पूज्यवर के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर अनुभूति श्रृंखला  का छठा अंक – पापा की परी  होती है बेटी ; अशोक जी और संजना बेटी का योगदान 

6 फ़रवरी  2023  का ज्ञानप्रसाद

2 फ़रवरी को हम अपने साथियों को  माँ-बेटी duo की अनुभूति के साथ छोड़ कर गए थे, आज गुरु चरणों में अर्पित हैं  पिता-पुत्री के श्रद्धा सुमन। 

शब्द सीमा आज कुछ भी और लिखने पर प्रतिबंध लगाए हुए है।

*************    

1.लॉकडाउन हमारे लिए वरदान साबित हुआ -संजना कुमारी  

वर्तमान समय में अगर कोई शारीरिक  बीमारी हो जाए तो उसके इलाज के अनेकों उपाय  हैं, परंतु अगर मन दुःखी हो,निराश हो,प्रश्नों एवं उलझनों के उत्तर न मिलने  से व्याकुल हो तो उसके उपाय आमतौर पर न के बराबर ही दिखते हैं, अगर दिखें भी तो कोई असर नहीं करते । हर पल मरणासन्न स्थिति बनी रहती है। 

आज के मानव के अंदर सहनशीलता तो  बची ही नहीं है, मानसिक शांति में खलल डालने वाली  अवांछनीयताओं से लड़ाई अत्यंत कठिन है। अधिकतर कारण तो  बाहरी ही  होते हैं लेकिन समाधान हमारे अंदर ही होते हैं। 

मैं आज एक नई  हिम्मत और सकारात्मक ऊर्जा के साथ यह कह सकने की स्थिति में हूँ कि मुझे अपने प्रश्नों के सकारात्मक उत्तर मिल गए हैं।   

आज मेरे जीवन में जो मिठास घुल पाई है,बचपन की जो उमंग मैंने खो दी थी वह उल्लास पाई है। 

“क्या जीवन  केवल  लड़ने और नफरत करने के लिए ही मिला  है?”

मुझे इस प्रश्न का उत्तर मिल गया है। मैं जीवन का सही उद्देश्य और जीने की कला सीख रही हूँ। “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” 

कहते हैं अगर पितातुल्य सागर जितनी स्याही मिल जाए  हो, मातृतुल्य धरती माँ जितना कागज़ भी मिल जाए हो,तो  भी गुरु की महिमा नहीं गायी जा सकती। जी हां परम पूज्य गुरुदेव  ही हैं जो हमारी  सूखी और बंजर जीवनरूपी  भूमि को हरियाली और वसंत की खुशियों से हर पल भरते जा रहे हैं। भले ही हमें गुरुदेव की एक भी झलक पाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है लेकिन वह तो हमें हर पल देख रहे हैं। 

मेरा परिवार सबसे बुरे दौर या यूं कहें कि  दुःखों के पहाड़ और अज्ञानता के कारण कब का खत्म हो चुका था। यह उनकी ही दिव्य दृष्टि और अनुकम्पा है कि गुरुदेव ने अपने दिव्य प्राण फूंक कर, हमारे परिवार को जीवंत और जागृत किया और लगातार कर रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माताजी अपने बच्चों को कभी भी दुःखी  नहीं देख सकते। इस  तथ्य का जीवंत उदहारण मेरे परिवार से बढ़कर और कौन हो सकता है। जब भी किसी से  गुरुजी से जुड़े संस्मरण/ अनुभूतियाँ सुनती हूँ तो अश्रुधारा का प्रवाह रुकने का नाम ही नहीं लेता। अपनेआप को धिक्कारती हूँ कि गुरुदेव से मैं क्यों नहीं मिल पायी। जब श्रवण मात्र से इतना आनंद, ज्ञान और प्रेम मिलता है तो साक्षात दर्शन से, चरणस्पर्श से, उनके aura से क्या प्राप्त होता होगा, केवल अनुभव ही किया जा सकता है। वंदनीय माता जी ने कहा है “भक्ति कोरी भावुकता नहीं होती, उसमें कर्तव्य भी शामिल होता है” वंदनीय माताजी स्वयं इस सिद्धांत का उदहारण  हैं।  

Emotional intelligence जैसे विषय का सहारा लेकर बात करें तो गुरुजी की कृपा से हम जैसे अनगढ़ मानव  को उनके दिव्य धाम जाने का और अब देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में विद्यार्थी जीवन व्यतीत करने का अवसर प्राप्त हुआ है जो अभी भी एक सुखद स्वप्न की भांति ही लग रहा है। हमारे जीवन के सूर्योदय की शुरुआत शांतिकुंज विडियो और गुरु जी से जुड़ी अनुभूतियों को देखने, सुनने और जानने में प्रतीत हुआ। जैसे जैसे  इन कृत्यों में समय का सदुपयोग होता गया,अंतर्मन में बैठी सुप्त श्रद्धा का विकास और विस्तार होने लगा। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि दीक्षा तो हमने बचपन में ही ले रखी थी,मन्त्र लेखन भी कुछ थोड़ा बहुत होता ही था, अखंड ज्योति पत्रिका भी नियमितता से  आती थी  लेकिन बस आलमारी की शोभा बढ़ाने तक ही सीमित थी। गुरुदेव  कहते तो हैं  कि जब साधना में प्राण आते हैं तो तब ही जाकर कुछ काम बनता  है।  

शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना लॉकडाउन हमारे लिए वरदान साबित हुआ।  इन्ही दिनों जब विडियो में गुरुदेव को पहली बार बोलते देखा तो खुशी का  ठिकाना ही नहीं रहा। ख़ुशी इसलिए हुई कि आजतक गुरुदेव  को हमने देवस्थापना और तस्वीर में बंद देखा था। वीडियो में वर्णन की जा रहे शांतिकुंज के परिजन के जीवन में गुरुकृपा से जो  परिवर्तन होता देखा,सुना तो पता ही नहीं चला कि हमारा मन कब तरह-तरह के तर्क, प्रश्नों और उलझनों से विश्वास में बदल गया।  पता ही नहीं चला कि कब दिन की सारी क्रियाएं ही बदल गयी। पढ़ाई के बाद जब भी समय मिलता सारा दिन फ़ोन पर, गुरुदेव के बारे में अध्ययन करना, DSVV के बारे में जानकारी प्राप्त करना, प्रांतीय युवा प्रकोष्ठ पटना (PYP Patna) के मनीष जी और गुरु जी से जुड़े संस्मरण और प्रज्ञा गीत स्वयं सुनने के इलावा मम्मी,पापा, छोटे भाई शुभम को भी दिखाने-सुनाने लगी। उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते- पीते भावविभोर होती गयी और जीवन में आनंद ही आनंद अनुभव होने लगा।

इन्ही दिनों की बात है कि  एक दिन, एक यूट्यूब चैनल मिला, जो आज भी मेरा सुख दुःख का सच्चा साथी और परिवार बन चुका है। इस चैनल के कम्युनिटी सेक्शन में उस समय “जेलों में गायत्री मंदिर स्थापना” शीर्षक से लेख शृंखला का प्रकाशन हो रहा था। मैंने लेख पढ़ा,बहुत ही प्रभावित हुई। पहले मैं यूट्यूब पर कमेंट करने में  बहुत संकोच करती थी लेकिन  पता नहीं कैसे साहस बटोर कर, मैंने कमेंट किया और जब रिप्लाई आया तो मैं हर्ष से भागती हुई मम्मी को बताने आयी। 

एक बात की अब  समझ आती है कि कोई भी तकलीफ़ अच्छे/बुरे व्यक्ति का फर्क करा देती है। सच्च कहूँ तो कई बार ऐसा भी होता है कि  दुःखद स्थिति ही भगवान के पास पहुँचने में हमारी मदद करती है। सच ही तो कहा है Necessity is the mother of invention. यह वोह क्षण थे ,यही वोह एक कमेंट था जिसने हमें आदरणीय डॉ सर ( ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार -OGGP- के सूत्रधार एवं संचालक) से जोड़ा, वोह डॉ सर  जो परम पूज्य के गुरुदेव  के पोस्टमैन हैं। यही वोह डॉ सर हैं जो हमारे लिए गुरुदेव के दिव्य संदेश, सशक्त विचार ब्रह्मवेला (ज्ञानप्रसाद) से रात्रि (शुभरात्रि सन्देश) तक अपने अपनत्व भरे प्रयासों से हमारे ह्रदय के द्वार खटखटाते रहते हैं। इतना ही नहीं वो तो गुरु जी के देवदूत हैं क्योंकि हम गुरु जी से तो न  मिल सके लेकिन उन्ही के प्रयास से गुरुदेव के  प्रथम शिष्यों में से एक “शिष्य शिरोमणि  शुक्ला बाबा” के बारे में पता चला। डॉ सर  के प्रयास से ही  शुक्ला बाबा के महाप्रयाण से मात्र एक सप्ताह पहले हमें उनके साक्षात् दर्शन करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शुक्ला बाबा का आशीर्वाद  हमारे पूरे परिवार के ह्रदय में सदा के लिए एक अनमोल धरोहर के रूप में रहेगा। शुक्ला बाबा के साथ भी डॉ सर के तार एक कमेंट से ही जुड़े थे, इस कमेंट के माध्यम बिकाश शर्मा थे जो उस समय मस्तीचक बिहार स्थित अखंड ज्योति नेत्र हॉस्पिटल में कार्यरत थे। आजकल बिकाश शर्मा,गायत्री शक्तिपीठ मस्तीचक में हैं। 

“तो यह है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में कमेंट-काउंटर कमेंट की अदृश्य सूक्ष्म शक्ति।”  इस शक्ति का सूत्र केवल एक ही है: समर्पण से हर कमेंट को पढ़ना और आदरसहित यथाशक्ति रिप्लाई करना।    

इस तरह दैनिक ज्ञानप्रसाद हमें हमारे ही परिवार द्वारा दिए गए मानसिक कष्ट से उबारते रहे और हमें पता ही नहीं चला कि कब हम उस कष्ट  से बाहर आ गए। ज्ञानप्रसाद लेख हमारे लिए  औषधि का  काम करते रहे और गुरुकृपा से हम अपने ही कामों में व्यस्त और मस्त रहने लगे। कमेंट- काउंटरकमेंट की प्रक्रिया दिखने में अतिसाधारण है लेकिन दिव्य संभावनाओं से भरपूर है क्योंकि आज के समय में हर कोई अपना ही राग अलापने को बेताब है, किसी की कौन सुनना चाहता है। OGGP एक ऐसा मंच है जहाँ हर कोई अपनी भावनाओं को खुलकर रख सकता है,अपनी सुप्त प्रतिभा को प्रकट कर सकता है,वरिष्ठ अनुभवी सहकर्मियों से प्रोत्साहन प्राप्त कर सकता है। हम इस प्रक्रिया से बिल्कुल अनजान थे, जब भी लेखन किया, हर जगह कमियां निकालने वाले,हिम्मत तोड़ने वाले ही मिलते रहे। OGGP ने हमें प्रोत्साहित करके हमारे अंदर के देवत्व को जगाने में और स्वर्ग जैसा वातावरण बनाने में बहुत प्रेरित किया। इसी चैनल पर हमारी कविता का वीडियो रूपांतरण 23 जून 2021 का  प्रकाशन हुआ जिसने हमारे लिए आत्मिक प्रगति के द्वार खोल दिए। हमारे जीवन में ज्ञान और गुरु भक्ति का जो प्रसार हुआ है वह सही मायनों में  संजीवनी बूटी की भांति  है। इस परिवार से जुड़ना हमारे लिए बहुत बड़ी गुरुकृपा है जो हमें हमेशा संबल प्रदान करती रहती है क्योंकि इसी के कारण हमारा पूरा दिन सत्संगमय बीतता है। 

अंत में गुरुजी से भावभरी प्रार्थना करते हुए कि हमें सद्बुद्धि का दान मिले,अपने संरक्षण में रखकर सुरक्षा चक्र प्रदान करें ताकि हम युग निर्माण कार्य में योगदान दें,अपनी लेखनी को विराम देते हैं। 

जय गुरुदेव जय शिव शंभू  

2.हरिद्वार हमारा घरद्वार-अशोक कुमार जी  

बात 2011 की है जब मेरे मन में पहली बार परम पूज्य गुरुदेव  के जन्म शताब्दी समारोह में जाने की इच्छा हुई थी।हमारी धर्म पत्नी जी को भी शांतिकुंज जाने की हार्दिक इच्छा थी।आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण हम उदास थे, परंतु अगले ही दिन मेरा बकाया पैसा एक बन्धु के द्वारा मुझे वापिस मिल गया। इस तरह हमारा रोम-रोम पुलकित हो उठा और हमने टिकट कराया। हम लोग हरिद्वार पहुंचकर गंगा मैया के तट पर एक टैंट  में ठहरे। दूसरे दिन कलश यात्रा में गुरुवंदना गाते हुए साथ में घूमें, (गीत – स्वर्ग से सुन्दर सपनों से प्यारा ,है शांतिकुंज दरबार, सब पर रहे बरसता यूं ही सदा तुम्हारा प्यार, गुरुदेव का प्यार ना रुठे कभी हरिद्वार ना छूटे)। अगले दिन हवन करने के बाद भगदड़ मची। यह घटना  आंखों देखी और बहुत दर्दनाक थी। वहां से आने के बाद कभी शांतिकुंज जाने का सौभाग्य नहीं मिला। मन ही मन अपने गाये गीत का चिंतन करते थे  कि “किसी का प्यार ना रुठे कभी हरिद्वार ना छूटे”। ठीक 11 साल बाद 2022 को दूसरी  बार गुरु जी माता जी के चरणों में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अखंड ज्योति दर्शन का सौभाग्य पहली बार प्राप्त हुआ एवं समाधि स्थल पर भाव भरी प्रार्थना भी की एवं धन्यवाद भी किया । बेटी संजना के admission के बाद लगातार आना जाना आरम्भ हो गया। सच में हरिद्वार  मेरे लिए घरद्वार हो गया है।

26 दिसंबर 2022 को बड़ी बहन के दाह संस्कार के लिए गंगा घाट गये थे। कुछ देर बाद मेरे मन में भाव आया तो श्मशान घाट ध्यान के लिए 20 मिनट तक बैठे रहे। शांतिकुंज, देव संस्कृति विश्वविद्यालय और प्रज्ञेश्वर महाकाल मंदिर सोने से भी ज्यादा चमक रहे थे। ध्यान की अवस्था में समाधी स्थल और उसके बाद शांतिकुंज के सभी जगहों पर वैसा ही सूर्य जैसा तेज दिखने लगा, हमें  दिव्य अनुभूति होने लगी। भगवान शिव श्मशान का ही भस्म लगाते हैं, ऐसा मानना है कि इससे अधिक  शुद्ध जगह कहीं है ही नहीं। शांतिकुंज पावन धाम अद्भुत,अतुलनीय, अकल्पनीय है। सचमुच शांतिकुंज हमारे लिए धरती पर स्वर्ग है। गुरु जी ही हमारी सारी खुशियों के स्रोत हैं। उन्होंने जैसे अमृतमंथन में विष को पिया था ठीक उसी तरह वह हमारे दुःखों को पी रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव  की कृपा से हमारे जीवन का कायाकल्प हो गया है। हमारा जीवन गुरु जी को ही समर्पित हो ऐसी प्रार्थना करते हैं । 

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s



%d bloggers like this: