8 फ़रवरी 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज के इस अनुभूति अंक में अपने तीन समर्पित सहकर्मी बहिनों का योगदान प्रस्तुत कर रहे हैं।अनुभूति का प्रथम भाग वंदना बहिन जी की अनुभूति का concluding पार्ट है। बहिन जी की अनुभूतियों के 6 पार्ट कल प्रस्तुत किये थे,आज सातवें पार्ट से आरम्भ करेंगें। बहिन सुमनलता जी Flipkart में कार्यरत श्रवण कुमार जैसे बेटे की Best performer trophy की बात कर रही हैं। अंत में पुष्पा सिंह बहिन जी की संक्षिप्त अनुभूति बहुत बड़ा सन्देश दे रही है।
हम बड़ी तीव्र गति से अनुभूति शृंखला के समापन की ओर बढ़ते जा रहे हैं।
आज शब्द सीमा पर बैठा प्रहरी कुछ दयावान प्रतीत हो रहा है, उसकी दयादृष्टि एक बार फिर उसी पुरातन getup में संकल्प सूची प्रस्तुत करने की दया दिखा रही है। तो आइए बहिनों के योगदान का आरम्भ करें ।
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आदरणीय वंदना बहिन जी की concluding अनुभूति :
7. 26 जनवरी 2023 को वसंत पंचमी के दिन मैं अपने पतिदेव और बेटी काशवी के साथ पास वाले गायत्री मंदिर में गई थी। वह हम लोगों ने हवन करने के लिए सोचा था लेकिन बेटी बहुत चंचल, चुलबुली है तो फिर हवन का विचार त्याग दिया। मेरे पतिदेव ने कहा कि तुम ही हवन कर लेना और मैं बेटी को संभाल लूंगा। जैसे ही मंदिर पहुँचे तो पता चला कि पूजा अभी ही शुरू ही हुई है। हम लोग जाकर बैठ गए। पंडित जी ने कहा कि आप भगवान (गुरुदेव, माताजी, दादा गुरुदेव, गायत्री मां) के सामने बैठ जाओ और पूजा करो, हवन आरंभ करो। हमने मना भी किया कि हम लोग एक साथ हवन नहीं कर सकते क्योंकि बेटी बहुत चुलबुली है हवन नहीं करने देंगे। इस पर पंडित जी ने कहा कि हवन पर पति पत्नी को साथ-साथ बैठना चाहिए, साथ में बच्ची भी है तो इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता। यह तो आपके लिए परम सौभाग्य की बात है। फिर उन्होंने यह कहा कि बच्चे को छोड़ दो, खेलने दो, कोई चिंता वाली बात नहीं है । हमने वेसा ही किया। बेटी को मंदिर में आए सभी भाई बहन बारी-बारी खेलाने में लग गए। इस तरह हम मुख्य यजमान बने और पूजा तथा हवन भी कर लिया। हवन करते समय बेटी एकदम शांत हो गई और उसने भी मेरी गोदी में बैठ कर हवन में हिस्सा लिया। इस तरह हमारी एक साथ हवन करने की इच्छा पूरी हुई।
पिता जी के एक्सीडेंट वाली घटना: श्रद्धा और समर्पण उच्तम हो।
घटना 1999 की है जब मेरे पिताजी ऑटोरिक्शा से कहीं जा रहे हैं। रात का समय था और रास्ता भी सुनसान था। ऑटोरिक्शा में ड्राइवर को मिलाकार कुल 8 लोग थे। ऑटोरिक्शा अपनी सामान्य गति से जा रही थी। पिताजी ने देखा कि एक ट्रक बहुत ही तेजी से सामने की तरफ ही आ रहा है और उन्हें आभास हो गया कि यह ट्रक टकराने वाला है। वह मन ही मन गायत्री मंत्र पढ़ने लग पड़े। वेसे भी उनका मानसिक जाप हमेशा ही चलता रहता था। देखते ही देखते ऑटोरिक्शा में ट्रक ने टक्कर मार ही दिया और बहुत ही भयानक दुर्घटना हो गई। पिता जी को यह भी आभास हो गया था कि उनके सिर में चोट लगने वाली है तो उन्हें अपने हाथों को अपने सिर पर रख लिया। एक्सीडेंट होने के बाद पिताजी सड़क पर गिर गए और उनके दहिने हाथ की एक उंगली (रिंग फिंगर) बुरी तरह कुचल गई, ऊँगली से एक मांस का लोथड़ा लटकने लगा था। साथ ही अंगूठे का मांस भी उजड़ गया था और हड्डी दिखने लगी थी, अंगूठे की nerve भी काट गयी थी। उनके घुटनों में भी चोट आई और वहा की हड्डी भी हिल गई। पिताजी ने जब अपने अगल-बगल के औटोरिक्शा के अन्य लोगों पर नज़र दौड़ाई तो देखते हैं कि जो ड्राइवर के बगल में बैठा व्यक्ति तो मर चुका था और उसका खून ड्राइवर के ऊपर गिर रहा था। ड्राइवर के गले की हड्डी टूट चुकी थी और उसकी गर्दन एक तरफ लटकी हुई थी और वह भी मर चुका था। पिछली सीट पर जो तीन लोग बैठे थे वोह भी मर चुके थे। पिताजी के बगल जो बैठे थे उनमे से भी एक मर चुका था। एक महिला ही बची थी जो मरणासन्न दशा में थी क्योंकि उसका सिर भी बुरी तरह कुचल गया था, उसके बचने की भी कोई उम्मीद नहीं थी इस प्रकार केवल पिताजी ही बच पाए।
यह गायत्री मंत्र का ही चमत्कार था कि इतना भयानक एक्सीडेंट हुआ,सबकी मृत्यु हो गई लेकिन पिताजी परम पूज्य गुरुदेव और माँ गायत्री की कृपा से बच गए। उस समय सड़क के किनारे जो दुकान खुली हुई थी उसके दुकानदार भाई साहिब आकर पिताजी को देखने लगे और मदद को आगे बढ़े लेकिन पिताजी ने यह कह कर मना कर दिया कि मुझे कुछ देर ऐसे ही छोड़ दो। उनकी रिंग फिंगर से खून बहे जा रहा था। पिताजी सड़क पर ही बहुत देर तक बैठे रहे, फिर धीरे-धीरे अपनेआप बिना किसी सहारे के उठ खड़े हुए, बिना किसी सहायता के अकेले ही पैदल घर पहुँच गए। घर पर ही उनकी मरहम पट्टी हुई और उन्होंने इस एक्सीडेंट की हम लोगों को जानकरी दी। यह भी गुरुसत्ता की ही कृपा थी कि बिना किसी सहायता के वह घर तक पहुंच गए।
इस एक्सीडेंट से हमें शिक्षा मिलती है कि बुरी स्थिति में भी घबराना नहीं चाहिए। हो सकता है कि पिताजी की भी मृत्यु होने वाली थी और गुरुदेव ने मृत्यु को एक साधारण सी चोट में बदल दिया हो। इसलिए हमें जो भी दुःख मिल रहे हों उसे भगवान का वरदान समझकर स्वीकार करना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि भाग्य में इससे भी भयानक कष्ट मिलने वाले हों लेकिन गुरु कृपा से हमारे कष्ट कम हो गए हों। यह सब वहीँ पर संभव हो सकता है जहाँ श्रद्धा और समर्पण उच्चतम स्तर के हों ।
2.आदरणीय सुमनलता बहिन जी अपनी अनुभूति निम्लिखित शब्दों में वर्णन करती हैं :
परमपूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्मदिन पर मैं अपने छोटे बेटे की अनुभूति साँझा कर रही हूँ। 2008 में कैंसर के कारण मेरे दो ऑपरेशन हुए, उसी वर्ष बेटे ने नयी compny जॉइन की थी, जहाँ उसका Team leader बहुत ज़्यादा चापलूसी-पसन्द था। बेटा काम बहुत लगन से,अनुशासन से करता था लेकिन चापलूसी करना उसके बस की बात नहीं थी। इस कारण Team leader बेटे के खिलाफ साज़िश करता रहता था,उसके काम में बाधाएँ डालता तथा इससे कुछ नहीं होगा जैसे कमेन्ट करता। जो लोग चाटुकारिता करते उनसे खुश रहता। ऐसी स्थिति में बेटा मन ही मन दुःखी रहता, मेरी अस्वस्थता के कारण कुछ शेयर भी नहीं करता कि कहीं चिंता न बढ़ जाये। अतः मन में ही उलझन दबाय रखता लेकिन इस हाल में भी वह नियमितता से ऑफिस जाता,अपना कार्य निष्ठापूर्वक करता एवं मेरी सेवा टहल में पूरा सहयोग देता I
मैंने घर पर गायत्री शक्तिपीठ के भाई जी को अखण्ड दीप एवं महामृत्युंजय मंत्र जाप की जिम्मेदारी दे दी थी जिसे वह पूरी निष्ठा से करते एवं मेरा गायत्री महामंत्र का मानसिक जाप निरन्तर चलता रहता। धीरे-धीरे मेरी हालत सुधरने लगी।
एक दिन की बात है कि बेटा ऑफिस से Best performer की trophy लेकर आया। trophy मेरे हाथ में देकर मेरा चरणस्पर्श कर बोला,मम्माँ आपकी आस्था ने, आपके गुरुवर ने, आपके बेटे को बचा लिया । बेटे ने अपने ऑफिस का पूरा वृतांत सुनाया जो हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं जिससे गुरुदेव के प्रति आपकी आस्था और भी दृढ होगी क्योंकि आजकल प्रस्तुत की जा रही अनुभूति श्रृंखला का यही एकमात्र उद्देश्य है :
“मैं अजीब कुचक्कर में फंस गया था, किन्तु ऐसा लगा जैसे किसी “दिव्य सत्ता” ने सारा कार्य अपने हाथ में ले लिया हो ।अचानक ही नये Branch Head का आना हुआ, उसने बड़ी बारीकी से सारे कार्यो को जांच परख कर निर्णय लिया कि तुम काम में बहुत अच्छे हो किंतु तुम्हे काम करने नहीं दिया जा रहा है । Team leader का ट्रांसफर हैदराबाद कर दिया गया एवं उसके चमचों को अलग-अलग Branches में shift कर दिया गया l मेरे बेटे के काम को देखते हुए नये Branch Head ने कहा कि माँ के दो बार ऑपरेशन होने के बावजूद आप नियमितता से office आए हो, आपने दिए गए target पूरे किये हैं,कभी भी अपनी पारिवारिक उलझन से कोई sympathy/favour लेने की कोशिश नहीं की है, ऐसे staff को Best Performer की trophy देते हुए मुझे गर्व हो रहा हैl”
बेटे की सारी बातें सुनकर हम सबकी आंखें सजल हो गयीं l मैंने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा अवश्य ही गुरुवर ने सब सँभाल दिया”
गुरुवर कहते हैं, “घबराना नहीं बच्चों, मैं तुम्हारे साथ हूँ”,और उन्होंने सब सँभाल लिया । यह उन्हीं का चमत्कार है। गुरुवर ने तुम्हारी परीक्षा अवश्य ली,तुम रोने नहीं बैठे बल्कि परिवार एवं ऑफिस के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह निष्ठा से करते रहे। गुरुवर ने तुम्हें सफल बनाया I
ऐसे महान गुरु, स्नेह के सागर गुरु को कोटि-कोटि सादर नमन, आपने सदैव साथ दिया है, गुरुवर,अब हमारी बारी है। आशीर्वाद दीजिये कि में भी आपकी योजनाओं मैं गिलहरी। रीछ. वानर की भांति कुछ योगदान कर सकूँ I जय गुरुदेव
3.आदरणीय पुष्पा सिंह जी की बहुत ही संक्षिप्त अनुभूति :
जब मैं पहली बार नवरात्रि में 24000 जप अनुष्ठान का संकल्प लेने मंदिर में बैठी तो मैं थोड़ी असमंजस में थी कि कर पाउंगी कि नहीं। संकल्प तो ले रही हूं। लेकिन जब व्यास मंच से बोला गया कि सभी लोग अपनी आंखें बंद करके अपनी हथेलियों को गोद में रखें और गुरुदेव का ध्यान करें तो मैं बस गुरुदेव जी से मन ही मन यही कहने लगी कि मैं कुछ भी जानती नहीं हूँ, गुरु जी मुझ पर कृपा कीजिएगा। इतना कहते ही मुझे ऐसा लगा कि उपर से सूर्य किरण की एक पतली सी रेखा आकर मेरे माथे में प्रवेश कर गयी और मेरे आंखों से अपनेआप आंसू निकलने लगे। कुछ देर के लिए मैं बिल्कुल शून्य सी हो गई थी। मैं पहले से ही बहुत परेशान चल रही थी इसलिए मैं संकल्प लेने डर रही थी लेकिन गुरुदेव तो अन्तर्यामी हैं, उनकी कृपा प्राप्त हो गई और मैं अभागी धन्य-धन्य हो गई। तब से ही मेरा मन पूजा में लगने लगा। जय गुरुदेव
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 6 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है , अरुण जी सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)रेणु श्रीवास्तव-30,(2)संध्या कुमार-31,(3 )अरुण वर्मा-56,(4)चंद्रेश बहादुर सिंह-30,(5 ) वंदना कुमार-29,(6)राजकुमारी कौरव-24,(7)सुजाता उपाध्याय-30,(8)कुमुदनी गौरहा-24, (9)मंजू मिश्रा-26,(10)निशा भारद्वाज-26
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई क्योंकि अगर सहकर्मी योगदान न दें तो यह संकल्प सूची संभव नहीं है। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव