आज सप्ताह का दूसरा दिन मंगलवार है, इस मंगलमयी ब्रह्मवेला में परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में लिखा गया ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है । आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि यह ज्ञानप्रसाद हमारे समर्पित सहकर्मियों को रात्रि में आने वाले शुभरात्रि सन्देश तक अनंत ऊर्जा प्रदान करता रहेगा।
कल वाला लेख केवल एक सूचना देने की दृष्टि से ही लिखा गया था, हमें कोई आशा नहीं थी कि हमारे सहकर्मी इसे भी उतनी ही रूचि से पढेंगें जितनी रूचि से ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करते हैं , बिलकुल उसी तरह से कमेंट भी आये, हमारे सहकर्मी पूरी तरह से involve रहे जिसके लिए हम सदैव ही आभारी रहेंगें। कमैंट्स की बात करें तो कुछ एक तो इतने ह्रदयस्पर्शी थे उनकी शब्दावली ने हमारे कोमल हृदय के तारों को झकझोड़ कर रख दिया है। हर बार की भांति इस बार भी हमने ऐसे कुछ कमैंट्स सेव कर लिए हैं, समय आने पर प्रकाशित करेंगें, हमारा पूर्ण विश्वास है कि यह कमेंटस सहकर्मियों को परम पूज्य गुरुदेव के मानवीय मूल्यों को धारण करने के लिए प्रेरित करेंगें। आखिर हमारा- आपका अपनत्व और प्रेम का ही तो अटूट बंधन है।
ब्रह्मवर्चस द्वारा सम्पादित 121 पन्नों की दिव्य पुस्तक“महाशक्ति की लोकयात्रा” का Foreword श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी के करकमलों द्वारा सम्पन हुआ है। आज का ज्ञानप्रसाद इस Foreword पर ही आधारित है जिसे हमने कुछ additions करके रोचक और understandable बनाने का प्रयास किया है। इस Foreword को पढ़ना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की असल पुस्तक को।
तो आप पीडीऍफ़ का अध्यन कीजिए और हम प्रस्तुत करते हैं आज की संकल्प सूची।
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 6 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है , अरुण जी सबसे अधिक अंक प्राप्त करके गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)रेणु श्रीवास्तव- 35,(2)संध्या कुमार-27,(3)प्रेरणा कुमारी -28,(4 )संजना कुमारी-30 ,(5)अरुण वर्मा-66,(6) सरविन्द कुमार-34,(7) पुष्पा सिंह-34,(8) सुजाता उपाध्यय-24,(9) प्रेमशीला मिश्रा-37
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव
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‘महाशक्ति की लोक यात्रा’
1988 का स्वर्गीय बी आर चोपड़ा जी द्वारा निर्देशित बहुचर्चित मेगा सीरियल का प्रत्येक एपिसोड निम्नलिखित पंक्तियों से आरम्भ होता था। यह वोह समय था जब सड़कों पर एक तरह से कर्फ्यू जैसी स्थिति होती थी,हम सब अपने टीवी स्क्रीन के साथ गोंद की भांति चिपके होते थे। महेंद्र कपूर जी की आवाज़ में यह पंक्तियाँ जो दिव्यता प्रदान करती हैं उसका वर्णन निम्लिखित पंक्तियाँ कर रही हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे
जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी द्वारा “महाशक्ति की लोकयात्रा” पुस्तक का Foreword इस श्लोक के अंतिम शब्दों “संभवामि युगे-युगे” से आरम्भ होता है।
परम वंदनीय माता जी के दिव्य जीवन की अमृत कथा दर्शाती है कि प्रभु जब भी अपने संकल्प को पूरा करने के लिए मानव कल्याण हेतु इस धराधाम में अवतरित होते हैं तब उनके साथ उनकी लीला शक्ति का भी नारी रूप में प्रायः इस लोक मे अवतरण होता है। इतिहास पुराण के अनेकों पृष्ठ भगवत्कथा के ऐसे दिव्य प्रसंगों से भरे पड़े हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के साथ माता सीता आई, लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण के साथ माता रुक्मिणी का आगमन हुआ, भगवान बुद्ध के साथ यशोधरा का, चैतन्य महाप्रभु के साथ देवी विष्णुप्रिया का इस लोक में आविर्भाव हुआ। श्रीरामकृष्ण परमहंस देव के साथ माँ शारदा ने अवतार लेकर उनके ईश्वरीय कार्यों में सहायता की। ये सभी महान नारियां एक ही महाशक्ति को दर्शाती विभिन्न कलाओं के रूप में अवतरित हुई और भगवान की अवतार लीला में उनकी सहायक बनी।
वर्तमान युग मे उसी महाशक्ति ने माता भगवती के रूप में अपनी समस्त कलाओं के साथ, संपूर्ण रूप में इस धरालोक पर अवतार लिया। अपनी इस लोकयात्रा में महाशक्ति ने अपने आराध्य वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव के ईश्वरीय कार्य में सहायता करने के साथ हम सबके सामने अनेकों जीवनदर्शन प्रस्तुत किए। आदर्श गृहिणी, आदर्श माता, आदर्श तपस्विनी, आदर्श गुरु का स्वरूप हम सबके समक्ष प्रकट किया। यही नहीं उन्होंने अपने पवित्र और साधना सम्पन्न जीवन के द्वारा भारतीय नारी की गरिमा को भव्य अभिव्यक्ति दी। उन्होंने इस श्रुति वाक्य को अपनी जीवन साधना से सत्य सिद्ध किया कि नारी अबला नहीं शक्तिस्वरूपा है। वह आश्रित नहीं आश्रयदाता है। She is not dependent on anybody rather we depend upon her.
इन पंक्तियों के लेखकों को कई दशकों तक उनके निकटतम रहने का सौभाग्य मिला है। सालों-साल एक ही छत के नीचे उनके साथ हंसना-बोलना, खाना पीना, उसके वात्सल्य का सतत पयपान करते हुए जीना, यहां तक कि उसके महाप्रयाण के क्षण तक उनके पास रहना, उन्हीं की कृपा से संभव हुआ है। उनके साथ व्यतीत किया हर पल अभी भी स्मृतियों में सुरक्षित और संरक्षित है। इस अमूल्य निधि को अब तो दिन में कई-कई बार खोलकर देखने की आदत-सी पड़ गई है। उन्हें याद करने से एवं गहन साधना से प्राप्त होने वाला आत्मबल निरंतर शांति प्रदान करता है। श्रद्धेय लिखते हैं कि मैंने उनके जीवन को सदा से ही बहुआयामी (multidimensional) देखा है। वह अति सरल-सहज एवं अति रहस्यपूर्ण थीं । लोक मे रहते लए भी वह पूर्णतया अलौकिक थी। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि उनके जीवन की सम्पूर्ण व्याख्या पूर्णतया असंभव है।
ब्रह्मवर्चस द्वारा संपादित (edited) इस पुस्तक में जो कुछ लिखा गया है वह दृश्य सत्यों ( true scenes) का भावपूर्ण संकलन है। हालांकि ये दृश्य-सत्य ऐसे झरोखों की तरह हैं जिनसे अदृश्य बरबस झांकना-झलकता और प्रकट होता है। यदि भक्तिपूर्ण रीति से, श्रद्धा भाव से इसे पढ़ा जाएगा, तो पढ़ने वाले साधना पथ के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक एक मार्गदर्शिका है, ऐसा मेरा विश्वास है। परमवंदनीया माताजी की कृपा प्राप्ति के इच्छुक जनों के लिए इस पुस्तक को पढ़ना जैसे सुवर्ण पथ पर चलना है। स्थूल देह में न रहने पर भी असंख्य जन आज भी वंदनीया माताजी की पराचेतना की अनुभूति प्राप्त करते है। सत्य यही है कि वे आज भी हैं, यही हैं हमारे एकदम आस-पास हैं । मेरा तो यह विश्वास है कि इन क्षणों में इस पुस्तक को थामे हुए जनों के हृदयों में उठ रहे भाव स्पंदनो को वह महसूस कर रही हैं ।
इस पुस्तक को पढ़ना और श्रवण एक श्रेष्ठ साधना :
मातृ शक्ति, वंदनीय माताजी को पुकारने के लिए इस पुस्तक का पठन और श्रवण एक श्रेष्ठ साधना है। “माताजी की लोकयात्रा” के अनेकों ऐसे प्रसंग हैं जो उनकी भावात्मक अनुभूति कराने में समर्थ हैं । योग विज्ञान के विद्यार्थी उनके इन प्रसंगों को पढ़ने व मनन करने से समझ सकेगे कि सच्ची योग साधना क्या होती है। जो भक्त हैं , उनके लिए महाशक्ति की लोकयात्रा का पठन और चिन्तन जीवन-सुधा की तरह है। जिसे जितनी तरह से और जितनी बार पिया जाए, उतनी ही आत्मचेतना को नवस्फूर्ति प्राप्त होती है। वे इस लोक में हम सबके लिए ही आई थी। हमारी अंतर्चेतना को जगाने, इसे ऊपर उठाने, हम सबके जीवन के कष्ट एवं कठिनाईयो से छुटकारा दिलाने के लिए वह अपनी समूची लोकयात्रा में प्रयत्नशील रही। आज जब वह अपने दिव्यधाम में है, तो भी उन्हें सदा हमारा ही ध्यान रहता है। ऐसी वात्सल्यमयी मां को भक्तिपूर्ण प्रणाम करते हुए मेरी यही प्रार्थना है
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वर्तिहारिणि त्रैलोक्यवासिनाड्ये लोकाना वरदा भव।। -देवी सप्तशती 11/35
” विश्व की पीड़ा को दूर करने वाली मा! हम तुम्हारे चरणो मे पड़े हुए है। हम प्रसन्न होओ। त्रिलोक निवासियों की पूजनीया परमेश्वरी ! सब लोगों को वरदान दो।” महाशक्तिमयी माताजी से इस प्रार्थना के साथ यह पावन प्रयास अब आपके हाथों में सौंपा जा रहा है। आप सभी पर उनके कल्याणमय आशीषों की सतत वर्षा होती रहे।
हम अपने पाठकों को बताना चाहेंगें कि इस धरती पर वंदनीय माता जी का आगमन बहुत ही अद्भुत संयोग था। 20 सितम्बर 1926 का दिन कोई ऐसा वैसा दिन नहीं था। वर्ष 1926 में चार दिव्य संयोग एक साथ घटे थे। यह संयोग थे :
1. आगरा में माताजी का जन्म।
2. आंवलखेड़ा में दादा गुरु के साथ साक्षात्कार यानि परम पूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म।
3. अखंड दीप का जन्म जो आज तक युगतीर्थ शांतिकुंज में अनवरत मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है
और
4. दक्षिण भारत में तपस्या में डूबे महर्षि अरविंद ने घोषणा की कि महाशक्ति का आगमन हो गया है, अब दुनिया बदलेगी।
आशा करते हैं कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रयास से इस दिव्य पुस्तक का एक एक शब्द हमारे लिए अमृत सिद्ध होगा।