पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला  का सातवां  अंक- वंदना कुमार और साधना सिंह का योगदान 

7 फ़रवरी  2023  का ज्ञानप्रसाद

आज के इस अनुभूति अंक में अपने दो समर्पित सहकर्मियों का योगदान प्रस्तुत कर रहे हैं। पहला योगदान आदरणीय वंदना कुमार जी की अनुभूति का प्रथम भाग है, जिसका दूसरा भाग कल प्रस्तुत करेंगें।  शब्द सीमा ने ऐसे  combination के लिए बाधित किया कि वंदना जी की अनुभूति पूरी एक ही लेख में पोस्ट हो नहीं रही थी और साधना सिंह बहिन जी ने कल ही  कमेंट करके लिखा था कि 

“अनुभूति और कमैंट्स पढ़कर मन में कुछ अजीब सा महसूस होता है पता नहीं वो क्या है ,अरुण भाई साहिब यदि आप मेरे मन को पढ़ सकें तो इसका उत्तर देने की कृपा करें।”

गुरुदेव ने हम जैसे साधारण मानव को  इतनी शक्ति तो  दी नहीं  कि हम किसी के मन को पढ़ सकें लेकिन ह्रदय ने एकदम बहिन जी की भेजी हुई अनुभूति पढ़ने का आदेश दिया। यही छोटी सी घटना आज की दूसरी अनुभूति है। 

हम तो उनके बारे में यही कह सकते हैं कि जिस परिवार में  साधना,उपासना,ओम और संस्कार जैसे प्राणियों का वास हो और जो “प्रज्ञा बाल विकास विद्यालय” के रचियता हों, ईश्वर उन्हें किसी भी अनिष्ट से बचा सकते हैं।

क) मेरे जीवन की सबसे बड़ी अनुभूति है -वंदना कुमार 

कोरोना काल में जब 2020 में ऑफिस में छुट्टी हुई तब योग और वॉकिंग स्टार्ट कर दी थी। साथ ही उगते हुए सूर्य को गायत्री मंत्र जाप करते प्रणाम करती थी, सूर्य में  मुझे गुरुदेव की छवि सी दिखती थी जिसे मैंने अपने पति से शेयर किया। मेरे साथ मेरे पति  भी योग, व्यायाम और गायत्री  मंत्र जाप करते सूर्य देवता को प्रणाम करते थे। फिर मैं अक्टूबर 2020 में दिल्ली से अपने होम टाउन बिहार स्थित आरा,(Arrah) आ गयी । यहाँ पर भी यह क्रम नियमित चलता रहा । ब्रह्मवेला में  4:00 बजे जग जाना,योग एक्सरसाइज करना, 3 माला गायत्री मंत्र जाप करना एक रूटीन बन चुकी थी। एक माला गुरुदेव को दान करना, दूसरी  पर्यावरण शुद्धि  के लिए और तीसरी  खुद के लिए करना, ऐसा  एक बार यूट्यूब पर परम पूज्य गुरुदेव को बोलते सुना था। यह सब मैं घर के छत पर  करती थी। शुरू-शुरू में मुझे बहुत ही डर  लगता था,बाद में सब सामान्य हो गया। 

इस दौरान  मुझे बहुत सारी अनुभूतियां हुई हैं। 

1. सबसे पहली अनुभूति हुई कि मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे साथ-साथ कोई चल रहा है। साथ चलने वाले की चप्पल की आवाज सुनाई दे रही थी। देखा तो अगल-बगल में छत पर कोई भी नहीं था। इस सबके बावजूद  मैं गायत्री मंत्र पढ़ते हुए आगे बढ़ती गई। फिर चप्पल की आवाज बंद हो गई। शायद कोई बुरी शक्ति डराने  की कोशिश कर रही होगी जो गायत्री मंत्र के प्रभाव से चली गई। 

2. दूसरी अनुभूति हुई की एक विशाल पक्षी दिखता रहा जिसकी शक्ल कौवे  जैसी थी और पंख चील जैसे थे । यह दृश्य बहुत ही डरावना था लेकिन मुझे कोई डर नहीं लगा। आश्चर्य यह हुआ कि ऐसा पक्षी पहले इधर कभी नहीं देखा था । वह दूर से मुझे ही देख रहा  था और जब मैं उसके करीब गई तो वह उड़ गया, दोबारा फिर यह पक्षी नहीं दिखा। यह भी शायद गायत्री मंत्र और सुबह की सकारात्मक ऊर्जा के कारण हुआ होगा। 

3. क्रम नियमित होने से मॉर्निंग में टाइम से स्वयं ही  नींद  खुल जाती थी,जब कभी नींद  नहीं खुलती थी तो ऐसा लगता मानो कानों में  कई पक्षी चहचहाने  लगे और उनकी  आवाज से नींद  खुल जाती। जगने   पर बिल्कुल शांति छाई  रहती थी और कोई पक्षी की आवाज नहीं होती थी। हो सकता है यह  गुरुसत्ता का मुझे समय से उठाने का प्रयास हो। ठंड में भी  सुबह में उठने का क्रम चलता रहा,यहाँ तक ​​कि उन दिनों भी जब घना  कुहरा छाया रहता था और बगल का मकान भी नहीं दिखता था। ऐसे दिनों में भी निडर होकर छत पर, यह क्रम चलता रहा। ऐसा  महसूस होता था जैसे नवीन ऊर्जा का संचार हो रहा हो। मेरी  स्किन (skin) बहुत ही  सॉफ्ट हो गयी, body complexion निखर  गया और  फेस पर भी चमक सी आ गई।

4. छत पर अपना नियमित योग, जाप और वॉकिंग वगैरह  करके नीचे आती, साफ सफाई करके नहाने जाती थी। गुरुदेव  से ही यूट्यूब पर  सुना था कि नित्य सूर्य पूजा करना बहुत जरूरी है। आप नहाए हो या नहीं,कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मैं  कड़ाके की ठंड के बावजूद टंकी के ठंडे पानी से ही गुरुदेव का नाम लेते हुए नहाती  थी। परम पूज्य गुरुदेव का ही चमत्कार था  कि पानी स्वयं ही  गर्म हो जाता था, लगता था मानो कोई गर्म  करके रख गया हो। ऐसी अनुभूति बिल्कुल सत्य है, कोई मज़ाक नहीं।जब सर्दियों में शरीर पर ठंडा पानी डालते हैं तो धुआँ निकलता है। यह बेसिक साइंस है, जिसके अनुसार ठन्डे पानी के टेम्परेचर और शरीर के टेम्परेचर में अंतर् होने से ऐसा धुआं निकलता है। लेकिन मेरे केस में ऐसा नहीं था, कोई धुआँ नहीं निकलता था और पानी डालते समय  गर्म ही महसूस  होता था। यह एक  ऐसी अनुभूति थी जिसे केवल महसूस ही किया जा सकता है।

5. एक बार छत पर चल कर रही थी तो सर्दी  से कुत्ते के रोने की आवाज आई। सर्दी के दिनों में जब  हम लोग रज़ाई में दुबके रहते हैं वहीं  ये जानवर बेचारे ठंड  को सहते रहते हैं। ऐसा सोचने पर  मुझे बहुत ही कष्ट  हुआ। मैंने उस कुत्ते के लिए  24 बार गायत्री मंत्र का जाप किया और गुरुजी से बोली कि  अगर मेरी भावना सच्ची है तो उसका रोना बंद  जाए, उसकी तकलीफ कम हो जाए। इतना कहते ही कुत्ते का रोना बंद हो गया।

6. जनवरी 2021 की बात है, मैं  नियमितता  से रोज की तरह छत पर गई। मेरे दिल में abortion को लेकर चिंता थी। मैं सोच रही थी कि 2019 में हुई pregnancy  6 माह बाद जनवरी 2020 में abortion हो गयी थी। मैं सोच रही थी कि आज गुरुदेव से ठीक उसी प्रकार संपर्क करुँगी जैसा गुरुदेव ने यूट्यूब वीडियो में बताया है। यह वीडियो ऑनलाइन ज्ञानरथ चैनल  पर “गुरुदेव का वायरलेस टेलीफोन” शीर्षक से उपलब्ध है। गुरुदेव बता रहे हैं कि मॉर्निंग में नॉर्थ डायरेक्शन में पेट की हवा मुंह से निकाल कर सिर  पर 4 से 5 बार हाथ फेरना है। ऐसा करने का मतलब आपने अपने शरीर और दिमाग से सारी गंदगी निकाल  दी और सब कुछ खाली हो गया। फिर गुरुदेव को याद करना है और अपनी बात/समस्या बतानी है। तब दिल में जो पहली बात आए उसे ही गुरुदेव का इशारा समझना  है और यह काम शुद्ध मन से, सच्ची भावना के साथ करना है। मैंने वैसा  ही किया और गुरुदेव से पूछा कि पिछली बार  प्रेग्नेंसी सफल नहीं हुई थी तो अब में फिर कब माँ  बनूंगी। तभी मेरे शरीर को एक झटका सा लगा और पूरा शरीर बैठे-बैठे हिल गया। मेरी आंखें बंद थी और मैंने बंद आंखों में ही देखा की गायत्री माता जैसी एक सुंदर सी स्त्री लाल साड़ी पहने हुए हैं और अपनी गोदी में एक बच्चा लिए हुए हैं। मुझे लगा कि गायत्री माँ मेरे सामने ही खड़ी है,मैंने देखने के लिए जल्दी से आंखें खोल दी तो वहा कुछ भी नहीं था। फिर सोचने लगी कि मैं शायद ज्यादा दुःखी होकर बच्चे  के बारे में सोच रही थी  इसीलिये वैसी  अनुभूति हो  रही है। यह तो बहुत ही  साधारण common sense है की बात है कि हम जो भी  जिस भावना से  सोचते हैं वेसा ही चित्रण मन में होने लगता है। OGGP के परिजन भी  डॉ. अरुण त्रिखा जी के ज्ञानप्रसाद ग्रहण करते हुए जो पढ़ते हैं, वैसा ही चित्रण उनके मन में होता जाता है।

इस सारी अनुभूति को मन का वहम मानते हुए फिर से  गायत्री मंत्र उच्चारण करते, वॉकिंग करने लगी और चलते समय  अपनी आंखें बंद कर ली। बंद आंखों के सामने  फिर से गायत्री माता दिखाई दी और इस बार उनका स्वरूप बहुत ही विशाल था, ठीक वैसा ही जैसा दुर्गा पूजा में माँ  की विशाल प्रतिमा होती है। मैनें   घबराकर फिर आंखें खोल दीं । दोबारा आंखें बंद करके गायत्री मंत्र पढ़ा  तो फिर से गायत्री माता का वही स्वरूप दिखा। फिर मैं सोची कि गायत्री मंत्र पढ़ते हुए माता को मन में सोचते हुए याद कर रही हूं तो इसीलिए मुझे वेसा दिख रहा है, इसमें कोई आश्चर्य  की बात नहीं। फिर मेरी दृष्टि आकाश में पड़ी और देखती हूँ  कि सूर्य देवता उदित हो गए हैं तो उनको हमेशा की तरह मंत्र पढ़कर प्रणाम करके नीचे  आ गई। समय का कुछ पता ही नहीं चला कि कितना टाइम हुआ। नीचे आने पर पता चला कि अभी तो अंधेरा ही है, ठंड के दिन थे, इतनी जल्दी सूर्योदय तो हुआ ही नहीं था, फिर जो सूर्य जैसी  लालिमा लिए हुए गोला दिखा वह  क्या था, यह  भी कन्फर्म था कि वह चाँद नहीं था। ठंडे दिमाग से, स्थिर होकर  सोचा  तो यही समझ में आया कि शायद जो कुछ मुझे महसूस हुआ था वह मन  का वहम नहीं बल्कि  हकीकत थी।मां गायत्री मुझे एक उदाहरण देकर यह  महसूस करवा रही  थी कि यह सब कुछ ऐसे ही  कोई सपना नहीं है । मुझे ऐसा लगा मानो  मैंने सूर्य भगवान के साक्षात दर्शन कर लिए हों । यह  मेरे जीवन की सबसे बड़ी अनुभूति है।

आगे चलकर 10 दिसंबर 2021 को एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ जो इस समय लगभग सवा साल की है। 

ख )साधना सिंह जी की अनुभूति:

घटना जुलाई 2014 की है, मैं और मेरे पति महोदय भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की पुस्तकें लेने के लिए गए हुए थे। पुस्तकें  बहुत ज़्यादा थीं  और हम लोग बाइक से गए  थे।  पुस्तकें लेकर जब वहां से चले तो ऐसा लग रहा था कि  बहुत ज़ोरों की वर्षा होगी। शाम भी हो रही थी। हम दोनों ने  आसमान की ओर देखते हुए गुरुदेव से प्रार्थना की “हे गुरुवर घर पहुंचने तक बारिश न हो,यदि बारिश हुई तो सारी किताबें गीली हो जाएँगीं।” इस प्रार्थना के उपरांत जो हुआ उसे केवल वही बता सकता है जो वहां प्रतक्ष्यदर्शी था ,Eye witness था ,यानि हम दोनों पति पत्नी। पढ़ने वालों को इस बात का कतई विश्वास विश्वास नहीं  हो सकता कि हमारे आस पास चारों ओर वर्षा हो रही थी लेकिन  हमें ऐसा अनुभव हो रहा था कि हमारे बाइक पर एक बूंद भी  नहीं पड़ रही थी। हम दोनों ने लगभग 35 किलोमीटर का सफर किया, घर पहुंचे तो दोनों  बच्चे प्रतीक्षा  कर रहे थे, घबरा रहे थे। हमें देखकर दोनों  एक साथ बोले। “मम्मी पापा आप लोग गीले नही हुए? उसी समय हमें भी ध्यान हुआ कि हम बिल्कुल गीले नहीं थे।  हम दोनों एक दूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे। 

हम जैसे अटल विश्वास करने वालों  के लिए तो यह एक आश्चर्यजनक,अविश्वसनीय किन्तु सत्य घटना है लेकिन भौतिकवादी अविश्वासी के लिए यह कोरा अंधविश्वास, रूढ़िवाद ही हो सकता है। अविश्वासी के अनुसार वर्षा का क्या कहना, एक ही नगर के अलग-अलग भागों में कहीं वर्षा हो सकती कहीं पर नहीं, लेकिन यह तो 35 किलोमीटर लम्बा सफर था। खैर हर किसी की अपनी- अपनी मान्यता है, किसी को भी बाधित करना संभव नहीं है। 

आज की संकल्प सूची के लिए केवल इतना ही स्थान मिल पाया है कि अरुण जी गोल्ड मेडलिस्ट हैं और रेणु जी,संध्या जी,सुजाता जी,पूनम जी, और निशा जी ने नारी शक्ति की पताका को गगन में फहराया है। तुम  गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के ,हम लाए हैं तूफ़ान से ——   

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