े/कर्कट से भर जाता है, मन में चल रहे संघर्ष के कारण कोई आवाज़ ही नहीं आती कि क्या लिखूँ। लेकिन इन परिस्थितिओं में भी लेख पढ़ती ज़रूर हूँ ,इसी से शांति मिलती है।
परम आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा जी मुझे गुरुदेव से मिलाने के लिए आपका जितना भी आभार प्रकट करूँ कम ही होगा। आदरणीय भईया जी परम पूज्य गुरुदेव की कृपा आप पर सदैव बनी रहे, यही मेरी मंगल कामना है। जय गुरुदेव, जय माता दी
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 4 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है,रेणु श्रीवास्तव जी सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)रेणु श्रीवास्तव-30,(2)संध्या कुमार-29,(3 )चंद्रेश बहादुर सिंह-25,(4 )पुष्पा सिंह-24
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव