वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अफ्रीका यात्रा में जहाज़  पर नौ दिवसीय सत्र

मिरियांबो जहाज 25-30  किलोमीटर प्रति घंटा  की गति से समुद्र की छाती पर किसी विशाल बतख  की सी मस्त चाल से तैरता हुआ जा रहा था। गुरुदेव के केबिन और डेक पर जहां कहीं भी गुरुदेव  बैठते, साधना और स्वाध्याय की गतिविधियां चलती ही  रहती थीं  । शुरु के कुछ  दिन तो अपरिचय/एकांत के वातावरण में ही बीते लेकिन बाद में  गुरुदेव की उपस्थिति की रश्मियां बिखरने लगी और  कैप्टन सदका एवं  उनके सहयोगी साथियों ने भी जहाज़  पर एक “दिव्य पुरुष” के होने की खबर फैलाई।10-12  दिन बीतते-बीतते गुरुदेव के आसपास जिज्ञासु और धर्मभाव संपन्न व्यक्तियों का जमावड़ा लगा रहने लगा। इस जमावड़ा का प्रभाव देखकर गुरुदेव ने इन उत्सुक श्रद्धालुओं के लिए नौ दिन के शिविर की घोषणा कर दी। नौ दिन के साधना अनुष्ठान का विधि विधान और महत्व सुनकर 17 साधक तैयार हुए। वे गायत्री जप और ध्यान के साथ व्त उपवास और भूमिशयन के नियमों का पालन भी करते। करीब 40  साधक ऐसे निकले जिन्होंने खानपानमें सात्विकता का समावेश किया। मांसरहित  भोज ओर भूख से कम खाने के नियमों का पालन करते हुए साधकों ने  जप-तप और  पूजा पाठ किया।साधना उपासना के इस वातावरण का आस्वाद लेते हुए यात्री शिशेल्स द्वीप समूह को पार करते हुए केन्या की  बंदरगाह मोंबासा  का तट आ गए ।

सेशेल्स (Seychelles) हिंद महासागर में स्थित 115 द्वीपों वाला एक द्वीपसमूह राष्ट्र है। सेशेल्स एक रोमांटिक द्वीप समूह के अलावा एक खूबसूरत देश भी है। यह द्वीप समूह दुनिया के खूबसूरत द्वीपो में गिना जाता है।यहाँ बहुत ही कम खर्च में पर्यटन किया जा सकता है। यहाँ मालदीव जैसे दृश्य देखने को मिलते हैं। यह द्वीप समूह चारों ओर से सागरों से घिरा हुआ है। सेशेल्स के वर्तमान राष्ट्रपति वेवेल रामकलावन हैं जिनके  पूर्वज बिहार के गोपालगंज के बरौली प्रखंड के परसौनी गांव के नोनिया टोली के रहने वाले थे। रामकलावन  जनवरी 2018 में बिहार आए थे। अपने पुरखों की धरती गोपालगंज पहुँचने पर  रामकलावन ने बिहार और अपने पुरखों की धरती को अपना बताते हुए कहा था कि आज मैं जो भी हूं, इसी उर्वरा धरती की देन है। मैं यह तो  नहीं जानता कि मेरे पूर्वजों के परिवार के लोग कौन हैं, लेकिन इस धरती पर पहुंचते ही ऐसा आभास हो रहा है कि “हर घर मेरा अपना ही है” 

अनुष्ठान आदि में दो दिन का समय बचा था। नौ दिन की साधना अवधि पूरी होना कठिन  लग रहा था। गुरुदेव ने व्यवस्था दे दी थी कि दो दिन की साधना अपने घर पहुँच कर की जा सकती है। साधकों में से कई प्रार्थना  करने  लगे थे कि जहाज़ की गति धीमी हो जाए ओर गुरुदेव का सान्निध्य दो दिन और मिल सके तो मजा आ जाए। उनके प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही साधना पूरी हो जाए। 

सोमालिया के किसमायो  बंदरगाह तक पहुँचते-पहुँचते सूचना मिली कि जहाज को मोंबासा रुकने की अनुमति नहीं मिल रही है। इसका कोई कारण नहीं बताया गया था। जहाज़  पर चली चर्चा के अनुसार डिप्लोमेटिक  कारण भी थे और तकनीकी भी। डिप्लोमेटिक  कारणों में एक तो यह था कि सोमालिया और केन्या में तनाव चल रहा था । केन्या के अधिकारियों ने आशंका जताई थी कि जहाज़  में सोमालिया से कुछ अवांछित प्रवासी भी सवार हो सकते हैं जिन्हें पहचानना और रोकना प्रशासनिक दृष्टि से मुश्किल काम होगा।

सोमालिया के वर्तमान राष्ट्रपति का भी भारत से सम्बन्ध रहा है। 1988 में उन्होंने बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी जो भोपाल यूनिवर्सिटी हुआ करती थी, से टेक्निकल एजुकेशन में MA की डिग्री प्राप्त की। 

तकनीकी कारणों में जहाज़ के अधिकारियों के अनुसार कुछ यांत्रिक गड़बड़ियां थीं जिन्हें मोंबासा में ठीक नहीं किया जा सकता था। डिप्लोमेटिक यां तकनीकी कारण, जो भी हों, जहाज़  में साधना कर रहे उपासकों के लिए तो “यह स्थिति एक वरदान जैसी थी” क्योंकि  उन्हें बिना मांगे ही गुरुदेव के साथ दो दिन और रुकने का अवसर मिल गया। यद्यपि  गुरुदेव को मोंबासा ही उतरना था किंतु जहाज को वहां रुकने की अनुमति नहीं मिली तो उन्होंने तनिक  भी शिकायत नहीं की। साथ चल रहे आत्मयोगी ने इस बारे में चर्चा छेड़ी तो गुरुदेव ने कहा, “हमें यहां के लोगों के बीच कुछ दिन और रहने का मौका मिल जाएगा।” 

जहाज़  ने रूट  बदला

मोंबासा जाते हुए जहाज़ मुड़कर दक्षिण दिशा में जंजीबार के पास होते हुए दार-एस- सलाम ( Dar-es-salaam) पहुंचा। दार-एस- सलाम जिसका शाब्दिक अर्थ शांति का स्वर्ग होता है, तंज़ानिया देश का सबसे बड़ा पोर्ट सिटी है। यह नगर भी पर्यटन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। 

केन्या में गुरुदेव के आने की तैयारिआं हो रही थीं,इस बदलाव से  परिजनों को  असुविधा तो ज़रूर हुई। जिन दिनों  में  कार्यक्रम निश्चित हुए  थे, उन्हें आगे खिसकाना पड़ा । पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आयोजनों की श्रृंखला मोंबासा (केन्या) से शुरु होकर नैरोबी, मेबां, वडुंगा, आदि शहरों में और मार्ग में पड़ने वाले कस्बों गाँवों से होकर गुजरनी थी। अब यह क्रम उलट देना पड़ा और कार्यक्रम दार-एस-सलाम ( तंज़ानिया) से शुरु हुआ।

यहाँ दिए जा रहे विवरण को समझने के लिए ईस्ट अफ्रीका का नक्शा शामिल किया गया है। मोंबासा केन्या देश  का नगर है और दार-एस-सलाम तंज़ानिया देश का, केन्या और तंज़ानिया पड़ोसी  देश हैं।  

गुरुदेव दार-एस-सलाम उतरे तो उन्होंने कार्यक्रमों में कोई ज़्यादा  फेरबदल न करने का सुझाव दिया। नए सिरे से विचार किया गया तो निश्चित हुआ कि दार-एस-सलाम से मोंबासा तक की यात्रा सड़क मार्ग से पूरी कर ली जाए।

मोंबासा  में शुरु होने वाले शुरुआती कार्यक्रमों की तिथियां बदली जाएं और बाकी स्थानों पर कार्यक्रम यथावत ही रखे जाएं। ईस्ट अफ्रीका में 19  स्थानों पर आयोजन थे। इस क्षेत्र के प्रत्येक देश में कम से कम एक। यों परिजनों ने बुरुंडी,कोमोरोस, जिबौती, इरीट्रिया, इथियोपिया, मेडागास्कर आदि देशों में दो-दो तीन-तीन आयोजन रखे थे लेकिन गुरुदेव का सभी कार्यक्रमों में जाना मुश्किल था । वे केवल 6 सप्ताह के लिए इन देशों की यात्रा पर आए थे इसलिए  ईस्ट अफ्रीका के प्रवासी परिजनों ने इतने पर ही संतोष किया।

East African countries (19) – Burundi, Comoros, Djibouti, Ethiopia, Eritrea, Kenya, Madagascar, Malawi, Mauritius, Mozambique, Réunion, Rwanda, Seychelles, Somalia, Somaliland, Tanzania, Uganda, Zambia, and Zimbabwe.

दार-एस-सलाम के शुरुआती कार्यक्रम और गोष्ठी के बाद गुरुदेव सड़क मार्ग से मोंबासा  के लिए रवाना हुए। बंदरगाह के करीबी शहर कोरोग्वे( Korogwe) से रवाना हुए ही थे कि तीन चार किलोमीटर चलने पर घना जंगल शुरु हो गया। 

गुरुदेव के समक्ष खूंखार आदिवासियों का समर्पण :

गुरुदेव के साथ वहां के गायत्री परिवार के पांच परिजन और भारत से आए आत्मयोगी थे । कुल सात लोगों का काफिला तीन गाड़ियों में था । गुरुदेव बीच वाली गाड़ी में थे । तीन चार किलोमीटर पर ही घना जंगल शुरू हो जाता था ।यात्रा आठ- दस किलोमीटर ही गई होगी कि पत्तों के बीच सरसराहट हुई और लगा जैसे पचास साठ कदम एक साथ कदमताल करते हुए चल रहे हों । सभी के चेहरों पर चिंता की लकीरें उभरीं। उन्हें लगा जंगली जानवरों का कोई छोटा मोटा झुंड होगा । पता नहीं लग रहा था कि यह जंगली जानवर नीलगाय हैं या फिर हिंसक प्रवृति के आदिवासी। सभी असमंजस में थे। लेकिन तीनो गाड़ियों के ड्राइवर चौकन्ने हो गए। आवाज़ जैसे ही पास आई उनमें से एक चिल्लाया , “भागो जान बचाओ” कहते हुए वह जिधर से आए थे उधर ही चले गए । कुछ ही देर में परिजनों ने देखा 25-30 आदिवासियों का समूह आकर प्रकट हो गया ।

उन लोगों ने कमर से नीचे रंग बिरंगे कपडे पहने हुए थे ।ऊपर कुछ नहीं पहना था । गले में कौड़ियों की माला और हाथ में नुकीले सिरे वाले लम्बे सरिए। देखते ही देखते इन सब ने तीनों गाड़ियों को घेर लिया और अजीब -अजीब सी आवाज़ें निकालने लगे । इन्होनें गाड़ियों में बैठे लोगों की तरफ अपने तेज शस्त्र तान दिए । सभी लोग डर गए। साथ बैठी महिलायें तो थर-थर कांप रही थीं ।आदिवासियों ने 3-4 बार शस्त्र दिखाए और चिल्लाये, फिर अगले ही पल शांत भी हो गए। ऐसा लग रहा था वह अपना अगला कदम सोच रहे होंगें । इसी बीच गुरुदेव ने अपने दांये हाथ से इशारा किया और बाएं हाथ से गाड़ी का द्वार खोल कर बाहर आ गए । गुरुदेव का उठा हुआ हाथ देख कर आदिवासी कुछ पीछे हट गए । आदिवासियों के पीछे हटते ही गुरुदेव ने हाथ नीचे कर लिया और कुछ कहा । “क्या कहा ,कोई नहीं जानता । किसी को कुछ समझ नहीं आया” गुरुदेव के हाथ नीचे करते ही आदिवासियों ने मशीनी तत्परता से हथियार नीचे रख दिए । जिस तेजी से हथियार नीचे रखे उतनी ही तेजी से वह नीचे झुके और गुरुदेव को साष्टांग प्रणाम करने के लिए नीचे भूमि पर लेट ही गए ।अपनी जीभ बाहर निकाली और हाथ ऊपर कर दिए। इतना करने पर गुरुदेव ने एक बार फिर कुछ कहा आदिवासियों ने उत्तर भी दिया और उठ कर खड़े हो गए । किसी को नहीं मालूम हुआ क्या वार्तालाप हो रहा है। गुरुदेव ने गाड़ियों में बैठे परिजनों को देखा और कहा आप अब निश्चिंत रहें डरने की कोई बात नहीं “यह सब अपने ही लोग हैं ।” अखंड ज्योति संस्थान मथुरा ( भूतों वाली बिल्डिंग) में भी गुरुदेव का ऐसा ही प्रतिकर्म था। यह निलोत ( Nilotes) जाति के लोग थे । जिस भाषा में गुरुदेव ने उनके साथ बात की उस के केवल पांच सात सौ शब्द हैं । इस भाषा को बांटू कहते हैं आज भी यह भाषा विश्व के 27 अफ्रीकी देशों में बोली जाती हैं । बांटू के अंतर्गत कोई 600 के लगभग भिन्न भिन्न प्रकार की भाषाएँ आती हैं। भारत से गुरुदेव के साथ आए आत्मयोगी को बड़ी हैरानगी हुई गुरुदेव ने यह भाषा इन आदिवासियों के साथ कैसे बोल ली । आत्मयोगी के बारे में जब हमने विद्या परिहार जी से पूछा तो उन्होंने कहा गुरुदेव के साथ भारत से एक दाढ़ी वाले पुरष आये थे। लेख के साथ पिक्चर में आप जो दाढ़ी वाले देख रहे हैं यह वही हो सकते हैं। यह पिक्चर भी विद्या जी ने ही हमें उपलब्ध कराई थी। नैरोबी में गुरुदेव विद्या परिहार के घर में ही ठहरे थे। विद्या परिहार जी के बारे में अगर अधिक लिखेंगें तो लेख की दिशा कहीं और ही चली जाएगी लेकिन नीचे दिए गए वीडियो लिंक को आपने पहले भी देखा है,एक बार फिर से देखना अनुचित न होगा। https://youtu.be/o_793AOO680

गुरुदेव ने गाड़ी के छत पर बैठ कर सम्बोधन किया

थोड़ी ही देर में वर्षा जैसा वातावरण बन गया और यह सब आदिवासी नाचने लगे । उनकी उमंग जब स्थिर हुई तो गुरुदेव ने कहा “आप सब भूल गए हो पर हमको याद है ।हज़ारों वर्ष पूर्व हमने आपके साथ इस धरती पर काम किया है” गुरुदेव ने अभी कहना शुरू ही किया था तो एक आदिवासी आगे आकर कहने लगा :

“आप ऊंचाई पर बैठ जाइये आप हमारे देवता हैं । हमारे बराबर न खड़े हों आपकी मेहरबानी होगी। “ उनकी बात सुनकर गुरुदेव ने इधर उधर देखा और फिर इनकी ही भाषा में बोले ,” इधर तो कोई जगह नहीं है आप नीचे बैठ जाइये मैं खड़े होकर ही बात कर लूँगा।” उनको यह बात भी रास न आई कि गुरुदेव खड़े रहें और हम बैठे रहें । वह गुरुदेव में अपने कबीले के आराध्य को देख रहे थे । तब एक आदिवासी जो शायद कबीले का मुखिया था आगे आया और उसने आगे आ कर कहा:” मैं आपसे विनती करता हूँ आप किसी तरह हम से ऊपर खड़े हों । उसने सूर्य की तरफ संकेत कर के कहा उधर भी तो आप ही खड़े हैं ।” आदिवासीयों की बातों से लग रहा था शायद सूर्य उस कबीले का लोक देवता हो । गुरुदेव ने उस मुखिया की बात रखते हुए पास खड़ी गाड़ियों की छत पर बैठ कर उन कबीलाई लोगों को सम्बोधित किया । उस सम्बोधन में गुरुदेव ने उनके आराध्य सूर्य के और उसकी आराधना के रहस्य समझाये । सम्बोधन का समापन गायत्री मन्त्र के उच्चारण से हुआ । सबसे हैरान करने वाली बात थी कि गायत्री मन्त्र का उच्चारण बिल्कुल स्पष्ट था और करीब 40 मिनट के बाद ऐसा लगता था कि सारा वातावरण गायत्रीमय हो गया और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हर वृक्ष,वृक्ष का हर पत्ता गायत्री का गान कर रहा हो ।

गुरुदेव इन देशों में 40 दिन रहे और 14 स्थानों पर गए। परिजन इन यात्राओं को याद करते हुए इस कबालियों का उद्बोधन और उनमे सोए हुए संस्कार का जागरण सबसे महत्वपूर्ण- दिखाई देने वाली – घटना समझते हैं । दिखाई देने वाली इस लिए कि अदृश्य जगत में तो कई घटनाएं हुई जिनका दृश्य संसार में कोई रिकार्ड नहीं रखा गया ।

तीन खण्डों में प्रकाशित पुस्तक “चेतना की शिखर यात्रा” डॉ प्रणव पंड्या जी और ज्योतिर्मय जी द्वारा लिखित पुस्तक है, इसके तीसरे खंड के पांचवें चैप्टर में ऐसा वर्णन मिलता है कि गुरुदेव ने इस यात्रा में 14 स्थानों में से अमृतमंथन कर 14 रत्न निकाले जिन्होंने गायत्री परिवार को न सिर्फ अफ्रीका बल्कि UK,USA ,CANADA आदि देशों में ले जाने का काम किया। राम टाक जी के छोटे भाई पूर्ण टाक जी ने 28 अप्रैल 2020 को whatsapp मैसेज में बताया था : “मुझे आज भी याद है – गुरुदेव का अफ्रीका प्रवास public speeches देने का नहीं था बल्कि कुछ ऐसी आत्माओं के साथ सम्पर्क स्थापित करना था जो अफ्रीका में ही नहीं Canada, USA, UK और दूसरे देशों में भी गायत्री परिवार को लेकर जाएँ” विद्या परिहार जी का धन्यवाद् जिन्होंने हमें पूर्ण टाक और दूसरे परिजनों से संपर्क करवाया ।

हमारे सहकर्मी इस बात से सहमत होंगें कि इतनी विस्तृत जानकरी वाले अति complex लेखों को compile करना कोई सरल कार्य नहीं है और त्रुटि होना स्वाभाविक है , इसलिए क्षमाप्रार्थी हैं ।

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