माता भगवती भोजनालय की दिव्यता
सप्ताह में केवल एक बार प्रकाशित होने वाले इस स्पेशल सेगमेंट को बार बार “सबसे लोकप्रिय” सेगमेंट कहा गया है, इसकी लोकप्रियता का मापदंड आपके कमैंट्स, काउंटर कमेंट, अनुभूतियाँ , फ़ोन कॉल्स, व्हाट्सअप मैसेज हैं जिसके लिए हम आपका ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।
1.हमारा इस सप्ताह का रिपोर्ट कार्ड बता रहा है कि बहिन सुजाता जी हॉस्पिटल में एडमिट हैं, परम पूज्य गुरुदेव सुरक्षा कवच तो प्रदान किये ही हुए हैं लेकिन हमारा भी कर्तव्य बनता है कि उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना करें। जब आप यह पंक्तियाँ पढ़ रहे होंगें बहिन जी की सर्जरी हो चुकी होगी। हम आपको अवगत करते रहेंगें।
सरविन्द जी को हमने व्हाट्सप्प मैसेज किया कि यूट्यूब पर परिजन ( रेणुका बहिन जी एवं अन्य परिजन) आपकी अनुपस्थिति का पूछ रहे हैं। तो उन्होंने लिखा कि “यही तो इस परिवार की महानता है और हम इस महानता को नतमस्तक है”
आए दिन मानवीय मूल्यों में आती गिरावट को सुरक्षित रखने में हम थोड़ा सा भी प्रयास कर लें तो बहुत कुछ हो सकता है। समाज से अलग होकर रहना तो संभव नहीं है लेकिन “Take it easy, who cares ,chill yaar chill” वाला मार्ग तो विनाश की और ही धकेलेगा। अगर हम भी आँख मूँद लें तो अपने गुरु की शिक्षा का अनादर ही करेंगें जिसे किसी भी मूल्य पर सहन करना संभव नहीं है।
सुजाता जी और सरविन्द जी ने अपने बारे में अपडेट करके इस छोटे से समर्पित परिवार के अनुशासन में चार चाँद लगाए हैं जिसके लिए दोनों सहकर्मी बधाई के पात्र हैं एवं बहुतों को प्रेरणा मिलने की सम्भावना है।
2.बहिन संध्या जी लिखती हैं कि भाई जी, हम परिजन पढ़ते हैं एवं छोटा या बड़ा कमेन्ट, काउन्टर कमेन्ट करते हैं, वह भी हमारा समय आगे पीछे होता रहता है किंतु आपका योगदान तो सराहनीय एवं अनुकरणीय है, आपका तो समय भी नित्य ही नियत समय पर होता है। बहिन जी इसका श्रेय केवल गुरुदेव एवं सहकर्मियों को ही जाता है जो हमारी ऊर्जा का स्रोत हैं।
3.बहिन निशा भारद्वाज जी की परिवार में वापसी और सक्रियता एक अद्भुत प्रसन्नता का आभास दे रहा है ,गुरुदेव से प्रार्थना है कि बहिन जी को सौभाग्य प्रदान करें कि वह गुरुकार्य में अपना योगदान दे सकें। गुरुदेव हर किसी को यह सौभाग्य प्रदान नहीं करते।
तो मित्रो यह रहा आज का अपडेट।
4. आप हमारे लेख हमारी वेबसाइट और Internet Archive पर भी पढ़ सकते हैं I
अब आगे चलते हैं।
पिछले ज्ञानप्रसाद लेख में हमने माता भगवती भोजनालय के सन्दर्भ में ठाकुर हनुमंत सिंह जी की अनुभूति का वर्णन किया था। उसी अनुभूति को फिर से दोहरा कर अरुण वर्मा जी के कमेंट और अपनी एक व्यक्तिगत घटना से support कर रहे हैं।
a) ठाकुर हनुमंत सिंह हाड़ा जी की अनुभूति:
ठा. हनुमंत सिंह राजस्थान के बाड़मेर के पास के रहने वाले थे। उनके पुरखे काफी बड़ी जागीर के स्वामी थे। स्वतंत्रता मिलने के बाद जागीरें तो न रहीं, पर उनके ऐश्वर्य में कोई विशेष कमी न आई थी। ठाकुर साहब में गुण काफी थे,पर दोष भी कम न थे। ऐश्वर्य व विलासिताजन्य कई दुष्प्रवृत्तियां उनके व्यक्तित्व में बुरी तरह समा गई थीं। परिवार के सभी सदस्य उनके दुर्गुणों से बुरी तरह परेशान थे। पता नहीं किस तरह परिवार को ‘अखण्ड ज्योति’ की एक प्रति मिल गई। इसमें गायत्री तपोभूमि और यहां चलने वाले शिविरों के बारे में काफी कुछ छपा था। सारी बातें पढ़कर परिवार के सदस्यों एवं उनकी पत्नी ने सोचा कि ठाकुर साहब को वहां ले जाया जाए। ठाकुर जी से बात की तो थोड़ी न-नुकुर के बाद तैयार हो गए। निश्चित तिथि पर वे मथुरा स्थित गायत्री तपोभूमि पहुंच गए। उन दिनों आने वाले ठहरते तो गायत्री तपोभूमि में थे लेकिन खाना अखण्ड ज्योति संस्थान में खाते थे। इसी नियम के अनुसार ठाकुर साहब भी अपने परिवार के साथ भोजन हेतु अखण्ड ज्योति संस्थान में गए। माताजी ने स्वयं अपने हाथों से परोसकर उन्हें भोजन कराया। मुर्गा-मांस-शराब के अभ्यस्त ठाकुर साहब हालांकि इस तरह के भोजन के आदी न थे, फिर भी न जाने क्यों उन्हें इस भोजन में कुछ अद्भुत स्वाद आया। भोजन करने के बाद वह फिर से तपोभूमि लौट आए। परिवार के सदस्यों के बहुत समझाने पर भी उन्होंने शिविर के किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। हां खाना खाने के लिए अवश्य सबके साथ माताजी के यहां पहुंच जाते थे। ठाकुर साहब कहते थे
“पता नहीं क्या था उस भोजन में लेकिन कुछ अद्भुत जरूर था। दो-तीन दिन में ही मुझमें एक अद्भुत भाव परिवर्तन हो गया। हर समय आंखों के सामने माताजी की सौम्य मूर्ति उपस्थित रहती। पहला परिवर्तन तो यह था कि गलत विचार, गलत भावनाएं मन में अब आती ही नहीं लेकिन यदि पुरानी आदतोंवश आ भी जातीं, तो मन में बड़ी गहरी शर्मिंदगी होती । ऐसा लगता कि माताजी सब कुछ देख रही हैं और मैं कैसी घटिया बातें सोच रहा हूं। घर वापस पहुंचने के बाद पुरानी बातों की ओर मन बिल्कुल भी न गया। परंतु मित्र वही थे, उनकी जोर- जबरदस्ती भी वही थी। इसी जोर-जबरदस्ती के कारण उनके साथ जाना पड़ा। बहुत मना करने के बावजूद भी उन्होंने मांस और शराब का सेवन करा ही दिया। इसके बाद ही हालत खराब हो गई। उल्टी-दस्त का सिलसिला चल पड़ा। जैसे-तैसे घर पहुंचाया गया लेकिन दिनोदिन बीमारी बढ़ती ही गई। दवा-डॉक्टर- इलाज सब बेअसर होने लगे।”
ठाकुर साहब के अनुसार घर के सभी लोग घबरा गए लेकिन उन्हें खुद एकदम घबराहट न थी। उन्हें हमेशा लगता कि माताजी उनके सिराहने बैठे उनका सिर सहला रही हैं और कह रही हैं,
“बेटा, इसे बीमारी नहीं, विरेचन (दस्त) समझ। इस बीमारी के द्वारा तेरे सारे पुराने कुसंस्कार धुल जाएंगे। अब तेरे अंदर वही रहेगा जो मैंने भोजन के साथ तुझे दिया है। तू परेशान न होना, सब कुछ बड़ी जल्दी ठीक हो जाएगा।”
सचमुच वैसे ही हुआ। थोड़े ही दिनों में वह एकदम ठीक हो गए। ठीक होने के बाद उनका जीवनक्रम एकदम बदल गया। पुराने मित्रों का साथ भी छूट गया। फिर से शिविर में गायत्री तपोभूमि आना हुआ। उन्होंने अपनी कथा विस्तार से सबको सुनाई। उनका बदला हुआ जीवनक्रम, कहे गए सत्य को प्रमाणित कर रहा था। नियमित ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री साधना, प्रातः हवन, उनके जीवन के अनिवार्य अंग बन गए थे। माताजी द्वारा दिए गए दिव्य संस्कारों ने उन्हें संपूर्ण रूप से बदल दिया था।
b) अरुण वर्मा जी का कमेंट : सच में हमारे ऊपर भी यही बात लागू हो रही है। 2017 में शांति कुंज पहली बार गया था और वहाँ का भोजन प्रसाद का मौका मात्र एक दिन ही मिला क्योंकि जहाँ भोजन प्रसाद मिलता था वहाँ देखे ही नहीं थे हमें पता नहीं था लेकिन अंत में माता का भोजन प्रसाद पाने का मौका मिला और वहाँ से आने के बाद मेरा भी वही हाल हुआ जो ठाकुर जी के साथ हुआ था, मेरी भी शराब और मांस खाने की बुरी आदत छूट गयी। अपनी पत्नी को यह बात एक वर्ष के बाद बताई तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि बहुत बार छोड़े और बाद में फिर चालू हो जाते थे, लेकिन धीरे धीरे उसे विश्वास हो गया। अब तो हमारे अन्दर किसी भी तरह का कोई नशा नहीं है, प्योर सात्विक भोजन करता हूँ। यह सब गुरुदेव और माताजी के दिव्य प्रसाद का ही परिणाम है।
c) हमारा अनुभव : यह दोनों संस्मरण माताजी के चौके के प्रसाद की दिव्यता को वर्णन कर रहे हैं लेकिन जिन्हे इसका ज्ञान नहीं है उन्हें बताने का कर्तव्य केवल हमारा ही है। नीचे दिए गए अपने व्यक्तिगत अनुभव में हम एक अज्ञानी परिजन की कथा बता रहे हैं :
घटना 2019 के शांतिकुंज संक्षिप्त प्रवास के दौरान की है। हम दोनों पति पत्नी माता भगवती भोजनालय में ही प्रसाद ग्रहण करते थे। संयोगवश एक बहिन जी उसी समय खाना ग्रहण करने आतीं जब हम जाते। उनका व्यवहार हमें कुछ अच्छा नहीं लगा। एक तो वह उन कुर्सियों पर बैठ जाती थीं जो बुज़ुर्गों और उन साधकों के लिए रखी गयी थीं जिन्हे ज़मीन पर बैठने में कोई मेडिकल समस्या थी। ऊपर से वह सम्मानीय स्वयंसेवकों पर ऐसे आर्डर करती थीं जैसे वोह किसी रेस्टोरेंट में waiter हों। उन्हें इस बात का बिलकुल ही ज्ञान नहीं था कि वह युगतीर्थ की भूमि में है जहाँ कण कण में गुरुदेव और माताजी का वास है । हमें उनका बर्ताव अच्छा न लगा तो हमने अपना विरोध व्यक्त किया। हमने माता जी के चौके का महत्व और दिव्यता बताने का प्रयास किया। पहले तो उन्होंने हमारे बात को काटते हुए हमसे बहस करनी शुरू कर दी और बातों बातों में यह कहा कि मैं कौनसा यहाँ आकर राज़ी थीं। मैं तो बाबा रामदेव के आश्रम में शिविर करने आयी थी ,वहां मेरा रहने का इंतेज़ाम न हो सका और मुझे विवश होकर इस गन्दी सी जगह में रहना पड़ा। कल मैंने यहाँ से चले जाना है क्योंकि अब मेरा इंतेज़ाम हो गया है। उनकी बातों से लग रहा था कि उन्हें गुरुदेव के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है, वह तो शांतिकुंज को एक सराय, रात काटने की जगह समझ बैठी थीं। शांतिकुंज के बारे में बहिन जी के विचारों को सुनकर हमें बहुत ही ठेस पहुंची। जब हमने गुरुदेव के बारे में बताने का प्रयास किया भी तो उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
इस घटना ने हमें इतना व्यथित किया कि वर्णन करने के लिए शब्द नहीं है क्योंकि इस घटना के बिल्कुल ही उल्ट घटना उसी दिन सुबह हमारे साथ घटी थी: हम विदेश विभाग में सोमनाथ पात्रा जी के साथ कुछ बात कर रहे थे, दूर सोफे पर एक भाई साहिब बैठे थे जो नॉर्वे (Norway) से आये थे। हमारी बातों से उन्हें पता चल गया कि हमारा last name Trikha है। वह उठ कर हमारे पास आए और चरण स्पर्श करने लगे। आयु में हमसे इतने बड़े, हमें बहुत ही अजीब सा लगा। हम कुछ कह पाते उनकी आँखों में आंसू आ गए और वह हमारे ज्ञानप्रसाद लेखों की भूरी भूरी प्रशंसा किये जा रहे थे, कहे जा रहे थे कि आपके लेखों ने हमारा जीवन ही बदल दिया है। हमें तो अपने गुरु के साहित्य की शक्ति का सबूत मिल गया क्योंकि आज से पहले हमने इन भाई साहिब को न देखा था न कभी संपर्क हुआ था। हम मन ही मन उस गुरु को बार-बार नतमस्तक किये जा रहे थे जिसने हम जैसे साधारण मानव को कितना सम्मानीय बना दिया। यह है गुरु की शक्ति।
इस सेगमेंट की शब्द सीमा warning हमें यहीं पर रोक रही है लेकिन संकल्प सूची तो compile करनी ही है। सुमनलता जी का स्वप्न आने वाले सेगमेंट में प्रकाशित करेंगें।
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में केवल 5 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है क्योंकि कुछ सहकर्मी अवकाश पर हैं। अरुण जी फिर से गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)रेणु श्रीवास्तव-28,(2)संध्या कुमार-26,(3)अरुण वर्मा-44 , (4 )पूनम कुमारी-24,(5) सुमन लता-24
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव