अपने सहकर्मियों की कलम से -19  नवंबर   2022- कुसुम त्रिपाठी एवं सरविन्द पाल जी  का योगदान  

आज के लेख में 7 घंटे का समय लगने के कारण पोस्टर बनाना संभव नहीं हो पाया ,क्षमाप्रार्थी हैं 

सप्ताह के अंत में प्रसारित होने वाले  “अपने सहकर्मियों की कलम से” सेगमेंट की लोकप्रियता का कारण एक तो वीकेंड हो सकता है, दूसरा हमारे रिपोर्ट कार्ड का विश्लेषण हो सकता है जिसमें आपको हमारी त्रुटियां निकाल कर हमें सुधारने का सुअवसर  मिलता है और तीसरा सहकर्मियों की रोचक,प्रेरणादायक बातों को जिन्हे हमारी  लेखनी और भी आकर्षित करने का प्रयास करती है, पढ़ने का अवसर मिलता है। पूरे सप्ताह की एक-एक गतिविधि का संक्षेप में चित्रण करना है तो बहुत ही जटिल कार्य है लेकिन “जिसके ऊपर तू स्वामी, जटिल की कहाँ आये बाति” 

1. साधना जी ने कहा है , “ इस लेख को लेख न कह कर हम अमृतपान कहते हैं”  बिल्कुल ठीक ही कहा है क्योंकि अमृत( अ-मृत)  शब्द का अर्थ जीवनदायक होता है, ऐसी वस्तु का पान करना जो मृत्यु से बचाता हो।  जिस प्रकार अखंड का उल्ट खंड है,मान का उल्ट अपमान है, छूत का उल्ट अछूत होता है, ठीक उसी प्रकार अमृत का उल्ट मृत है। ऐसा ज्ञानप्रसाद जिसके अमृतपान से मृत भी अमर हो जाये। यह कुछ ऐसी फीलिंग है जिसे शब्दों  में वर्णन करना असंभव है। जिस दिन  हम लेखन  न करें, ज्ञानप्रसाद वितरण न करें,लेख पर चर्चा न करें ,कमैंट्स न देखें, रिप्लाई न करें कुछ अजीब सी फीलिंग होती है ,ऐसे लगता है बीमार हैं, something is  missing । जैसे ही स्वाध्याय, ज्ञानपान,तीर्थसेवन के बारे में विचार आते हैं, नवीन ऊर्जा का प्रसार होना आरम्भ हो जाता है। 

2.  बहिन सुमनलता जी ने इसे केवल ज्ञानप्रसाद न कह कर “दिव्य ज्ञानप्रसाद” कहना बेहतर समझा है। “दिव्य” विशेषण तो अपनेआप में ही दिव्यता का प्रतीक है तो  इसका अमृतपान कैसे दैवी विशेषताओं की उत्पति को रोक पायेगा। इतने सुन्दर सुझाव के लिए धन्यवाद् बहिन  जी, आपने ने ही “ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार” में गायत्री शब्द शामिल करके “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार” में परिवर्तित किया था। बहुत बहुत आभार। कल भी आपने लिखा था कि “एक के बाद एक कड़ी जुड़ती जा रही है। किसी भी लेखक की लेखन शैली ही तो उसकी लेखन की प्रतिभा में झलकती है।ऐसे दिव्य ज्ञानप्रसाद के रचयिता को हमारा हार्दिक नमन” हमने यूट्यूब पर इस कमेंट का  रिप्लाई तो कर दिया था लेकिन सभी सहकर्मियों के लिए यहाँ फिर से  शेयर कर रहे हैं, “बहिन जी रचियता, लेखक, मार्गदर्शक, टीचर सब परम पूज्य गुरुदेव ही हैं।कमेंट के लिए धन्यवाद।” बहिन जी ने वंदनीय माता जी जन्म को चार संयोग से बढ़ा कर पांच करके हमारा ज्ञानवर्धन किया है। पांचवां संयोग एक ही समय में वीडियो और लेखन श्रृंखला का प्रकाशन होना है।  वाह वाह बहिन जी धन्यवाद् हो।     

3. राजकुमारी बहिन जी अपनी टीम के साथ दिसंबर में होने वाले यज्ञ की गतिविधियों से नियमित अवगत करा रही हैं। आजकल यज्ञकुंडों  का निर्माण हो रहा है।    

4.हमारे अपने विचार :  

अपने सहकर्मियों से एक बात शेयर करना चाहते हैं कि जिस धारणा  से परम पूज्य गुरुदेव ने    ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की रचना करवाई  थी उसके परिणाम दिनोंदिन प्रतक्ष्य दिखते  ही जा रहे हैं। हमने तो केवल कमैंट्स-काउंटर कमैंट्स की प्रक्रिया पर ही बल दिया था, अधिक से अधिक परिजनों को ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने को प्रोत्साहित किया था ताकि कोई भी इस बहती ज्ञानगंगा में हाथ धोने से वंचित न रह जाये, अपने जीवन को सही दिशा प्रदान करने से वंचित न रह जाए, अपने जीवन का कायाकल्प करने से वंचित न रह जाए लेकिन सरविन्द भाई साहिब ने तो इसे एक स्टैप और ऊपर ले जाकर बहुत बड़ा योगदान दिया। 24 आहुति संकल्प और स्वर्ण पदक का  सुझाव सरविन्द भाई साहिब का ही था। हम सब स्वयं इस  प्रथा की प्रगति देख ही रहे हैं। 20 अक्टूबर को कमैंट्स संख्या 1200, 24- आहुति संकल्प संख्या 34 और स्वर्ण पदक विजेता संख्या 12 के रिकॉर्ड नंबर पर थी। यह रिकॉर्ड संख्या उस निराशजनक स्टेज से वापिस आयी है जब न  केवल एक य दो सहकर्मी ही संकल्प पूरा कर रहे थे बल्कि अरुण वर्मा जी और सरविन्द पाल जी के बीच ही rotation चल रही थी। यह स्थिति सभी के लिए सोचनीय थी, उसी समय हमारे पूज्यवर ने मार्गदर्शन प्रदान किया और आज की स्थिति  पहले की स्थिति से कहीं ऊपर है।  प्रत्येक सहकर्मी इस स्थिति के लिए धन्यवाद् का हकदार है। आज यह सूची अधिक से अधिक diverse होती जा रही है। 

स्वर्ण पदक के बारे में जिज्ञासावश हमें कई बार प्रश्न किया गया है कि “क्या सच में स्वर्ण पदक दिया जाता है ?” हमने कई बार तो इसके बारे में समझाने  का प्रयास किया लेकिन इस बार यही कहा कि अगर गुरुदेव ने चाहा तो यह भी संभव हो जायेगा क्योंकि यह उस गुरु की रचना  है जिन्होंने बहुत बार असंभव को  संभव किया है – हम सब बहुत बार देख चुके हैं। लेकिन हमारे व्यक्तिगत विवेक (भावना)  के अनुसार ज्ञानरथ कंटेंट से जो आत्मिक उत्कर्ष ( परमानन्द)  प्राप्त  हो रहा है, हज़ारों स्वर्ण पदक उस पर बलिदान  हैं। उत्कर्ष को इंग्लिश में ecstasy कहते हैं जिसका अर्थ है  an overwhelming feeling of great happiness or joyful excitement.

सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट “अपने सहकर्मियों की कलम से” इतना  लोकप्रिय क्यों हैं ?  हमारे विचार में  इसकी लोकप्रियता का कारण यह भी  है कि यह सेगमेंट  कमैंट्स -काउंटर कमैंट्स की प्रक्रिया से एक स्टैप  ऊपर है। यह एक ऐसा सेगमेंट है जिसमें प्रतक्ष्य-अप्रतक्ष्य रूप में हर किसी को कुछ भी सकारात्मक  कहने की स्वतंत्रता होती  है, प्रतिभा विकसित करने का अवसर मिलता है और सबसे बड़ी बात meaningful dialogue होता है। Meaningful dialogue (सार्थक संवाद) का अभाव  आज के युग की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। विवाद, दुर्विवाद तो बहुत है लेकिन सार्थक संवाद जैसे  लुप्त ही हो गया है। कहने को तो मानव ने बहुत ही विकास कर लिया है लेकिन अपने ही पिंजरे( ivory tower ) में अकेला कैद होकर  एक भटका हुआ मानव बन कर रह गया है। यह एक ऐसा  प्लेटफॉर्म है जिसका यह स्पेशल सेगमेंट, केवल सार्थक संवाद करने को प्रेरित करता  है और कुछ भी नहीं।

5. आज  गुरुदेव ने मेरे  सुहाग को बचा लिया-  कुसुम त्रिपाठी 

1997 में शांतिकुंज जाकर दीक्षा ली, इससे  पहले केवल मन्त्र ही जानती थी,उसका अर्थ भी पता नहीं था लेकिन मन में सदैव जिज्ञासा बनी रहती थी। हमारी बड़ी दीदी की बेटी प्रभा मिश्रा ने  हमें गायत्री चालीसा दिया उसी में अर्थ लिखा था और मन शांतिकुंज जाने को बेचैन होने लगा। संजोग की बात है कि 4 सितम्बर 1997 को मैं वहां पहुँच गयी और 5 सितम्बर को मेरा दीक्षा संस्कार सम्प्पन हुआ। उसी दिन से अपना जन्म दिन मनाने लगी। समयदान, अंशदान हमेशा बेचैन किये  रखता था। मुझे याद है गुरुदेव के पास बैठकर रोती  थी लेकिन आज मेरे पास कुछ और करने के लिए बिल्कुल ही समय नहीं है। ठीक दो माह बाद मेरे पति  का बहुत ही खतरनाक एक्सीडेंट हुआ। रोज़ बस से ही आते जाते थे,बता रहे थे कि हमें नहीं मालूम कौन मेरा हाथ पकड़ा था जो  बस से कुचलए नहीं। नहीं तो उसी समय मृत्यु हो जाती। घर आये तो मेरी सास और ननद बहुत ही डांटे, दीक्षा लेने से ही ऐसे हुआ है। हमने कहा बिल्कुल  सही है, आज हमारे गुरुदेव ने ही मेरे सुहाग को बचा लिया,अब मुझे कोई भी डिगा नहीं सकता, निष्काम कार्य करती हूँ। आज जब अपनी पोती काव्या  से गुरुदेव की बात करती हूँ  तो बहुत ही रस लेकर सुनती है और पूछती भी है। आज की वीडियो देखकर पूछ रही थी कि अरुण दादा जी ने गुरुदेव को देखा है,आपने क्यों नहीं देखा।   

कुसुम त्रिपाठी जी की सात वर्ष की पोती के साथ  वीडियो कॉल होती रहती है, अक्सर गुड नाईट का वौइस् मैसेज भेजती है। 

6. हमारा तो जीवन ही बदल गया -सरविन्द पाल  

आदरणीय अरुन भइया जी आपने हम सबको एक ऐसा प्लेटफार्म दिया है जिसमें हम सबकी सुप्त पड़ी प्रतिभा जगायी जाती है जिससे हम सबको बहुत प्रेरणा मिल रही है। यह एक ऐसा माध्यम है जिससे  परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक व क्रान्तिकारी विचारों को आत्मसात् कर जन-जन को प्रेरित करनेका सराहनीय व प्रशंसनीय कार्य हो रहा है  l 

आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में जुड़ने से पहले हम गायत्री महामंत्र का लेखन कर समय का सदुपयोग करते थे। मार्च 2020 में वैश्विक बीमारी कोरोना महामारी की प्रथम लहर आयी,  पूरे देश में लाकडाउन हुआ था, तो हमने परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से कोरोना काल में ही  29 सितम्बर 2020 तक 41000 गायत्री महामंत्र का लेखन किया था, तत्पश्चात हम अपने व्यवसाय में लग गए। 

4 मार्च 2021 को जब कोरोना की दूसरी लहर आयी तो हम परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार से जुड़ गए। उसी समय से इस अद्भुत प्लेटफॉर्म पर  प्रकाशित लेखों का बारीकी से अध्ययन करने लगे जिन्होंने  हमारे अंतःकरण में आमूल-चूल परिवर्तन करना आरम्भ कर दिया।हम अपना अधिकांश समय इस परिवार में देने लगे और तब से नियमित समयदान कर दैनिक महायज्ञ में अपने विचारों की आहुतियाँ अर्पित कर रहे हैं।

हमारा अटूट विश्वास है कि  यह सब परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से ही संभव हो पाया है

इस समर्पित परिवार के सभी आत्मीय सहकर्मियों से प्रतिदिन सार्थक संवाद  हो रहा है। यह संवाद ब्रह्मवेला में प्रसारित ज्ञानप्रसाद से आरम्भ होकर देर रात्रि तक शुभरात्रि सन्देश कंटेंट पर आधारित होता है।दैनिक 24 घंटे में सबसे अधिक समय आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार को ही समर्पित कर रहे हैं । 

हमारा परम सौभाग्य है और इस परिवार से जुड़ने से पहले हम प्रतिदिन गायत्री महामंत्र की 11 माला  का जाप  किया करते थे लेकिन अब वही समय कम करके पुरुषार्थ कमाने हेतु यहीं दे रहे हैं क्योंकि वही सब कर्मकांड इस परिवार से पूर्ण हो रहे हैं। 

हम बताना चाहेंगें कि इस परिवार के साथ जुड़ने का श्रेय हम केवल आदरणीय अरुण जी के चुंबकीय लेखों को ही देते हैं l हम अरुण जी का  हृदय से आभार व्यक्त करते हैं  कि परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि एवं उनके अथक प्रयास से आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की रचना हो पायी।

हमारा परम  सौभाग्य है कि प्रतिदिन ब्रह्मवेला में आँख खुलते ही परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक  विचारों पर आधारित बहुत ही सुन्दर शब्दों में विश्लेषण किये लेखों के स्वाध्याय  का दिव्य अवसर प्राप्त होता है। इन लेखों का अमृतपान  कर बहुत सारे सहकर्मी  कृतार्थ हो रहे हैं। इसी तरह रात्रि को प्रसारित होने वाला संक्षिप्त शुभरात्रि सन्देश हमारी सुखद नींद की कामना करता हुआ हमें नींद की गोद में सुला देता है। विश्व भर में सुखद नींद की समस्या ने लोगों के जीवन को अस्त व्यस्त तो किया ही है, इस समस्या से सम्बंधित कितनी ही chronic बिमारियों से लोग त्राहि त्राहि कर रहे हैं। हम तो यही कहेंगें कि हमारा जीवन  ही बदल गया है।  प्रतिदिन OGGP  महायज्ञ में विचार रूपी हवन सामग्री से कमेन्ट्स रूपी आहुति अर्पित कर अपने जीवन का कायाकल्प कर अपनेआप को कृतार्थ कर रहे हैं। 

सभी भाई बहिनों से अनुरोध है कि नियमियता से  इस परिवार में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करके सक्रियता, सहकारिता, सहानुभूति व सद्भावना प्रकट करें, अपार सुखशांति का आभास होगा। धन्यवाद् जय गुरुदेव 

आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 13  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है जो कि बहुत ही सराहनीय है।अरुण  जी एक बार फिर से  गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1)रेणु श्रीवास्तव- 29 ,(2)संध्या कुमार-30,(3)अरुण वर्मा-58,(4 ) सरविन्द कुमार-2 4,(5) सुजाता उपाध्यय-27,(6) कुमोदनी गौरहा-26,(7 )पूनम कुमारी-35,(8 ) नीरा त्रिखा-24,(9 ) सुमन लता-27,(10) प्रेरणा कुमारी-24 ,(11) पुष्पा  सिंह-28,(12)विदुषी बंता-24,(13) संजना कुमारी-26, 

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं।  जय गुरुदेव

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